लालाजी का सेवक - 5 - रंगीली की सुहागरात PART-2

रंगीली की सिसकी तेज हो गयी…!आअह्ह्ह्ह…..मममलिक्कक्क….अब जल्दी से डालो ना…. 

लाला ने उसकी केले जैसी जाँघों को अपने मजबूत पाटों पर रखा फिर उसके पेट से सहलाते हुए हाथों से उसकी छोटी सी चूचियों को मुट्ठी में लेकर मसलते हुए बोले - क्या डालूं रानी 

रंगीली शर्मा कर बोली - हमें नहीं पता… जानबूझ कर सत्ता रहे हैं सब समझते हैं आप… प्लीज अंदर करो न… आह्हः…सबर नहीं होता अब…

लाला ने मुस्कराते हुए उसकी मिनिया के होठों को खोलकर एक हाथ से अपने लौड़े को एक-दो बार आगे पीछे करके उसकी चुत  के होठों पर रखकर आगे पीछे करके दोनों की अच्छे से पहचान कराई…फिर अपने मोठे टमाटर जैसे सुपडे को उसके छोटे से छेड़ के ऊपर रख कर एक जोरदार धक्का अपनी कमर में लगा दिया….!  

अररररीईई…..ाआमंममआयए…..माररररर…जायईईई…रररीी…. 

वो लाला की छाती पर अपना हाथ आदते हुए कराह कर बोली - आह्हः…मालिक…थोड़ा रुको…वार्ना हमारी जान चली जायेगी…!

रंगीली की इतनी कासी हुयी चुत  देखकर लाला आश्चर्य में पद गए… एक शादी  सुदा लड़की की चुत  इतनी कासी हुयी कैसे ये तो एकदम कोरी ही लग रही है…

फिर उन्होंने नीचे नज़र डालकर अपने लुंड की तरफ देखा जो लगभग ३-४थायी उसके बिल में चला गया था उन्होंने रंगीली के बगलों में हाथ डालकर उसे गद्दी से ऊपर उठा कर अपने सीने से लगा लिया 

और उसके होठों को चूमते हुए बोले - दर्द ज्यादा हो रहा है मेरी रानी को…दर्द के मारे उसकी पलकों की कोरों में आंसुओं की बूँदें छलक आयी थी उन्होंने उसकी आँखों के खरे पानी को चाटकर उसकी पलकों को चुम लिया…!

लाला उसकी पीठ सहलाते हुए बोले - तुम्हें इतना दर्द क्यों हुआ क्या अभी तक तुम्हारे पति ने तुम्हें नहीं भोगा…?

वो उनके चौड़े सीने में मुँह छिपकर बोली - उनका बहुत छोटा सा है बिलकुल आपकी उंगली के बराबर का और आपका ये… इतना कहकर वो शर्मा गयी…!

लाला का सर फक्र से ऊँचा हो गया वो मन ही मन अपने आपको दाद देने लगे…वह रे धरमदास क्या किस्मत पायी है एक कोरी कन्या आज तेरी बाँहों में है…!

फिर उन्होंने उसे फिरसे गद्दी पर लिटा दिया और उसकी कच्चे अनार जैसी कठोर चूचियों को सहलाने लगे उसके निप्पल्स को उंगली में पकड़ कर हलके हाथों से खेलने लगे..

रंगीली को न जाने और कितना सीखना वाकई था लाला उसके बदन के साथ जो जो करतब करते उसे उतने ही प्रकार का अलग ही मज़ा मिलने लगता…लिहाजा अब उसका चुत  फटने का दर्द काम हो गया था… 

लाला ने अब अपना मुसल जैसा लुंड धीरे से बहार निकला…

अपने लुंड पर खून के धब्बे देखकर वो समझ गए की रंगीली की झिल्ली सही मैंने में आज ही फटी है.

उन्हें उसपर और प्यार आया और उसके होठ चूसकर उन्होंने फिरसे एक धक्का लगा दिया… लुंड एक इंच और पहले से ज्यादा अंदर चला गया रंगीली के मुँह से एक बार फिरसे कराह निकल गयी… 

कुछ देर धीरे-धीरे वो उतनी ही लम्बाई को अंदर बहार करते रहे… 

एकदम कासी हुयी चुत  ने उनके लुंड को जैसे जकड रखा था इस वजह से उनका लुंड जबाब देता जा रहा था…!

वैसे उसकी भी बेचारे की क्या गलती थी पिछले एक घंटे से वो अपने लिए बिल की आस लगाए हुए था अब जाकर मिला तो आराम करने की सोचेगा ही…

लेकिन सेठ नहीं चाहते थे की ये साला बीच रस्ते में धोका दे जाए और उनकी इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ जाएँ अगर ऐसा हुआ तो वो रंगीली के सामने कभी नज़र नहीं मिला पाएंगे…!

आज वो उसके उद्घाटन समारोह में अच्छी खासी धूम मचाना चाहते थे जिसे रंगीली जीवन भर याद करे और हमेशा उसके लुंड का लोहा मानती रहे इसलिए उन्होंने उसे बहार खींच लिया… 

रंगीली को तो अभी थोड़ा-थोड़ा मज़ा आना शुरू हुआ था तो जैसे ही उन्होंने अपने नाग को उसकी बाम्बी से बहार निकला एक प्रश्वाचक निगाहों से वो उन्हें देखने लगी…!

उन्होंने उसकी मुनिया के होठों पर लगे खून के धब्बों को उसकी पंतय से साफ़ किया और अपनी जीभ लगाकर उसे चाट लिया…! आअह्ह्ह्ह…

रंगीली को जैसे ठंडक पेय गयी… दहकती चुत  पर जीभ लगते ही वो सिसक उठी….

ससससीईई…आआह्ह्ह्ह…ीईए…क्याआ कर रहे हैं..आपपपप…?

धरम दस ने मुस्कराकर उसकी तरफ देख और बोले - तुम बस देखती जाओ हमारा कमाल ये खाकर उन्होंने अपने ऊपर के होठों को उसके नीचे के होठों पर टिका दिया….!

मस्ती से रंगीली की आँखें बंद हो गयी और उसने अपने आपको लाला के हवाले कर दिया क्योंकि अब तक वो जो भी कर रहे थे उनसे वो आनद की नयी-नयी ुंचायिओं को पार करती जा रही थी जिनके बारे में उसने न तो कभी सोचा था और न ही सुना था….! 

लाला ने एक बार उसकी मुनिया को बड़े प्यार से किस किया और फिर उसकी फांकों को जुड़ा करके उसके अंदर की लाल सुर्ख परतों को जीभ से चाट लिया….

ससीईई….आआह्ह्हह्ह्ह्ह…..ममालल्लीिकककक….बहुत मज़ाआ…ायतत्ता…है ऐसे…तो.. कुछ देर इसी तरह चाटने के बाद उन्होंने उसके भगनासा जो अब कुछ कड़क होकर उसकी फांकों से बहार निकल आया था को अपने होठों में दबाकर चूस डाला…! 

यही नहीं अपनी मोती वाली उंगली भी उसके सुराख़ में दाल कर उसे अंदर बहार करने लगे…

रंगीली की मज़े के कारन कमर थिरकने लगी और वो अपनी गांड उचका-उचका कर उनकी उंगली को और अंदर तक लेने की कोशिश करने लगी…!

इस तरह से वो जल्दी ही अपनी चरम सीमा पर पहुँच गयी और अंत में एक मस्ती की किलकारी मारते हुए उसने अपनी कमर को धनुष की तरह उठा लिया उसकी चुत  ने अपना कामरस  छोड़ दिया था जिसे लाला जलेबी की चासनी समझ कर चाट गए…!

रंगीली इतने से मज़े की खुमारी से ही तृप्त होकर आँखें बंद किये सुकून से पड़ी थी की तभी लाला ने फिर से उसकी टांगें उठाकर अपनी जाँघों पर रख ली और उसके ऊपर पसर कर उसके होठों को चूमकर बोले –कैसा लग रहा है मेरी जान…?

उसने एक बार उनकी आँखों में देखा और फिर शर्माकर अपना सर एक तरफ को करके बोली - हमें नहीं पता…!

लाला ने मुस्करा कर उसके अमरूदों को मसल दिया…और उसके निप्पलों को अंगूठे से मसलते हुए एक हाथ से अपने शेर को फिरसे उसकी गुफा के द्वार तक ले गए…अब वो कुछ खुल चुक्का था सो अपने गरम दहकते सुपडे को जगह तलाश करने में ज्यादा परेशानी नहीं हुयी…!

हल्का सा धक्का देकर लाला ने अपने २” मोठे सुपडे को उसकी संकरी गुफा में प्रवेश करा दिया… थोड़ी देर पहले हुए छिड़काव के कारन अब उसे पहले जितनी मुश्किल नहीं आ रही थी सो वो प्रथम प्रयाश में की गयी खुदाई तक आराम से पहुँच गया…!

लाला कुछ देर तक उसी गहराई तक हलके हलके धक्के लगते रहे रंगीली की चुत  में फिरसे संकुचन शुरू होने लगा और वो मस्ती से भर उठी…

अब उसकी भी कमर नीचे से उठने का प्रयाश करती दिखी तभी लाला ने एक और फाइनल स्ट्रोक मार दिया और उनका लुंड जड़ तक उसकी चुत  में समां गया…

एक साथ हुए हमले से रंगीली एक बार फिर बिल-बिला उठी लेकिन इस बार उसने अपनी चीख को होठों से बहार नहीं आने दिया…!

अब वो नहीं चाहती थी की मालिक अब रुकें आज वो अपने जिस्म की प्यास को पूरी तरह से शांत कर लेना चाहती थी…!लाला का लुंड वो अपनी गुफा के अंतिम छोर तक महसूस कर रही थी जहां पहुँच कर उसने अपनी ठोकर से उसके काम श्रोत का ढक्कन हिला दिया… 


अब उसकी मुनिया कुछ ज्यादा ही तर होती लग रही थी… रसीली दीवारों की चिकनाई पाकर लाला का लुंड ख़ुशी से झूम उठा और अब वो पूरी लम्बाई तक सटासट अपने सफर को तय करने लगा…रंगीली का दर्द न जाने कब छूमनटेर हो चुका था और न जाने कब और कैसे उसकी कमर उचक-उचक कर लाला के लुंड को अपने अंदर और अंदर तक लेने की कोशिश करने लगी…!

लाला की चतुराई काम आगयी थी अब वो पूरी सिद्दत से उसकी प्यास बुझाने में लगे हुए थे इधर रंगीली भी मज़े की पराकाष्ठा तक पहुँचने की कोशिश में थी…

दोनों ही एक दूसरे को संतुष्ट करने का भरसक प्रयास कर रहे थे और इसी प्रयास में दोनों के मुँह से अजीब अजीब सी आवाजें करें निकल रही थी..वो दोनों पसीने से तर हो चुके थे…

२०-२५ मिनट की धुआधार चुदाई के बाद रंगीली को लगा की उसकी चुत  के अंदर का बांध खुलने लगा है उसके गले की नसें अकडने लगी चेहरा लाल भभूका हो गया…

उसकी पीठ धनुष की तरह ऊपर उठ गयी मुँह खुल का खुला रह गया…और उसने अपनी पतली-पतली टांगें लाला की कमर के इर्द-गिर्द लपेट दी वो गद्दी से आधार होकर लाला के बदन से जोंक की तरह चिपकते हुए चिल्लायीईइ…ायययययययय…मम्मालिककक…और जोरसीई…काररूआ…ऊऊऊऊह्ह्ह्ह… मई…आगयीईइई….गाय्यीइइइइइइइ…..आअह्ह्ह्हह्हह… 

वो बुरी तरह हफ्ते हुए झड़ने लगी…

इधर लाला का भी नाग अपना जहर छोड़ने को तैयार था सो एक भरपूर धक्का देकर अपने नाग का फन उसकी रास गागर के अंतिम सतह तक पहुंचकर अपने वीर्य की पिचकारियां मारने लगे…

दोनों की जाँघों के बीच का भाग इस कदर एक दूसरे से चिपक गया मानो फेविकोल का मजबूत जोड़े लगा दिया हो जो कभी चुत ेगा नहीं…

दो मिनट तक रंगीली अपनी कमर उठाये लाला के लुंड पर अपनी मुनिया को दबाये रही फिर जब उसकी एक एक बूँद निचुड़ गयी तब उसकी पीठ बिस्तर से टच हुयी…

वो बेसुध हो चुकी थी उसे इतना भी होश नहीं रहा की एक ८० कग का मर्द उसके नाजुक बदन के ऊपर पड़ा है…

उधर लाला भी ऐसी जानदार लगभग कोरी करारी चुत  पाकर पूरी शक्ति लगाकर झड़े थे सो वो भी उसके ऊपर पसर कर हांफने लगे…..! 

कुछ देर बाद लाला को होश आया तो वो रंगीली के होठों पर एक किश करके उसके बगल में लुढ़क गए… 

के बहार आते ही ढेर सारा मसाला भलभलाकर उसकी चुत  से बहार निकल पड़ा और लाला की गद्दी उसे सोखती रही.. 

करवट से लेते लाला अपने सर को एक हाथ का सहारा देकर रंगीली के शांत पड़े मासूम चेहरे को बड़े प्यार से टाक रहे थे…!

वो इस समय अपनी जिंदगी के पहले ऐसे जबरदस्त स्खलन को पाकर एकदम शांत चित्त आँखें बंद किये हुए इतनी मासूम किसी गुड़िया सी पड़ी हुयी थी…!

उसके मासूम चहरे पर नज़र गढ़ाए एक बरगी लाला जैसे ठरकी आदमी के मैं में भी आत्मग्लानि सी होने लगी.. 

उनके दिल ने कहा –तूने इस मासूम को छल से पाया है धरम दस अपने आप से वादा कर की कभी इसे धोका नहीं देगा…!

उसने मन ही मन अपने आप से ये वादा किया की अपने जीते जी वो कभी भी इस मासूम को कोई दुःख नहीं होने देगा…!

ये सोचकर उसने उसके गाल को सहलाकर उसके माथे को चुम लिया रंगीली की आँखें खुल गयी जब उसने लाला को अपने ऊपर झुके हुए पाया तो अपनी पतली-पतली बाहें उसके गले में दाल दी…

आगे से एक किश उनके होठों पर लेकर बोली - धन्यवाद् मालिक हमें एक सम्पूर्ण औरत होने का एहसास दिलाने के लिए…!

लाला ने उसके गाल चूमकर कहा - तुम्हें कोई दुःख या ग्लानि तो नहीं हमारे साथ ये सब करके..?

वो उनके गले लगकर बोली - इन सब बातों का समय अब बीत चुक्का है मालिक… अब मेरा सुख-दुःख जीना-मरना सब आपके हाथ में है..

लाला ने बड़े प्यार से उसके बदन को सहलाते हुए कहा - अब हम तुम्हें कोई दुःख नहीं होने देंगे रंगीली तुमने हमारा प्यार अपनाकर हमें अपना बना लिया है…लेकिन अब तुम्हें हमारी एक बात माननी होगी…उसने सवालिया निगाहों से उन्हें देखा…

लाला - अब तुम हमें मालिक कहना बंद कार्डो.. तुम्हारे मुँह से अब ये शब्द हमें अच्छा नहीं लगता…हम महसूस करते हैं जैसे कोई गुलाम हमारे शरीर की जरूरतें पूरी कर रही हो…!

रंगीली - तो ाफी बताइये हम आपको क्या कहें..?

लाला - कुछ भी जो तुम्हारा मैं कहे…!

रंगीली - तो ठीक है आज से हम अकेले में आपको धरमजी या लालजी कहेंगे लेकिन दूसरों के सामने मालिक ही कहना पड़ेगा वार्ना लोगों को शक पैदा हो सकता है..

लाला - ठीक है तुम्हारी ये बात हमें जायज लगी… और हाँ तुम्हारे मुँह से धरमजी सुनना हेमिन अच्छा लगेगा…एक बार और बोलो न.…! 

ओह धरमजी… धन्यवाद्.. ये कहकर वो उनकी चौड़ी छाती में समां गयी…!

कुछ देर बाद लाला के हाथ एक बार फिर शरारत पर उतर आये और कुछ ही देर पहले गुजरा हुआ तूफ़ान फिर से वापस आने लगा…!

लाला ने उसे अपने ऊपर ले लिया और उसके होठों को चूसते हुए उसकी पीठ सहलाते रहे फिर उनके हाथ नीचे को उतारते हुए उसके गोल-गोल छोटे लेकिन सुडौल नितम्बों पर पहुंच गए…नितम्बों को सहलाते हुए उन्होंने उन्हें अपने हाथों में लेकर मसल दिया…!आअह्ह्ह्ह…धाराममजीए…जोरसे नाहीइ…राजाजी…..!

सेठ ने अपनी एक उंगली उसके नितम्बों की दरार में रख कर उसे ऊपर नीचे करते हुए कहा - आअह्ह्ह्ह…रंगीली मेरी जान तुम्हारे मुँह से राजाजी…सुनकर हमें बहुत अच्छा लगा…एक बार फिर से कहो न…

रंगीली ने एक कामुक अंदाज में उनकी तरफ देखा और बोली - ोुह्ह्ह राजाजी…

कहकर वो उनके होठों पर टूट पड़ी…अब उसे भी थोड़ा-थोड़ा ज्ञान होने लगा था की मर्द औरत को ज्यादा मज़ा कैसे लेना चाहिए सो वो कुछ देर उनके होठ चुस्ती रही और लालजी उसकी गांड की दरार में उंगली घूमते रहे…

फिर वो धीरे-धीरे नीचे को सरकने लगी उसके छोटे-छोटे कठोर अमरुद लाला की छाती से रगड़ कहते हुए नीचे की तरफ बढ़ रहे थे…!

रगड़ने से उसके छोटे-छोटे निप्पल्स किसमिस के दाने की तरह खड़े हो गए जो लाला के बदन में सनसनी पैदा करने के लिए काफी थे…!

आहिस्ता-आहिस्ता नीचे को सरकती रंगीली के तपते लजीज़ होंठ उनके सीने पर पहुँच गए… फिर उसने लालजी के मोठे-मोठे चुचकों को जीभ से चाट लिया…

अब आहें भरने की बारी लाला की थी…आअह्ह्ह्ह….मेरी जान…क्या कमाल करती हो.. 

ये कहकर उन्होंने उन्माद में आकर अपनी एक उंगली उसकी गांड के संकरे कथायी छेड़ में दाल दी…!

रंगीली ने अपना एक हाथ पीछे ले जाकर फ़ौरन उनकी कलाई थम ली अपनी मदभरी नशीली आँखों को उनके चहरे पर गढ़कर बोली - वहाँ उंगली नहीं राजाजी…!

इधर लाला का लुंड फिर से खड़ा होने लगा था जो उसकी ताज़ा खुली चुत  की रसीली फांकों के बीच लेता पड़ा था…!

फिर वो उनको किश करती हुयी उनकी जाँघों के बीच आगयी अब तक लाला का नाग पूरी तरह फन फैला चुक्का था वो उसे मुट्ठी में लेकर उलट पलट कर देखने लगी…!

लाला का गोरा मोटा तगड़ा लुंड हाथ में लेकर वो अपनी पतली सी नाजुक कलाई उसके बराबर में रखा कर दोनों की तुलना करने लगी उसको थोड़ा ही १९-२० का फर्क नज़र आया… 

वो अपने मुँह पर हाथ रखकर बोली - हाय दिया….ये इतना तगड़ा मेरी कलाई जितना मेरी छोटी सी इसमें कैसे चला गया…?

लाला उसकी नादानी से भरी बात सुनकर बोले - अरे मेरी रानी एक दिन इससे भी तगड़ा बचा भी इसमें से निकलोगी बताना तुम्हें इसे लेकर ज्यादा मज़ा आया की नहीं… 

उसने हाँ में अपनी गार्डन हिला दी तो लाला फिर बोले - औरत को जितना मोटा तगड़ा लुंड जितनी ज्यादा देर तक उसकी चुत  की कुटाई कर सके उतना ही ज्यादा मज़ा आता है.. समझी… अब थोड़ा इसे अपने मुँह में लेकर चुसो तुम्हें और तरह का मज़ा आएगा…!

वो आश्चर्य से उनके लुंड को देखते हुए बोली - इसे मुँह में लेकर चूसा भी जाता है..?

लाला - हाँ रानी जैसे मेने तुम्हारी चुत  को चूसा था तुम्हें मज़ा आया था न.. ऐसे ही इसे चूसने में और मज़ा आएगा…!

रंगीली ने लाला की बात मानकर उसे एक बार पूरा सूपड़ा खोलकर देखा फिर उसके पीछोले पर हलके से अपनी जीभ लगाकर टास्ते किया उसकी जीभ को हाल के झड़े लुंड और उसकी चुत  के रास का मिला जुला कुछ अजीब सा स्वाद लगा…!लेकिन उसमें से आरही खुसबू से वो मस्त हो गयी और उसपर अपनी नाक रगड़कर एक जोरकी सांस खींची…लुंड की खुसबू से ही वो गंगना गयी उसने बिना देर किये उसे गड़प्प कर लिया और उसे लोल्लयपोप समझ कर चूसने लगी…!

आशीर्वाद की तरह लाला का हाथ उसके सर पर पहुँच गया और वो मज़े में आहें भरते हुए बोले - आआह्ह्ह्ह….रानी ऐसे ही.. और जोरसे चुसो…शाबास..

रंगीली कभी उसे चौथाई तक अंदर ले जाती तो कभी आधा तक कमल की बात ये थी की वो लैंड लाला का चूस रही थी लेकिन पानी उसकी मुनिया से छूने लगा…

सो अपना एक हाथ वो अपनी जाँघों के बीच ले गयी और साथ में अपनी चुत  को सहलाने लगी…!उसके लम्बे घने बाल उसकी पीठ से होकर उसके चहरे के दोनों तरफ आ रहे थे जिन्हें सेठ जी दूसरे हाथ से संवारते जा रहे थे…!

सेठ को अब सहन करना मुश्किल होता जा रहा था सो उन्होंने उसके दोनों कंधे पकड़ कर अपने ऊपर खींच लिया और पानी कमर पर बिठाकर बोले- आह्हः.. रंगीली अब तुम अपनी चुत  खोलकर मेरे लुंड के ऊपर बैठो…!

लाला की मनसा समझकर रंगीली के शरीर में सनसनी सी फ़ैल गयी वो उनके लुंड पर बैठकर छोड़ने के एहसास से ही गीली हो उठी 

उसने एक बार लाला के लुंड को पेट की तरफ किया और फिर अपनी चुत  की फांकों को फैलकर उसकी लम्बाई पर रख कर वो आगे पीछे सरकने लगी…!

मात्रा दोनों के अंगों के मिलान से ही दोनों को इतना मज़ा आया की उनकी आँखें बंद हो गयी और दोनों एक साथ सिसकने लगे….आअह्ह्ह्ह….ससीईई…राजाजीइ…मज़ा..ाआराहहा..ह्हैई…हैं मेरी रानीय…उफ्फ्फ…तुम तो कमाल पे कमाल..कर रही होऊ…ओह्ह्ह…अब इसे जल्दी से अंदर लो… वार्ना ये अपना जहर उगल देगा….!

रंगीली - आअह्ह्ह….लालजी..मुझे तो ऐसे ही बहुत मज़ा आरहा है…निकलडो अपना जहर…!लाला - नही..मेरी जान वार्ना तुम प्यासी रह जाओगी….आअह्ह्ह…अब बंद करो ऐसा…प्यासी रह जाने के डर से रंगीली ने फ़ौरन उसे पकड़कर अपने छेड़ पर सेट किया और धीरे से अपनी गांड का वजन डाला रास से लबालब भरी चुत  में वो आधे तक अपने आप ही सरक गया अपनी चुत  में बहरापन महसूस करते ही रंगीली की आह्हः…निकल गयी और उसने अपने होठ कसकर बंद कर लिए…

कुछ और कोशिश के बाद वो उनके मुसल को जड़ तक अपनी मिनिया में ले गयी…चुत  की अंतिम गहराई तक उनके मोठे दहकते सुपडे को महसूस करके वो हांफने लगी… फिर आगे झुक कर उनके होठों को चुम लिया लाला के बड़े-बड़े हाथों ने उसके दोनों कच्चे अनारों को धक् लिया और वो उन्हें मसलने लगे…!

रंगीली की कमर अपने आप आगे पीछे होने लगी…कुछ देर वो बस लाला के ऊपर अपने गांड को रगड़ाती रही पीछे होने पर जैसे ही लुंड की रगड़ उसके भाग नासे को रगड़ती वो मज़े की नयी ुंचायिओं को पार कर जाती…फिर लाला ने उसकी गांड को थम कर थोड़ा उचकाया और नीचे से अपनी कमर चलने लगे धीरे-धीरे नीचे से ही उनकी कमर चलने की रफ़्तार इतनी तेज हो गयी की लुंड की रगड़ से रंगीली की चुत  की दीवारें सुन्न सी हो गयी..

उसकी सुरंग लगातार छु रही थी जिसका बूँद-बूँद रास लाला जी की झांटों को गीला कर रहा था रंगीली अपने घुटनों पर होकर ताल से ताल मिलती हुयी उनका साथ दे रही थी दोनों की टोनिंग अपने आप मैच हो गयी लाला की कमर का ऊपर होना शामे टाइम रंगीली की गांड का नीचे आना… फिर एक समय ऐसा आया की लाला की हुंकार और रंगीली की सिसकी लयबद्ध होकर एक साथ ही झड़ने लगे... 

दो-तीन तगड़े धक्कों के बाद वो एक दूसरे से चिपक गए…….! 

लाला जैसे बलिष्ठ और अनुभवी मर्द का शानदार लुंड लेकर रंगीली के जिस्म की प्यास पूरी तरह बुझ गयी थी…!

चमेली के कहे हुए शब्द उसके कानों में गूँज रहे थे और अब वो उसकी चुदाई की दास्ताँ से अपनी आज की चुदाई की तुलना करते हुए मुस्करा उठी…

वो मन ही मन बड-बड़ा उठी… हम भी कुछ काम नहीं है मेरी सखी…!

उस रात सुबह भोर होने तक वो दोनों चुदाई का भरपूर आनद उठाते रहे लाला के अनुभवों ने रंगीली के बदन का पोरे-पोरे हिला डाला था 

आखिरी चुदाई के बाद वो गुसलखाने से बहार आकर अपने कपडे पहनते हुए बोली - अब में निकलती हूँ धरमजी वार्ना लोग जग जाएंगे और हाँ आज में काम पर नहीं आ पाउंगी…

लाला ने बड़े प्यार से उसके होठों को चुम लिया और बोले– अब तुम्हें किसी भी बात के लिए हमसे इज़ाज़त लेने की जरुरत नहीं है मेरी रानी जो चाहो जैसे चाहो वैसा ही करो कोई तुम्हें रोकने-टोकने वाला नहीं है..और वैसे भी तुम हमारे ही कामों के लिए हो तो दूसरा कोई तुमसे कुछ भी बोलने से रहा..इतना कह कर उन्होंने एक दूसरे को पहले मिलान का विदाई किश किया और रंगीली चुप-चाप पौन फटने से पहले अपने घर आगयी जहां अभी भी सब लोग दवा के असर में खर्राटे लेते हुए सो रहे थे..

रंगीली का पूरा बदन अब पके फोड़े की तरह दुःख रहा था लाला ने उसे पूरा दम-ख़म लगाकर रौंदा था वो भी उनका भरपूर साथ देती रही थी थकन से उसका बदन टूट रहा था सो आते ही बिस्तर पर पद गयी.. और पड़ते ही दीं दुनिया से दूर गहरी नींद के आगोश में चली गयी..

सूरज काफी ऊपर चढ़ आया था उसका पति न जाने कब अपने काम पर चला गया एक बार उसने उसे उठाने की कोशिश भी की लेकिन वो हिली भी नहीं…

फिर जब उसकी सास ने बहुत कोशिश करके उठाया तो वो तबियत ठीक नहीं है का बहाना करके फिर से सो गयी और सीढ़ी दोपहर को ही उठी…!

वो कहावत हैं न “आवश्यकता ही आविष्कार की जननी होती है”....!

 सीढ़ी-शादी  गाओं की अल्हड नव यौवना में न जाने कहाँ से इतनी अकाल आ गयी की उसने सोते-सोते ही ये बहाना गढ़ दिया…

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