लालाजी का सेवक

लालजी का सेवक ...
************************


सेठ धरमदास इस वखत अपने बही खतों में उलझे थे अभी कुछ देर पहले ही मुनीम जी सारा हिसाब किताब समझकर गए थे... जिसे वो फिरसे चेक कर रहे थे…!तभी उन्हें बैठक में पायल की झंकार सुनाई दी उन्होंने अपना सर उठाकर दरवाजे की तरफ देखा सर पर पल्लू डेल उनकी छोटी बहु हाथ में ठंडाई का गिलास पकडे उनकी तरफ आ रही थी…थोड़े से घूंघट जो की उसकी नाक तक ही था उसमें से उसके लाल-लाल लिपिस्टिक से पुते मोठे-मोठे होठ और उसकी गोरी गोरी थोड़ी दिखाई दे रही थी…!धीरे - धीरे अपनी पायल छनकाती हुयी वो उनके पास आकर कड़ी हो गयी और गिलास उनकी तरफ बढाती हुयी बड़ी मधुर आवाज में बोली - पिताजी आपकी ठंडाई…! 

लालजी ने कुछ देर उसके घूंघट में छुपे चहरे पर नज़र डाली फिर उसके हाथ से ठंडाई का गिलास लेते हुए उन्होंने अपनी नज़र घुमाकर अपने खतों पर कर ली गिलास पकड़ने के बहाने उनकी उंगलियां लाजो के हाथ से छू गयी…लाला के गरम-गरम हाथ का स्पर्श पाकर लाजो अंदर तक सिहर गयी गिलास को उसके हाथ से लेते हुए वो बोले - अरे बहु तुमने क्यों कष्ट किया रंगीली कहाँ गयी…?लाजो - वो पिताजी रंगीली काकी उनके लिए भी ठंडाई बना रही हैं इसलिए में ही ले आयी अगर आपको अच्छा न लगा हो तो आइंदा नहीं लाऊंगी…!लाला - अरे..अरे.. नहीं बीटा ऐसी कोई बात नहीं है हम तो बस ऐसे ही बोले की तुमने आने की तकलीफ क्यों की किसी और नौकर के हाथ भिजवा देती अगर तुम्हारा मन करता है यहां हमारे पास आने का तो जरूर आओ तुम्हारा अपना घर है कहीं भी आने जाने के लिए तुम्हें किसी की इज़ाज़त की जरुरत नहीं है…!आओ थोड़ी देर बैठो हमारे पास हम अभी गिलास खली करके देते हैं… लाजो घुटने तक कर उनके सामने बैठ गयी और उन्हें अपने पेअर आगे करने को कहा - पिताजी अपने पेअर दीजिये हमें आपके पेअर पड़ना है लाला ने अपने पेअर आगे करते हुए कहा - अरे बहु इसकी क्या जरुरत है हमारा आशीर्वाद तो वैसे ही हमेशा तुम्हारे साथ है…!लाजो ने अपने ससुर के पेअर छूने के लिए जैसे ही अपने हाथ आगे किये उसका आँचल दलक गया चौड़े गले से उसके ३४” की गोरी-गोरी मोती चूचियां कैसे हुए ब्लाउज से बहार को छलक पड़ी…दोनों आमों के बीच की खायी पर नज़र पड़ते ही लाला का लुंड धोती में सर उठाने लगा उन्होंने अपनी टांगें जान बूझकर फैला राखी थी हिल-हिलकर उनकी पिंडलियों तक अपने मुलायम हाथों से पेअर अच्छे से दबाते हुए छू रही थी… जिससे उसकी भरी-भरकम छातिओं का ऊपरी भाग भी हिलोरें लेने लगा…!लाला के लुंड को ज्यादा सबर नहीं हुआ और वो जल्दी ही खड़ा होकर उनकी धोती से मुँह चमकाने लगा ससुर के शानदार लुंड के दर्शन मात्रा से ही लाजो की चुत  गीली होने लगी वो मन ही मन सोचने लगी रंगीली काकी ठीक ही कहती थी इनका हथियार मुझे जरूर ग्याभन कर देगा…!वो जान बूझ कर ज्यादा देर तक उनके पेअर दबती रही… फिर लाला ने उसके सर पर आशीर्वाद स्वरुप हाथ फेरा और उसकी पीठ सहलाते हुए उसके कंधे पकड़ कर बोले…बस करो बीटा अब बहुत हुआ खुश रहो भगवन करे चाँद सा टुकड़ा जल्दी ही तुम्हारी गोद में खेले…!ससुर के ये शब्द सुनते ही उसने जानबूझकर एक लम्बी सी हिचकी ली उसके होठ इस तरह कांपने लगे मनो वो किसी गम में हो और अपनी रुलाई को रोकने की कोशिश कर रही हो……! 

बस करो बीटा अब बहुत हुआ खुश रहो भगवन करे चाँद सा टुकड़ा जल्दी ही तुम्हारी गोद में खेले…!ससुर के शब्द सुनकर उसने जानबूझकर एक लम्बी सी हिचकी ली उसके होठ इस तरह कांपने लगे मनो वो किसी गम में हो और अपनी रुलाई को रोकने की कोशिश कर रही हो……!लाला ने उसके कंधे सहलाते हुए कहा - अरे बहु क्या हुआ तुम रो क्यों रही हो - हमने कुछ गलत कह दिया क्या…?लाजो बिना कोई जबाब दिए जोर जोरसे सुबकने लगी… लाला ने उसी पोजीशन में उसके कंधे पकड़ कर अपनी ओरे खींचा और उसे अपने सीने से सताते हुए बोले - क्या पारवती ने कुछ कहा तुमसे हमें बताओ बहु क्या बात है…?लाला के अपनी ओरे खींचने से उसके मोठे-मोठे मुलायम दशहरी आम उनकी छाती से जा लगे और उनका आधा खड़ा जुंग बहादुर उसकी रामप्यारी के नीचे सेट हो गया…!लाजो ने अपनी रुलाई को और तेज करते हुए अपने ससुर की पीठ पर अपनी बाहें कास दी…और उनके गले से लग कर रोने लगी…!लाला का लुंड उसकी गांड और चुत  के बीच वाले रिस्ट्रिक्टेड एरिया में अपने जलवे बिखेर रहा था बहु की चुत  की गर्मी पाकर वो अपने पुरे शबाब में आने लगा था.. लाजो ऐसे कड़क लुंड को अपनी चुत  और गांड के बीच महसूस करके गंगना उठी उसकी प्यासी चुत  में मनो ज्वालामुखी फैट पड़ा हो वो किसी भट्टी के मानिंद दाहक उठी…उसकी प्यासी चुत  गीली हो उठी और जल्दी ही उसमें से तप-तप रास टपक कर उसकी पंतय को गीला करने लगी…लाला के हाथ उसकी पीठ को सहला रहे थे जब उनकी उंगलिया उसकी ब्रा की स्ट्रिप से टकराई तो वो उनसे और जोरसे चिपक गयी…!एक हाथ से पीठ सहलाते हुए दूसरे हाथ को उसकी नंगी कमर पर रखकर लाला बोले - कुछ बताओगी भी बहु बात क्या है ऐसे क्यों रो रही हो…!लाजो सुबकते हुए बोली - व.वो..वो…आपने चाँद से टुकड़े को गोद में खेलने वाली बात कही न…लाला - हाँ.. हाँ.. तो क्या तुम नहीं चाहती की इस घर में एक नन्हा मुन्ना वारिस आये और वो तुम्हारी गोद में खेले…!लाजो - हम तो बहुत चाहते हैं पिताजी…पर… उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी..लाला - पर..! पर क्या बहु.. क्या कल्लू तुमसे प्यार नहीं करता..? क्या वो तुम्हारे पास नहीं आता..?लाजो - वो बात नहीं है… वो तो आते भी हैं और प्यार भी करते हैं.. पर…लालजी - तो फिर क्या बात है बहु साफ-साफ कहो बीटा देखो हम तुम्हारे पिता सामान हैं हमसे कुछ मत छिपाओ बोलो फिर क्या बात है…!लाजो - कैसे कहें हमें बहुत शर्म आरही है बोलते हुए…!लाला - शर्माओ नहीं बहु खुल कर कहो…लाजो - वो..वो..कुछ कर नहीं पाते हैं…!लाला - क्या..???? क्या कहा तुमने..? कल्लू तुम्हें को… मतलब बिस्तर पर खुश नहीं कर पता…? 

अपने सुसार के मुँह से आधा अधूरा शब्द सुनकर उसके कान गरम हो गए… वो वासना में नहायी हुयी आवाज में उनके बालों भरे चौड़े सीने को सहलाते हुए बोली - हाँ पिताजी हम साड़ी रात अपने बदन की आग में जलते रहते हैं और वो शराब के नसे में दो मिनट में अपना - छोड़कर.. हांफने लगते हैं और सो जाते हैं…अब बताइये हम कैसे आपकी इच्छा पूरी करें…?अपनी बहु के खुले शब्दों में स्वीकार करने के बाद की उनका बीटा किसी काम का नहीं है वो उसके कूल्हे पर अपना हाथ ले जाकर उसे सहलाते हुए बोले - तो अब तुम क्या चाहती हो बहु..? हमें माफ़ कार्डो बिना अपने बेटे की कमजोरी जाने हम तुम्हें ब्याहकर इस घर में ले आये इस ाश में की शायद तुम वो ख़ुशी दे सको जो बड़ी बहु नहीं दे पायी…खैर अब तुम बोलो क्या चाहती हो चाहो तो इस घर से जा सकती हो हम तुम्हारी दूसरी शादी  किसी अच्छे घर में करवा देंगे…!लाजो - हम तो इसी घर में रहना चाहते हैं पर किसी तरह इस घर को वारिस दे पाएं बस यही इच्छा है…!लाला अब अपना हाथ उसकी गांड की दरार तक ले आये थे उसमें अपनी उंगली से सहलाते हुए बोले - तुम चाहो तो हम कोशिश कर सकते हैं बोलो लोगी हमारा बीज…वो उनके चौड़े सीने में अपनी मोती-मोती चूचियों को दबाते हुए बोली - इस घर की ख़ुशी के लिए हम कुछ भी करने को तैयार हैं पिताजी…!उसके मुँह से ये सुनते ही लाला की बांछें खिल उठी वो सोचने लगे की रंगीली की तरकीब तो बड़ा जल्दी काम कर गयी लगता है उसने पहले से ही इसको भी ऐसा ही कुछ पथ पढ़कर भेजा है…वो मन ही मन उसे डैड देते हुए बुदबुदाए… वह.. मेरी जान मान गए तुम्हें क्या चल चली है…!उन्होंने उसके कंधे पकड़कर उसे अपने सीने से अलग किया और अपने हाथों को उसकी चूचियों पर ले जाकर उसकी आँखों में देखते हुए बोले - हमसे सम्बन्ध बनाने में तुम्हें कोई एतराज तो नहीं बीटा…?लाजो ने अपने मुँह से जबाब देने की वजाये अपने लाल-लाल लिपिस्टिक से पुते होठों को ससुर के होठों से जोड़ दिया लाला के हाथ उसकी चूचियों पर कस्ते चले गए…दरवाजे से आँख और कान सताए कड़ी रंगीली ये देख कर मन ही मन मुस्करा उठी वो तो सोच रही थी की एक-दो दिन में वो इन दोनों को पास ले आएगी पर यहां तो कुछ मिनटों में ही २०-२० मैच शुरू होने लगा था…! लगता है साली नम्बरी छिनाल औरत है ये…!लाला ने अपनी बहु को वहीँ गद्दी पर लिटा दिया उसके ब्लाउज के बटन खोलते हुए बोले - एक बार और सोचलो बहु अगर तुम्हारा दिल गवाही न दे रहा हो तो जा सकती हो… 

वो अपने ससुर के लुंड को अपनी मुट्ठी में लेकर बोली - आअह्ह्ह्ह… ससुरजी अब इस हथियार को छोड़कर कहाँ जाऊं हो सकता है यही मेरी कोख हरी करदे उसकी चूचियों को नंगा करके उन्हें मसलते हुए बोले - तुम बहुत समझदार हो बहु बस अब तुम देखती जाओ कितनी जल्दी तुम्हारी गोद हरी-भरी करते हैं हम.. ये कहकर उन्होंने उसकी साड़ी को कमर तक चढ़ा दिया पंतय के ऊपर से से उसकी गीली चुत  को सहलाते हुए बोले…आअह्ह्ह्ह…बहु तुम तो पूरी गीली हो रही हो.. लाजो ने अपने ससुर ले लौड़े को मुट्ठियाते हुए कहा - सीई…ससुरजी आपका ये मतवाला हथियार देखते ही ये आंसू बहाने लगी… अब दाल दो इसे इसमें…लाला ने उसकी पंतय भी निकल दी और अपने लौड़े पर थूक लगाकर बहु की रसीली सुरंग में अपना गरम लौड़ा सरका दिया…चुड़ैल बहु अपनी आँखें बंद करके सिसकारी लेती हुयी पूरा लौड़ा बड़े आराम से अपनी सुरंग में ले गयी…!लाला अपनी बहु की गरम चुत  मारकर ख़ुशी से फूले नहीं समाये.. उसके आमों को चूसते हुए वो उसे हुमच-हुमच कर छोड़ने लगे....!चुदाई की मास्टरनी लाजो अपनी कमर उछाल-उछाल कर ससुर का लुंड जड़ तक अपनी चुत  में लेने लगी.. आज मुद्दतों बाद उसकी चुत  की मन मुताबिक कुटाई हो रही थी.. अपने ससुर का मतवाला लुंड लेकर वो मन ही मन कुश होकर चुदाई का आनंद लूटने लगी…जब दोनों का ज्वालामुखी शांत हो गया तो वो अपने कपडे पहनकर ससुर के मतवाले लुंड को चूमकर अपनी गांड मटकाती हुयी बैठक से बहार जाने लगी…पीछे लाला अपने लुंड को शाबासी देते हुए बोले - वह मेरे शेर अब जल्दी से अपना कमल दिखा और बहु को ग्याभन करदे… उधर जब रंगीली को लगा की अब इनकी रासलीला ख़तम हो गयी और ये पायल छनकाती हुयी बहार आ रही है वो लपक कर वहाँ से हैट गयी और अपने काम में लग गयी….!उसने जैसा सोचा था वैसा ही हो रहा था छोटी बहु को अपने ससुर से चुड़बकर वो बड़ी खुश थी अब लाला उससे कभी उऊंची आवाज में बात नहीं कर सकता था…बहार आकर जैसे ही उसका सामना रंगीली से हुआ उसने छेड़ते हुए कहा - क्या बात है छोटी बहु बहुत देर लगाडी ससुरजी को ठंडाई पिलाने में…!लाजो ने शर्माकर अपनी नज़रें झुका ली और उसके नजदीक आकर बोली - थैंक यू काकी आपने रास्ता बताकर मेरी समस्या का समाधान करवा दिया…!रंगीली अपने मुँह पर हाथ रख कर बोली - हाय दिया…इसका मतलब पहली मुलाकात में ही सब काम हो गयी..?तुम तो बड़ी तेज निकली बहु रानी.. जाते ही ससुरजी के हथियार पर ढाबा बोल दिया क्या..? लाजो ने शर्म से अपना सर झुका लिया और मुस्कराते हुए उसने रंगीली को साड़ी बातें कह सुनाई जिन्हें वो पहले से ही जानती थी…..! 

रंगीली को पूरा विश्वास था की अब लाला के बीज में वो बात नहीं रही की वो किसी के बच्चा पैदा कर सके किसी को ग्याभन कर सके.. और ये हक़ीक़त जल्दी ही उनके सामने आने वाली थी… लेकिन अब बहु और ससुर उसके इशारों पर नाचने वाले जरूर थे…!वो इन दोनों के सम्बन्ध की चश्मदीद गवाह ही नहीं इस नाटक की पटकथा भी खुद उसी ने लिखी थी……!लाला और छोटी बहु एक बार शुरू क्या हुए अब तो वो हर संभव अपने ससुर के लुंड पर चढ़ी रहना चाहती थी इस वजह से अब रगीली और लाला की चुदाई में ब्रेक सा लग गया…!इसकी भरपाई वो अपने पति रामु से करने की कोशिश कर रही थी लेकिन वो उतना मज़ा नहीं ले पा रही थी जो उसे अब तक लाला के साथ मिलता था…!दिन महीनो में और महीने साल में बदल गए लेकिन लाला को लाजो की तरफ से अभी तक कोई खुश खबरि सुनाने को नहीं मिली वो दोनों अब हताश होने लगे थे !लाला को अपनी औकात जल्दी ही पता चल गयी अब उन्हें समझ में आगया था की वो अब इस काबिल नहीं रहे की किसी को ग्याभन कर सकें लेकिन लाजो को इस बात का कोई टेंशन नहीं था उसे काम से काम एक भरपूर लुंड से चुदाई का साधन तो मिल गया था जिसे अब वो किसी कीमत पे छोड़ना नहीं चाहती थी… ने एक दो बार उसे मन भी किया बहु अब कोशिश करना बेकार है तुम अब हमारे पास मत आया करो… लेकिन वो कहाँ मानाने वाली थी जबरदस्ती उनके लुंड को पकड़ कर बोल देती ससुर जी अब आप ही बताओ में अब कहाँ जाऊं अपनी प्यास बुझाने…?इस डर से की जवान बहु कहीं बहार जाकर हर किसी से न छुड़वाने लगे वो बेचारे उसकी प्यास बुझाने की कोशिश करते रहते………….!उधर शंकर को जबसे उसकी माँ ने उस अलौकिक आनंद से उसका परिचय कराया था वो उसे फिरसे पाने के लिए ललित रहने लगा… गहे बगाहे वो अपनी माँ के बदन से लिपट जाता पीछे से लिपटकर उसके गले को चुम लेता…उसे ये एहसास दिलाने की कोशिश करता की वो फिरसे ऐसा कोई चमत्कार करे जैसा उस दिन किया था उसका लुंड चूसकर… लेकिन रंगीली तो कुछ और ही सोच रही थी जिसका अंदाजा शंकर जैसे नादाँ नव-युवक को कभी नहीं हो सकता था…! 

कई बार वो ऐसा दिखती की वो भी उसे लिफ्ट दे रही है लेकिन वो जैसे ही कुछ आगे बढ़ने की कोशिश करता की वो उसे झिड़क कर अपने से दूर कर देती…!इसके पीछे रंगीली का एक ही मक़सद था की शंकर अपने आप पर काबू करना सीखे और दूसरा कारन उसकी काम उम्र वो नहीं चाहती थी इस कच्ची उम्र में ही वो अपने वीर्य को यूँही बेकार जाय करता रहे………………..!आज दोपहर से ही हलकी-हलकी बूंदा-बांदी हो रही थी स्कूल से चुत ने के बाद शंकर ने अपना और सलौनी का स्कूल बैग एक बरसाती बैग में पैक करके साइकिल के कर्रिएर पर कैसा जिससे उनकी किताबें गीली न हो और छोटी बहिन को आगे बिठाकर वो घर की तरफ चल दिया…!थोड़ी ही देर में उनके कपडे गीले होकर बदन से चिपक गए सलौनी ने अपना सर भाई की चौड़ी छाती से सत्ता लिया और आँखें बंद करके चेहरे पर पद रही ठंडी-ठंडी बूंदों का मज़ा लेने लगी…!भाई के शरीर की गर्मी पाकर उसके बदन में हलचल शुरू हो गयी वो अपने भाई के स्पर्श को महसूस करके उत्तेजित होने लगी…!सफ़ेद स्कूल शर्ट भीगने से उसके बदन से चिपक गयी थी जिसमें से उसकी हरे रंग की समीज साफ-साफ दिखाई दे रही थी ब्रा अभी तक उसे पहनने को नहीं मिली थी..गीली समीज में उत्तेजना के कारन उसके नन्हे-मुन्ने किसमिस के दाने जैसे निप्पल कड़क होकर सामने से अपना इम्प्रैशन दिखने लगे जिन्हें ऊपर से शंकर साफ देख पा रहा था…!माँ के साथ हुए उस दिन के घटनाक्रम के बाद से अब उसके मैं में भी नारी शरीर के प्रति उत्सुकता बढ़ती जा रही थी वो उसके नुकीले निप्पलों को देख-देखकर उत्तेजना से भरने लगा.. इसी वजह से अंडरवियर में उसका नाग अपना फन फ़ैलाने लगा…!उसके लुंड के उभर को सलौनी ने अपनी पीठ पर महसूस किया वो मैं ही मैं खुश होने लगी उसे पूरा विश्वास था की उसकी तरह उसका भाई भी उत्तेजित हो रहा है..उसने अपने कच्चे अमरूदों की झलक अपने भाई को दिखने का निश्चय कर लिया सलौनी ने थोड़ा सा अपना सर हैंडल की तरफ झुकाया अपने एक हाथ की उँगलियों से अपनी शर्ट के ऊपर के दो बटन खोल दिए और समीज को थोड़ा नीचे की तरफ खींचकर खिसका दिया…! 

फिर खुद ने ही झांक कर अपने बदले हुए सन का जायजा लिया अब उसकी छोटी-छोटी चूचियों का ऊपरी हिस्सा दिखने लगा ये सन बनाकर उसने अपना सर पीछे को फिरसे अपने भाई के सीने से सत्ता दिया…!जैसे ही शंकर की नज़र सलौनी के सीने पर पड़ी दो बटन खुले होने की वजह से उसके नन्हे मुन्ने गेंदों के बीच बने छोटे से ढलान और ऊपर के उभारों को देखकर जिनके ऊपर बारिश के पानी की बूँदें मोतियों की तरह चमक रही थी…शंकर का नाग बेलगाम घोड़े की तरह ठुनक उठा जिसकी हलचल महसूस करते ही सलौनी ने अपनी पीठ को और पीछे खिसक कर उसके ऊपर दबा दिया.. ही वो २०-३० डिग्री और साइड को घूम गयी और उसने एक हाथ को शंकर के बाजु पर रखकर अपने एक नीबू को उसकी बाजु पर दबा दिया…!अपने गाल को उसकी थोड़ी से सताते हुए बोली - भैया.. साइकिल उस जामुन के पेड़ के पास रोक देना मुझे जामुन कहानी है…!शंकर ने भी मौके का फायदा लेकर अपने उसी बाजु को उसके सीने के दोनों उभारों पर दबाकर भींचते हुए कहा - ऐसी बारिश में जामुन कैसे तोड़ेंगे...शंकर ने उत्तेजना में आकर उसे कुछ ज्यादा ही जोरसे भींच दिया था उसकी दोनों नन्ही मुन्नी गेंदें बुरी तरह से डाब गयी हलके से दर्द की अनुभूति में वो कराह कर बोली - आअह्ह्ह्ह…भैया…इतनी जोरसे मत भींच मुझे…दर्द होता है…शंकर को अपनी गलती का एहसास होते ही उसने अपने बाजु को हटाना चाहा तभी सलौनी ने उसके बाजु को वहीँ थामकर वो उससे और जोरसे चिपट गयी..फिर उसने भाई के हाथ को अपने हाथ में लेकर अपने एक अमरुद पर रखकर उसे दबाते हुए बोली..हमें कोनसा ऊपर चढ़कर जामुन तोडना है देख वो पेड़ आगया रोक साइकिल वाह्ह्ह्ह…क्या काळा-काले मोठे-मोठे जामुन लगे हैं थोड़ी कोशिश करेंगे तो नीचे से भी हमारे लायक मिल जाएंगे…पेड़ रस्ते से थोड़ा सा ही हटकर था सच में ही बहुत मस्त जामुन लाडे हुए थे बारिस में कोई रोकने वाला भी नहीं था शंकर ने उसके दूसरे अमरुद को भी धीरे से सहलाकर अपनी साइकिल पेड़ के नीचे ले जाकर कड़ी कर दी…! शंकर की हाइट चूँकि अच्छी थी सबसे नीचे की डाली के अंतिम छोर तक उसका हाथ आसानी से पहुँच गया लेकिन जैसे ही उसने उसे पकड़कर झुकाने की कोशिश की वो पदक से टूट गयी हाथ में रह गए कुछ पत्तों समेत एक छोटा सा डाली का टुकड़ा जिसमें दो-चार कच्चे-पके जामुन थे…!ओह्ह्ह…भैया ये तूने क्या किया इससे क्या होगा..? चल वो डाली नीची है उसपे कोशिश करते हैं. शंकर ने दूसरी डाली को पकड़ने की कोशिश की लेकिन हाथ नहीं आयी अपनी जगह उछाल कर डाली को पकड़ा लेकिन कुछ पत्तों के अलावा कुछ हाथ नहीं लगा…!शंकर ने सलौनी के कच्चे अमरुद जो उसके शर्ट के ऊपर से झाँक रहे थे उनपर नज़र डालते हुए कहा - जामुन खाने हैं तो चल घोड़ी बन जा…! 

शंकर ने सलौनी के कच्चे अमरुद जो उसके शर्ट के ऊपर से झाँक रहे थे उनपर नज़र डालते हुए कहा - जामुन खाने हैं तो चल घोड़ी बन जा…!सलौनी ने चौंकते हुए कहा - क्या..? लेकिन क्यों..?शंकर ने मुस्कराते हुए कहा - अरे तेरी पीठ पर खड़ा होकर जामुन तोडूंगा और क्या..? वैसे तू क्या समझी थी..?सलौनी - पागल हो गया है तू वजन देखा है अपना सांड जैसा है तेरा वजन झेल पाउंगी में..? मेरी पीठ ही चटक जायेगी…!शंकर - तो फिर रहने दे चल चलते हैं घर खा ली जामुन…!सलौनी जमीं पर पेअर पटकते हुए ठुनक कर बोली - हूंन्ह..हूंन्ह…मुझे जामुन खाने हैं… फिर अपना दिमाग चलते हुए बोली - भैया तू एक काम कर मुझे ऊपर उथले में तोड़ लुंगी खूब साड़ी चल उठा मुझे ये कहकर वो उसके सामने मुँह करके कड़ी हो गयी…शंकर - तो घूम तो जा पीछे से ही तो उठाऊंगा तुझे…सलौनी - नहीं ऐसे ही आगे से उठा तुझे पता तो रहेगा और कितना उठाना है..शंकर ने थोड़ा झुक कर उसके छोटे-छोटे चूतड़ों के नीचे अपनी बाजु मोड़कर उसे अपने बाजुओं पर बिठा लिया और खड़ा हो गया..!अब सलौनी के कच्चे अमरुद उसकी आँखों के ठीक सामने थे जो गीली समीज में होते हुए बेआवारन जैसे ही लग रहे थे का मैं किया की वो उन्हें अपने मुँह में लेकर चूसे उधर सलौनी अपने अमरूदों पर शंकर के मुँह की भाप महसूस करके गंगना उठी..बारिश के ठन्डे पानी की वजह से उसके कड़क हो चुके निप्पल शंकर के मुँह की गरम भाप से मचल उठे उनमें सुर-सुरहट और तेज होने लगी…सलौनी का मैं कर रहा था की कोई उन्हें काट खाये या फिर मसल दे जिससे उनमें हो रही चुन-चुनाहट काम हो सके…वो सोचने लगी की काश भैया मेरे अमरूदों को खा जाए उन्हें चूसे.. ये विचार आते ही उसकी कुंवारी मुनिया में चींटियां सी रेंगने लगी…!इधर शंकर के दिल में भी ऐसा ही कुछ चल रहा था उसका मन काबू से बहार होने लगा और उसने अपनी छोटी बहिन के कच्चे अमरूदों के बीच की खायी पर अपने तपते होंठ रख दिए…!सलौनी की मस्ती में आँखें बंद हो गयी वो मन ही मन प्रार्थना करने लगी हे भगवन भाई का मुँह थोड़ा इधर-उधर को करदो… लेकिन भगवन ने ऐसी बातों का कोई ठेका थोड़ी न ले रखा था… जब कुछ देर शंकर ने आगे और कोई हरकत नहीं की , तो सलौनी बोली - भैया यहां तक की जामुन तो मेने तोड़ ली इसके थोड़ा ऊपर एक बड़ा सा गुच्छा लगा है थोड़ा और ऊपर कर न…!शंकर ने उसे ताक़त से किसी गुड़िया की तरह उसे ऊपर उछाल दिया फूल जैसी सलौनी उअके सर के ऊपर तक उछाल गयी उसी पल उसने एक हाथ से अपनी स्कर्ट को ऊपर उठा लिया 

और जैसे ही नीचे आने लगी तभी उसने अपने दोनों पेअर शंकर के कन्धों से होकर पीछे की तरफ कर दिए…अब सलौनी आगे से शंकर की पीठ की तरफ पेअर लटकाये उसके मुँह के सामने आराम से बैठी थी उसकी स्कर्ट शंकर के सर पर थी छोटी सी सफ़ेद कच्छी में क़ैद उसकी मुनिया ठीक शंकर की आँखों के सामने थी…!स्कर्ट के अंदर मुँह डेल शंकर की नज़र जैसे ही उसकी कच्छी में क़ैद छोटी सी मुनिया के ऊपर पड़ी जिसकी पतली-पतली फांकों के बीच शंकर की नाक सटी हुयी थी…!पेशाब मिश्रित सलौनी के कामर्स से भीगी कच्छी की खुसबू उसकी नाक में घुसने लगी जिसे सूंघकर वो मदहोश होने लगा आँख बंद करके लम्बी-लम्बी सांस लेकर उसकी चुत  की खुसबू की मदहोशी में स्वतः ही उसके होठ उसकी मुनिया के ऊपर पहुँच गए और उसने उसे कच्छी के ऊपर से ही चुम लिया…!शंकर अपने होठों को उसकी मुनिया के ऊपर ले जाने के लिए जैसे ही उसने अपने मुँह को थोड़ा ऊपर किया उसकी नाक की नोक सलौनी की फांकों के बीच दबाब डालती चली गयी…फिर जैसे ही शंकर ने उसकी मुनिया के होठों को चूमा सलौनी का पूरा शरीर बिजली के झटके की तरह जहां-झना उठा.. उसकी टांगें शंकर के गले से लिपट गयी… शंकर ने अपने होठों का दबाद कच्छी के ऊपर से ही उसकी मुनिया पर बढ़ा दिया और उसे एक बार जोरसे चूस लिया…!न चाहते हुए सलौनी के मुँह से एक मादक सिसकी निकल पड़ी…ससससीईई… आअह्ह्ह्ह….भैया… साथ ही उसने अपने हाथ से उसका सर और दबा दिया…शंकर भी सब कुछ भूलकर उसकी पंतय को अपनी जीभ से चाटने लगा जो उसके कामर्स से भीगती जा रही थी…वो कहते हैं न की आदमी को जितना मिलता है उसे उससे आगे और ज्यादा पाने की इच्छा होने लगती है.. ही कुछ शंकर के साथ हो रहा था अब उसे अपनी बहिन की प्यारी मुनिया के दीदार करने की इच्छा होने लगी… लेकिन उसके दोनों हाथ तो उसकी पीठ पर सहारा दे रहे थे… उसके दिमाग में एक विचार आया और उसने अपनी नाक उसकी कच्छी के किनारे फसायी और उसे एक तरफ को कर दिया…!टांगें चौड़ी होने के कारन सलौनी की मुनिया के पतले-पतले होठ थोड़े से खुले हुए थे… बालों के नाम पर तो अभी उसके रोंगटे ही थे चिकनी मुनिया के पतले होठों के बीच की लालामी देखकर शंकर ब्यौरा उठा और उसने अपनी जीभ की नोक से उसकी मुनिया की अंदरूनी लालामी को कुरेद दिया…अपनी बहिन के कुंवारे रास का स्वाद उसकी जीभ को भ गया और वो उसे ऊपर से नीचे अच्छी तरह से जीभ से रगड़कर चाटने लगा…! 

जैसे ही सलौनी को अपनी मुनिया के अंदर तक अपने भाई की जीभ का एहसास हुआ…उसकी गांड बुरी तरह से थिरकने लगी वो सिसकते हुए पीछे को दोहरी होगयी और अपनी चुत  को उसके मुँह पर चिपका दिया.. वो जोर-जोरसे सांस लेती हुयी अपने भाई के मुँह पर झड़ने लगी… शंकर उसके सारे रास को चाट गया.. जब वो पूरी तरह झाड़ गयी कुछ देर तक उसका शरीर जहां-झनता रहा फिर कुछ सामान्य होते हुए बोली - भैया अब मुझे नीचे उतर ले…शंकर भी होश में आ चुक्का था सो लम्बी-लम्बी सांस लेकर अपने आपको संयत करते हुए बोलै - साड़ी जामुन तोड़ ली…सलौनी के मुँह से बस हुम्म्म..ही निकला… उसने सलौनी को आराम से नीचे सरकाया शंकर के कठोर बदन से रगड़ पाकर उसके अनार फिरसे फड़कने लगे… ने उसे जमीं पर खड़ा किया और आवेश में उसने अपनी बहिन को अपने बदन से चिपका लिया…!कुछ देर वो उसी सुखद एहसास में एक दूसरे से चिपके खड़े रहे शंकर का लुंड सलौनी की नाभि में घुसाने लगा…!सलौनी मन ही मन अपने भाई के लुंड को अपनी नाभि की जगह अपनी मुनिया में फील करने लगी ये सोचकर उसकी मुनिया फिर एकबार गीली हो उठी.. और वो गुदगुदी से भर उठी…!उसने अपने भाई को कसकर अपनी बाँहों में जकड लिया और उसकी छाती पर अपने दहकते होंठ रखकर बोली - मेरा प्यारा भैया…!सलौनी के मुँह से ये शब्द सुनते ही मानो शंकर होश में आगया उसने फ़ौरन सलौनी को अपने से अलग किया और बोलै - ला कहाँ हैं जामुन…!लेकिन जो जामुन उसने तोड़ी थी वो भी इस खेल में जमीं पर गिर पड़ी थी वो अपनी खली झोली टटोलकर बोली - सॉरी भैया वो तो गिर पड़ी… उसकी बात सुनकर शंकर को हसी आगयी सलौनी झेंप गयी और फिर वो भी मुस्करा उठी…!मन में भाई - बहिन का भाव आते ही दोनों की नज़रें स्वतः ही झुक गयी उन्होंने मिलकर नीचे पड़े जामुन उठाये और बिना कुछ बोले चुप-चाप साइकिल उठाकर घर की तरफ चल दिए….. अब एकदम शांत गम-शूम साइकिल चला रहा था उसके मन में कुछ देर पहले अपनी छोटी बहिन के अंगों के साथ खेलने और छेड़-छड़ करने से उसका मन ग्लानि से भर उठा…उधर सलौनी के मन में आनंद की तरंगें उठ रही थी आज उसे अपने भाई के द्वारा अपने कोमलांगों के साथ हुयी छेड़-चाँद खासकर उसकी मुनिया पर हुए भाई की जीभ के स्पर्श सुख से वो अभी भी गुड़ी-गुड़ी से भरी हुयी थी… दोनों ही अपनी-अपनी अलग-अलग सोच में डूबे ख़ामोशी से घर आगये…! 

शंकर अब १२वी क्लास में आ चुक्का था वो अपनी पढ़ाई के प्रति पूरी तरह सजग था…उसे पता था की इस बार के बोर्ड एग्जाम के रिजल्ट पर ही उसका आगे का भविष्य आधारित है…एक दिन खाना पीना खाकर दोनों माँ बेटे जमीं पर बिस्तर लगाकर सोने की तयारी में थे लेते हुए शंकर ने अपना एक हाथ अपनी माँ के पेट पर रखा और उसके ठन्डे मुलायम पेट पर हाथ से सहलाते हुए बोलै –माँ मेरे क्लास टीचर कह रहे थे की तुम इस बार भी अच्छे नम्बरों से पास कर जाओगे थोड़ी और मेहनत करो जिससे तुम्हें शहर के किसी भी अच्छे कॉलेज में बिना किसी खर्चे के दाखिला मिल जाएगा…!ऐसे ही म्हणत करते रहे तो तुम अपने जीवन में बहुत आगे बढ़ सकते हो…!शंकर के गरम हाथ का स्पर्श अपने ठन्डे पेट पर महसूस कर रंगीली को गुदगुदी सी हो रही थी उसकी बात सुनकर उसने उसका हाथ अपने पेट से उठाकर उसकी तरफ करवट बदली और फिर उसी हाथ को अपनी कमर पर रख लिया…!अपने बेटे को बाँहों में जकड कर उसका माथा चूमकर बोली - मेरा बीटा लाखों में एक है मुझे पता है तू बहुत बड़ा आदमी बन सकता है… लेकिन बीटा क्या तू हम लोगों को छोड़कर शहर में अकेला रह पायेगा..? शंकर ने अपना मुँह अपनी माँ के वक्षों के बीच दबाकर उसके बदन की खुशबु सूंघते हुए बोलै - अपने परिवार के भले के लिए अकेला रह लूंगा माँ कॉलेज की फीस तो माफ़ ही हो जायेगी…अपने रहने खाने के खर्चे लायक कोई काम कर लूंगा तू मेरी चिंता मत कर.. बातों के दौरान शंकर ने अपनी एक टांग रंगीली की टांग पर चढ़ा दी दोनों के बदन इतने नजदीक होने से गर्मी बढ़ना स्वाभिविक ही था शंकर का लुंड धीरे-धीरे गर्मी पाकर अपना सर उठाने लगा था और वो रंगीली की जांघ से टच हो गया…!अपनी चूचियों के बीच बेटे के सर को दबाकर वो उसकी पीठ सहला रही थी जैसे ही उसे उसका लुंड अपनी जांघ पर महसूस हुआ उसके बदन में हलचल शुरू हो गयी…!उसके एक मन ने उसे अलग होने को कहा ये तू क्या कर रही है रंगीली अपने ही बेटे के लिए मन में ऐसे गंदे भाव लाना ठीक नहीं है ये सोच कर उसने उसकी टांग को नीचे रख कर दूसरी तरफ करवट लेने की सोची…तभी शंकर ने अपनी कमर आगे करते हुए कहा - तूने कोई जबाब नहीं दिया माँ अब तो में १८ साल का हो गया हूँ अपनी देखभाल खुद कर सकता हूँ…!कमर आगे करने से शंकर का लुंड उसकी जाँघों के बीच रगड़ता हुआ और अंदर ऊपर को चला गया अब वो उसकी चुत  से कुछ कंस की दूरी पर था…!अपनी जाँघों के बीच बेटे बेटे के मस्त कड़क लुंड को महसूस करके रंगीली के दिमाग में उसकी छवि घूम गयी 

उसने उसकी जांघ के पीछे हाथ लगाकर उसे और अपनी ओरे करते हुए कहा - देखेंगे अभी तो समय है तेरे इम्तिहान में…!थोड़ा सा आगे सरकते ही शंकर का लुंड उसकी चुत  की फांकों पर जा टिका लुंड का दबाब अपनी चुत  के मोठे-मोठे होठों पर महसूस करते ही उसकी चुत  फड़क उठी कपड़ों के ऊपर से ही वो लुंड की गर्मी सहन नहीं कर पायी और गीली होने लगी…!उधर शंकर धीरे-धीरे अपनी माँ के कूल्हे को सहला रहा था उसका हाथ थोड़ा सा नीचे होते ही उसके मुलायम गद्दे जैसे चूतड़ पर पहुँच गया वो उसे दबाने लगा…!आह्हः.. माँ एक बात पुछु…?रंगीली - हुम्म्म… क्या है..?शंकर - तेरे चूतड़ इतने मुलायम क्यों हैं - जबकि देख मेरे कितने कठोर हैं दबते ही नहीं और तेरे तो किसी स्पंज की तरह डाब जाते हैं ये कहकर उसने उसके एक चूतड़ को जोरसे दबा दिया…!आअह्ह्ह…बदमाश जोरसे नहीं दर्द होता है… रंगीली मीठी सी कराह लेकर बोली..सॉरी माँ मुझे अंदाजा नहीं था ये कहकर उसने उसके कूल्हे को सहला दिया…!अनजाने में ही उसके बेटे ने उसके बदन में आग पैदा करदी थी वैसे भी लाला के लुंड पर तो लाजो का कब्ज़ा हो चुक्का था पति रामु उसकी मनमर्जी प्यास नहीं बुझा पा रहा था सो महीनों से अधूरी प्यास लिए रंगीली माँ बेटे के सम्बन्ध को भूलती जा रही थी अब उसमें उसे एक जवान मर्द नज़र आ रहा था जिसके पास एक ऐसा हथियार था जैसा उसने आजतक कभी इस्तेमाल नहीं किया था…!शंकर का लुंड उसकी दोनों मोती-मोती जाँघों के बीच फंसा था उसके लुंड को वहाँ गर्मी का एहसास हुआ जिससे वो और ज्यादा फूलने लगा…उत्तेजना में वो अपनी कमर को आगे पीछे करने लगा रंगीली उसकी हरकत देख कर मन ही मन मुस्करा उठी वो उसे छेड़ते हुए बोली - क्यों रे बदमाश ये तू क्या कर रहा है…?शंकर - माँ मेरी एक इच्छा पूरी करोगी..?रंगीली - क्या..?शंकर - वो उस दिन जैसे आपने मेरे साथ किया था मेरा सु सु मुँह में लेकर वैसे ही एक बार और कार्डो न माँ प्लीज माँ उस दिन मुझे बहुत मज़ा आया था…!रंगीली ने उसके सर को ऊपर उठाया कुछ देर अपनी वासना से भरी नशीली आँखों से उसे देखती रही फिर एक झटके से उसने अपने बेटे के होठों पर अपने तपते होठ रख दिए…!अपनी जीभ निकाल कर वो शंकर के होठों को चाटने लगी.. शंकर के लिए ये पहला अवसर था जब किसी की जीभ उसके होठों को इस तरह से चाट रही थी उसने अपने बंद होठों को खोल दिया और रंगीली की जीभ उसके मुँह में पेवस्त हो गयी…  

वो उसके होठों को चूसने लगी कुछ देर तो शंकर को कुछ अंदाजा नहीं लगा की वो उसके होठों को चूस क्यों रही है लेकिन जल्दी ही उसकी उत्तेजना बढ़ने लगी और वो भी अपनी माँ के होठों को चूसने लगा…!अपनी माँ की लिजलिजी जीभ अपने मुँह में पाकर वो अपनी जीभ से उसके साथ खेलने लगा दोनों को इस खेल में असीम आनद आ रहा था…!कुछ देर बाद रंगीली ने अपना मुँह हटा लिया और अपनी नशीली आँखों से शंकर की तरफ देख कर मुस्कराते हुए बोली - आज तुझे उस दिन से भी ज्यादा मज़ा दूँगी मेरे लाल…आज तुझे स्त्री और पुरुष के असल संबंधों के बारे में सब कुछ बताउंगी अब मेरा बीटा भी जवान हो गया है इसलिए अब तुझे वो सब बातें पता होनी चाहिए जो एक जावा मर्द को होती हैं…!इतना कहकर उसने अपना हाथ उसकी कमीज के अंदर दाल दिया और वो उसके कशरती बदन को सहलाने लगी…!कुछ देर बाद उसने शंकर को अपनी कमीज निकलने को कहा जिसे उसने फ़ौरन अपने बदन से अलग कर दिया…!अपने बेट ेके गोर चित्ते कशरती बदन को देखकर रंगीली की वासना में इजाफा होता जा रहा था…वैसे तो वो उसे रोज़ ही देखती थी लेकिन इस समय उसकी नज़र में वो मजबूत नौजवान था जो आज उसकी काफी दिनों दबी प्यास को बुझाने वाला था…!बेटे की चौड़ी छाती पर अपने तपते होठों से एक चुम्बन लेकर उसने उसके पजामा के नाड़े को भी खींच दिया पाजामे को टांगों से निकल कर उसके मस्ती में झूम रहे घोडा पछाड़ नाग को अपनी हथेली में लेकर सहलाया फिर मुट्ठी को कस्ते हुए उसकी सख्ती को परखने के लिए उसने उसे जोरसे मरोड़ दिया…शंकर के मुँह से आअह्ह्ह्ह… निकल गयी जिसे सुनकर वो कामुकता से मुस्करा उठी और उसके लौड़े को चूमकर कड़ी हो गयी…!बेटे के पैरों में कड़ी होकर उसने अपनी चुनरी हटा कर एक तरफ को फांक दी इसी के साथ वो एकदम से पलट गयी और चार कदम उससे दूर जाकर उसकी तरफ पीठ करके उसने अपनी चोली के सारे बटन खोल डेल…शंकर ये बिस्तर पर नंगा पड़ा अपनी माँ को देख रहा था उसने जैसे ही अपनी चोली अपने बदन से अलग की अपनी माँ की गोरी-गोरी पीठ जो उसने आज तक नहीं देखि थी उसके सामने थी…न जाने कैसा आकर्षण था जो अपनी माँ के ऊपरी भाग को पीछे से नंगा होते देख कर उसका लुंड झटके लगाने लगा…अब रंगीली के हाथ उसके लहंगे के नाड़े पर थे शंकर को पीछे से कुछ दिखा तो नहीं पर वो उसके हाथों से अनुमान लगा रहा था की उसकी माँ अपना लेहंगा भी उतरने जा रही है…!कैसा होगा माँ का नीचे का बदन इसी कल्पना मात्रा से ही उसका बदन कमोवेश में आकर तपने लगा…!नाड़े की गाँठ खुलते ही उसका लेहंगा sarrrrrrrrrrrr… से नीचे उसके क़दमों में जा गिरा जिसे उसने अपने पेअर से दूर उछाल दिया… 

कमरे में जल रही लालटेन की पीली सी रौशनी में शंकर अपनी माँ के नंगे पिछवाड़े को देखकर उत्तेजना से भर उठा..उसका घोडा पछाड़ वास्तव में ही किसी फन फैलाये विषधर की तरह आगे पीछे लहराने लगा…!आअह्ह्ह…क्या मस्त नितम्ब थे रंगीली के.. मोटापा तो कहीं छू भी नहीं पाया था उसे अभी तक संतुलित ३० की कमर के बाद उसकी गांड के दोनों उभर ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो दो अर्ध कलश आपस में मिलकर रख दिए हों…एकदम गोल मटोल पीछे को उभरे हुए दोनों कलशों के बीच की गहरी दरार जो इस समय दोनों तरफ के दबाब के कारन एक मोती लाइन सी दिख रही थी…उन दो कलशों के नीचे चिकनी गोरी-गोरी जांघें एकदम गोलाई में किसी केले के मोठे तने जैसी जो नीचे की तरह पतली होती चली गयी थी किसी शंकु की तरह…!कमर तक लहराते हुए उसके काळा घने लम्बे बाल जिनमें से कुछ उसके सूंदर नितम्बों को छूने की कोशिश भी कर रहे थे…अपनी माँ के इस जान मारु पिछवाड़े को देख कर शंकर का लुंड बुरी तरह से ऐंठने लगा.. सामने दिख रहे अपने पसंदीदा बिल में जाने के लिए ुटबाला होकर फड़फड़ा रहा था… फूलकर किसी डंडे के तरह और ज्यादा सख्त हो गया उसकी नशें उभर आयी.अभी शंकर बेचारा अपनी माँ के इस सूंदर पिछवाड़े के रूप जाल से उभर भी नहीं पाया था की तभी रंगीली ने यूँही खड़े-खड़े अपनी गार्डन को बड़े अनुआखे अंदाज में झटका दिया…उसके लहराते हुए खुले बाल पीठ पर से उड़कर किसी काली स्याह घटा की तरह उसके दायी तरफ से होकर आगे पहुँच गए.. जिससे उसकी गार्डन से नीचे तक का सम्पूर्ण भाग नुमाया होने लगा…एक हाथ से अपने बालों को सँभालते हुए उसने गार्डन पीछे को घुमाकर मधभरी नज़रों से अपने बेटे की तरफ देखा..!उसके टनटनाये मस्ती में झूम रहे लुंड पर नज़र पड़ते ही उसकी चुत  में चींटियां सी रेंगने लगी एक हलकी सी सिसकारीयी लेकर उसने अपनी रसीली चुत  पर हाथ फिराया जिसके मोठे-मोठे होठों पर कामर्स पसीने की बूंदों की तरह लगा हुआ था…!उसने बड़ी कामुक ऐडा से अपने कदम आगे को बढ़ा दिए.. उसके चलते ही उसके कलश भी हरकत में आगये जिस पेअर पर दबाब होता वो कलश एकदम गोल शेप में आकर कुछ और ज्यादा पीछे को दिखने लगता उसके बाद दूसरा…!मानो उन दोनों में हम बड़े या तुम बड़े होने की कोई प्रतियोगिता चल रही हो… 

धीरे-धीरे कदम बढ़ने से उसकी दोनों कलशों के बीच की दरार भी अपनी ले में उसी अनुसार इधर से उधर होने लगती और दोनों पाटों के बीच घर्षण पैदा होने लगा…!अपनी माँ की इस ऐडा ने तो शंकर के लुंड की माँ ही छोड़ डाली वो बुरी तरह से ऐंठने लगा उसके लुंड में दर्द होना शुरू हो गया शंकर किसी महँ मुर्ख की तरह नंगा पुंगा अपनी कुहनी टीकाकार लेता हुआ अपनी माँ की मादक अदाओं से बिचलित होता जा रहा था उसकी काम इच्छा पल-प्रतिपल बलवती होती जा रही थी..अपने आप पर कण्ट्रोल रखना उसके बस से बहार होने लगा… बेचारे को अभीतक मुट्ठ मरना भी नहीं आता था.. उसका मैं कर रहा था की अपने लुंड को पकड़ कर मरोड़ दे… बस इसी आवेश में आकर पहली बार उसने अपने लुंड को हाथ लगाया और उसे जोरसे मरोड़ दिया…लुंड की ऐंठन से उसके मुँह से कराह निकल पड़ी…आआह्ह्ह्हह….माआ…रंगीली अपने बेटे की कराह सुनकर एक दम से पलट गयी… और दौड़ते हुए उसके पास आकर बोली - क्या हुआ मेरे लाल…? सामने से अपनी माँ के नग्न शरीर पर नज़र पड़ते ही शंकर अपने लुंड का दर्द भूलकर उसके युएवं में खो गया उसका मुँह खुला का खुला रह गया……. शंकर को इस अंदाज से अपने सूंदर गोर बदन को घूरते देखकर वो मंद मंद मुस्कराते हुए मद्धम गति से एक-एक कदम आगे बढ़ाते हुए उसकी तरफ आने लगी… उसकी एकदम चिकनी सम्पूर्ण गोलाई लिए हुए केले के तने जैसी मांसल जांघें मानो संगेमरमर के दो स्तम्भ चले आ रहे हों..जाँघों के भींच का यौनि प्रदेश जिस पर उसके पेडू तक हलके हलके काळा बाल जो शायद एक हफ्ते की फसल रही होगी उनके बीच माल पुए जैसी फूली हुयी दो फांकों के बीच एक पतली सी दरार जो इस समय दोनों तरफ के जाँघों के दबाब के कारन मात्रा एक बारीक लाइन सी दिखाई दे रही थी..उसने बड़ी कामुक ऐडा से अपनी हिरणी जैसी चंचल कजरारी आँखों से अपने बेटे की तरफ देखा और उसके सामने कड़ी होकर बोली - अब बता मेरे लाल कैसी है तेरी माँ…? तेरे सपनों में आने वाली उस युवती जैसी है या नहीं…?शंकर के चेहरे पर विषमय के भाव साफ़-साफ़ उजागर थे वो फ़ौरन उठखडा हुआ और अपनी माँ के हाथों को अपने हाथों में लेकर उसने उसे ऊपर से नीचे तक अपनी भरपूर नज़र डालकर देखा… 

रंगीली को जैसे ही ये महसूस हुआ की उसके बेटे की चरम सीमा समाप्त होने वाली है झट से उसने उसके लुंड को अपने मुँह से बहार निकल लिया…!शंकर इस झटके से आश्चर्य चकित होकर अपनी माँ की तरफ देखने लगा…!वो उसे ही निहारे जा रही थी आँखों में अपार वासना का समंदर लिए वो कामुक नज़रों से उसे देखते हुए बोली - आज तुझे और भी बहुत कुछ करना है मेरे शेर.. चल आजा मेरा राजा बीटा…ये कहते ही वो उसका हाथ पकड़ कर बिस्तर पर आगयी उसके होठों को चुम कर बोली - अब तू अपनी माँ को भी ऐसा ही मज़ा दे जैसा अभी मेने तुझे दिया है ये कहकर उसने उसके हाथों को अपनी चूचियों पर टिका कर उसके होठों को फिरसे चूसने लगी…स्वतः ही शंकर के हाथ उसके वक्षों पर कास गए जिन्हें वो कभी मुँह से चूसकर दूध पीटा था आज हाथों से मसल-मसल कर उनका रास निचोड़ने में लगा था…!चूचियों की मीणजन से उसकी चुत  में इतनी जोरसे खुजली हुयी की उसने अपनी दोनों मांसल जाँघों को एक के ऊपर दूसरी चढ़कर अपनी चुत  को जाँघों से ही मसलने लगी…धीरे-धीरे रंगीली उस बिस्तर पर लेट गयी और उसे अपने ऊपर लेकर अपने बदन को चूमने चाटने का इशारा किया…!अब वो भी अपनी माँ के इशारों को समझने लगा था सो अब उसके ऊपर छाते हुए पहले उसने अपनी माँ के दोनों गालों को बारी-बारी से चूमा उसके बाद वो उसके होठों को चूमने लगा…रंगीली ने उसे अपनी बाँहों में कास लिया उसके कड़क निप्पल अपने बेटे की पत्थर जैसी कठोर छाती से पीसने लगे…चूमते हुए वो अपनी माँ के गले से होते हुए उसके उरोजों पर उसने जैसे ही अपने तपते होठ रखे रंगीली की सिसकी निकल गयी वो कामुकता से भरी आठ.. भरते हुए बोली….आआह्ह्ह्ह…मेरे राजा बीटा चूस ले इन्हें फिरसे…. मसल मेरे लाल कम्बख्त बहुत मचलते हैं तेरे हाथों के लिए…!वो उसकी एक चुकी को पुरे मुँह में भरके चूसने लगा दूसरे को अपने हाथ में लेकर मसल डाला कुछ देर बाद उसने अदला बदली कर ली नीचे रंगीली ने उसके लुंड को अपनी मुट्ठी में कास लिया था…इस समय उसकी चुत  बुरी तरह बहे जा रही थी उसकी फांकों के बीच से लगातार कामरस  की बूँदें बिस्टेर पर टपक रही थी…! 

रंगीली को अब अपने ऊपर कण्ट्रोल करना मुश्किल होता जा रहा था उसकी चुत  में मनो ज्वालामुखी भड़कने लगा था सो उसने शंकर के सर को नीचे की तरफ दबाया…!इशारा पाकर वो उसकी चूचियों को छोड़कर उसके पेट को चूमते हुए जब उसे उसकी नाभि का छेड़ दिखाई दिया तो शंकर ने उसमें अपनी जीभ की नोक दाल कर जैसे ही घुमाई रंगीली का पेट थार-थार कांपने लगा… वो अपनी कमर को इधर से उधर हिलने लगी… उसको इतनी गुदगुदी हुयी की जबरदस्ती उसके सर को धकेलने लगी…शंकर ने जब उसकी तरफ मुँह उठाकर देखा तो रंगीली ने अपने खुश्क होठों पर जीभ फिरते हुए उसे और नीचे की तरफ जाने का इशारा किया……!इशारा पाकर वो जैसे ही नीचे बढ़ा अपने उद्गम स्थान को देख कर वो उसमें खो सा गया एकटक अपनी माँ की बंद जांघों के बीच स्थित अपने जन्म स्थल को वो निहारने लगा…!उसने कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा होगा की जिस रस्ते से वो इस दुनिया में आया था आज उसी पर दौड़ने का उसे सौभग्य प्राप्त हो रहा है…!शंकर आकर अपनी माँ के पैरों में बैठ गया और दोनों पैरों को एक साथ अपने हाथों में लेकर उसने अपने घुटनो पर उसके पैरों की एड़ियां टिकाई और उसके पैरों के दोनों अंगूठों को एक साथ अपने मुँह में भरकर चूसने लगा…!शंकर ने ये काम अपनी माँ के प्रति श्रद्धा जताने हेतु किया वो अपनी माँ के पेअर चूमकर आगे बढ़ना चाहता था…लेकिन रंगीली के लिए ये अनुभव घातक सिद्ध हुआ उसके पूरे शरीर में पैरों से लेकर छोटी तक एक करंट की लहार सी दौड़ गयी…ससीईई….आअह्ह्ह्ह…ये क्या किया मेरे लाल… मेरा बदन सुलग उठा है अब देर मत कर बीटा अपनी माँ की चुत  में अपना लुंड दाल कर छोड़ दाल निगोड़े…! बनाले अपनी प्रेमिका मुझे… ये कहकर उसने खुद ही अपनी टांगों को खोलकर उसे रास्ता दे दिया…!शंकर उसकी बाल विहीन मक्खन जैसी चिकनी टांगों को सहलाते हुए ऊपर की तरफ बढ़ा जहां पैरों के खुलने से उसकी चुत  की फाकें खुलकर उसके लुंड को अपनी ओरे आकर्षित कर रही थी…उसने अपनी माँ की चुत  को एक हथेली से सहलाया फिर उसके होठों को खोलकर जैसे ही उसके अंदुरुनी गुलाबी रंग के गुलकंद जैसे भाग को देखा 

उससे सबर नहीं हुआ और जाँघों के नीचे हाथ डालकर उसकी चुत  को अपने मुँह से लगाकर चाट लिया……आह्हः…ससीई…शंकरा…मेरे लाल चूस ले अपनी माँ की चुत … चाट इसे बहुत सताती है निगोड़ी मुझे.. शांत करदे बीटा इसकी गर्मी…!शंकर उसके फुले हुए होठों को ऊपर से ही चाट रहा था रंगीली अपनी चूचियों को अपने ही हाथों में लेकर उन्हें मसलते हुए बोली…इसकी दरार को खोलकर अंदर अपनी जीभ से चाट निगोड़े.. असली रास का खजाना तो इसके अंदर है…!अपनी माँ की वासना से ओट-प्रोत आवाज लिपटे हुए शब्द सुनकर उसने अपने हाथों के अंगूठे उसकी यौनि के होठों पर टिकाये और उन्हें विपरीत दिशा में फैला कर खोला…!आअह्ह्ह्ह…क्या गुलाबी चुत  थी उसकी माँ की उसने फ़ौरन अपनी जीभ उसके गुलकंद के पिटारे में दाल कर उसे नीचे से ऊपर तक चाट लिया…!अपने बेटे की खुरदुरी जीभ का घर्षण अपनी कोमल चुत  की अंदरूनी दीवारों पर पाकर रंगीली बुरी तरह सिसक padi…!

Ssssiiiiiiiiii………aaaahhhhhhhhh……..meerrreeee…laaallll….ghusa दे अपनी झीभ अंदर तक…ऊऊफफफफ…. आअह्ह्ह…थोड़ा ऊपर चूस… देख एक चोंच जैसी होगी…शंकर मुँह चुत  से लगाए हुए ही उसने अपनी माँ की तरफ देखा.. और आंख के इशारे से बताया की हाँ दिखा.. रंगीली - आअह्ह्ह…बस उसे अपने दांतों में दबा के चूस ले बहुत रास निकलेगा उससे.... शंकर ने ऐसा ही किया उसके भगनासे को दानतों में दबाते ही रंगीली की कमर ऊपर उठने लगी.. आह्हः…ससीई… नीचे छेड़ में अपनी उंगली दाल दे…हाईए…ठांण…रामम…माररिई…ऊऊह्ह्ह्ह…जायईईईई………… ये कहते हुए उसने अपनी कमर हवा में लहरा दी उसकी पीठ धनुष के आकर में मुड़ती चली गयी अपना सर बिस्तर पर टिकाये वो बुरी तरह से झड़ने लगी…शंकर अपनी माँ की चुत  का खट्टा-मीठा जूस पीटा रहा.. जब वो पूरी तरह से झाड़ गयी तो ऑटोमेटिकली उसकी पीठ बिस्तर पे लैंड हो गयी अब वो अपनी आँखें बंद किये पूरी तरह शांत पड़ी थी शंकर अपने होठों पर जीभ फिरकर कामरस  को चाटने के बाद माँ के अगले आदेश का इंतज़ार करने लगा…!निरि देर तक वो अपनी माँ के खूबसूरत बदन को निहारता रहा जब कुछ देर तक उसके शरीर में कोई हलचल नहीं हुयी तो वो मन ही मन सोचने लगा कहीं माँ उसे चुटिया बनाकर सो तो नहीं गयी…! 

ये सोचकर वो उसके ऊपर झुकता हुआ उसके होठों पर जा पहुंचा और अपने भीगे होठों को रंगीली के होठों पर रख दिया…!उसने झट से अपनी आँखें खोल दी और अपने बेटे को बुरी तरह अपने बदन के साथ कास लिया उसके चुम्बन का जबाब देकर बोली - कैसा लगा अपनी माँ का रास..? ये कहकर वो खुद ही शर्मा गयी…बहुत टेस्टी था माँ पर अब में क्या करूँ ये मेरा लौड़ा मुझे चैन से बैठने नहीं दे रहा अपने बेटे की मासूमियत से भरी बात सुनकर रंगीली मुस्करा उठी और उसके मुसल जैसे लुंड को अपनी मुट्ठी में लेकर अपनी गीली चुत  की फांकों पर घिसते हुए बोली - तो दाल न इसे अपनी माँ की चुत  में कोई ताला तो नहीं लगा दिया न मेने ये कहकर उसने अपनी दोनों टांगें ऊपर करके अपने पेअर उसकी कमर के दोनों तरफ रख दिए..फिर उसके लुंड को अपने हाथ से पकड़कर उसके गरमा-गरम सुपडे को दो-चार बार अपनी गीली चुत  के ऊपर घुमाया और फिर ठीक चुत  के छेड़ पर उसे भिड़ाकर बोली…देख बीटा अब मेने तो अपना काम कर दिया है तेरे लुंड को उसका रास्ता दिखा दिया अब आगे की मंज़िल तो तुझे ही तै करनी है…अब धीरे से धक्का लगा दे शाबास… धीरे से मेरे लाल जोरसे नहीं तेरे जितना मोटा लुंड अभी तक नहीं लिया मेने अपनी चुत  में.. ठीक है..शंकर ने हाँ में गार्डन हिलाकर अपनी कमर में हलकी सी जुम्बिश दी जिससे उसके लुंड का सूपड़ा उसकी माँ की चुत  में अच्छे से सेट हो गया… लुंड के सुपडे को गीली गरम चुत  में जाते ही शंकर की मज़े में आँखें बंद हो गयी और वो उसी अवस्था में लुंड डेल अपनी माँ के गले से चिपक गया…..!  

लुंड का सूपड़ा अंदर जाते ही रंगीली की चुत  की फांकें बुरी तरह फ़ैल गयी मोटा टमाटर जैसा सूपड़ा उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो उसकी चुत  के मुँह को कॉर्क का ढक्कन लगा कर सील कर दिया हो…उसकी चुत  अंदर ही अंदर कुलबुलने लगी… उसकी फांकें बुरी तरह से लुंड के टोपे को जकड़े हुए थी लेकिन बहुत देर तक शंकर को यूँही पड़ा देख कर वो सिसकते हुए बोली - अब यूँही पड़ा रहेगा निगोड़े या कुछ करेगा भी - आअह्ह्ह्ह…बीटा..अब और मत सत्ता अपनी माँ को दाल भी दे अपना मुसल जैसा लुंड अपनी माँ की चुत  के अंदर… ये कहकर उसने खुद ही अपने पैरों की कैंची उसकी गांड पर डालकर उसे अपनी तरफ खींचा.. उसका सूपड़ा माँ की सुरंग में समाया हुआ ही था…!उसकी कमर को अपने पैरों में कस्ते हुए बोली - आअह्ह्ह्ह….ससीई…अब कसकर धक्का लगदे मेरे राजा बीटा..…और बन जा मादरचोद…!अपनी माँ की तड़प देख कर उसकी कामुकता से भरी बातें सुनते ही अनादि शंकर ने एक ताक़त से भरपूर धक्का अपनी कमर में लगा diya…!

Aaayiiiiiiiiiiiiiii….ek साथ दोनों की ही चीखें निकल पड़ी कड़क डंडे जैसा लुंड रंगीली की चुत  की दीवारों को चीरता हुआ उसकी बच्चेदानी में जा घुसा…!अब जाके रंगीली को पता चला की उसके बेटे के लुंड में क्या खासियत है… दो बच्चे पैदा करने के बाद भी उसकी आँखों से आंसू निकल पड़े… बिस्तर की चादर को मुट्ठियों में जकड़कर दर्द से बिल-बिला उठी वो…!उधर अपनी पहली चुदाई कर रहे शंकर ने ताक़त लगाकर लुंड पूरा अंदर दाल तो दिया लेकिन उसके सुपडे की सील जो अभी तक लुंड से चिपकी हुयी थी वो टाइट चुत  की दीवारों की रगड़ से खुल गयी…दर्द की एक तेज लहार उसके पुरे बदन में दौड़ गयी और उसके मुँह से चीख निकल गयी…! वो दोनों बहुत देर तक एक दूसरे से यूँही चिपके पड़े रहे…!हाईए रे शंकर.. बहुत बड़ा है रे तेरा.. ऊऊफफफफ….मेरी तो दम ही निकल दी रे तूने बीटा… अपने दर्द पर काबू करते हुए रंगीली उसके गाल से अपना गाल घिसते हुए बोली - पर बीटा तू क्यों चीखा..?पता नहीं माँ मेरी भी सु-सु में बहुत तेज दर्द हुआ मानो किसी ने उसे ब्लेड से काट दिया हो..!वो समझ गयी की उसके लुंड का कुंवारापन दूर हुआ है वो मुस्कराकर उसे चूमते हुए बोली - मुबारक हो मेरे लाल आज तू मर्द बन गया वो भी अपनी माँ की चुत  फाड़कर.. 

अब दर्द तो नहीं हो रहा न..? शंकर ने न में अपनी गार्डन हिला दी.. रंगीली - तो अब धीरे धीरे बहार करके फिरसे अंदर दाल लेकिन आराम से हाँ.. वार्ना तेरी माँ का मूट निकल जाएगा ये कहकर वो खुद ही शर्मा गयी और अपने बेटे की चौड़ी छाती में अपना मुँह छिपा कर हसने लगी..!शंकर अपनी माँ के ऊपर से उठकर अपने घुटनों पर बैठ गया और उसने धीरे-धीरे अपना लुंड बहार निकला उसका लुंड खून से लाल हो गया था जो उसी के लुंड की खाल टूटने से निकला था…!उसने डरते हुए कहा - माँ ये खून कैसा…? रंगीली ने अपना सर उठाकर उसके लुंड की तरफ देखा और बोली - कुछ नहीं रे ये तेरे लुंड की सील टूट गयी है अब नहीं कुछ होगा अंदर दाल अब आराम से…!माँ की बात मानकर उसने धीरे-धीरे अपना मुसल उसकी सुरंग में दाल दिया…!धीरे-धीरे कैसे हुए लुंड के अंदर चलने से चुत  की दीवारें एकदम कासी हुयी थी जिसके मज़े में रंगीली की सिसकी नक़ल पड़ी आअह्ह्ह्ह….ससससीई….हाँ..शाबाश ऐसे ही अब धीरे-धीरे..फिरसे बहार निकलकर दाल..…!आअह्ह्ह…ससीई…उफ्फ्फ…कितना कैसा हुआ जा रहा है…ऐसे ही अंदर बहार कर..ूउम्म्म…मैया…बहुत मज़ा आ रहा है…दो-चार बार अंदर बहार करने के बाद ही शंकर समझ गया अब कुछ..कुछ उसे भी मज़ा आने लगा था सो अब वो खुद से ही उसे अंदर बहार करने लगा…रंगीली की चुत  रास छोड़ने लगी वो सिसकते हुए बोली - ससससीई…आअह्ह्ह्ह…अब थोड़ा जल्दी-जल्दी कर मेरे लाल… उसे भी अब मज़ा आने लगा था सो खुद ही उसकी स्पीड बढ़ने लगी.. दोनों को अब दीं दुनिया से कोई वास्ता नहीं था…!रंगीली अपनी गांड उछाल उछाल कर अपने बेटे को अपनी बातों से उत्साहित करते हुए और तेज छोड़ने के लिए बोलती हुयी चुदाई का आनद लूटने लगी…!शंकर का पिस्टन अपनी माँ के सिलिंडर में बुरी तरह से अंदर बहार हो रहा था साथ ही सिलिंडर से ग्रीज़ की फुआर भी फूटने लगी थी जिससे उसका पिस्टन पूरी तरह चिकना होकर आसानी से अंदर बहार हो रहा था…!शंकर के धक्कों की मार रंगीली ज्यादा देर तक नहीं झेल पायी और उसकी पिस्टन ने दम तोड़ते हुए ढेर सारा आयल पिस्टन के ऊपर छोड़ दिया वो अपने बेटे के लुंड से चिपक कर बुरी तरह से झड़ने लगी…!शंकर को इस बात का कोई बहन नहीं था हाँ उसके लौड़े को जरूर कुछ ज्यादा गीलेपन का एहसास हुआ जिससे उसके मज़े में और इजाफा हो गया… 

उसके धक्के बदस्तूर जारी थे फच्च..फच्च…की आवाज के साथ चुत  का सारा पानी बहार निकल गया और अब वो सूखने लगी…रंगीली की चुत  में ग्रीसिंग काम हो गयी और उसमें जलन सी होने लगी…वो कराह कर बोली - थोड़ा रुक जा बीटा अब तुझे दूसरे तरीके से मज़ा लेना सिखाती हूँ.. अपना लुंड बहार निकल…न चाहते हुए भी बेचारे को रुकना पड़ा और अपना लुंड बहार खींच लिया… जबकि उस पर तो इस समय जैसे चुदाई का भूत सवार हो चुक्का था…!अब रंगीली अपने घुटने तक कर बिस्तर पर घोड़ी बन गयी माँ की पीछे को निकली हुयी मक्खन जैसी मुलायम चिकनी गांड के पाटों को देख कर शंकर ने अपना मुँह दोनों पाटों के बीच में दाल दिया…आअह्ह्ह…बेटे.. चाट - ऐसे ही चाट अपनी माँ की गांड को…ससीई… देख वो एक छोटा सा छेड़ दिख रहा है न उसको अपनी जीभ से कुरेद मेरे राजा..…हैं…ऐसे ही शाबास मेरे शेर… अब थोड़ा मेरी चुत  को भी चाट के गीला करले …हुम्म्म…आअह्ह्ह्ह…ससीईई….. अब दाल दे अपना लुंड इसमें…शंकर ने अपना एक घुटना बिस्तर पर टिकाया और अपना लोहे की रोड बन चुके लुंड को अपनी माँ की गरम चुत  में पीछे से दाल दिया… रंगीली ोौंटनि की तरह मुँह ऊपर करके अपनी चूचियों को मसलने लगी… वो शंकर के ताक़तवर धक्कों को झेल न सकीय और औंधे मुँह बिस्तर पर गिर पड़ी शंकर अपने मज़े में ये भी भूल गया की उसके लुंड के नीचे कोण है उसने उसके सर को तकिये पर दबा कर दे दनादन उसकी उभरी हुयी गांड देख कर चुत  में धक्के लगता रहा…२०-२५ मिनट तक छोड़ने के बाद शंकर को लगा की उसका वीर्य अब निकलने वाला है सो हूँकार मारते हुए बोलै - हुउम्म्म.. मा..आहहहा….मेरा निकल रहा है… क्या करूँ…?पेलता रह बीटा.. निकलने दे…भरदे अपनी माँ की चुत  अपने बीज से… बनाले अपनी माँ को अपनी रखैल…छोड़ बीटा…आअह्ह्ह.. में फिर से जायईईई….री….दो चार धक्कों के बाद दोनों ही पूरी सिद्दत के साथ झड़ने लगे.. शंकर लास्ट जोरदार धक्का लगा कर माँ की गांड से चिपक गया…!रंगीली उसका भरी वजन झेल नहीं पायी और वो औंधे मुँह बिस्तर पर गिर पड़ी शंकर उसकी पीठ पर पसर कर अपनी सांसें इकट्ठी करने लगा…!१० मिनट बाद दोनों अगल बगल में लेते एक दूसरे को किश कर रहे थे शंकर का लुंड अभी भी खड़ा ही था जो रंगीली की जांघों के बीच अठखेलियां कर रहा था.. 

रंगीली उसकी हलचल देख कर मुस्करा उठी और मन ही मन अपने बेटे की मर्दानगी पर गड-गड हो रही थी वो ये देख कर बड़ी खुश थी की वो जैसा चाहती थी उसका बीटा वैसा ही निकला…!रंगीली अपने बेटे के माथे को चूमकर बोली - कैसा लगा बीटा अपनी माँ को छोड़कर..? सपने में ज्यादा मज़ा आया था या अभी..?वो अपनी माँ की गांड को अपने हाथ से भींचते हुए उसे अपनी तरफ खींच कर बोलै - थैंक यू माँ मेरी अच्छी माँ तूने आज मुझे इस सुख से रूबरू कराकर मुझे धन्य कर दिया…!सपना सपना ही होता है जिसका हक़ीक़त से कोई मेल नहीं..! आज में कसम लेता हूँ माँ तेरी ख़ुशी के लिए तेरा ये बीटा अपनी जान तक दे देगा…!रंगीली ने उसके होठों पर अपने होठ रख दिए बहुत देर तक दोनों एक दूसरे के होठों को चूसते रहे…!फिर वो उसके सोते जैसे लुंड को मसल कर बोली - आआह्ह्ह…बीटा मुझे तेरी जान ही तो प्यारी है में जो भी कर रही हूँ उसी के लिए तो कर रही हूँ..!तू बस अपनी माँ की बात मंटा जा और देखता जा अपनी माँ का कमल... फिर वो उसके लुंड को आगे पीछे करते हुए बोली - और छोड़ना है अपनी माँ को..?वो उसकी गोल-गोल चूचियों को सहलाते हुए बोलै - हाँ माँ एक बार और करने दे न..!रंगीली उसके लुंड को अपनी गीली चुत  की फांकों पर रगड़ते हुए बोली - क्या करने दूँ खुलकर बोल न…!शंकर - वो अभी जैसा किया था व्वो.. चुदाई करने दे न…!रंगीली ने कामुकता से मुस्कराते हुए उसे चित्त लिटा दिया उसके कड़क लुंड को मुँह में लेकर कुछ देर चूसकर अपनी लार से अच्छी तरह गीला करने लगी..फिर खुद उसके ऊपर आकर उसके दोनों तरफ घुटने मोड़कर लुंड को अपने हाथ में पकड़ा और अपनी चुत  के छेड़ पर रख कर खुद उसके खूंटे जैसे लुंड पर बैठती चली गयी….. बार भी पूरा लुंड एक साथ लेने में उसे नानी याद आगयी थी आँखें बंद किये वो कुछ देर उसके सुपडे को अपनी सुरंग के अंतिम सिरे पर महसूस करती रही बिना कुछ किये ही उसकी चुत  अपना कामरस  छोड़ने लगी फिर धीरे-धीरे रंगीली ने लुंड को सुपडे तक बहार निकला और अपनी आँखें बंद करके फिरसे उसपर बैठती चली गयी….! 

दूसरे दिन शंकर सलौनी को अपनी साइकिल पर आगे बिठाकर स्कूल जा रहा था उसके अंगों में भी भरब आने लगा था उसके कच्चे नीबू अब अमरुद बन चुके थे गोल-गोल गांड भी ३० की हो गयी थी जो २४ की कमर के नीचे बॉल जैसी थोड़ी पीछे को निकली हुयी दिखने लगी थी…!सहेलिओं के बीच छेड़-छड़ और पुरुष आकर्षण की बातें वो सुनती ही रहती थी लेकिन उसके मन-मस्तिष्क में अपने भाई के अलावा और किसी की एंट्री नहीं हो पायी थी…!शंकर अपनी धुन में मगन साइकिल भगाये जा रहा था… वो साइकिल चला जरूर रहा था लेकिन उसका ध्यान तो बीती रात माँ के साथ बिताये हुए पलों में ही अटका हुआ था…अपनी माँ की निवस्त्र छवि उसकी आँखों में घूम रही थी उसकी गोल-गोल मस्त सुडौल चूचियां जिन्हें वो कैसे मज़े लेकर चूस रहा था…हलके बालों वाली चिकनी फूली हुयी मालपुए जैसी चुत  उसके मन-मष्तिष्क में समायी हुयी थी…अपने ही ख्यालों में गम शंकर को पता ही नहीं चला की उसका लुंड कब अकड़ कर सोते में बदल गया है..वो तो अच्छा था की अब वो पंत के नीचे अंडरवियर पहनने लगा था वार्ना न जाने आगे बैठी सलुआनी का क्या हाल होता…?फिर भी जब वो पैदल पर जोर देता तब वो उसके बगल से टच हो जा रहा था सलौनी को अपनी कमर में कुछ अटकता सा लगा एक दो बार उसने उसे समझने की कोशिश की…!फिर कनखियों से उसने जैसे ही पीछे मुड़कर देखा वो फ़ौरन समझ गयी की ये भाई का खूंटा है जो उसके कमर पर ठोकरें लगा रहा है…!वो मन ही मन मुस्करा उठी और अपने दिमाग के घोड़े दौड़ा दिए ये सोचने के लिए की भाई के खड़े लुंड के मज़े कैसे लिए जाएँ…! आह्हः…भाई साइकिल थोड़ा काम कूड़ा न कितना रास्ता ख़राब है डंडे से मेरे चूतड़ों में दर्द होने लगा है ये कहकर सलौनी ने एक साथ कई काम किये…एक तो वो थोड़ा पीछे को खिसकी और अपनी एक जांघ पर वजन लेकर दूसरी को उसके ऊपर चढ़ा लिया दूसरा वो आगे को झुकी जिससे उसका एक अमरुद भाई की बाजु से टच होने लगा…तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण काम ये किया की उसने अपनी गाड़ को उचककर उसकी दरार को भाई के लुंड के सामने ले आयी…!अपने इस आईडिया पर वो मन ही मन मगन हो उठी क्योंकि उसका एक मुम्मा उसके बाजु से रगड़ खाने लगा था जिससे उसके बदन में करंट सा दौड़ गया…!अभी वो उसी फीलिंग में ही थी की तभी शंकर के लुंड का थोपा उसकी गांड की दरार से हिस्सा मार गया…!सलौनी की गांड उसकी चुत  तक जहां-झना गयी… उसके मुँह से हलकी सी सिसकी निकल गयी और उसकी छोटी सी कुंवारी मुनिया में सुर-सुरहट होने लगी…!अपनी धुन में मगन शंकर ने साइकिल की स्पीड तो काम कर ली लेकिन उसे ये होश नहीं था की उसका लुंड क्या-क्या हरकतें कर रहा है… 

वो तो बस दे दनादन अपनी माँ की चुत  में धक्के मारे जा रहा था… इसी सोच में उसकी गांड साइकिल की सीट पर आगे पीछे होने लगी अपनी बहिन की गांड की दरार का हिस्सा भी उसे माँ की चुत  में जाता हुआ अपना मुसल लग रहा था…!सलौनी को जब भाई के लुंड का ठोके दरार में ज्यादा जोरसे लगने लगा तो उसने उसे और ऊपर उठा लिया जिससे अब उसका लुंड उसकी मुनिया के दरवाजे तक दस्तक देने लगा…!सलौनी अपने एक टिकोले का वजन भाई की बाजु पर डालकर मस्ती से भर उठी उसे तो ऐसा लग रहा था जैसे भाई उसे छोड़ रहा हो उसकी मुनिया से रास की बूँदें टपकने लगी…!आँखें बंद किये उसने दूसरे मुम्मे को अपनी मुट्ठी में दबाकर मसल डाला और चुत  को भाई के लुंड पर दबाकर वो अपना कामरस  छोड़ने लगी…!स्कूल पहुंचकर जब शंकर ने साइकिल कड़ी की तब तक उसकी पंतय पूरी तरह भीग चुकी थी वो फ़ौरन साइकिल से उतर कर बाथरूम की तरफ लपकी…इधर शंकर के लुंड का टोपा भी चिपचिपाने लगा था सो साइकिल कड़ी करके वो भी झाड़ियों की तरफ धार मारने के लिए लपक लिया…!आज जीवन में पहली बार सलौनी ने जाना की मर्द के लुंड का कितना महत्वा है जो अपनी गर्मी से ही रगड़ा देकर भी चुत  का पानी निकल सकता है अगर वो अंदर जाता होगा तो…. ससीईई…हाई…..क्या करता होगा…मा…कैसा लगता होगा.. री..यही सब सोचती हुयी वो बाथरूम में घुस गयी… उसका मन कर रहा था की वो अपनी मुनिया को जोर-जोरसे सहलाये उसे मसले उसमें ऊँगली करे लेकिन इतना सब करने लायक न समय था और न जगह…!स्कर्ट ऊपर करके जब उसने अपनी पंतय को देखा… माय गोद.. वो एक दम तर होकर उसकी चुत  की फांकों में फंस गयी थी जिसकी वजह से उसकी मुनिया के होंठ भी पंतय से बहार दिखाई दे रहे थे…जैसे-तैसे उसने हाथ से रगड़ रगड़कर उसे थोड़ा सा ड्राई किया और अपने हाथ धोकर वो क्लास में चली गयी…! 

लाला और लाजो को चुदाई का खेल शुरू किये हुए १ साल से ऊपर हो गया था लेकिन अभी तक कोई नतीजा सामने नहीं आया लाला की साड़ी आशाएं धूमिल पड़ती जा रही थी… लाजो को इससे कोई मतलव नहीं था की वारिस हो ही जाए उसे तो बस लुंड मिलना चाहिए सो मिल रहा था वो साड़ी-साड़ी रात बैठक में ही अपने ससुर के साथ पड़ी रहती थी…!उसकी चुत  जैसे ही खुजाने लगती वो लाला का लुंड मुँह में लेकर लोल्लयपोप की तरह चूसने लगती वो मन भी करते तो उन्हें घुड़क देती…!अब लाला के लुंड की चाबी उसके पास ही थी और इसके लिए वो बेचारे कुछ कर भी नहीं सकते थे वार्ना साली छिनाल औरत क्या भरोसा कोई बखेड़ा ही खड़ा करदे…!एक दिन मौका देख कर रंगीली लाला के पास पहुंची वो उसके सामने अपना दुखड़ा लेकर बैठ गए…!उसने उन्हें हौसला बनाये रखने के लिए कहा और हाकिम जी से जवानी बढ़ने की कोई औषधि लेने की सलाह दे डाली… लाला को उसकी बात जैम गयी और उन्होंने हाकिम जी से कहकर शक्तिबर्धक औषधि बनवा ली जिसमें शिलाजीत मूसली और न जाने क्या-क्या जड़ी बूटियां थी वो उसका नियमित रूप से सेवन करने लगे….. साथ ही कल्लू की कमजोरी के लिए भी शहर के बड़े डॉक्टर की सलाह ली और वो काम के बहाने उसे शहर इलाज करने भेजने लगे…..उधर रंगीली बड़ी बहु सुषमा से मेल-जॉल बढ़ने लगी यौन तो उसके सौम्य और संस्कारी स्वाभाव के कारन सभी नौकर उससे प्रभावित रहते थे और उसकी बहुत इज़्ज़त करते थे…लेकिन अब रंगीली को लाला की तरफ ज्यादा तबज्जो न दे सकने के कारन वो अपना ज्यादातर समय उसके पास उसकी तीमारदारी में ही बिताने लगी…!सुषमा ने भी अपनी बेटी की साड़ी जिम्मेदारियां रंगीली पर छोड़ दी वो उसके साथ किसी दोस्त की तरह व्यवहार रखती थी…!अपनी रात की रंगीनियों जो वो अपने बेटे के साथ आधी रात तक करती रही थी उसी में खोयी रंगीली सुषमा के कमरे में पहुंची उसी समय सुषमा किसी काम से अपनी जगह से उठी हाल ही में बंद हुए उसके मासिक धर्म (पीरियड्स) की वजह से उसे अपनी कमर में दर्द का एहसास हुआ…!उसके मुँह से आअह्ह्ह…निकल गयी रंगीली बोली - क्या हुआ बहु रानी..? कमर दर्द है..?सुषमा - हाँ काकी थोड़ा दर्द है पर कोई न एक दो दिन में चला जाएगा…!रंगीली - अरे नहीं बहु रानी इसे आज अनदेखा करोगी तो बुढ़ापे में बहुत परेशां करेगा लाओ में आपकी मालिश कर देती हूँ फिर देखना आप किसी घोड़ी की तरह दौड़ने लगोगी…! रंगीली झट-पैट तेल गुनगुना करके ले आयी और सुषमा को उसने अपनी साड़ी उतारकर पलंग पर औंधे मुँह लिटा दिया…!लेटने से पहले उसने सुषमा से उसके पेटीकोट का नाडा ढीला करने को भी बोल दिया…!एक बेटी होने के बाबजूद भी सुषमा का बदन अभी भरा नहीं था ३४ के बूब्स के बाद उसकी ३० की कमर फिर ३६ की गांड किसी भी मर्द का लुंड खड़ा करने के लिए पर्याप्त थी…रंगीली ने उसका पेटीकोट खिसककर थोड़ा नीचे कर दिया अब उसकी छोटी सी पंतय में क़ैद उसकी गांड की दरार का ऊपरी भाग दिखाई देने लगा…गुनगुने तेल की धार उसकी नंगी पीठ पर पड़ते ही सुषमा का बदन थार था उठा….! 

रंगीली ने उसका पेटीकोट खिसककर थोड़ा नीचे कर दिया अब उसकी छोटी सी पंतय में क़ैद ऊपर से उसकी गांड की दरार दिखाई देने लगी…गुनगुने तेल की धार उसकी नंगी पीठ पर पड़ते ही सुषमा का बदन थार था उठा….!अपने लहंगे को घुटनो तक चढ़कर रंगीली अपनी दोनों टांगों को उसके आजु-बाजू करके उसकी जाँघों पर बैठ गयी और अपने दोनों हाथों को उसकी पीठ पर जमाते हुए उसने कहा - आअह्ह्ह्ह…क्या कंचन सी काय है बहु रानी आपकी कोण कह सकता है की आपकी एक इतनी बड़ी बेटी भी होगी ये कहकर उसने अपने तेल लगे हाथों का दबाब उसकी पीठ पर डाला और कमर से लेकर उसके ब्लाउज के छोर तक रगड़ती चली गयी….!दबाब पड़ते ही सुषमा के दशहरी आम बिस्टेर पर डाब गए वो अपने मुँह से कराह निकलते हुए बोली - आअह्ह्ह्ह…काकी इतनी जोरसे नहीं थोड़ा आराम से करो…!रंगीली ऊपर से मसलती हुयी दोनों हाथों के अंगूठों को उसकी पीठ की रिड पर दबाब डालते हुए नीचे की तरफ लायी और उसकी कमर से होते हुए उसके कूल्हों के उभारों तक रगड़ती चली गयी…!उसकी पंतय को उसने और थोड़ा नीचे खिसका दिया अब वो एकदम उसकी गांड के ुथनानो के शिखर पर थी…अपने हाथों को तिरछे करके उसने एक दूसरे को विपरीत ले जाते हुए उसकी गांड के उभारों को मसलते हुए कहा - आराम से करने में भी कोई मज़ा है बहु रानी ये काम तो ऐसा है की जितना जोर का रगड़ा लगे उतना ही मज़ा ज्यादा आता है…!तुम कोनसे काम की बात कर रही हो काकी.. पूछा सुषमा ने…!रंगीली ने अपनी एक उंगली से उसकी गांड की दरार की मालिश करते हुए कहा - मालिश की ही बात कर रही हूँ आप क्या समझी…?आआह्ह्ह…ज्यादा नीचे मत करो काकी मेरी कमर में दर्द है गांड में नहीं…!रंगीली - अरे बहु रानी कमर और पीठ की हड्डी तो यहीं तक आती है न आप तो बस देखती जाओ मेरा कमल दर्द ऐसे छूमंतर हो जाएगा जैसे गधे के सर से सींग…!अपने ब्लाउज के बटन खोलो बहु रानी…ये कहकर रंगीली अपने हाथों को ऊपर ले जाने लगी सुषमा - क्यों ब्लाउज क्यों काकी..?रंगीली - अरे कैसी पढ़ी-लिखी हो रिड की हड्डी शुरू तो गार्डन से ही होती है न तो नसें भी तो उसी बनाबट में होंगी न उसकी बात मानकर उसने अपने दोनों हाथ अपनी छाती तक ले जाकर ब्लाउज के बटन भी खोल दिए… रंगीली के हाथ उसकी पीठ से होते हुए गार्डन तक पहुँचाने लगे और उसके कन्धों की मालिश करते हुए उसकी बगलों तक लेजाकर वो उसकी चूचियों के साइड तक मालिश करने लगी…!उसने फिरसे अच्छा खासा तेल अपने हाथों में लिया और दोनों हाथो को चिकना करके वो फिरसे उसकी कमर से शुरू करके उसके कन्धों तक गयी और चूचियों के बगल से होते हुए नीचे को कमर तक लायी…और उसके कूल्हों की बगल से मालिश करती हुयी गांड के शिकहर को रगड़ा साथ ही उसकी पंतय को सरका कर जांघो तक कर दिया 

फिर उसकी गांड की गोलईओं को मसलते हुए अपनी उंगलियां जाँघों के बीच फंसा दी और उसकी चुत  की फांकों के बगल तक मालिश करने लगी…!रंगीली के हाथों का जादू सुषमा के बदन पर चल चुक्का था वो अब बिना कुछ बोले आनंद सागर में डूबती जा रही थी फिर रंगीली ने अपना एक हाथ उसकी गांड के सेण्टर से रगड़ते हुए एक उंगली का दबाब उसकी गांड के छेड़ पर डालते हुए उसकी चुत  की फांकों तक ले गयी और उसकी चुत  की मसाज करने लगी…रंगीली के तेल लगे हाथ ने जैसे ही उसकी चुत  के मोठे-मोठे होठों मसला सुषमा की चुत  रास छोड़ने लगी सही मौका देखकर रंगीली ने अपनी एक उंगली उसकी चुत  में सरका दी और बोली - दर्द ठीक हुआ बहु रानी..?ससीई…आह्हः…कोनसा दर्द काकी…? अब तो कुछ और ही हो रहा है… रंगीली समझ गयी की सुषमा गरम हो चुकी है उसका खुद का भी हाल अच्छा नहीं था उसने उसकी जाँघों पर बैठे हुए ही अपनी चोली उतर फेंकी और लहंगे का नाडा खोलकर बोली –सीढ़ी हो जाओ बहु रानी लाओ आगे की भी मालिश कर देती हूँ सुषमा भी तो यही चाहती थी सो किसी कठपुतली की तरह पलट कर चित्त हो गयी…आअह्ह्ह…उत्तेजना के मारे उसके दूधिया उभर एकदम गोलाई में आगये उसके निप्पल कड़क होकर कच्चे जैसे कमरे की छत की तरफ खड़े हो गए उसकी आँखें बंद ही थी सो वो ये नहीं देख पायी की रंगीली भी बिना कपड़ों के ही है…!रंगीली फिरसे उसकी जांघो के ऊपर घुटने मोड़कर औंधी हो गयी और अपने तेल से साणे हाथों से उसके कंधे मसाज करती हुयी उसने उसके दोनों उभारों को जैसे ही मालिश किया…सुषमा की आह्ह्ह्ह…निकल पड़ी… फिर जैसे ही रंगीली ने उसके निप्पलों को मसला.. उसने अपने दोनों हाथ ऊपर उठा कर रंगीली की बाजुओं को पकड़ कर अपने ऊपर झुका लिया और उसके होठों से अपने होठ जोड़ दिए…दोनों की चूचियां आपस में डाब गयी तब उसने अपनी आँखें खोलकर देखा रंगीली को भी अपनी तरह पाकर वो और ज्यादा उत्तेजित हो गयी और जोर-जोरसे उसके होठों को चूसने लगी…रंगीली की चुत  भी कामरस  छोड़ने लगी थी सो वो अपनी चुत  को सुषमा की चुत  से सटाकर जोर-जोरसे रगड़ने लगी….दोनों पर वासना का वो भूत सवार हुआ जो थमने का नाम ही नहीं ले रहा था… चुत  से चुत  रगड़ने से उन दोनों के चुत  के कण-कौए अपनी चोंच बहार निकले एक दूसरे की फांकों के बीच हलचल करने लगे…रंगीली ने अपनी दो उंगलियां सुषमा की चुत  में पेलते हुए कहा - आअह्ह्ह्ह..बहु रानी कितनी गरम चुत  है तुम्हारी कोण कह सकता है की तुम्हारे जैसी भरपूर औरत एक बीटा नहीं जान सकती…!मुझे तो मालकिन की बात गलत जान पड़ती है…!सुषमा वासना की आग में झुलस रही थी सोचने समझने की स्थित से ऊपर पहुँच चुकी थी वो सो उसकी बात सुनते ही बोल पड़ी - 

बकवास करती है साली कुटिया खुद का बीटा साला हिज़ड़ा कुछ कर नहीं पता और बहुओं को दोष देती है…!आह्ह्ह्ह..काकी..ससससीई….और जोरसे छोड़ो मेरी चुत  को…हाई रे बहुत प्यासी है ये…ऊऊफफफ.. आह्ह्ह्ह…करते हुए उसने भी अपनी उंगलियां रेनगीली की चुत  में पेल दी…दोनों के हाथ मशीन अंदाज में चल रहे थे… अपनी चूचियों को आपस में रगड़ती हुयी वो दोनों ही किलकारी मारते हुए झड़ने लगी… फिर एक दूसरे को किश करते हुए आपस में लिपट गयी…!तूफ़ान के गुजर जाने के बाद अब दोनों ही एक दूसरे से लिपटी हुयी अपनी साँसों को ठीक कर रही थी…रंगीली उसके कूल्हे सहलाते हुए बोली - आअह्ह्ह.. बहुत गरम औरत हो बहु कैसे संभल पाती हो अपने आपको बिना लुंड के…?सुषमा ने चौंकते हुए उसकी तरफ देखा - बिना लुंड से आपका क्या मतलब है काकी..?रंगीली - अभी जो आपने कल्लू भय के बारे में कहा न.. की उनके बस का कुछ नहीं है…!सुषमा अब होश में आ चुकी थी जोश जोश में वो जो बोल चुकी थी वो उसे नहीं बोलना चाहिए था लेकिन अब क्या हो सकता है तीर कमान से निकल चुक्का था…!ये सोचकर उसकी आँखें नाम होने लगी रंगीली ने उसके उभारों को बड़े प्यार से सहलाते हुए कहा - विश्वास रखो बहु ये बात किसी और के कानों तक नहीं पहुंचेगी…सुषमा - क्या बताऊँ काकी में कैसे अपने आपको संभालती हूँ हाँ ये सच है की इनमें किसी भी औरत को बचा पैदा करना बस की बात नहीं है वो तो शुरू-शुरू में न जाने कैसे गौरी मेरे पेट में आगयी उसके बाद से इनकी गलत आदतों ने इन्हें नपुंशक बना दिया है…लेकिन ये बात सुसजि को कोण समझाए…? वो तो अब भी हम में ही कमी देखती हैं…!रंगीली - आप एक भरपूर जवान औरत हो तो जाहिर सी बात है की आपके कुछ अरमान भी होंगे जिन्हें आप पूरा नहीं कर पा रही हो लेकिन उन्हें पूरा करने के सपने तो जरूर देखती होगी…!सुषमा - इस घर में आने के बाद तो यही अरमान वाकई रह गए थे की किसी तरह इस घर को वारिस दे सकूँ जिससे मेरा मान-सम्मान बरक़रार बना रहे..लेकिन अब साड़ी आशाएं धूमिल होती नज़र आ रही हैं…. अब तो सपनों में भी सोचना बंद कर दिया है मेने की में आगे कभी माँ बन पाउंगी..!रंगीली - लेकिन बहु रानी फिर भी ये जवान दिल कुछ सपने तो देखता ही होगा…? कल्लू भैया को फिरसे एक भरपूर मर्द के रूप में देखती होगी अपने सपने में क्यों है न…….?इतना कहकर रंगीली तक-ताकि लगाकर उसके चेहरे के की तरफ देखने लगी वो उसके चहरे से उसके मनो-भावों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी…..! 

रंगीली - लेकिन बहु रानी फिर भी ये जवान दिल कुछ सपने तो देखता ही होगा…? कल्लू भैया को फिरसे एक भरपूर मर्द के रूप में देखती होगी अपने सपने में क्यों है न…….?इतना कहकर रंगीली तक-ताकि लगाकर उसके चेहरे के की तरफ देखने लगी वो उसके चहरे से उसके मनो-भावों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी…..!अब आगे……….रंगीली की बात सुनकर सुषमा मौन रह गयी अपने मन में उठ रहे विचारों के बवंडर में फांसी वो सोचने लगी…जिस नामर्द पति को वो अपने दिल से कबका निकलकर फेंक चुकी थी भला अब उसको अपने सपनों में जगह कैसे दे सकती है.. लेकिन ये बात भी अपनी जगह सही थी की औरों की तरह उसके भी कुछ सपने तो थे ही जवान दिल के कुछ अरमान थे जिन्हें वो पूरा करना चाहती है…लेकिन अपने दिल की बात किसी गैर औरत के सामने कैसे बयान करे की वो अपने पति के अलावा किसी और के ही सपने देखती है उसके सपनों का राजकुमार कोण है…!वो इसी उधेड़-बन में उलझी थी जब काफी देर तक सुषमा ने कुछ नहीं कहा तो रंगीली ने उसके दिल पर चोट करते हुए कुछ ऐसे अंदाज में कहा जिसे वो ताल न सकीय - ओहु…बहु रानी अब नयी नवेली दुल्हन की तरह क्या शर्माना मान भी लो जो मेने कहा है वो सही है… ये कहकर उसने उसके एक उरोज को प्यार से मसल दिया…!आअह्ह्ह…ससीई… ये सही नहीं है काकी…! क्योंकि में जानती हूँ अब उनका मर्द बनाना नामुमकिन है तो भला ऐसे सपने देखने का क्या लाभ…?रंगीली - तो इसका मतलब अब आपके दिल में कोई अरमान वाकई ही नहीं है कोई सपने ही नहीं हैं आपके…?सुशसमा - मेने ऐसा कब कहा..? सपने तो सभी देखते हैं तो जाहिर सी बात है की में भी किसी के सपने देखती हूँ पर……..! अपनी बात अधूरी छोड़कर वो चुप हो गयी…!रंगीली - पर..? पर क्या बहु रानी.. - कोण है वो खुश नसीब जो आपके हसीं सपनों में आकर आपको छेड़ता है… हांण….ायणं..बोलो… ये कहकर रंगीली उसकी बगलों में गुड़-गुड़ी करने लगी..….!लाख अपनी हसी पर काबू रखने की कोशिश के सुषमा खिल-खिलाकर है पड़ी और उसी खिल-खिलाहट भरी हसी की झोंक में उसके मुँह से निकल गया - आपका बीटा…!रंगीली अपने मुँह पर हाथ रख कर आश्चर्य जताते हुए बोली - क्या…? मेरा बीटा..? आपका मतलब… शंकर…? 

सुषमा ने शर्म से अपना चेहरा अपने दोनों हाथों से ढांप लिया और शरमाते हुए बोली - हाँ काकी शंकर भैया मेरे सपनों में आकर रोज़ मुझे सताते हैं - लेकिन वो तो अभी बचा है.. उसके सपने…? मेरा मतलब है अभी वो ठीक से जवान भी नहीं हुआ… औरत मर्द के संबंधों को भी नहीं समझता… फिर कैसे आपने ये सोच…सुषमा - जबसे वो इनको कॉलेज के लड़कों से बचाकर लाये थे उसी दिन से उनकी मर्दानगी मेरे दिलो-दिमाग में छाप गयी उनका वो कामदेव जैसा स्वरुप रोज़ मेरे सपनों में आता है उनकी वो मासूम सी छवि मेरे मन-मस्तिष्क में बस चुकी है…और अब में चाहती हूँ की इस घर के वारिस के रूप में उनका ही अंश मेरी कोख में आये ये कहकर उसने रंगीली के हाथ अपने हाथों में ले लिए और मिन्नतें सी करते हुए बोली अब मेरा मान-सम्मान आपके हाथ में है काकी आप चाहो तो में अपने अधिकार फिरसे पा सकती हूँ वार्ना तो भगवन ही मालिक है.. पता नहीं क्या होगा मेरा इस घर में..?रंगीली कुछ देर चुप रहकर सोचने का नाटक करती रही सुषमा ने आगे कहा - क्या सोच रही हो काकी भरोसा रखो में ये बात अपने शरीर की हवस मिटने के लिए नहीं कह रही में सच में शंकर भैया को चाहने लगी हूँ और इसलिए मुझे इस घर को वारिस देना है तो यही एक रास्ता है मेरे पास…!शंकर को मन ही मन अपने होने वाले बच्चे का पिता मान चुकी हूँ में उनके अलावा और कोई मेरे सपनों को साकार नहीं कर सकता…रंगीली ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा - लेकिन एक वादा आपको भी करना पड़ेगा बड़ी बहु.. इस घर को वारिस देने से पहले इस घर की कुंजी अपने हाथों में लेनी होगी…!सुषमा - वो भला क्यों..? जब में इस घर को इसका वारिस दे दूँगी तो वैसे ही हवेली में मेरी इज़्ज़त बढ़ जायेगी…! फिर उसकी क्या जरुरत रह जायेगी…!रंगीली - आप बड़ी भोली हैं बड़ी बहु… मुझे छोटी बहु के चल-चलन ठीक नहीं लगते वो अपने फायदे के लिए किसी भी हद तक गिर सकती है आप समझ रही हो न मेरी बात…!और फिर ये न हो की इस घर को वारिस मिलते ही बड़े मालिक और मालकिन की नज़र घूम जाए इसलिए आपको ये करना ही बेहतर होगा आप बहुत सीढ़ी और संस्कारी घर की बेटी हैं घर की मान मर्यादा का ख्याल है आपको लेकिन छोटी बहु ऐसी नहीं है ये तो आप भी जानती ही होंगी…! 

ये दुनिया बड़ी लालची है बहु… ये बात में आपके भले के लिए ही कह रही हूँ.. वार्ना आप ही बताइये मेरा इसमें क्या स्वार्थ हो सकता है भला…! आपके मिलनसार और सबको सम्मान देने वाले अच्छे स्वाभाव की वजह से में आपसे थोड़ा हिट रखती हूँ और कोई बात नहीं…!सुषमा - शायद आप ठीक कह रही हैं काकी में वादा करती हूँ… समय आने पर में अपने अधिकार मांग लुंगी… लेकिन अब आगे सब आपको देखना होगा…!रंगीली ने मुस्कराते हुए उसकी रसीली चुत  को सहलाकर कहा - भला मुझे क्या देखना है..? जो भी देखना है वो आपको ही देखना है में तो बस इतना कर सकती हूँ की शंकर ज्यादा से ज्यादा समय आपके पास बिठाये गौरी बिटिया के साथ खेलने के बहाने आपके करीब रहे उसको कैसे पटना है वो आप जानो…!सुषमा उसकी बात सुनकर शर्मा गयी और अपनी नज़र झुककर बोली - ठीक है आप इतना कार्डो वो भी बहुत है.. वाकई में कोशिश कर लुंगी…!रंगीली अपने मकसद में कामयाब होती जा रही थी वो जिस काम के लिए सुषमा के पास आयी थी वो हो चुक्का था अपनी कामयाबी पर मन ही मन बहुत खुश थी वो…उसी ख़ुशी में गड-गड होते हुए उसने सुषमा की गांड के छेड़ में अपनी एक उंगली घुसते हुए कहा - अच्छा बहु जब आप माँ बन जाओगी तो मुझे क्या इनाम मिलेगा..?सुषमा ने उसकी कलाई थम ली और कराहते हुए बोली - आअह्ह्ह्ह…काकी अपनी जान से ज्यादा कुछ कीमती चीज़ नहीं है मेरे पास चाहो तो वो मांग लेना मन नहीं करुँगी…!रंगीली ने उसे अपनी छाती से चिपका लिया फिर उसके माथे को चूमकर बोली - जीती रहो बहु रानी तुमने इतना कह दिया मुझे सब कुछ मिल गया…!में ईश्वर से प्रार्थना करुँगी की तुम्हारी गोद जल्दी से जल्दी भरदे में आज से ही शंकर और सलौनी को आपके पास भेजती हूँ आप गौरी की जिम्मेदारी उनको सौंप देना जिससे वो ज्यादा से ज्यादा आपके पास ही रहे…!इतना समझकर रंगीली ने अपने कपडे पहने और वहाँ से चली गयी… उसके पीछे सुषमा शंकर के हसीं सपनों में खोयी बहुत देर तक ऐसे ही पड़ी रही…!सारा काम धाम निपटने के बाद रंगीली जब अपने कमरे में पहुंची तो वो कुछ थकी हुयी सी लग रही थी सो आते ही बिस्तर पर लेट गयी फिर न जाने कब उसकी आँख लग गयी…!कल रात से वो अनगिनत बार झाड़ चुकी थी अपने बेटे के साथ तो वो लगातार पानी बहती रही थी फिर कुछ समय पहले भी सुषमा को पटाने के बहाने भी उसे वो मज़ा लेना पड़ा था 

उधर स्कूल के बाद लौटते समय भी सलौनी अपने भाई के साथ मज़े लेने के चक्कर में थी उसने कोशिश भी की लेकिन शंकर ने उसपर ध्यान ही नहीं दिया..घर आकर सलौनी अपनी दादी के पास चली गयी और शंकर अपनी माँ के पास..!कमरे में घुसते ही उसकी नज़र अपनी माँ पर पड़ी जो इस समय बेसुध सोई पड़ी थी उसके कपडे अस्त-व्यस्त हुए पड़े थे उसकी ओढ़नी एक तरफ पड़ी थी सो उसकी चोली से उसके कैसे हुए दूधिया उरोज झांक रहे थे…घाँघरा भी गुटों तक चढ़ा हुआ था माँ की गोरी-गोरी टांगें और दूध जैसे फक्क गोर उरोजों को देखते ही शंकर का लुंड खड़ा होने लगा… अपना स्कूल बैग एक तरफ रखा और माँ के बाजु में बैठकर कुछ देर उसे निहारता रहा फिर धीरे से वो उसकी गोरी-गोरी पिंडलियों पर हाथ रख कर सहलाने लगा…!शंकर के हाथ के स्पर्श से उसकी आँख खुल गयी ुन्नीदी आँखों से उसकी तरफ देखा फिर मुस्कराकर उसे अपने सीने से लगा लिया और उसके गाल को सहलाकर बोली - आ गया मेरा लाल.. चल तुझे खाना दे दूँ भूख लगी होगी..!शंकर को तो इस समय किसी और चीज़ की भूख थी अपनी लालची नज़रों को माँ की चोली में कैसे दूधिया उरोजों की घाटी पर जमाये हुए बोलै…खाने से पहले थोड़ी देर अपना दूध पीलादे माँ.. मेरी अच्छी माँ ये कहकर उसने उसकी एक चुकी को अपने हाथ में लेकर दवा दिया…!रंगीली ने प्यार से उसके गाल पर एक चपत लगायी फिर मुस्कराकर उसका हाथ हटते हुए बोली - वो सब रात में.. अभी मेरा मन नहीं है रात में तूने बहुत थका दिया था मुझे ऊपर से दिनभर का काम…!ये कहकर वो उसके लिए खाना लेने उठ कड़ी हुयी शंकर अपना लुंड मसोस कर बेमन से कपडे बदल कर खाना खाने बैठ गया…!खाना खिलते समय रंगीली ने उसके बालों को सहलाते हुए कहा - बीटा अपना स्कूल का काम ख़तम करके तुम दोनों भाई-बहिन बड़ी बहु के पास चले जाय करो थोड़ा गौरी बिटिया के साथ खेल लिया करो वो भी अब बड़ी हो रही है उसे भी खेलने के लिए किसी का साथ चाहिए.. अपनी माँ की बात मानकर उसने हामी भर दी… और उसी शाम अपना पढ़ाई का काम ख़तम करके दोनों भाई-बहिन सुषमा के पास चले गए…!शंकर को देख कर सुषमा के मैं की मुरझाई हुयी काली खिल उठी उसने गौरी को सलुआनी के साथ खेलने के लिए कर दिया और शंकर को लेकर काम के बहाने से अपने कमरे में चली गयी…! 

ऐसा नहीं था की सुषमा रंगीली से काम सूंदर थी वो एक निहायत ही खूबसूरत जवानी से लड़ी फड़ी भरपूर औरत थी और ऐसा भी नहीं था की शंकर को वो अच्छी नहीं लगती थी लेकिन अब तक उसने उसे इस नज़र से कभी नहीं देखा था…!अपनी माँ के बाद उसे कोई पसंद थी तो वो सुषमा ही थी लेकिन एक मालिक और नौकर वाली दीवार भी थी जिसे वो कभी लांघना नहीं चाहता था…!यही कारन था की जब भी वो उसके नजदीक जाता था एक आदर और सम्मान के साथ जिससे उसके सामने हमेशा उसकी नज़र झुकी हुयी रहती… उसे लेकर अपने कमरे में आयी आज उसने जानबूझकर एक बहुत ही डीप गले का झीने से कपडे का स्लीवलेस ब्लाउज पहना था… कंधे तक उसकी मांसल गोरी-गोरी मरमरी बाहें बहुत ही सूंदर लग रही थी… झीने कपडे से उसकी काळा रंग की ब्रा साफ दिखाई दे रही थी…कुछ इधर उधर के काम में अपने साथ लगाकर उसने शंकर से करवाए फिर वो उसे लेकर पलंग पर बैठ गयी…!सुषमा - आओ शंकर भैया थोड़ा बैठते हैं में तो भाई थक गयी.. शनकर - कोई बात नहीं भाभी आप बैठकर मुझे काम बताती जाइये में कर लूंगा आपको साथ में लगने की कोई जरुरत नहीं है…सुषमा - अरे छोडो उसे ऐसा कुछ ज्यादा भी काम नहीं है आओ थोड़ा मेरे पास बैठो ये कहकर उसने उसका हाथ पकड़ा और पलंग पर बैठ गयी…शंकर वहीँ पास में खड़ा रहा… वो उसके साथ पलंग पर बैठने में हिचक महसूस कर रहा था…लेकिन सुषमा ने उसे जबरदस्ती खींचते हुए कहा - अरे बैठो न क्या हुआ…वो हिचकते हुए बोलै - वो..वो..भाभी में आपके साथ…पलंग पर कैसे…सुषमा ने थोड़ा हाथ झटक कर उसे बैठने का इशारा करते हुए कहा - क्यों…क्यों नहीं बैठ सकते मेरे पास… आओ कोई बात नहीं.. बैठो..आखिर में शंकर को उसके पलंग पर उसके बाजू में बैठना पड़ा लेकिन थोड़ी दुरी बनाकर.. सुषमा उसके हाथ को पकडे सहलाते हुए उससे उसकी पढ़ाई के बारे में पूछने लगी…कुछ देर इधर-उधर की बात करने के बाद वो बोली - तुम्हें ताश (प्लेइंग कार्ड) खेलना आता है…?शंकर - बहुत ज्यादा तो नहीं बस कुछ-कुछ गेम आते हैं…सुषमा - चलो वही खेलते हैं थोड़ी देर मज़ा आएगा… ये कहकर वो कार्ड लेने उठ कड़ी हुयी…शंकर बोलै - सलौनी और गौरी को भी बुला लेते हैं वो भी साथ में खेल लेंगी…सुषमा - अरे नहीं उन दोनों को वहीँ बहार ही खेलने दो बेकार में गौरी यहां धमाल करेगी हमें भी खेलने नहीं देगी हो सकता है कार्ड ही फाड़ दे…! 

सुषमा कार्ड के साथ-साथ एक प्लेट में नमकीन काजू पिस्ता बगैरह भी ले आयी और आकर पलंग पर सिरहाने की तरफ बैठ गयी शंकर को भी उसने अपने सामने पलंग पर चढ़कर बैठने को कहा…अब वो दोनों आमने सामने बैठ गए एक साइड में उन्होंने मेवा की प्लेट रख दी और दोनों के बीच में कार्ड रखकर खेलने लगे…!ये कोई सीक्वेंस बनाने वाला गेम था कुछ कार्ड बराबर नंबर्स में एक दूसरे ने ले लिए वाकई की गद्दी बीच में रख ली जिसमें से एक-एक करके कार्ड लेना था जरुरत का कार्ड अपने पास रख के बिना जरुरत का नीचे दाल देना था पहले का फेंका हुआ कार्ड अगर दूसरे के काम का होगा तो वो उसे गद्दी की बजाय उसे ले सकता था…शंकर के सामने सुषमा अपनी टांगें फैलाकर बैठी थी जिससे उसकी साड़ी पिंडलियों के ऊपर तक चढ़ी हुयी थी गोरी-गोरी एकदम गोलाई लिए संगेमरमर जैसी सुडौल पिंडलियाँ देख कर शंकर की निगाह उनपर जमी रह गयी तिरछी नज़र से सुषमा उसकी हरेक गतिविधि पर नज़र बनाये हुए थी…कार्ड खेलते खेलते कभी-कभी वो अपनी टांगें खुजाने के बहाने अपनी साड़ी को ऊपर करती जा रही थी जो अब उसके एक टांग के घुटने तक जा पहुंची…शंकर का ध्यान जब भी कार्ड की तरफ होता वो किसी न किसी बहाने से उसे अपनी तरफ आकर्षित कर लेती…इसी श्रृंखला में उसने अपना आँचल ढलका दिया और कार्डों में मशगूल होने का नाटक करने लगी.. जैसे ही शंकर की नज़र उसके खुले गले से लगभग आधे गोर-गोर सुडौल दूधिया मुम्मों पर पड़ी उसकी सांसें थम गयी… सुषमा के इतने सूंदर दूधों को देखकर उसका लौड़ा पाजामे में सर उठाने लगा.. उसकी नज़र ताड़ते हुए सुषमा मंद-मंद मुस्कराने लगी…अपने हुश्न का जादू उसने शंकर के मन-मस्तिष्क पर चला दिया था यही नहीं वो नीचे गिरे कार्ड को उठाने के बहाने अपने आपको और आगे को झुका देती जिससे उसकी चूचियों की मादक घाटी काफी अंदर तक दिखाई देने लगती…शंकर कार्ड खेलना भूलकर उसकी घाटी में खो गया… उसकी कार्ड चलने की बारी थी लेकिन बहुत देर तक भी उसने कार्ड नहीं चला सुषमा उसकी हालत का मज़ा लेते हुए बोली –कार्ड फेंको शंकर भैया कहाँ खो गए…?उसकी आवाज सुनकर शंकर पहले हड़बड़ा गया फिर अपने खुश्क हो चुके होठों को जीभ से तक करते हुए अपना ध्यान कार्ड्स पर लगाया और बिना काम का एक कार्ड फेंक दिया… 

सुषमा ने शंकर के ऊपर से अपना ध्यान हटा लिया जिससे वो अच्छे से उसके रूप का रसपान कर सके और अपना एक हाथ जांघ पर ले जाकर उसे खुजाने लगी…!शंकर फिरसे उसके रूप लावण्या में खो गया… मौका ताड़कर सुषमा ने अपनी टांगों का ऐसा पोज़ बनाया जिससे उसकी साड़ी का नीचे का पल्ला और ज्यादा नीचे हो गया और ऊपर का भाग तम्बू की तरह दोनों घुटन पर तन गया…उसकी दोनों गोरी-गोरी केले जैसी मोती-मोती चिकनी सुडौल जाएंगें अंदर तक नुमाया हो गयी… शंकर की चंचल नज़रें अंदर तक का सराय करती चली गयी और अंत में जाकर उसकी गुलाबी रंग की पंतय पर टिक गयी… में कासी हुयी उसकी मोती-मोती जाँघों के बीच दबी उसकी चुत  के मोठे-मोठे होठ जो जाँघों के दबाब के कारन पंतय के अंदर और ज्यादा उभरे हुए से लग रहे थे उनपर नज़र पड़ते ही शंकर का घोडा अपने अस्तबल में हिन्-हिनने लगा.. उसने अंडरवियर और पाजामे के बाबजूद भी उसके आगे बड़ा सा तम्बू बना दिया… जिसपर नज़र पड़ते ही सुषमा की सांसें तेज होने लगी…उसकी मुनिया में सुरसुराहट बढ़ गयी और उसके होंठ गीले होने लगे.. उसने शंकर के लुंड को यहीं चैन से खड़े नहीं होने दिया अपने घुटनो को एकदूसरे के करीब लायी जिससे उसकी सुरंग का रास्ता और चौड़ा और साफ किसी एक्सप्रेसवे की तरह हो गया… फिर आगे झुक कर गद्दी से कार्ड लेने के बहाने अपने ऊपर की स्क्रीन एकदम शंकर की आँखों के आगे कर दी…..उठाऊं या गद्दी से खींचूं ऐसा बड़बड़ाते हुए झुकी हुयी सुषमा ये जताने का प्रयास कर रही थी की वो ये तय नहीं कर पा रही है की कार्ड गद्दी से ले या शंकर का फेंका हुआ ले…शंकर की आँखों के सामने दोनों ही स्क्रीन एकदम खुली पड़ी थी… वो ये फैसला नहीं कर पा रहा था की कोण सी स्क्रीन पर सन अच्छा चल रहा है जबकि वो किसी एक से भी नज़रें हटाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था…उत्तेजना के मारे उसके कान तक गरम होकर लाल हो गए लौड़े की हालत का तो कहना ही क्या… वो तो इतने बंदोबस्त के बाद भी ठुमके लगाने लगा जिसका भरपूर मज़ा कार्ड उठाने के बहाने सुषमा खूब अच्छे से लूट रही थी…उसकी मुनिया तो ख़ुशी से लार टपकाने लगी… दोनों ने अपने आप पर थोड़ा सा काबू किया और गेम को आगे बढ़ाते हुए सुषमा ने अपने हाथ से एक कार्ड सामने फेंका जो शंकर के मतलब का था… 

सो उसने झट से उठा लिया तभी सुषमा बोली - सॉरी शंकर वो कार्ड मेने गलती से फेंक दिया वो मुझे वापस दे दो में दूसरा कार्ड फेंकूँगी… - नहीं अब नहीं भाभी ये आपको पहले देखना चाहिए था एक बार फेंक दिया तो फिर वापस नहीं ले सकती…सुषमा - अरे तुम समझा करो वो कार्ड मेरे काम का है प्लीज वापस दे दो ये कहकर उसने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया…शंकर ने वो कार्ड वाला हाथ पीछे खींचा जिसे सुषमा छीनने के लिए झपटी….तभी शंकर ने वो हाथ अपनी पीठ के पीछे कर लिया वो उसे हर हालत में पाने की गरज़ से उसपर झपट पड़ी इसी चक्कर में वो शंकर के ऊपर जा गिरी…शंकर अपनी जगह पर पीछे को लुढ़क गया और सुषमा उसके ऊपर…शंकर का कार्ड वाला हाथ उसकी पीठ के नीचे डाब गया था जिसे निकलने के लिए वो उसके हाथ को पकड़ने के लिए अपना हाथ भी घुसाने लगी…सुषमा के पुष्ट कड़क दूधिया उभर शंकर की कठोर चौड़ी छाती से डाब गए जिससे वो अब उसके ब्लाउज के और ज्यादा बहार को निकल पड़े अपनी आँखों के ठीक सामने उसके दोनों उभर जो दबकर एक-दूसरे पर ओवरलैप हो रहे थे देखकर शंकर की सांसें तेज होने लगी उधर सुषमा भी कार्ड-वार्ड सब भूल गयी और शंकर के लुंड के तम्बू को अपनी जाँघों के ठीक बीच में अपनी चुत  के होठों के ऊपर महसूस करके उसके दिल की धड़कनें बुलेट ट्रैन की तरह चलने लगी…आँखों में वासना के डोरे तैरने लगे वो अपनी लाल-लाल नशीली आँखों से शंकर की आँखों में झाँकने लगी जहां उसे वासना के कीड़े बीज-बीजते हुए दिखे…उसने अपनी गांड का दबाब और बढाकर अपनी चुत  को उसके लुंड के उभर पर और बढ़ा दिया जिससे उसकी मुनिया बुरी तरह से गीली होने लगी…दोनों के दिल इतने पास-पास थे की वो धाड़-धाड़ बजते दोनों एक दूसरे के दिलों की ढकन को साफ-साफ सुन रहे थे…दोनों को ये होश नहीं रहा की वो कहाँ और किस स्थिति में हैं ना जाने वो कितनी देर और यूँही पड़े रहते की तभी बहार से मम्मी…मम्मी चिल्लाते हुए गौरी की आवाज सुनाई दी…सुषमा जैसे किसी भंवर से बहार निकली हो होश आते ही वो फ़ौरन शंकर के ऊपर से उठकर अपनी जगह पर बैठ गयी तब तक गौरी कमरे के अंदर आ चुकी थी…अभी वो अपने कपडे ठीक कर ही रही थी की पीछे से सलौनी भी अंदर आ गयी… रहत की सांस ली की चलो बच गए वार्ना अगर सलौनी उसे ऐसी हालत में देख लेती तो न जाने क्या सोचती…वो सब कुछ देर और बैठे कार्ड खेलते रहे फिर गौरी को दूसरे दिन आने का प्रॉमिस करके दोनों भाई-बहिन अपनी माँ के पास चले गए…! 

जब से सुषमा ने शंकर को रिझाना शुरू किया तब से वो उसकी तरफ खींचता ही जा रहा था सोने पे सुहागा ये की उसकी माँ ने उसे चुत  का चस्का भी लगा दिया था की आप सभी लोग अनुभवी हैं जब किसी नवयुवक को नया नया चुत  का चस्का लगता है तो उसे अपने चरों ओरे चुत  ही चुत  दिखाई देती हैं…वो हर संभव औरतों के कामुक अंगों को घूरने की चेष्टा ही करता रहता है… उत्तेजित होकर सारे-सारे दिन अपने लौड़े पर जुल्म धता रहता है…!यहां तो सुषमा जैसी निहायत खूबसूरत औरत सामने से अपने रूप यौवन को उसके सामने परोसने में कोई कोरे कसार नहीं छोड़ रही थी… को जब भी मौका हाथ आता वो सुषमा के कैसे हुए दूधिया उभारों को नज़रभर निहारता ही रहता वो भी उसे रिझाने के लिए कोई न कोई तरकीब लड़ती ही रहती… जब शंकर उसे चाहत भरी नज़रों से उसके अंगों को देखता ये देखकर सुषमा अंदर ही अंदर आनंद से भर उठती उसे इस बात की तसल्ली होती की चलो अपने रूप सौंदर्य से वो उसे अपनी तरफ आकर्षित करने में सफल हो रही है… और अब जल्दी ही उसकी ये इच्छा पूरी हो सकती है..एक रात जब दोनों माँ-बेटे जमीं पर बिस्तर लगाए सोने की कोशिश कर रहे थे.. शंकर दिन की बातें सोच-सोच कर सुषमा की भरी जवानी को अपनी सोचों में पाकर उत्तेजित हो रहा था…!वो जैसे ही अपनी आँखें बंद करता सुषमा के गोर-चित्ते ब्लाउज से झांकते हुए दूधिया उरोजों के बीच की खायी सामने आ जाती उसकी गोरी-गोरी पिंडलियाँ और आधी-अधूरी केले जैसी गोरी चिकनी जाँघों की झलक आँखों में आते ही उसका घोडा हिन्-हिनने लगा…उसका लुंड कड़क होकर पाजामे में उछाल कूद मचने लगा अब नींद उसकी आँखों से कोसों दूर भाग चुकी थी….जब उससे नहीं रहा गया तो वो अपनी माँ के बिस्तर पर आकर पीछे से उसकी गांड की दरार में अपना मुसल अटककर चिपक गया…!रंगीली भी अपने ही ख्वाबों ख्यालों में गम अभी तक सो नहीं पायी थी शंकर का लुंड अपनी गांड पर महसूस कर उसने करवट बदली और सीढ़ी लेट गयी..शंकर का हाथ अपनी चूचियों पर रखकर बोली - क्या बात है रे बदमाश नींद नहीं आ रही..? वो उसकी मुलायम गोल-गोल चूचियों को सहलाते हुए बोलै - बहुत मैं कर रहा है माँ एक बार करने दे ना…!रंगीली ने भी अब उसकी तरफ मुँह कर लिया और उसके खड़े लुंड को अपनी मुट्ठी में लेकर दबाते हुए बोली - क्या करने दूँ…? शंकर - वो.. माँ…वो… तू देख ही रही है…ये साला आज बहुत परेशां कर रहा है एक बार अपनी उसमें डालने दे न इसे…!रंगीली - ये क्या ये वो उसमें करने दे बोलता रहता है सीधे सीधे बोलना क्या करने दूँ तुझे..? सीधे सीधे बोल न क्या चाहिए..?शंकर - वो..मुझे तेरे सामने ऐसे गंदे शब्द बोलने में शर्म आती है…!रंगीली उसके लुंड को मुठियाते हुए बोली - अच्छा मादरचोद माँ की चुत  छोड़ना चाहता है बोलने में शर्म आती है 

खुलकर बोलै कर ये सब इन कामों में शर्म नहीं करते खुलकर बोलने में ज्यादा मज़ा आता है… समझा…शंकर - तो तू बुरा तो नहीं मानेगी न अगर में कहूँ की मुझे तेरी चुत  में अपना लुंड डालकर छोड़ना है तो…!रंगीली - हाँ - ये हुयी न कुछ बात तो मेरे छोड़ू बेटे का अपनी माँ को छोड़ने का मैं कर रहा है हाँ.. ये कहकर उसने उसके पजामा का नाडा खींच दिया और उसके लुंड को बहार निकलकर मुट्ठ मारते हुए बोली - पर अचानक से मैं क्यों करने लगा तेरा…?शंकर - वो माँ..वो…आज सुषमा भाभी की मस्त गद्दार चूचियां देख-देखकर इतना मज़ा आ रहा था..मत पूछ....आअह्ह्ह…क्या मस्त गदर्यी हुयी है वो… एकदम दूध जैसी गोरी…!रंगीली - तो उन्हें ही सोच-सोचकर तेरा ये लुंड फैन-फ़ना रहा है क्यों..? वैसे वो तेरे साथ कुछ छेड़-छड़ भी करती है…?शंकर ने माँ की चूचियों को उसके बटन खोकर चोली से बहार निकल लिया और उसके एक निप्पल को अपनी जीभ से चाटकर बोलै - बहुत छेड़ती है भाभी पर मुझे डर लगता है इसलिए में अपनी तरफ से कुछ कर नहीं पता…!रंगीली उसके सर के पीछे अपना एक हाथ रखकर उसके मुँह को अपनी चुकी पर दबाते हुए बोली - देख बीटा कोई भी औरत अपने मुँह से कभी सीधे-सीधे ये नहीं कहेगी की आजा मेरे राजा छोड़ ले मुझे…!वो ऐसी ही छेड़-छड़ करके मर्द को उकसा सकती है अब तू ठहरा नादाँ भला कैसे समझेगा की उसकी चुत  तेरा ये मुसल लेने के लिए मचल रही है…!शंकर ने उसके लहंगे को कमर तक चढ़ा दिया और उसकी जाँघों को सहलाते हुए उसका हाथ उसके मुलायम चूतड़ पर चला गया उसे अपनी मुट्ठी में भरने की कोशिश करते हुए बोलै –तो इसका मतलब सुषमा भाभी मेरे से छोड़ना चाहती है…?रंगीली कराहते हुए बोली - आह्हः…हाँ.. बीटा वो बहुत प्यासी औरत है उसने मुझे भी बोलै था तुझे उसके पास जाने के लिए इसलिए तो मेने तुम दोनों को गौरी के साथ खेलने के लिए कहा था…!शंकर ने अपनी माँ की केले के तने जैसी चिकनी टांग को अपने ऊपर रख लिया और उसकी रसीली चुत  में उंगली डालकर बोलै - इसका मतलब तू भी चाहती है की में उन्हें छोड़ दूँ..!रंगीली सीसियाते हए बोली - सीई….आअह्ह्ह्ह…हैं..मेरे लाल बहुत प्यासी है बेचारी… मौका देखकर छोड़ दाल उसे… पिलदे अपने लुंड का पानी उसकी चुत  को… बनादे अपने बच्चे की माँ…!ससीई…हाईए…री…मादरचोद उंगली ही करता रहेगा या अब छोड़ेगा भी मुझे… दाल अपना मुसल मेरी ओखली में… बहुत खुजा रही है सालियी…. सीईईई…हाईए..री.. करदे जमके कुताईईई इस निगोड़ी कोई..….शंकर अपनी माँ की कामुक बातें सुनकर फ़ौरन उसकी टांगों के बीच आकर बैठ गया.. और उसकी टांगों को चौड़ी करके अपना गरम दहकते हुए लुंड का टोपा अपनी माँ की प्यासी चुत  में पेल दिया…!एक ही झटके में आधा लुंड उसकी चुत  में सरक गया…. रंगीली कराह उठी…आअह्ह्ह्ह…. मेरे घोड़े… धीरे.. बहुत मोटा खूंटा है तेरा… मेरी चुत  को चीयर दिया रे….मादरचोद…..उफ्फ्फ्फ़…. 
शंकर ने उसके होठों को चूमा और चूचियों को मसलते हुए एक और धक्का लगा दिया अपने लुंड को जड़ तक माँ की चुत  में चेंपकर वो उसके ऊपर पसर गया…अपने दर्द पर काबू पाने के लिए रंगीली ने उसके होठों को अपने मुँह में भर लिया… और अपने पैरों को उसकी कमर में लपेटकर गांड को ऊपर उठा दिया…!अब धीरे-धीरे छोड़ बीटा हांण…शाबास मेरे शेर फाड़ अपनी माँ की चुत .. बहुत गरम है ये साली… और जोरसे..आए..यीईइई…मम्मा…ऊऊफफफफ…बहुत अच्छा..छोड़ रहा है चू.….ऐसी ही उत्तेजक बातें करते हुए वो उसे और जोरसे छोड़ने के लिए उकसाने लगी.... शंकर उसकी कामुक बातों से ज्यादा उत्तेजित होकर और दम लगाकर ठुकाई करने लगा.. दोनों माँ-बेटों की अब अच्छे से टोनिंग सेट हो गयी… जब शंकर अपने लुंड को बहार खींचता तब रंगीली अपनी गांड को बिस्टेर पर लैंड करा देती…फिर जैसे ही वो ऊपर से धक्का मारता रंगीली नीचे से अपनी कमर उचका देती जिससे शंकर के मजबूत कठोर जाँघों के पत् उसकी गांड से टकराते और एक तपाक की आवाज कमरे में गूँज उठती…शंकर का लुंड एकदम सुपडे तक बहार आता और एक ही झटके में जड़ तक उसकी रसीली चुत  में फचाक से समां जाता…!दोनों को इस समय जो मज़ा आरहा था उसे तो वो दोनों ही बता सकते थे… इस घमासान चुदाई से रंगीली थोड़ी ही देर में अपनी चुत  का ढक्कन खोल बैठी…उसके बाद शंकर ने उसे घोड़ी बनाकर पीछे से उसकी चुदाई शुरू करदी.. अपना नलका खुलने तक वो उसे दे दनादन छोड़ता रहा…!शंकर के दुमदार धक्कों से वो पूरी तरह हिल जाती थी उसकी गोल-मटोल सुडौल चूचियां सागर की लहरों की तरह हिलोरें मार रही थी…जब उसने अपनी माँ की चुत  में अपना रास छोड़ा तब तक वो दो बार और झाड़ चुकी थी और पास्ट होकर औंधे मुँह बिस्तर पर गिर पड़ी शंकर का लुंड अपनी चुत  में लिए हुए न जाने कब उसकी झपकी लग गयी….!लेकिन शंकर का लुंड अभी भी ढीला नहीं हुआ था चुत  में डेल हुए ही वो फिरसे थूंकने लगा… उसने उसे हिलने की कोशिश की लेकिन वो तो ३ बार अपना पानी फेंक कर गहरी नींद में डूब चुकी थी…बेचारे को थक-हार कर अपना खड़ा लुंड चुत  से बहार निकलना ही पड़ा.. और अपनी माँ के गाल पर एक किश करके लौड़ा हाथ में लेकर सोने की कोशिश करने लगा…! 

एक दिन सलौनी किसी काम से अपनी दादी के पास ही रुक गयी फिर भी रंगीली ने शंकर को अकेले ही गौरी के साथ खेलने के लिए भेज दिया…वो और सुषमा दोनों उसके घर में गौरी के साथ खेल रहे थे… ये कोई छुआ-छुई का खेल था गौरी की बारी थी उन दोनों में से किसी एक को छूने की पहले उसने शंकर को छूने की कोशिश की लेकिन वो हाथ नहीं आया..फिर वो अपनी माँ को छूने के लिए लपकी उससे बचने के लिए वो झटके से पीछे को मुड़ी सामने पलग था सो झपट कर पलंग पर चढ़ गयी…उसी आप-धापी में पलंग से नीचे उसने जम्प लगायी क्योंकि गौरी उसके पीछे ही थी उसी चक्कर में उसकी पीठ में झटका सा लगा…वो अपनी पीठ पकड़ कर वहीँ बैठ गयी और कराहने लगी… शंकर लपक कर उसके पास आया और बोलै - क्या हुआ भाभी चोट लगी क्या..?सुषमा कराहकर बोली - हां भैया जलगता है झटके से मेरी पीठ चटख गयी…वो उसे उठाने के लिए आगे बढ़ा और उसका एक बाजु अपने कंधे पर रख कर बोलै - चलो मेरे सहारे पलंग तक चलो फिर में माँ को भेजता हूँ वो कुछ न कुछ जरूर करेगी…!वो कराह कर बोली - आअह्ह्ह…मेरे से खड़ा नहीं हुआ जा रहा.. मुझे गोद में लेकर पलंग तक ले चलो…!शंकर ने सकुचाकर उसकी तरफ देखा वो कराहते हुए फिर बोली - आअह्ह्ह…क्या सोच रहे हो ले चलो मुझे…मम्मा…आह्ह्ह्ह…शंकर ने उसकी पीड़ा समझकर उसे गोद में उठा लिया सुषमा ने अपनी बाहें उसके गले में लपेट दी और अपनी गद्दार रास से भरी चूचियों को उसके सीने में दबाते हुए लिपट गयी…!चूचियों के मखमली एहसास से उसका लुंड खड़ा होने लगा जिसे सुषमा ने अपनी गांड के नीचे महसूस किया और वो भी उत्तेजित होने लगी…!बिस्तर पर लिटाकर उसने सुषमा से कहा - आप थोड़ा आराम करो भाभी में अभी माँ को भेजता हूँ वो आकर आपकी मालिश कर देगी तो आप जल्दी ठीक हो जाओगी इतना बोलकर वो वहाँ से जाने के लिए उठा…!सुषमा ने फ़ौरन उसकी कलाई थम ली और बोली - गौरी चली जायेगी काकी को बुलाने तुम यहीं रहो मेरे पास मुझे बहुत दर्द है पीठ में आअह्ह्ह्ह…जरा तबतक तुम ही सहला दो…प्लीज…!फिर उसने गौरी से कहा - बीटा जरा रंगीली काकी से बोल माँ को पीठ में दर्द हो रहा है शंकर काका उनके पास हैं…!अपनी माँ की बात सुनकर गौरी दौड़ती हुयी रंगीली को बताने चल दी और वो खुद बिस्तर पर औंधे मुँह लेट गयी……!गौरी के जाते ही सुषमा ने शंकर से कहा - जरा दरवाजा बंद कार्डो शंकर शंकर ने चौंक कर कहा - क्यों भाभी…सुषमा - अरे बुद्धू तुम मेरी पीठ की मालिश करोगे इस बीच कोई आ गया तो खामखा कुछ गलत-सलत सोचेगा.. जाकर दरवाजा बंद किया इतने में सुषमा ने अपने ब्लाउज के हुक खोल दिए और अपनी साड़ी को ढीला करके पेटीकोट के नाड़े को भी खोल दिया… 

जब वो गेट बंद करके लौटा तो सुषमा ने औंधे मुँह लेते हुए ही फिर कहा - अब देखो तो जरा वहाँ ड्रेसिंग टेबल पर मूव रखा होगा वो ले आओ तो…!शंकर वहाँ से मूव की तुबे ले आया तो वो फिर बोली - अब जरा इसमें से थोड़ा-थोड़ा अपनी उँगलियों पर लेकर मेरी कमर और पीठ पर मालो…!शंकर कुछ देर तक असमंजस में खड़ा रहा उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी की वो सुषमा के बदन पर मालिश करे जब कुछ देर तक उसने शुरू नहीं किया तो वो कराह कर बोली…अब खड़े क्यों हो शंकर जल्दी से मेरी पीठ की मालिश करो आअह्ह्ह…बहुत दर्द है मेरी पीठ फटी जा रही है दर्द के मारे…मा….!उसने हिचकिचाते हुए सुषमा की साड़ी को पीठ से अलग किया पिछवाड़े से उसके गोर चित्ते बदन की बनाबट देखकर उसके शरीर में कैंप-कपि सी होने लगी…!ऊपर से नीचे तक उसकी पतली कमर किसी शंकु के आकर में जिसके बूचो-बीच रिड की गहरी नाली सी… बाद ऊपर को खूब उभरे हुए उसके कूल्हे दो चट्टानों जैसे जो साड़ी में कैसे हुए किसी का भी लुंड खड़ा करदें…अपनी माँ के अलावा अभी तक उसने किसी और स्त्री के बदन को छुआ तक नहीं था सो डर और उत्तेजना के मारे उसका शरीर कांपने लगा हिम्मत जुटाकर उसने थोड़ा सा तुबे अपनी उँगलियों पर लिया और अपने घुटने तक कर उसके बगल में बैठ गया…कांपते हाथों से उसने जैसे ही सुषमा की पीठ को छुआ दोनों के ही शरीर में बिजली के करंट की तरह एक लहार सी दौड़ गयी... शंकर अपनी उँगलियों के पोर से उसकी पीठ पर हलके हाथ से मूव को मलने लगा ठंडी-ठंडी मूव क्रीम जिसमें थोड़ी चुन-चुनाहट सी सुषमा को हो रही थी वो सिसकते हुए बोली - ससीई…आअह्ह्ह…शंकर भैया थोड़ा जोरसे मालो न क्या लड़कियों के जैसे हाथ चला रहे हो और थोड़ा ऊपर तक मालिश कार्डो…शंकर उसकी बात मानकर अपने पुरे हाथ की हथेली से उसकी माइलिश करने लगा वो कराह कर बोली - आअह्ह्ह्ह…हाँ ऐसे ही अब थोड़ा ऊपर तक भी…शंकर - लेकिन भाभी ऊपर तो आपका ब्लाउज है…सुषमा - आह्हः…अपना हाथ तो डालो अंदर… चला जाएगा वो जी कड़ा करके शंकर ने जैसे ही अपना हाथ ऊपर को सरकाया उसकी उंगलियां और फिर पूरा हाथ ब्लाउज के अंदर घुसता चला गया शंकर फ़ौरन समझ गया की आगे से इसके हुक्स खुले हुए हैं..अंदर हाथ जाते ही उसकी उंगलियां जैसे ही उसकी ब्रा की स्ट्रिप से टकराई… दोनों की ही सांसें तेज हो गयी… वो कुछ देर उसके आस-पास ही मालिश करने लगा.. एक कामुक भरी आह्हः.. लेकर बोली - आअह्ह्ह…शंकर भैया…मेरी ब्रा के हुक खोलकर पूरी पीठ पर मूव मालो न…!उसके मुँह से ब्रा के हुक खोलने की बात सुनते ही शंकर का लुंड उसके पाजामे में झटके मारने लगा उसका मुँह कानों तक लाल हो गया... हुक पर उसके हाथ बुरी तरह से काँप रहे थे…उसकी इस मनोदशा को बिस्तर में मुँह छुपाये सुषमा बड़ी अच्छी तरह समझ रही थी वो खुद उसके हाथों के स्पर्श से बहुत ज्यादा गरम हो चुकी थी नीचे उसकी चुत  गीली होने लगी थी… 

जैसे तैसे करके शंकर ने उसकी ब्रा के हुक खोल दिए और अब वो थोड़ा सा तुबे लेकर उसकी पूरी पीठ पर मालिश कर रहा था……………!उधर गौरी जब रंगीली के पास पहुंची और उसको बताया जो उसकी माँ ने कहने के लिए बोलै था वो मुस्करा उठी और उसको अपनी गोद में लेकर बोली - तुम चिंता न करो बिटिया रानी वहाँ शंकर काका हैं न वो मम्मी को बिलकुल ठीक कर देंगे..!चलो अपन लोग सलौनी के पास चलते हैं उसके घर चलोगी न…घूमने के नाम से हर समय हवेली में क़ैद रहने वाली बच्ची खुश हो गयी रंगीली उसे अपनी गोद में उठाये अपने घर की ओरे चल दी…! इधर पीठ की मालिश करते हुए शंकर का बुरा हाल था ब्रा की स्ट्रिप खुल चुकी थी ब्लाउज चढ़कर गले तक पहुँच चुक्का था…अब थोड़ा नीचे भी तो करो आह्हः…कमर भी तो दुःख रही है…शंकर अब किसी रोबोट की तरह उसके कहे शब्दों को फॉलो कर रहा था तभी उसे अपनी माँ के शब्द उसके कानों में गूंजने लगे…कोई औरत अपने मुँह से नहीं बोलती बीटा की उसे छोड़ो उसकी छेड़-छड़ और इशारे बताते हैं की वो क्या चाहती है…ब्रा के हुक्स खुलवाते ही वो समझ चुक्का था की सुषमा उससे छोड़ने के लिए तैयार है लेकिन फिर भी वो अपनी तरफ से कोई पहल नहीं करना चाहता था बस उसकी बात मंटा जा रहा था देखना चाहता था की ये खेल और कितनी देर तक चलता है अब उसे भी इस खेल में मज़ा आने लगा था… डर अब उत्तेजना में तब्दील हो चुक्का था…!उसने अपने हाथ सुषमा की वेल्ली में जमा दिए मूव को आगे पीछे मलते हुए उसके हाथ साइड तक पहुँचने लगे थे…आह्ह्ह्ह…थोड़ा और नीचे तक करो सुषमा अब बनावटी कराहते हुए जैसे ही बोली - शंकर ने उसे पूछने की जेहमत नहीं उठायी की साड़ी और पेटीकोट नीचे करो वो समझ गया की यहां भी ब्लाउज की तरह सब कुछ खुला ही होगा सो उसने अपने दोनों हाथ उसके दो चट्टानों की तरह ऊपर को सर उठाये हुए गांड के दोनों पाटों की तरफ बढ़ा दिए… गांड के उभारों तक हाथों को लेजाकर वो उन्हें अच्छे से रगड़ने लगा…फिर उसने उसकी गांड की चोटियों को अपने दोनों पंजों में भींच लिया…सुषमा बुरी तरह से सिसक पड़ी…ससीईई… आअह्ह्ह्ह…शंकर… ऐसे ही करो… आअह्ह्ह…बहुत अच्छा लग रहा है… ने उसके दोनों मटके जैसे चूतड़ों की मालिश करते हुए अपने एक हाथ की उंगली उसकी गांड की दरार में फंसकर ऊपर से नीचे तक फेरने लगा के छेड़ पर उसकी उंगली पहुँचते ही सुषमा की सिसकियाँ तेज हो गयी ससीईई…आअह्ह्ह्ह…और आगे तक करो राजा…आह्हः…बहुत अच्छा लग रहा है…शंकर ने अपना हाथ पंतय में और अनादर तक घुसा दिया और जैसे ही उसकी उंगलियां उसकी रास गागर के मुँह पर पहुंची गछकक्क से उसकी बीच की उंगली अपने आप उसके रास कुंड में डूब गयी.. जैसे किसी रह चलते हुए के सामने अचानक से दलदल आजाये और वो उसमें डूब जाए…! 

गछकककक…से शंकर की उंगली उसके अमृत कुंड के अंदर जाते ही सुषमा ने अपनी दोनों जाँघों को कसकर भींच लिया जिससे शंकर की उंगली उसके गरम कुंड में जप्त होकर रह गयी…!मूव की झनझनाहट से उसकी गरम चुत  और ज्यादा गरम हो गयी कुछ देर उसे अपनी चुत  में मूव की चुन-चुनाहट महसूस हुयी लेकिन जल्दी ही मज़े में वो उसे नज़रअंदाज कर गयी…शंकर अपनी उंगली को अंदर ही अंदर इधर से उधर गोल-गोल घूमने लगा… रास कुंड लबालब भरा होने की वजह से उसकी उंगली को चुत  में इधर-उधर चलने से भी हलकी हलकी चाप-चाप जैसी आवाज आ रही थी…उत्तेजना के कारन सुषमा का बुरा हाल हो रहा था उसकी चुत  बुरी तरह पनिया गयी थी उसे अब अपने आपको रोक पाना मुश्किल होने लगा था…!वो उत्तेजना की चरम सीमा लांघ कर अपना कामरस  छोड़ने ही वाली थी की तभी शंकर ने अपनी उंगली बहार निकाल ली और उसे अपने मुँह में लेकर चूसने लगा…!चपर-चपर उंगली के चूसने की आवाज सुनकर सुषमा अपनी साड़ी संकोच की दीवार तोड़कर उठ बैठी और वो शंकर से किसी बेल की तरह लिपट गयी…! आअह्ह्ह्ह…शंकर मेरे राजा… मेरे सपनों के राजकुमार… अब नहीं रहा जाता मुझसे… छोड़ डालो अपनी रानी को… , वो उसके लुंड को मुट्ठी में लेकर बोली - में अब तुम्हारे इस लुंड के बिना नहीं रह पाउंगी मेरे हीरो…..!ये कहकर उसने उसे बिस्तर पर धकेल दिया और शंकर के ऊपर सवार होकर उसके कपड़ों पर टूट पड़ी……!सुषमा के मुँह से खुलेआम छोड़ने की बात सुनकर शंकर के चहरे पर स्माइल आ गयी वो उसके कपडे उतर रहे हाथों को पकड़कर रोकते हुए बोलै –ये आप क्या कर रही हैं भाभी में आपका नौकर हूँ भला में आपके साथ ऐसा कैसे कर सकता हूँ प्लीज छोड़िये मुझे जाने दीजिये मुझे वार्ना अनर्थ हो जाएगा…!वो किसी खूंखार बिल्ली की तरह उसके कपडे उतारते हुए गुर्राई…नहीं शंकर तुम मेरे नौकर नहीं हो तुम तो मेरे सपनों के राजकुमार हो मेरे राजा.. आज अगर तुमने मेरी प्यास नहीं बुझाई तो बहुत बड़ा अनर्थ हो जाएगा…!न जाने में क्या कर बैठूंगी में खुद भी नहीं जानती.. इसलिए अब ज्यादा सोचो मत और अपनी इस दासी की प्यास बुझादो मेरे सरताज…! ये शब्द कहते-कहते जैसे वो रो ही पड़ी… उसकी सुनी आँखों जिनमें अब उम्मीद की किरण आती दिखाई देने लगी थी से दो बूँद पानी की टपक कर शंकर के सीने में दफ़न हो गयी…!उसे अपनी माँ के कहे शब्द याद आने लगे… सुषमा बहुत प्यासी औरत है बीटा उसकी प्यास बुझा दे…! ये याद करते ही उसने नीचे से उसकी बगलों में अपने हाथ डालकर उसे बिस्तर पर पलट दिया और खुद उसके ऊपर आकर उसके दोनों अनारों को अपने बड़े-बड़े हाथों में थामकर मसलते हुए उसके प्यासे होठों पर अपने तपते होठ रख दिए…! 

अंधे को मानो दो आँखें मिल गयी हो सुषमा के बरसों से प्यासे होंठ लरज उठे उसकी मरमरी बाँहों ने शंकर की पीठ पर अपना घेरा बना लिया और अपने होठों में जगह देकर उसका साथ देने लगी…!सुषमा के मीठे लजीज होठों की लज़्ज़त पाकर शंकर के होंठों में तारबत आगयी वो अपनी जीभ उसके मुँह में डालकर उसकी जीभ के साथ अठखेलियां करवाने लगा…!सुषमा के लिए ये सब एकदम अनूठा और आनंद से भरा अनुभव था जो उसे किसी सपने की तरह लग रहा था इस तरह के अनूठे सुख की लालसा वो इस जीवन में त्याग चुकी थी सो अनायास उसे पाकर दीं दुनिया भूलकर शंकर की बाँहों में पिघलने लगी…!जब उसने सुषमा के होठों को छोड़ा उसकी आँखें जो अब तक बंद थी उसके अलग होते ही खुल गयी वो अपनी वासना से सुर्ख हो चुकी सवालिया निगाहों से उसे घूरने लगी उसे शंकर का यौन रुकना पसंद नहीं आया…!शंकर ने उसकी आँखों में झंकार पूछा - एक बार और सोच लो भाभी… ऐसा न हो बाद में आपको कोई पश्चाताप हो…!सुषमा उसके हाथों को अपने उभारों पर रख कर बोली - पश्चाताप की आग में तो में आजतक जलती आरही हूँ उस आग को बुझादो शंकर तुम्हारी माँ भी यही चाहती हैं…!शंकर ने उसके आमों को मसलते हुए मुस्कराकर कहा - फिर ठीक है मेरी जान हो जाओ तैयार एक नए सफर के लिए… आज में आपको वो..वो दुनिया दिखाऊंगा जिनकी आपने कल्पना भी नहीं की होगी…!सुषमा - हाँ मेरे राजकुमार में तुम्हारे इस उड़नखटोले में बैठकर आसमानों की शेर पर जाना चाहती हूँ ले चलोगे न मुझे…!ये कहकर वो दोनों एक दूसरे से चिपक गए…!दोनों ने अपने-अपने कपडे निकल फेंके… सुषमा की नंगी गोरी सुडौल गोल-गोल चूचियों को देखकर शंकर उनपर भूखे भेड़िये की तरह टूट पड़ा..उसने अपने कठोर हाथों में भरकर जोरसे मसल दिया… दर्द की एक मीठी सी लहार सुषमा के बदन में दौड़ पड़ी.. वो कराह कर बोली –आअह्ह्ह्ह….आराम से मेरे राजा…दर्द होता है.. लेकिन शंकर पर उसकी कराह का कोई असर नहीं हुआ और वो उन्हें पूरे जोश के साथ मींजने लगा… कठोर हाथों की मिजाई से सुषमा की दर्द मिश्रित सिसकियाँ कमरे में गूंजने लगी उसकी रास गागर छलकने लगी… हाथ से चुकी मींजते हुए दूसरे अनार को उसने अपने मुँह में भर लिया और चुकुर-चुकार उसका रास चूसने लगा बीच-बीच में वो उसके कड़क हो चुके ब्राउन कलौरे के निप्पल्स को भी मरोड़ देता या दांतों में दबाकर हलके से काटने लगता…इसी बीच उसने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर उसके रास कुंड को अपनी मुट्ठी में भर कर मसल दिया…तीन तरफ के हमले से सुषमा को बचाव का कोई रास्ता नज़र नहीं आया हारकर उसकी चुत  ने अपना कामरस  छोड़ दिया.. वो शंकर के मरदाना हमलों के आगे नतमष्तक होकर हांफने लगी…फिर शंकर ने अपना लुंड सुषमा के हाथ में देकर कहा - इसकी कुछ सेवा तो करो भाभी…गरम हथौड़े जैसा लुंड अपने हाथ में लेकर सुषमा की आँखें चौड़ी हो गयी उसने आजतक ऐसे सूंदर और तगड़े लुंड की कभी कल्पना भी नहीं की थी 

उसने तो आज तक कल्लू की लुल्ली ही देखि थी सो शंकर के मतवाले सुर्ख दहकते हुए गेंहुआ रंग के ७.५” लम्बे और खूब मोठे किसी खूंटे जैसे लुंड को देख कर उसकी मुनिया ने डर के मारे अपने होंठ फिरसे गीले कर दिए…!वो उसे अपने हाथ से सहलाते हुए बोली - हाईए राम… ये तो अभी से इतना बड़ा है.. आगे चलकर और कितने रूप बदलेगा…!बिना पीरियड के ही बच्चेदानी का मुँह पकड़कर उसमें अपना बीज उड़ेल देगा ये.. उसकी बातें सुनकर शंकर मन ही मन मुस्करा रहा था…सुषमा ने उसे चूमकर कहा - थोड़ा आराम से डालना इसे मेरे अंदर इतना बड़ा पहली बार ले रही हूँ.. हाँ..!शंकर ने अपने मुसल को पकड़ कर उसके होठों से लगते हुए कहा - पहले इसे मुँह में लेकर चुसो रानी..… अभी से अंदर लेने के लिए क्यों ूतबली हो रही हो भाभी मेरी जान…!सुषमा उसे कल्लू जैसा ही समझ रही थी सो बोली - कहीं मुँह में लेते ही इसने अपना जहर उगल दिया तो में तो प्यासी की प्यासी ही रह जाउंगी…!उसकी ये बात सुनकर शंकर का दिमाग भिन्न गया उसने अपना लुंड उसके हाथ से खींच लिया और झिड़कते हुए बोलै - छोडो अगर नहीं लेना है तो में चला अपने घर… कितने सवाल करती हो ?सुषमा उसकी घुड़की सुनते ही मिमियाने लगी उसने बिना कुछ कहे फ़ौरन उसे फिरसे पकड़ कर अपने मुँह में गड़प्प कर लिया और लोल्लयपोप समझ कर चूसने लगी…!कुछ ही देर में उसे पता चल गया की लुंड चूसने का भी अपना अलग ही मज़ा है भले ही लुंड उसके मुँह में चल रहा था लेकिन उसका असर उसकी चुत  में होने लगा वो अपने पंजों पर बैठी बूँद-बूँद करके रिसने लगी…!अब वो उसे मुँह से निकलने को राज़ी ही नहीं थी लेकिन शंकर ने उसे रोक दिया और उसे पलंग पर लिटाकर खुद उसकी टांगों के बीच बैठकर उसकी रास से सराबोर चुत  में अपना मुँह घुसा दिया…!एक इतनी बड़ी बेटी की माँ सुषमा को एक टीनएज लड़के से और न जाने कितना सीखने को मिलने वाला था आज चुत  चटवाकर तो वो मनो सचमुच ही आसमानो की शेर करने निकल पड़ी थी…!जिंदगी में पहली बार किसी के होठ उसकी चुत  की फांकों को नसीब हुए थे… उसके मुँह से कामुक सिसकियों की मानो बाढ़ सी आगयी उस कमरे में…!शंकर की जीभ और उंगली के कमाल ने उसे बिस्टेर पर ही पड़े-पड़े कत्थक करने पर मजबूर कर दिया…वो अपने मुँह से कामुक सिसकियाँ भर्ती हुयी अपनी कमर को लहराने लगी… शंकर की चतुर चटोरे जीभ ने कुछ ही देर में उसे फिर एक बार बुरी तरह से झाड़ा दिया और खुद उसके सारे रास को चूस गया…!उसके चुतरस को चाटते हुए एक लम्बा सा चटकारा लेकर शंकर बोलै - बहुत टेस्टी हो भाभी.. मज़ा आगया आपका रास पीकर…!उसकी ऐसी कामुक बातें सुनकर सुषमा शर्म से दोहरी हो गयी लपक कर वो उसके चौड़े कठोर सीने ले लिपट गयी… और उसके हलके रोंगटे वाले सीने को चूमते हुए बोली - तुम कोई जादूगर तो नहीं… शंकर मेरे राजा… ी लव यू..!! 

उसके कामरस  को चाटते हुए एक लम्बा सा चटकारा लेकर शंकर बोलै - बहुत टेस्टी हो भाभी.. मज़ा आगया आपका रास पीकर…!शंकर के मुँह से ऐसी कामुक बातें सुनकर सुषमा शर्म से दोहरी हो गयी लपक कर वो उसके चौड़े कठोर सीने ले लिपट गयी… और उसके हलके रोंगटे वाले सीने को चूमते हुए बोली - तुम कोई जादूगर तो नहीं… मेरे प्यारे शंकर… ी लव यू..!!शंकर ने उसे अपनी गोद में खींचकर उसके होठों को चूमते हुए कहा - ी लव यू तू मेरी जान भाभी.. आप वाकई मेरे मैं को भ गयी हो…!में कोई जादू-वडु नहीं जानता ये तो आपके इस हुश्न का जादू है जो मेरे सर चढ़ कर ये सब करने को मजबूर कर रहा है…!सुषमा किसी छोटी बच्ची की तरह उसकी गोद में बैठी उसके सीने को सहलाते हुए बोली - क्या सच में तुम्हें में इतनी अच्छी लगती हूँ..!शंकर ने उसकी गांड के छेड़ को अपनी एक उंगली के पोरे से सहलाते हुए कहा - हाँ भाभी आप मुझे बहुत अच्छी लगती हो.. जब माँ ने मुझे आपके पास आने के लिए कहा तो मुझे बहुत ख़ुशी हुयी थी….!खैर छोडो ये सब बातें और अब तैयार हो जाओ असली सफर के लिए… ये कह कर उसने फिरसे उसे पलंग पर लिटा दिया और उसकी टांगों को चौड़ी करके अपने गरमा गरम लुंड को उसकी गीली चुत  की फांकों के ऊपर रख कर रगड़ने लगा…!लुंड की गर्मी पाकर उसकी झड़ी हुयी मुनिया फिरसे गरम होने लगी…! उसका लुंड आधे घंटे से अपने लिए सुरंग की तलाश में बबला सा होकर बुरी तरह से किसी घोडा पछाड़ नाग की तरह लहरा रहा था…उसके चरों तरफ लम्बी और मोती मोती नसें उभर आयी थी… देखने से ही वो किसी लोहे की रोड जैसा सख्त लग रहा था…उसकी कठोरता की एक झलक पाते ही सुषमा को जहर-झूरी सी आ गयी…वो सिसक कर बोली - अब दाल दो इसे आराम से और न सताओ राजा…!सुषमा का इतना कहना ही था की उसने उसकी फांकों को खोलकर अपने सुपडे को उसके छोटे से छेड़ पर रखा और एक तीव्र झटका अपनी कमर में लगा diya…!

Aaayiiii……..mmmaaaaaaaaaaa………maarrrrrr…gayiii.. रिइइइइइइइइ… शंकर ने फ़ौरन अपनी हथेली उसके मुँह पर जमा दी वार्ना कुछ ही पलों में वो पूरी हवेली को इकठ्ठा कर लेती उस कमरे में…!उसका आधा लुंड ही अंदर गया था अभी लेकिन सालों पहले बेटी को जन्म देने के बाद इतनी बड़ी चीज़ चुत  में कभी गयी ही नहीं थी उसका छेड़ सिकुड़कर छोटा हो गया था आज एक तगड़े झटके से शंकर के खूंटे ने उसकी चुत  को चीयर कर रख दिया था…!उसकी आँखों में पानी आगया वो इशारों से ही उसको रुकने के लिए मिन्नतें करने लगी शंकर ने उसके मुँह से अपना हाथ हटाया तो वो कराहते हुए शिकायत भरे स्वर में बोली - 

हाय री….बहुत निर्दयी हो तुम…आराम से नहीं कर सकते थे मेरी जान ही निकल दी तुमने तो.. शंकर - मेने सोचा आप एक बेटी की माँ हो तो इतना तो झेल ही लोगी…!सुषमा कराहते हुए बोली - बेटी को पैदा हुए सालों हो गए अब ये तुम्हारा सोते जैसा मुसल इसने फाड़के रखड़ी मेरी छोटी सी मुनिया.... शंकर - क्यों कल्लू भैया नहीं छोड़ते क्या आपको…?सुषमा - उनकी ऊँगली जैसी लुल्ली से क्या फरक पड़ता है.. पता भी नहीं चलता है गीली चुत  में कुछ जा भी रहा है या नहीं..शंकर - कोई बात नहीं अगर आपको मेरा लुंड लेने में ज्यादा तकलीफ हो रही है तो में निकल लेता हूँ इसे आप किसी छोटे लुंड से ही छुड़वा लेना…. इतना कहकर वो अपने लुंड को उसकी चुत  से बहार निकलने लगा……..!सुषमा ने फ़ौरन अपने हाथ उसकी पीठ पर कास लिए और बोली - मेने आराम से डालने को कहा था राजा जी इसे निकलने को नहीं और तुम क्या मुझे रंडी समझते हो जो किसी से भी छुड़वा लुंगी…हाँ - तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो में तुम्हें अपना दिल दे चुकी हूँ इसलिए तुम्हारा अंश अपनी कोख में चाहती हूँ.... अब करो धीरे-धीरे प्लीज…….. शंकर ने अपने लौड़े को बड़े आराम से सुपडे तक बहार खींचा कासी हुयी चुत  की अंदरूनी स्किन भी उसके साथ बहार को खींचने लगी… लग रहा था मानो सुषमा की चुत  अपने प्रियतम से जुड़ा ही नहीं होना चाहती हो… बहार को निकलते हुए भी उसकी कराह निकल गयी…उसने जल्दी ही फिरसे एक हल्का सा धक्का लगा दिया लुंड अपनी पहली मंज़िल से दो इंच और आगे तक सरक गया वो फिर कराह उठी लेकिन इस बार उसने कोई प्रतिरोध नहीं किया..एक-दो प्रयासों के बाद शंका का पूरा लुंड सुषमा की कासी हुयी चुत  में समां गया कुछ देर वो एक दूसरे से बस यूँही चिपके पड़े रहे एक दूसरे के बदन को सहलाते रहे..!पूरा लुंड अंदर पहुंचते ही शंकर ने सुषमा की एक टांग को उसके सीने से सत्ता दिया और फिर फर्स्ट गियर डालकर गाडी को आगे बढ़ाया इस पोजीशन में उसका लुंड सुषमा को और ज्यादा गहरायी में एकदम उसकी बच्चे दानी के अंदर तक जाता महसूस हुआ.. उसने कसकर बिस्टेर की चादर को अपनी मुट्ठियों में जकड लिया और अपने होठों को भींचकर दर्द को पीने की कोशिश करने लगी…कुछ देर शंकर ने गाडी को फर्स्ट गियर में ही चलाया फिर जब देखा की अब वो उसे सेहन कर पा रही है उसने गियर चेंज किये दूसरा तीसरा और फिर चौथा आखिर में टॉप गियर डालकर जैसे ही उसने एक्सीलेटर दिया…सुषमा की मार्कएडेस का इंजन गहन-घनाकार पानी मांगने लगा वो चक्करघिन्नी होकर ५ मिनट में ही भल-बहलाकर पानी फेंकने लगी…! 

लेकिन ५ मिनट में तो शंकर का पिस्टन रबान भी नहीं हो पाया था सो उसकी रास से लबालब चुत  में अपने करारे ढाकों की बरसात करता ही रहा…फच्च..फच्च..करके उसकी चुत  का सारा पानी कुछ धक्कों में ही बहार आगया जिससे अब उसकी चुत  सूखने लगी कासी हुयी सुखी चुत  में शंकर के मुसल के धक्कों ने सुषमा को फिरसे कराहने पर मजबूर कर दिया उसकी चुत  में जलन सी होने लगी…!वो उसके सीने पर अपनी हथेली जमकर कराहते हुए बोली - आअह्ह्ह…थोड़ा रुको शंकर मेरी चुत  में जलन हो रही है देखो न कैसा जकड लिया है तुम्हारे लुंड को इसकी फांकों ने…शंकर ने अपना लुंड बहार खींच लिया और उसकी कमर में हाथ डालकर उसे घोड़ी बना दिया फिर पीछे से उसकी गोल-गोल गद्देदार गांड के पाटों पर थपकी देकर उनके बीच अपना मुँह डालकर उसकी गांड के छेड़ को अपनी जीभ से कुरेदने लगा गांड के छेड़ का करंट सीधा उसकी चुत  में लगा और वो फिरसे गीली होने लगी कुछ देर उसकी गांड और चुत  को चाटकर उसने पीछे से ही अपना लुंड उसकी चुत  में पेल दिया…!एक ही झटके से पूरा लुंड लेने में सुषमा को नानी यद् आगयी धक्का न झेल पाने की वजह से वो ुंधे मुँह बिस्तर पर गिर पड़ी शंकर ने उसकी गांड को नीचे हाथ डालकर थोड़ा ऊपर उठाया और उसके गोल-गोल गांड के पाटों पर धापा-धप अपनी जाघों से थप्पड़ जैसे मारने लगा दे दनादन उसका पीसतिओं सुषमा के सिलिंडर में अंदर बहार होने लगा..सुषमा के मुलायम उभरे हुए चूतड़ शंकर की जांघों के पड़ते ही और ज्यादा उभर कर ऊपर को उठ जाते धक्कों की मार से सुषमा का बुरा हाल था उसका पूरा बदन भूकंप के झटकों की तरह हिलने लगा..वो ज्यादा देर नहीं झेल पायी ये मार और एक बार फिरसे झाड़ गयी लेकिन अब वो असली चुदाई को समझ चुकी थी आज उसे अपने जीवन की बगिया हरी भरी होती दिखाई दे रही थी वो जैसे तैसे करके अपने साथी के मज़े तक अपने आपको संभालना चाहती थी…करीब आधे घंटे की ताबड़-तोड़ चुदाई के बाद शंकर के अंदर का लावा उबलने लगा… वो किसी बिगड़ैल घोड़े की तरह हिन्-हिनकर सुषमा की गांड से अपने चौड़े कसरती जांघों के पत्तों को चिपकते हुए झड़ने लगा….उसके गरम वीर्य की बौछार अपनी बच्चे दानी के अंदर महसूस करती सुषमा ापाआआआआ सुख की अनुभूति कर रही थी…छटांक भर देसी घी उसकी चुत  में उड़ेलकर वो उसकी पीठ पर ही लड़ गया…!सुषमा की चुत  किसी राइफल की गोलियों की बौछार जैसी लुंड की पिचकारियों को अपनी बच्चेदानी में महसूस करके एकदम से शांत पद गयी उसकी चुत  ने आज इतने अंदर तक जिंदगी की पहली बरसात को महसूस किया था वो ख़ुशी के मारे फूलने-पिचकने लगी 

उसकी फांकों ने शंकर के लुंड को कसकर जकड लिया मानो अपने प्रियतम को खुश करने के लिए वो उसका चुम्बन ले रही हो…!एक असली मर्द के दुमदार लुंड की मार से वो बेहोशी जैसी हालत में पहुँच गयी थी उसे होश ही नहीं रहा की शंकर जैसा बलिष्ठ नौजवान कितनी ही देरसे उसके ऊपर पड़ा हुआ है..फिर शंकर ने साइड में लुढ़क कर उसे हिलाया दो-चार बार हिलाने के बाद वो कुनमुनाई तो उसने पूछा - क्या हुआ भाभी..? आप ठीक तो हो न..!वो अपनी उसी खुमारी में बोली - हुम्म्म…में ठीक हूँ थोड़ा रुको..! लगभग १५ मिनट के बाद उसने अपनी आँखें खोली पलट कर वो उसके सीने से लिपटकर फफक-फफक कर रोने लगी…!शंकर की डर के मारे गांड फैट गयी वो सोचने लगा की साला कहीं ज्यादा तो नहीं फैट गयी इसकी चुत  वो डरते हुए बोलै - सॉरी भाभी मुझे माफ़ कार्डो में अपने आप पर कण्ट्रोल नहीं कर पाया…!सुषमा ने अपनी आंसुओं भरी आँखों से उसकी तरफ देखा फिर उसके होठों को चूमकर उसने अपना मुँह उसके सीने में छुपकर बोली - थैंक यू शंकर मेरे शहजादे…तुमने आज मेरे जीवन की साड़ी हसरतें पूरी करदी मुझे एक सम्पूर्ण औरत होने का एहसास दिलाकर मेरे जीवन में फिरसे हरियाली ला दी… सॉरी कहने की जरुरत नहीं है तुम एक सच्चे जावा मर्द हो जो किसी भी औरत को अपनी मर्दानगी के बलबूते पर अपना बना सकते हो मर्द भी वही है जो औरत को अपने लुंड के दम पर कण्ट्रोल कर सके आज ये सुषमा इस हवेली की होने वाली मालकिन तुम्हें वचन देती है की तुम जिस चीज़ पर अपना हाथ रख डोज वो तुम्हारी हो जायेगी…!शंकर ने उसकी गांड सहलाते हुए कहा - मुझे आपकी ख़ुशी से बढ़कर और कुछ नहीं चाहिए भाभी.. शंकर की ये बात सुनकर सुषमा उसके गले से लिपट गयी और गड गड होते हुए बोली - ओह्ह्ह…शंकर , तुम सच में बहुत नेकदिल हो बस मुझे ऐसे ही प्यार करते रहना मेरे साजन…!अभी वो दोनों और न जाने कितनी देर ऐसे ही लिपटे हुए बातें करते रहते की तभी दरवाजे पर हलकी सी दस्तक हुयी सुषमा समझ गयी की ये रंगीली काकी का संकेत है..सो वो झटपट उठ कड़ी हुयी अपने कपडे पहने और शंकर को भी कपडे पहनने को कहा…गेट खोलते ही सामने गौरी को गोद में लिए रंगीली कड़ी मुस्करा रही थी शंकर अपने कपडे पहन चुक्का था.. रंगीली गौरी को उसकी गोद में देते हुए उसके कान में फुसफुसाकर बोली - काम बना बहु रानी..?सुषमा ने शर्माकर अपनी गार्डन नीची करके हाँ में अपना सर हिला दिया की कौली भरकर वो फफक-फफक कर रो पड़ी और सुबकते हुए बोली - धन्यवाद् काकी आपने मेरा जीवन संवर दिया…!रंगीली ने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा - बस अब खुस रहा करो बहु ेशवर ने चाहा तो जल्दी ही आपकी गोद में एक नन्हा मुन्ना राजकुमार खेलेगा…!फिर शंकर को देख कर थोड़ी ऊँची आवाज में बोली - अब तू यहां कब तक खड़ा रहेगा नालायक जा अपनी पढ़ाई कर सलौनी के साथ...शंकर मुस्कराते हुए अपनी नज़र झुककर वहाँ से जाने लगा… वो दोनों भी कुछ देर और इधर-उधर की बातें करती रही उसके बाद रंगीली भी अपने घर चली आयी……….! 
सुषमा को जन्नत की सैर कराकर आज शंकर को न जाने क्यों बड़ी ख़ुशी महसूस हो रही थी सुषमा जैसी सूंदर और मस्त जवान प्यासी औरत के साथ चुदाई करने में उसे बहुत मज़ा आया था…!चुदाई के वक़्त जो संकोच की दीवार वो अपनी माँ के साथ महसूस करता था वैसी कोई दुबिधा सुषमा को छोड़ने में उसे पेश नहीं आयी… कुछ देर पहले सुषमा के साथ बिताये हसीं लम्हों को याद कर-करके वो रोमांचित हो रहा था पजामा में उसका लुंड अंडरवियर फाड़कर निकलने की कोशिश करने लगा…रस्ते में उसे ये डर भी सत्ता रहा था की खुदा-न-खस्ता सामने से कोई आते-जाते देखेगा तो क्या सोचेगा उसके बारे में..इन्ही ख्यालों में खोया हुआ वो अपने घर सलौनी के पास पढ़ने के लिए जा रहा था… अपना तम्बू छुपाने के लिए उसने उसके टोपे को पेट से सटाकर उसके ऊपर अपने अंडरवियर की इलास्टिक चढ़ा ली…घर के बहार सलौनी अपनी एक सहेली लल्ली के साथ गप्पें लगा रही थी लल्ली स्कूल तो नहीं जाती थी मात्रा ८वी क्लास के बाद ही वो पढ़ायी छोड़ चुकी थी वैसे वो उम्र में सलौनी से एक साल बड़ी थी लेकिन लम्बाई में वो सलौनी से भी कुछ काम दिखती थी उसके शरीर के उठान सलौनी की तुलना में कुछ ज्यादा ही थे ५’२” की लल्ली का बदन ३२-२४-३२ का था बेहद पतली कमर के ऊपर और नीचे का हिस्सा किसी भी मर्द को छोड़ने का निमंत्रण देने को काफी था…!एक नयी जवान होती लल्ली न ज्यादा गोरी और न ही ज्यादा सांवली माध्यम गेंहुआ रंग की वो ज्यादातर घाँघरा चोली में ही दिखाई देती थी…घर का काम-काज निपटने के बाद उसका ज्यादा तर समय सहेलियों के साथ गप्पें मरना ही होता था जिसमें ज्यादातर बातें नयी उम्र के हिसाब से चुदाई से सम्बंधित किस्सों पर ही आधारित होती थी…इस समय भी वो दोनों चबूतरे पर रस्ते की तरफ पेअर लटकाये बैठी आपस में ऐसी ही कुछ बातें कर रही थी.. लल्ली अपने काका-काकी की चुदाई के बारे में सलौनी को बता रही थी जो उसने छुपकर उनके कोठी के रोशदान से देखि थी…चुदाई का आँखों देखा हाल सुनकर और सुनकर दोनों की कोमल भावनाएं भड़कने लगी थी सलौनी की मुनिया अप्रत्यासित रूप से गीली होने लगी थी वहीँ लल्ली जो पहले से ही अपनी उँगलियों का जादू चलना सीख चुकी थी उसकी मुनिया में कुछ ज्यादा ही गीलाप न आ चुक्का था जिसे वो अपने लहंगे को चुत  के मुँह पर दबाकर उसे टपकने से रोकने लगी… 

तभी उन दोनों की नज़र शंकर पर पड़ी जो अपनी ही धुन में सामने से चला आ रहा था… उसपर नज़र पड़ते ही लल्ली के मुँह से आअह्ह्ह्ह… निकल गयी जिसे सुनते ही सलौनी ने उससे पूछा…क्या हुआ लल्ली की बच्ची तू ऐसे क्यों कर रही है…?लल्ली - तेरे भाई को देख कर मेरी मुनिया फुदकने लगी है यार.. काश तेरे भाई का लुंड मुझे मिल जाए में तुझे गारंटी देती हूँ साड़ी रात उसे अपनी टांगों में जकड़े रहूंगी…!सलौनी ने उसे झिडकते हुए कहा - तू कोशिश भी मत करना मेरा भाई ऐसा वैसा नहीं है… मुँह नोच लूंगी तेरा अगर मन में ऐसा वैसा ख्याल भी लायी तो…!लल्ली हस्ते हुए बोली - क्यों ऋ तू तो ऐसे भड़क रही है जैसे तूने ही उसके लुंड का बैनामा करा लिया हो.. सलौनी उसे मारने झपट पड़ी - साली छिनाल रंडी कुटिया क्या बकवास कर रही है वो मेरा भाई है… लल्ली हस्ते हुए अपनी जगह से उठ कड़ी हुयी और उसे चढ़ाने वाले अंदाज में बोली - भाई है तो क्या उसका लुंड तेरी चुत  के लिए मन थोड़ी कर देगा…!इतनी गन्दी बात सुनकर सलौनी उसे मारने दौड़ पड़ी… लल्ली भागते हुए सामने से आ रहे शंकर के पीछे छिपने लगी और इसी बहाने से वो उसके बदन से चिपक गयी…!उसके बिना ब्रा के कच्चे कच्चे अमरुद शंकर की कठोर पीठ में गढ़ गए जिनका मखमली स्पर्श पाकर दोनों के ही शरीर में करंट की लहर दौड़ गयी…सामने से उसके पीछे-पीछे भाग कर आती सलौनी ने शंकर के सामने से ही अपने हाथ बढाकर लल्ली को पकड़ना चाहा…इस चक्कर में वो शंकर से सात गयी ऊपर को चढ़ा हुआ उसका खूंटा सलौनी के पेट पर लगा.. पहले तो वो ये समझ नहीं पायी की ये रोड जैसी चीज़ भाई ने यहां क्यों लगा राखी है…लेकिन फिर जैसे ही उसके दिमाग ने काम करना शुरू किया वो फ़ौरन समझ गयी की ये भाई का हथियार है ये समझते ही वो उत्तेजना से भर उठी और जान बूझकर और ज्यादा लल्ली को पकड़ने की कोशिश करने लगी उधर लल्ली ने भी शंकर को पीछे से कसकर जकड़ा हुआ था और वो ऊपर नीचे इधर-उधर होकर अपनी कुंवारी कच्ची चूचियों को उसकी कठोर पीठ से रगड़ने लगी…शंकर को पक्का लगने लगा की ये दोनों कच्ची कलियाँ उसके साथ मज़ा ले रही हैं.. वो जल्दी ही इन दोनों से अलग होना चाहता था क्योंकि उसके लुंड का टेम्परेचर तो पहले से ही हाई लेवल पर था अब ये दोनों… ऊऊफफफ… भेनचोद कहीं फैट ही न जाए 

सो उसने दोनों के बाजु पकड़ कर अपने से अलग किया और सलौनी से बोलै - क्या हुआ सलौनी क्यों उधम मचा रही हो तुम दोनों..? क्यों पीटना चाहती है इसे..?अब सलौनी बेचारी अपने भाई को क्या जबाब दे की वो उसे क्यों मारने भागी थी..? वो अपनी गीली हो चुकी मुनिया को टांगों से भींचकर नज़र झुकाये बोली –कुछ नहीं भाई बस ऐसे ही हम खेल रहे थे तू बता कैसे आया इधर..?शंकर - चल - अब खेलना बंद कर चलकर पढ़ाई करते हैं कुछ देर…!चौक में दोनों भाई-बहिन एक चारपाई डालकर पढ़ने बैठ गए बीच-बीच में शंकर का ध्यान कुछ देर पहले की गयी सुषमा की चुदाई पर चला जाता था न चाहते हुए ही उसका लुंड पजामा के अंदर थूंकने लगता…सामने बैठी सलौनी की नज़र जब उसके ठुनकते तम्बू पर पड़ती तो उसकी मुनिया भी सुर-सुराने लगती अब बेचारी भाई के सामने खुजा भी तो नहीं सकती थी सो उसने अपनी जाँघों को कसकर दबा लिया…उधर शंकर की नज़र अपनी बहिन की नज़रों का पीछा करते हुए अपने तम्बू पर पड़ी वो बुरी तरह सकपका गया और उसने भी अपने तम्बू को अपनी टांगों के बीच छुपाने की कोशिश की…!अपनी झेंप मिटने के लिए उसने सलौनी से बात करना मुनासिब समझा सो बोलै –ये लल्ली के साथ ऐसी क्या बातें हो रही थी सो तू उसे मारने दौड़ पड़ी…?सलौनी ने जब भाई को अपना तम्बू छुपकर बात शुरू करते देखा तो उसने अपनी नज़रें झुका ली और बोली - कुछ नहीं भैया वो..हम..वो..आपस में ऐसी ही कुछ बातें कर रहे थे…!शंकर - वही तो बता आखिर ऐसी क्या बात हुयी जो तू उसे मारने दौड़ी.. ?सलौनी - छोड़ न भाई क्या करेगा जानकार हम लड़कियों की भी अपनी अलग ही बातें होती हैं…!शंकर- अच्छा में भी तो सुनु ऐसी क्या अलग तरह की बातें होती हैं जो आपस में मार-पीट तक की नौबत आ जाती है…!सलौनी - वो..न..वो..तेरे बारे में गन्दी-संदी बातें कर रही थी…!शंकर - मेरे बारे में..? क्या गन्दी बातें कर रही थी..? सलौनी - में नहीं बता सकती.. तू चुप चाप मेरा ये सवाल हल करदे वार्ना में चली दादी के पास…!शंकर समझ गया की कुछ तो ये लोग उसी के बारे में बातें कर रही होंगी जो सलौनी को अच्छी नहीं लगी होगी और वो उसे मारने दौड़ी.. लेकिन अब वो उन बातों से ध्यान हटाकर उसका शूम सोल्वे करने लगा…! कुछ देर उसे पढ़कर दिन छिपते ही वो अपनी माँ के पास वापस लौट आया…! 

रात को खान ेके बाद दोनों माँ-बेटे सोने की तयारी में थे एक ही बिस्टेर पर शंकर अपने ही विचारों में गम सोने की कोशिश कर रहा था तभी रंगीली ने अपना हाथ उसके गाल पर रखा और उसका मुँह अपनी तरफ करके बोली-तो आज सुषमा भाभी के साथ क्या-क्या किया मेरे लाल ने…?शंकर ने एक नज़र अपनी माँ के चेहरे पर डाली उसकी चेहरे की मुस्कराहट और आँखों की चंचलता देखकर वो समझ गया की माँ मज़े लेने के मूड में है…सो उसकी एक चुकी सहलाते हुए बोलै - गौरी तुझे बुलाने आयी थी फिर तू कहाँ चली गयी थी पता है सुषमा भाभी को कितना दर्द था पीठ में…!रंगीली ने उसकी गांड पर हाथ लगाकर उसने अपनी ओरे खींचकर अपने से सत्ता लिया और अपनी एक टांग उसके ऊपर रख कर बोली - अच्छा मुझे तो ऐसा कुछ भी नहीं लगा की उसे कहीं दर्द हो…?शंकर ने मुस्कराते हुए अपनी माँ की चोली के बटन खोलते हुए कहा - वो तो मेने ही फिर मूव की मालिश कर दी थी रंगीली ने अपनी चुत  को उसके लुंड से चिपकते हुए कहा - वही तो पूछ रही हूँ मूव की मालिश कैसे की..!शंकर उसे शुरू से साड़ी बातें बताने लगा… वो जैसे जैसे बताता जा रहा था दोनों के शरीरिओं में गर्मी बढ़ने लगी हाथ अपना काम करने में लगे थे और देखते देखते दोनों के बदन से कपडे अलग हो चुके थे…!रंगीली ने शंकर के सर पर हाथ रखकर उसे नीचे को दबा दिया इसका मतलब था वो अपनी चुत  चटवाने चाहती है… फिर क्या था इशारा पाकर चुत  का चटोरा हो चुक्का शंकर लग गया अपनी माँ की चुत  का स्वाद लेने और अपनी जीभ और उंगली के कमाल से ५ मिनट में ही उसे झाड़ा दिया…!रोज़ की तरह जैसे ही वो उसे छोड़ने के लिए तैयार हुआ रंगीली ने उसका लुंड जो अब किसी रोड की तरह सख्त हो चुक्का था अपनी मुट्ठी में पकड़ कर बोली –आज नहीं बीटा आज मेरा मन नहीं है छोड़ने का तू जा ऊपर चौबारे में सुषमा तेरा इंतज़ार कर रही होगी उसकी जैम के प्यास बुझा दे जा…!शंकर अपना लुंड पकडे चूतियों की तरह अपनी माँ की शक्ल देखता ही रह गया…!रंगीली ने उसकी गांड पर चपत लगते हुए कहा - ऐसे क्या देख रहा है जा न एक ताज़ी चूड़ी चुत  तेरे इस मुसल का इंतज़ार कर रही है जल्दी जा… बेचारी इंतज़ार करते-करते कहीं नीचे न आजाये… माँ की बात सुन खली पजामा चढ़कर वो वहाँ से ऊपर जाने वाले झीने (स्टैर्स) की तरफ दबे पवन बढ़ गया…! 

घर का चौबारा - छत को जाने वाली सीढ़ियों को कवर करता एक कमरानुमा जिसमें इतनी जगह होती है की पलग बिछकर सोया भी जा सके लेकिन लाला की हवेली के छुअबारे पे दो और कमरे बने हुए थे लेकिन कोई सोने नहीं जाता था क्योंकि नीचे ही इतनी ज्यादा जगह थी की एक बारात रह सके…!शंकर का लुंड अपनी माँ के द्वारा कलपद कर देने से बुरी तरह बगावत करने लगा था वो उसे जैसे-तैसे अपनी मुट्ठी में क़ैद करके ऊपर चौबारे में पहुंचा… सुषमा उसे चौबारे में कहीं नज़र नहीं आयी फिर वो उसे बहार खुली छत पर आकर ढूंढ़ने लगा मुँह से आवाज निकल कर अपनी उपस्थिति किसी और को बताना नहीं चाहता था…!अंत में कमरों के पीछे जाकर उसे सुषमा छाजली के साथ कड़ी दिखाई दी जो तारों भरे नीले आसमान में देख रही थी…!बारिश के मौसम के बाद आस्मां एक दम धूल सा जाता है उसकी आभा वाकई के साल के दिनों से बढ़ जाती है…!शंकर के दिमाग में शरारत सूझी वो दबे पवन उसके पीछे जा पहुंचा और पीछे से ही उसे अपनी बाँहों में भर लिया उसके सोते जैसा लुंड उसकी गांड की दरार में गुस्स गया…!अनायास ही अपने बदन को किसी मर्द की मजबूत बाँहों में जकड़े जाने पर सुषमा बुरी तरह से घबरा गयी उसका बदन थार-थार कांपने लगा…!फिर जैसे ही उसे पता लगा की ये मजबूत बाहें किसी और की नहीं उसके नए प्रेमी की हैं उसके लुंड की चुभन अपनी गांड की दरार में महसूस करके वो गैन-गण उठी..उसने पलट कर शंकर के होठों पर किश करते हुए कहा - तुमने तो मुझे डरा ही दिया था…ऐसा मत किया करो शंकर मेरे राजा वार्ना किसी दिन मेरी जान निकल जायेगी.. उसकी बात पूरी होने से पहले ही फ़ौरन शंकर ने अपने तपते होठ उसके होठों पर टिका दिए और एक लम्बा सा किश करके बोलै…ये जान अब मेरी है इसे ऐसे कैसे निकल जाने दूंगा मेरी जान.. ये कहकर उसने फिरसे उसके होठों को चूमना शुरू कर दिया…!वो दोनों खड़े खड़े ही एक दूसरे के होठों को चूसने लगे… सुषमा इस समय मात्रा एक झीनी सी निघ्त्य में कड़ी थी बिना ब्रा के उसके उन्नत उरोज शंकर के सीने में धंसे हुए थे जिनका मखमली एहसास पाकर उसका नाग और बुरी तरह से फुफकारने लगा… काफी देर से उसकी माँ ने उसे गरम करके अधूरा छोड़ दिया था इस वजह से अब उसे सबर करना भरी पद रहा था उसका लुंड फुल टाइट होकर सुषमा की नाभि को छेड़ रहा था फिर शंकर ने उसके दोनों अनारों को अपनी मुट्ठी में लेकर कमर को नीचे किया जिससे उसका खूंटा उसकी जांघो के बीच कबड्डी करने लगा…!सुषमा ने सिसकते हुए अपनी जांघें खोल दी शंकर का मुसल उसकी मुनिया के नीचे लहराने लगा तभी वो थोड़ा ऊपर को हुआ…!कड़क लुंड की रगड़ से उसकी चुत  की फांकें फ़ैल गयी.. सुषमा को लगा जैसे वो कपड़ों समेत उसकी सुरंग में घुस रहा है.. 

बुरी तरह सिसकते हुए उसने शंकर को अपनी बाँहों में भर लिया और किसी जोंक की तरह उससे चिपक गयी…!शंकर का साबरा अब जबाब दे रहा था सो उसने आव न देखा टो वहीँ उसकी निघ्त्य निकाल फेंकी अपना पजामा नीचे खिसककर खड़े-खड़े ही सुषमा की एक टांग उठाकर अपना लुंड उसकी चुत  में सरका दिया…आधे लुंड के अंदर जाते ही मारे उत्तेजना के सुषमा अपने एक पेअर के पंजे पर कड़ी हो गयी अपनी बाँहों को उसके गले में लपेटकर वो उससे चिपक गयी…उसका रहा सहा लुंड भी उसकी सुरंग में समां गया… उसके मुँह से एक मादक कराह निकल पड़ी…आअह्ह्ह्ह…ससससीईई….मेरे राजा…ऊऊफफफफ….माररीई…हाईए राममम… ऊऊफफफ…ससीई… ऊम्मम..…! उसकी मादक सिसकियों के असर से शंकर का जोश और दुगना हो गया और उसने अपने हाथ उसकी गांड के नीचे लगाकर उसे अपनी गोद में उठा लिया… अब सुषमा पूरी तरह से उसके गले से चिपकी अपनी चुत  उसके लुंड पर चेंपकर उसकी गोद में बैठी थी…!खड़े-खड़े ही शंकर ने उसकी गांड पकड़कर उसकी चुत  को अपने लुंड पर पटकने लगा.. वो उसे किसी फूल की तरह हलकी महसूस हो रही थी…!ससीई…आअह्ह्ह…अंदर चौबारे में ले चलो शंकर वहाँ पलंग पर ठीक रहेगा…! लेकिन शंकर का मन एक राउंड खुले आसमान के नीचे चुदाई करने का था सो वो उसे गोद में लिए हुए उसकी मखमली गांड को मसलते हुए धक्के पे धक्के जड़ने लगा…!१० मिनट में सुषमा की चुत  पानी छोड़ बैठी झड़ने के बाद उसने अपने पेअर नीचे लटका दिए…!शंकर अब औरत के इशारों को बड़े अच्छे से समझने लगा था उसे पता चल गया की सुषमा झाड़ चुकी है अतः उसने उसे अपनी गोद से नीचे उतरा और उसे बैठकर लुंड चूसने का इशारा किया…!सुषमा वहीँ अपने पंजों पर बैठकर उसके लुंड से खलने लगी अपनी चुत  का कामरस  उसने उसके सुपडे पर मॉल दिया फिर उसके चरों ओरे अपनी जीभ से चाटकर अपने मुँह में भर लिया… चूसते चूसते उसकी चुत  फिरसे रिसने लगी शंकर ने उसे छाजली पे हाथ टीकाकार घोड़ी बना दिया और पीछे से उसकी मस्त गांड पर थपकी देकर अपना लुंड उसकी चुत  में पेल दिया…! सुषमा एक बार फिरसे आसमानों में उड़ने लगी…कुछ देर की चुदाई के बाद दोनों एक साथ झाड़ गए सुषमा कराह कर बोली - अब अंदर चलो शंकर मुझसे अब और खड़ा नहीं हुआ जा रहा राजा…शंकर - रुको में यही पर गद्दा लाकर दाल देता हूँ आज खुले आस्मां के नीचे ठन्डे-ठन्डे मौसम में बहुत मज़ा आरहा है…गद्दा बिछकर वो दोनों उसपर लेट गए तारों भरे एकदम स्वच्छ सितम्बर-अक्टूबर महीने के नीले आस्मां के नीचे दो नंगे जिस्म एक दूसरे की बाँहों में लिपटे अपनी कुछ देर पहले हुयी दुमदार चुदाई की थकान दूर कर रहे थे..सुषमा उसके चौड़े सीने को चूमकर बोली - तुम मुझे ऐसे ही प्यार करते रहोगे न शंकर…!शंकर ने उसकी गोल-गोल मखमली चूचियों को सहलाया और दूसरे हाथ से उसकी रुई जैसी मुलायम गांड की दरार में उंगली चलते हुए कहा –में अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूँगा भाभी लेकिन अगर किसी दिन घरवालों को पता चल गया तो.. आप जानती हैं न क्या होगा..? मालिक मेरी खाल खिचवाकर भूसा भरवा देंगे…! 

सुषमा उसके बदन से चिपक गयी और उसके चेहरे पर अनगिनत चुम्बन करते हुए बोली - बस कुछ दिन और ठहरो उसके बाद किसी की हिम्मत नहीं होगी मेरे शंकर को छूने तक की…शंकर ने उसकी गीली चुत  में दो उंगली डालकर कहा - अच्छा - कुछ दिन बाद ऐसा क्या चमत्कार होने वाला है भाभी..?सुषमा ने सिसकते हुए उसके हाथ को अपनी चुत  से अलग किया और उसके मुसल को पकड़कर अपनी गीली चुत  की फांकों पर रगड़ते हुए बोली - ससससीई…आअह्ह्ह्ह….बस तुम देखते जाओ मेरे साजन…तुम्हारी ये दासी इस घर की नयी मालकिन होगी जिसकी बात कोई ताल भी नहीं सकेगा… आह्ह्ह्ह… अब डाल्दो.. अंदर…हाईये….री…जालिम…धीरे….मररीई…उफ्फ्फ…जितनी बार इसे अंदर लेती हूँ ये निगोड़ा हिला ही देता है मेरे पूरे शरीर को… हाई..अब पेलो राजा.. जोरसे..आअह्ह्ह….ठुम्ममंन्न…ममअअअ…खुले आस्मां के नीचे एक बार फिरसे धमाचौकड़ी शुरू हो गयी… सुषमा औंधे मुँह बिस्टेर पर पड़ी थी… शंकर के मजबूत पत् धपाक से उसकी गांड पर पढ़ते जिससे उसकी मुलायम मखमली गांड के उभर ऊपर को हिलोरें मारने लगते…!उन्हें अपने हाथों में मसलते हुए उनपर थप्पड़ मारते हुए शंकर अपनी पूरी दम-ख़म लगाकर धक्के लगा रहा था सुषमा का पूरा बदन हिलने लगता……!एक के बाद दूसरा फिर तीसरा ऐसे ही चुदाई के दौर पर दौर चलते रहे…सुषमा की वर्षों से प्यासी चुत  लगातार पानी छोड़ती रही…सुबह के ४ बज गए लेकिन मजाल क्या दोनों में से कोई भी पीछे हटने को तैयार हो…शंकर नौजवान देसी पट्ठा ताज़ा ताज़ा जवान हुआ था ऊपर से उसकी माँ ने खिला-पिलाकर ताक़तवर और चुदाई का मास्टर बना दिया था…उधर सुषमा अपने जीवन के २५-२६ साल यूँही बर्बाद करके अब जाकर दो मजबूत बाँहों का सहारा पाकर धन्य हो गयी थी…जबसे शंकर ने उसे ऊपर आकर अपनी बाँहों में लिया था तब से एक सेकंड के लिए भी उसकी चुत  सुखी नहीं रह पायी थी…कामरस  और वीर्य से दोनों के बदन चिप-छिपाने लगे थे खुले वातावरण में भी एक अजीब सी महक व्याप्त हो गयी थी…सुषमा इन लम्हों को खुलकर जीना चाहती थी.. लेकिन आखिर था तो हाड-मॉस का बदन ही न ठनकने लगा…सुषमा थक कर चूर हो चुकी थी उसने एक मादक अंगड़ाई लेकर शंकर के होठ चूमते हुए कहा - अब बस करो मेरे छोड़ू बालम सुबह होने को है…!लोग उठने लगेंगे वैसे भी मेरा बदन पूरी तरह से टूटने लगा है मुझमें अब खड़े होने की भी हिम्मत नहीं है…फिर दोनों ने अपने-अपने कपडे डेल जो नाम मात्रा के ही थे शंकर उसे अपनी गोद में उठाकर नीचे तक लाया सुषमा को उसके कमरे में छोड़ा और एक प्यारा सा चुम्बन उसके होठों पर करके वो भी अपनी माँ के पास जाकर सो गया………! 

शंकर को १२वी के बोर्ड एग्जाम में अब ज्यादा समय नहीं था स्कूल में लोकल एग्जाम चल रहे थे और बोर्ड वालों को प्रिपरेशन लीव दे राखी थी…वो सुबह से ही पढ़ाई में जूता हुआ था.. तभी उसकी माँ ने आकर कहा - बीटा थोड़ा समय हो तो अपने बापू का खाना पहुंचा देगा खेतों में..?शंकर - हाँ माँ क्यों नहीं ला दे अभी देकर आता हूँ वैसे भी पढ़ते-पढ़ते बोर हो गया हूँ सुबह से थोड़ा मूड फ्रेश भी हो जाएगा…!एक कपडे में साग रोटी बांध कर रंगीली ने उसे पकड़ा दी शंकर दौड़ता हुआ १० मिनट में खेतों में जा पहुंचा और अपने बापू को ढूंढ़कर उसे खाना पकड़कर वापिस लौटने लगा…!लालजी के खेत बहुत दूर-दूर तक फैले हुए थे वहीँ कहीं दूर के खेतों में लल्ली का बापू भी काम कर रहा था और वो भी उसे खाना खिलाकर वापिस लौट रही थी…रस्ते में लालजी का आम का बगीचा पड़ता था जिसमें और भी फलों के पेड़ थे नयी-नयी जवानी आ रही थी लल्ली पर एकांत पाते ही उसका दिमाग सेक्स की बातें ही सोचने लगता था…!वैसे भी उसका ज्यादातर उठना बैठना मोहल्ले की छिनाल टाइप भाभियों-चाचियों के साथ था जो मौका पड़ते ही उसके अंगों के साथ छेड़खानी कर देती चटखारे ले लेकर अपनी चुदाई की बातें बताती…रात को पति के साथ क्या क्या मज़े लिए कैसे लुंड चूसा चुत  चटवायी जिन्हें वो चटखारे ले-लेकर बताती और उन्हें सुनकर लल्ली जैसी कच्ची काली उत्तेजित होकर लुंड लेने के लिए व्याकुल होने लगती…!सलौनी का भाई शंकर उसकी पहली पसंद था अपनी चुत  को सहलाते वक़्त उसका चेहरा उसकी आँखों में जरूर ही रहता…!अब नारी सुलभ माँ-बापू की इज़्ज़त का ख्याल किसी भी पर पुरुष को रस्ते चलते पकड़कर तो कह नहीं सकती थी ले राजा छोड़ दे मुझे.. इसलिए जब भी मौका मिलता अपनी चुत  में उंगली से कुरेदकर गीली कर लेती थी…!आज भी जब वो अपने बापू को खाना देकर लौट रही थी चलते-चलते उसका दिमाग सेक्स की बातों की तरफ चला गया उसकी मुनिया में खुजली होने लगी…कुछ दूर तक वो अपने लहंगे के ऊपर से ही उसे खुजाती रही लेकिन उसकी खुजली बजाय काम होने के और बढ़ती जा रही थी उसकी मुनिया लार टपकाने लगी थी..इतने में आम का बगीचा आ गया थोड़ा सा अंदर जाकर वो एक आम के पेड़ की साइड में अपनी टांगें चौड़ी करके गांड जमीं पर रख कर बैठ गयी…आगे से लहंगे को ऊपर चढ़कर वो अपनी चुत  को ऊपर से ही अपनी उँगलियों से रगड़ने लगी… पल पल उसकी उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी.. 

उसकी बंद आँखों में शंकर की छवि घूमने लगी उसे अपनी उँगलियाँ उसका लुंड लग रही थी न जाने कब उसका एक हाथ चोली के अंदर चला गया और वो अपनी कच्चे अनार जैसी चूचियों को मसलने लगी…ससीई…आअह्ह्ह्ह…पैल्ल…री….लल्ली के मुँह से लम्बी-लम्बी सिसकियाँ निकलने लगी उसकी कुंवारी कच्ची मुनिया गरम होकर भाप छोड़ने लगी…अब उसकी एक उंगली चुत  के अंदर सरक चुकी थी जिसे वो आधी लम्बाई से ज्यादा नहीं ले पायी उतनी ही अंदर बहार करते हुए अपनी गांड मटकाती जा रही थी वो…!चुतरस टपक-टपक कर लहंगे को गीला करने लगा फिर एक साथ वो इतनी ज्यादा उत्तेजित हो गयी की अपनी चुकी को पुरे जोरसे से मसल डाला और अपनी दो उंगलियां एक साथ जड़ तक अपनी चुत  में पेल दी…उसके मुँह से दबी दबी सी चीख उबाल पड़ी एक दर्द की तेज लहार उसके पूरे बदन में दौड़ गयी वासना की आग में लल्ली ने अपने ही हाथ से अपनी सील तोड़ डाली…उसकी उंगलियां खून से लाल हो गयी लेकिन उसे इस बात का कोई होश नहीं था जल्दी ही वो अपने दर्द को भूल गयी और उँगलियों की गति बढ़ा दी कुछ ही देर में उसकी मुनिया ने ढेर सारा पानी उड़ेल दिया…!लल्ली ने झड़ने के बाद रहत की सांस ली और वो आँखें बंद किये हुए कुछ देर सकूँ से बैठी रही अभी भी उसका एक हाथ चुत  की फांकों पर था जो अब धीरे-धीरे उन्हें सहला रहा था…और दूसरा हाथ उसकी चुकी पर… जब पूरी तरह से उसकी सांसें संयत हुयी तब एक लम्बी सांस लेकर उसने अपनी आँखें खोली… आँखें खोलकर जैसे ही उसने अपने सामने देखा वो चाबी से चलने वाले खिलौने की तरह एकदम से कड़ी हो गयी… अपने सामने शांत मुस्कराते हुए खड़े शंकर को देख कर वो सकपका गयी और शर्म से अपनी नज़रें झुका ली.शंकर ने उसे कुछ नहीं कहा और मुस्कराता हुआ वहाँ से चल दिया… अभी वो कुछ कदम ही चला था की पीछे से दौड़कर लल्ली ने उसकी बाजु थम ली…!शंकर ने उसकी तरफ सवालिया निगाहों से देखा वो उसका बाजु छोड़कर झट से उसके पैरों में पद गयी और गीध-गिड़ते हुए बोली….!भैया प्लीज ये बात किसी से मत कहना वार्ना में किसी को मुँह दिखने लायक नहीं रहूंगी मेरे अम्मा-बापू मुझे मार डालेंगे…!शंकर ने उसके कंधे पकड़ कर उठाया वो उससे नज़र नहीं मिला पा रही थी फिर भी उसने उसकी थोड़ी के नीचे हाथ लगाकर उसका चेहरा ऊपर किया और बोलै…क्यों - किसी को मुँह क्यों नहीं दिखा पाएगी तू - माँ-बापू क्यों मार डालेंगे तुझे…? ऐसा क्या जुर्म किया है तूने..? 

ाणस्पन्दित'स अवतरणस्पन्दित ाणस्पन्दित इस ऑनलाइन नौमी स्वीट होम ज्वाइन डेट: ५थ जून २०१६लोकशन: िंदीअपोस्ट्स: ११ पावर: ३७ पॉइंट्स: २८११२ाणस्पन्दित है हैक्ड थे रेप्स डटबसेअनस्पन्दित है हैक्ड थे रेप्स डटबसेअनस्पन्दित है हैक्ड थे रेप्स डटबसेअनस्पन्दित है हैक्ड थे रेप्स डटबसेअनस्पन्दित है हैक्ड थे रेप्स डटबसेअनस्पन्दित है हैक्ड थे रेप्स डटबसेलेली - नहीं..व्वू..ववु..में..अभी..में..वो…जो तुमने देखा…वो..शंकर - क्या..में..में..वो..व्वू….? तूने कोई चोरी की है किसी के यहां डाका डाला है..? अरे ये तेरी अपनी निजी जिंदगी की इच्छाएं हैं इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है…तू चिंता मत कर वैसे में किसी को कुछ बताने वाला नहीं हूँ फिर भी में तो कहूंगा की तूने कोई गलत काम नहीं किया है इस उम्र में सबकी इच्छाएं होती हैं सभी करते भी हैं ये सब इसमें उन्होनी जैसी क्या बात है…!शंकर की बातें सुनकर लल्ली आँखें फाड़े उसे देखती रह गयी वो सोचने लगी की शंकर कितना भला लड़का है दूसरा कोई होता तो इस बात का फायदा उठाने की कोशिश करता..ये भी हो सकता था की वो उसे यहीं पटक कर छोड़ डालता और वो कुछ नहीं कर पाती लेकिन इसने तो उसे ही सही ठहराया है…शंकर ने उसके कंधे पकड़ कर झकझोरा और बोलै - ऐसे आँखें फाडे क्या देख रही है चल अब घर चलते हैं.. या अभी मैं नहीं भरा तेरा.. ये कहकर वो खुद ही हसने लगा…लल्ली उसकी ये बात सुनकर बुरी तरह से झेंप गयी.. फिर न जाने उसके मैं में क्या आया की वो उसके सीने से लिपट कर रोने लगी…!तुम कितने अच्छे हो शंकर भैया.. तुम्हारी जगह कोई और होता तो वो कमीना अब तक मेरे साथ न जाने क्या…..सु..सू…सुउदद…में तुम्हारे बारे में कितना गलत सोचती थी… चहहीइ..में कितनी गन्दी हूँ.. सोचकर ही मुझे अपने आप पर घिन्न आ रही है…!शंकर उसकी पीठ सहलाकर उसे चुप करने की कोशिश कर रहा था उसके बाद के शब्द सुनकर उसने उसे अपने से अलग किया और उसके चेहरे पर नज़र गढ़कर बोलै..अरे हाँ लल्ली उस दिन तूने मेरे बारे में ऐसा क्या गलत कहा था सलौनी से जो वो तुझे मारने दौड़ पड़ी…!लल्ली ने फ़ौरन अपनी नज़र नीचे कर ली और पेअर के अंगूठे से जमीं को कुरेदने लगी.. शंकर ने उसका चेहरा ऊपर उठाकर फिर से पूछा…बता न क्या बोलै था.. लल्ली उससे नज़रें नहीं मिला पा रही थी हिचकिचाते हुए बोली - सॉरी भैया में..वो..में..तुम्हें नहीं बता सकती.. तुमने सलौनी से ही क्यों नहीं पूछ लिया..?शंकर ने झूठा गुस्सा दिखते हुए कहा - ठीक है मत बता… अब में भी आज की बात सबको बता दूंगा… ये कहकर उसने चलने के लिए अपने कदम बढ़ा दिए…!लल्ली ने फ़ौरन उसकी कौली भर ली और उसके सीने में अपना मुँह छुपकर बोली - मुझे बताने में शर्म आरही है.. प्लीज फिर कभी पूछ लेना…!शंकर ने उसे अपने से अलग करने की कोशिश करते हुए कहा - अच्छा.. बाद में शर्म नहीं आएगी…? अब बता भी दे वार्ना में सच में ये बात सबको बता दूंगा.. 

लल्ली फंस चुकी थी बचने का कोई रास्ता नहीं था उसके सामने सो हिम्मत जुटाकर अटकती सी जबान में बोली… वो..हम..लोग..न.. कुछ ऐसी वैसी बातें कर रहे थे आपस में…तभी तुम वहाँ आगये में बहुत उत्तेजित हो रही थी उन बातों की वजह से सो मेरे मुँह से निकल गया की सलौनी तेरा भाई का वो…वो... मुझे अगर मिल जाए तो..तो.. इतना कहकर उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया…!शंकर - वो क्या..? और क्या करने वाली थी.. साफ-साफ बोल न…लल्ली - भैया..प्लीज मान जा न याररर.. मुझसे नहीं बताया जा रहा…!शंकर - देख लल्ली शर्म छोड़ और सीढ़ी तरह बता वार्ना में चला अपने घर !लल्ली एक झटके में ही साड़ी बात बोलती चली गयी जिसे सुनकर शंकर का मुँह खुला का खुला रह गया फिर कुछ सोचकर मन ही मन मुस्कराते हुए बोलै…क्या तू सच में मुझे साड़ी रात अपनी टांगों में दबाये रखेगी..!लल्ली बुरी तरह से शरमाते हुए बोली - नहीं भैया… वो तो बात की बात में मज़ाक-मज़ाक में बोल दिया.. वार्ना में कहीं ऐसा कर सकती हूँ भला…शंकर ने उसके कंधे पर हाथ रख कर उसे सहलाते हुए कहा - अगर कभी मौका मिले तो आजमाइश करने में क्या जाता है.. हो सकता है जो तूने कहा वो कर दिखाए..!शंकर के मुँह से ये सुनकर लल्ली ने झट से अपना सर उठाकर उसकी तरफ देखा.. शंकर के चहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान देख कर उसकी झिझक कुछ हद तक काम हुयी.थोड़ी हिम्मत जुटाकर उसने उसके सीने को चुम लिया और अपने हाथ से उसे सहलाते हुए बोली - मेरी मज़ाक को इतना सीरियसली मत लो भैया… में जानती हूँ तुम मुझे ऐसा मौका कभी नहीं देने वाले…!शंकर का हाथ उसके कूल्हे पर चला गया और उसने उसे सहलाते हुए कहा - मेरे एग्जाम हो जाने दे ये मौका में तुझे एक बार जरूर दूंगा शंकर का इतना कहना था की लल्ली झट से उसके गले में झूल गयी और उसके होठों पर चुम्बन जड़ दिया.. शंकर ने उसके गोल-गोल चूतड़ों को मसलते हुए कहा अभी कुछ नहीं वो सब बाद में अब चल घर चलते हैं.. ये कह कर उसने एक बार उसकी मुनिया को अपने खड़े लुंड के ऊपर जोरसे दबा दिया…!अपनी चुत  की फांकों पर शंकर के खूंटे जैसे लुंड की ठोकर से ही लल्ली तो जैसे हवा में उड़ने लगी… दोनों के अंगों ने एक दूसरे की खुशबु को अच्छे से पहचान लिया… इससे पहले की उसका मैं और दांव दोल होता शंकर ने उसे अपने से अलग किया और तेज-तेज क़दमों से अपने घर की ओरे चल दिया…!उसके पीछे पीछे लगभग दौड़ती हुयी लल्ली ख़ुशी के पंख लगाए उसका पेक्छा करने की कोशिश करती हुयी आने लगी….! 

समय धीरे-धीरे लेकिन बड़े मज़े से आगे बढ़ रहा था रंगीली को अब लालजी के लुंड की जरुरत भी महसूस नहीं होती थी और वैसे भी उसपर तो आजकल उनकी छोटी बहु कब्ज़ा जमाये हुए थी…!लाजो के लिए भागते भूत की लंगोटी ही सही वाली बात थी बच्चा हो या न हो उसे अब इससे कोई ज्यादा फरक नहीं पड़ना था…कल्लू की लुल्ली मिले या न मिले क्या फरक पड़ना था ससुर के लुंड में जब तक जान वाकई थी तबतक उसकी चुत  की प्यास बुझती रहनी थी…अब जब ससुर कब्जे में है तब तक उसे इस हवेली से कोई हिला भी नहीं सकता था सो वो निश्चिन्त होकर अपने ससुर के लुंड के झूले में झूलती रहती थी…!उधर रंगीली अपने पति रामु के प्रति अपना प्रेम बढाती जा रही थी अब वो अपने परिवार को भी समय देने लगी थी…!पति रामु से अधूरी प्यास वो अपने शेर के लुंड से बुझा लेती थी और उसका शेर बीटा.जबसे उसे चुत  का चस्का लगा था वो एक हलके से इशारे पर ही चुत  की खुसबू सूंघकर उसकी तरफ खिंचा चला जाता था… उसकी माँ के साथ-साथ सुषमा भी उसके प्यार के उड़नखटोले में मन-मुताबिक हवाई सफर पर निकल पड़ती थी…!सुषमा दिनों-दिन शंकर के नित नए तरीकों से उसके बलिष्ट लुंड की धार से निखरती जा रही थी हर समय उसके चेहरे पर ख़ुशी व्याप्त रहती थी…!उसकी इस ख़ुशी को देखकर जहां सेठ-सेठानी ये सोचकर खुश थे की शायद इलाज़ की वजह से उनका बीटा बहु को खुश रखने लगा है वहीँ लाजो इसके पीछे का राज जानने की फ़िराक़ में जल-भून रही थी…!इन सब घटनाक्रम के चलते शंकर के एग्जाम का समय आ पहुंचा उसने थोड़ा समय देकर अपने एग्जाम की तयारी की जिसमें सुषमा ने भी उसकी मदद की…!एग्जाम होने तक उसने उसे ज्यादा परेशां नहीं किया लेकिन आखिरी पेपर की रात उन दोनों में से न कोई सोया और न दूसरे को सोने दिया…!एक राउंड अपनी माँ को छोड़कर वो सीधा सुषमा के पास चला गया था जो उसके बचे-खुचे मॉल से ही सराबोर होती रही…!एग्जाम का रिजल्ट आने में अभी समय था उससे पहले वो दूसरी परीक्षा में अब्बल नम्बरों से पास हो गया… सुषमा गर्भवती हो गयी…!पूरी हवेली में ख़ुशी की लहार दौड़ गयी बहु को उम्मीद से देखकर सेठ-सेठानी की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था… सेठानी तो सुषमा पर अपना पूरा प्यार उड़ेलने लगी.. !वहीँ लाजो के अरमानो पर जैसे सांप ही लोटे गया वो अंदर ही अंदर सुलग उठी उसे ये समझ नहीं आ रहा था की आखिर ये चमत्कार हुआ कैसे…?कल्लू की लुल्ली में अभी भी ज्यादा फरक नहीं आया था ये बात वो भली भांति समझ रही थी फिर ये हुआ तो हुआ कैसे…?सुषमा जैसी अच्छे संस्कार वाली बहु किसी और से सम्बन्ध बना सकती है इस विषय में तो कोई सोच भी नहीं सकता था.. यहां तक की छिनाल लाजो भी नहीं… 

सेठ धरमदास को अपने लुंड की औकात अब पता चल चुकी थी सो उन्होंने लाजो को समझाया की अब वो उससे सम्बद्ध ज्यादा न रखते हुए कल्लू के पास ज्यादा जाए तो हो सकता है उसे भी ये ख़ुशी नसीब हो जाए…!लेकिन वो ये बात मानाने को राजी ही नहीं थी तो उन्होंने उसे समझाया की देखो भले ही कल्लू का हथियार छोटा ही सही लेकिन इलाज़ के कारन उसका बीज कारगर हो गया है इसलिए सुषमा बहु माँ बन सकीय है…!इसपर लाजो ने ज्यादा बहस करना उचित नहीं समझा क्योंकि जबतक वो इसके पीछे की असल वजह का पता नहीं लगा लेती तब तक कुछ कहना ठीक नहीं होगा इसलिए उसने अपने ससुर की बात इस शर्त पर मान ली की कभी-कभार वो उसे अपने लुंड की सेवाएं प्रदान करते रहेंगे…!इस पर भला लालजी को क्या आपत्ति हो सकती थी भले ही उम्र ढल रही थी लेकिन कभी कभार चुत  तो उन्हें भी चाहिए थी सो वो उसकी ये शर्त ख़ुशी-ख़ुशी मान गए…!उधर कल्लू भी हैरानी के साथ-साथ खुश था की चलो इलाज़ का कुछ तो फायदा हुआ ईश्वर ने चाहा तो सुषमा लड़का ही पैदा करेगी और इस घर को उसका वारिस मिल जाएगा…!और अब इसी ख़ुशी में वो और ज्यादा पीकर आने लगा….!कुछ दिनों बाद शंकर का रिजल्ट भी आगया और वो अच्छे नुम्बरों से १२वी पास कर गया… उसने साइंस में आगे पढ़ने के लिए अपने परिवार में बात चलायी कसबे के कॉलेज में केवल आर्ट्स सब्जेक्ट्स थे इसलिए साइंस या कामरस  पढ़ने के लिए शहर ही जाना पढता…!अब शहर का रहना अकेला लड़का कैसे रहेगा ऊपर से इतना पैसा भी उनके पास नहीं था की वो उसका एडमिशन का भी खर्चा उठा सकें… इसके लिए रामु ने लालजी से मदद लेने की सोची…!रंगीली नहीं चाहती थी की शंकर शहर जाकर रहे उसने उसके लिए कुछ अलग ही सोच रखा था लेकिन वो चुप रही और उसने बेटे के भविष्य के लिए जो भी उचित हो उसका जिम्मा अपने परिवार के ऊपर छोड़ दिया…!रामु ने लालजी से बात चलते हुए कहा - सेठ जी हम चाहते हैं की शंकर और आगे पढ़े उसके लिए उसे शहर जाकर बड़े कॉलेज में दाखिला करवाना है… अगर आपकी मेहरबानी हो जाए तो काम आसान हो जाएगा…!सेठ धरमदास तो कतई ये नहीं चाहते थे की शंकर उनकी नज़रों से दूर रहे और वैसे भी कल्लू जैसे नाकारा बेटे पर उन्हें बिलकुल भी विश्वास नहीं था जबसे शंकर ने कल्लू को कॉलेज के लड़कों से बचाया था तबसे तो उनका भरोसा उसके ऊपर और ज्यादा बढ़ गया था वो समझ चुके थे की वो जबतक उनके पास है उसके परिवार पर कभी आंच नहीं आ सकती इसलिए उन्होंने रामु की बात को सिरे से ख़ारिज करते हुए कहा…देखो रामु तुम शंकर के भविष्य की चिंता बिलकुल मत करो वो एक तरह से हमारे घर का ही सदस्य है आगे चलकर हम उसे अपने कारोबार की बहुत बड़ी जिम्मेदारी सौंपने वाले हैं…! 

और वैसे भी जैसे तैसे करके तुमने पुराण कर्ज चुकता किया है अब और आगे कर्ज लेकर क्यों मुशीबत में पड़ना चाहते हो…!लाला की बातों से रंगीली को छोड़ सभी के साथ साथ शंकर के भी अरमानो पर पानी फिर गया वो चाहता था की आगे पढ़ लिखकर कोई अच्छी सी नौकरी करके अपने परिवार को गरीबी की जंजीरों से मुक्त करा सके…!लेकिन लाला की न ने उसके अरमानो पर पानी फेर दिया वो ये भी जानता था की उसके परिवार की स्थिति ऐसी नहीं है की वो शहर के शुरूआती खर्चों का भी बोझ उठा सकें…लेकिन इस सबसे रंगीली बहुत खुश थी जब रात को शंकर ने उससे इस विषय पर बात चलायी…!शंकर - माँ में आगे पढ़ना चाहता था लेकिन लालजी की न ने सब किये कराये पर पानी फेर दिया.. तू ही कुछ कर न वो तेरी बात कभी नहीं टालेंगे…!रंगीली ने प्यार से उसके बालों को सहलाया और उसकी थोड़ी पकड़कर बोली - पढ़-लिखकर क्या बनाना चाहता है तू..?शंकर - में अच्छे नम्बरों से पास हुआ हूँ माँ आगे और ज्यादा म्हणत करके कोई सकारी नौकरी मिल जायेगी हमारी गरीबी दूर हो सकती है…!रंगीली - नौकरी करके भी तो तू किसी की गुलामी ही करेगा न और कोण कहता है की हम गरीब हैं…! अरे हम दिल के तो आमिर हैं.. हमारे दिलों में एक दूसरे के लिए प्यार तो है…!में नहीं चाहती की मेरा राजा बीटा किसी की भी गुलामी करे अरे वो तो राजा है राज करना उसकी नियति है…!शंकर - ये तू कैसी बहकी-बहकी बातें कर रही है…? अभी भी तो हम लालजी की गुलामी ही कर रहे हैं न उसके बदले में क्या मिलता है हमें..? दो वक़्त की रोटी ये मामूली से कपडे बस इसी में खुश रहना चाहती है तू इतने से के लिए तू खुद और बापू दोनों मिलकर लालजी के लिए जी तोड़ मेहनत करते हो..!रंगीली - तो पहले हम कोनसे सुखी थे तेरे बापू सरकारी बोझा धोते-धोते कमर झुकने लगी थी उनकी मेने वहाँ से काम छुड़वाकर यहां काम पर रखवाया जाकर उनको पूछ वो पहले खुश थे या अब हैं खेतों पर एक मैथ (मुख्या नौकर) का काम करते हैं दूसरे मजदूर उनके कहने पर चलते हैं…!शंकर - तो तू क्या चाहती है की में भी लालजी के यहां मैथ बैंकर उनके खेतों में काम करूँ नहीं माँ में ये काम कभी नहीं करना चाहता…!रंगीली अपनी पुतलियों को ऊपर चढ़कर कमरे की छत को घूरते हुए बोली - में भी नहीं चाहती की तू किसी की म्हणत मजदूरी करे में चाहती हूँ की मेरा बीटा इस हवेली पर ही नहीं बल्कि इस पूरे इलाके पर राज करे………!अपनी माँ के मुँह से ये लफ्ज सुनकर शंकर फटी फटी आँखों से उसे घूरता ही रह गया… उसके दिमाग में आंधियां सी चलने लगी उसे समझ नहीं आ रहा था की आखिर उसकी माँ चाहती क्या है…?वहीँ रंगीली के चहरे पर एक रहस्यमयी किन्तु विश्वास से भरी हुयी मुस्कान थी जिसे समझना शंकर जैसे अलप विकसित दिमाग वाले युवक के बैश के बहार था….! 

सुषमा की प्रेगनेंसी को ३ महीने हो चुके थे शंकर ने अपनी आगे पढ़ने की इच्छा को अपने दिल की गहराईयों में दफ़न कर लिया.. लाला ने सेठानी के कहने पर बहु सुषमा को शहर के हॉस्पिटल ले जाकर उसका गर्भ चेक कराया जिसकी रिपोर्ट के मुताबिक बीटा ही आया…!शंका का निवारण होते ही हवेली में मानो खुशियों की बहार आ गयी उधर लाजो और ज्यादा जल-भून उठी… दिन लाला ने गोद भराई की रस्म के तौर पर हवेली में बड़े से झालसे का आयोजन किया अपनी दोनों बेटियों को भी बुलाया…!बड़ी बेटी प्रिय एक बेटी की माँ बन चुकी थी लेकिन छोटी बेटी सुप्रिया को अभी कोई बचा नहीं था… दोनों बेटियां भी अपने भतीजे होने की ख़ुशी सुनकर दौड़ी चली आयी…!बड़ी बेटी प्रिय थोड़ी घमंडी टाइप की थी बिलकुल अपनी माँ पारवती देवी की तरह वहीँ सुप्रिया शांत और मिलनसार स्वभाव की थी वो मालिक और नौकर में कोई भेद नहीं करती थी..वहीँ प्रिय नौकरों को हर संभव मौका तलाश कर अपने रुतवे और पैसों के घमंड में अपने पेअर की जूती समझती थी…जहां सुप्रिया बचपन से ही शंकर और उसकी माँ रंगीली से काफी घुली मिली थी वहीँ प्रिय उन दोनों को भी दूसरे नौकरों की तरह ही हर समय झड़ती रहती थी अपने पैरों की जूती समझती थी…शंकर की जवानी देख कर सुप्रिया उसके कामदेव जैसे ूप पर आशक्त हो गयी उसकी शादी  के वक़्त वो जवान हो रहा था पर वो तब भी उसे बहुत पसंद करती थी लेकिन अब तो उसकी दादी मूंछें भी आना शुरू हो रही थी और क्या सजीला रूप निखरा था पट्ठे का. उस ज़माने के फ़िल्मी हीरो भी कहीं नहीं ठहर पाते सो सुप्रिया की पुराणी चाहत उसके दिल के रस्ते आँखों तक आगयी…!वो उसके मर्दाने रूप जाल में खींचती चली गयी लेकिन सामाजिक प्रतिष्ठा को मद्देनज़र रखते हुए वो अपने मन की बात जुबा तक नहीं ला पा रही थी…!वो दोनों ही पहले से ज्यादा सूंदर दिखने लगी थी प्रिय तो माँ भी बन चुकी थी सो उसका बदन थोड़ा ज्यादा हो गया था यही कोई ३४-३०-३६ का फिगर होगा…लेकिन सुप्रिया अभी भी ३२-२८-३४ की स्लिम लड़की ही थी शायद पति के लुंड के स्वाद ने उसके निखार में ज्यादा बढ़ोत्तरी नहीं की थी…!पुरुष और नारी के फर्क और आकर्षण से अब शंकर भी अनजान नहीं था सो तिरछी नज़र से उसने भी सुप्रिया को चाहत भरी नज़रों से देखा.. किसी तरह दोनों की नज़रें एक हुयी दोनों ने एक दूसरे को समझा जहां उन्हें एक दूसरे के प्रति प्रेम और आदर दिखाई दिया…!शंकर ने दोनों को हाथ जोड़कर नमस्ते किया सुप्रिया ने मुस्कराकर उसके अभिवादन का जबाब हाथ जोड़कर ही दिया वहीँ प्रिय अपना टेड़ा मुँह करके बोली - हाँ.. ठीक है ठीक है जाओ अपना काम करो यहां तुम्हारी नमस्ते का कोई भूखा नहीं बैठा…!सुषमा को उसकी ये बात कुछ ज्यादा ही नागवार गुजारी वहीँ सेठानी का तो स्वभाव ही अपनी बेटी से मेल खता था…! 

रंगीली सुषमा के अधिक नजदीक रहती थी प्रिय को उसकी ये आदत अच्छी नहीं लगी और उसने उसे खरी खोटी सुनते हुए कहा - हम सब समझते हैं की तुम जैसी नौकर ऐसे मौकों पर अपने नेग लेने के चक्कर में तीमारदारी दिखने का ढोंग करती है जाओ जाकर अपना काम करो यहां हम सब हैं भाभी का ख्याल रखने के लिए…उसकी बात सुनकर रंगीली लहू का सा घूँट पीकर रह गयी वहीँ शंकर एक पल भी वहाँ नहीं ठहरा…!अपनी ननद के इस तरह के व्यवहार पर सुषमा ने तीखी प्रतिक्रिया देने की कोशिश की लेकिन रंगीली ने उसका हाथ दबाकर उसे शांत रहने का इशारा किया…!दूसरे दिन बड़े हर्षोउल्लास के साथ गोद भराई की रश्म ऐडा हुयी.. सुषमा के माता-पिता भी आये अपनी बेटी को आशीर्वाद देने.सबने कुछ न कुछ बहु को तोहफे भेंट किये बड़े बुजुर्गों ने आशीर्वाद दिए… अंत में जब सेठ और सेठानी ने अपनी बहु को आशीर्वाद दिया तब सुषमा ने अपने ससुर से कहा - पिताजी आज में आपसे आशीर्वाद के अलावा भी कुछ और माँगना चाहती हूँ लालजी - हाँ बहु मांगो जो भी माँगना चाहती हो हमारे बस में हुआ तो हम आज किसी भी चीज़ के लिए मन नहीं करेंगे तुम्हें…!सुषमा - में जानती हूँ आज आप सब लोग मुझसे नहीं मेरी कोख में पल रहे इस घर के चिराग की वजह से खुश हैं.. लालजी - ऐसी बात नहीं है बीटा तुम हमारी बड़ी बहु हो हम तुमसे हमेशा से ही खुश हैं…सुषमा - अगर ऐसा ही था तो आप मेरे होते हुए अपने बेटे का दूसरा विवाह नहीं करते…!अब में उसी चिराग के भविष्य के लिए इस घर की साड़ी मिलकियत की मालिकी चाहती हूँ क्या आप दे पाएंगे ये मुझे…?लाला समेत सभी उसकी ये बात सुनकर सन्नाटे में आगये वहीँ रंगीली के होठों पर मुस्कान तैर गयी…!लाला चौंकते हुए बोले - ये तुम क्या कह रही हो बहु..? ये सब कुछ तुम्हारा ही तो है…!सुषमा - ऐसा आप आज कह रहे हैं क्योंकि आज में आपको इस घर का चिराग देने जा रही हूँ इसलिए वार्ना आप इनकी दूसरी शादी  कभी नहीं करते…!सुषमा के शब्द लाला के दिल में किसी नुकीले तीर की तरह चुभे वो कसमसाते हुए बोले - ये संभव नहीं है बहु ये सब कुछ हमारे बाद कल्लू का होने वाला है और उसके बाद उसकी औलाद का.. कल को अगर तुमने ही या छोटी बहु से और बच्चे पैदा हुए तो वो भी इसमें बराबर के हक़दार होंगे…! सुषमा - इसके लिए में कभी इंकार नहीं करती बेशक वो इस मिलकियत के हक़दार होंगे लेकिन तब तक सब कुछ मेरे अधिकार में रहेगा…!लाला - आखिर ये सब तुम क्यों चाहती हो क्या तुम्हें हमारे ऊपर भरोसा नहीं है - सुषमा - भरोसा - ये एक ऐसा शब्द है जो एक-दूसरे पर सामान रूप से लागु होता है पिताजी जब आपने मुझ पर भरोसा नहीं किया की में बीटा पैदा करने योग्य हूँ या नहीं.. तो अब इस शब्द का कोई अर्थ नहीं रहा…! 

लाला उसके तर्क के आगे निरुत्तर हो गए आज उन्हें अपनी पत्नी के कहने पर बरसों पहले की गयी अपनी गलती का एहसास हो रहा था लेकिन वो उसकी इस शर्त को भी मंजूर नहीं कर सकते थे सो बोले –ये संभव नहीं है बहु…!सुषमा - तो फिर इस बच्चे का भी इस हवेली में पैदा होना संभव नहीं है…!सुषमा के ये शब्द किसी तीर की तरह उनके सीने को बढ़ते चले गए वो दर्दभरे स्वर में बोले - ये कैसी हाथ है तुम्हारी बहु.. फिर वो उसके पिता को सम्बोधित करके बोले –समाधी जी आप ही कुछ कहिये न इसे ये जो चाहती है वो हमारे जीते जी संभव नहीं है…सुषमा के पिता - वो गलत भी तो नहीं कह रही समधी जी क्या पता कल को कुछ और ही बात बने और हमारी बेटी दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर हो जाए… लाला - आप भी..! समझदार होकर आप भी ऐसी बातें कर रहे हैं…?सुषमा के पिता - आप ने भी तो समझदार होकर एक गलत फैसला किया ही था में अपनी बेटी की बात से पूरी तरह सहमत हूँ अगर आप उसकी इस जायज मांग को नहीं मान सकते तो वो भी अपना फैसला लेने के लिए स्वतंत्र है और इसमें में हमेशा उसके साथ हूँ…वो चाहे तो अपने बच्चे को लेकर यहां से जा सकती है में उसका जिंदगी भर हर संभव साथ दूंगा आखिर वो भी मेरी औलाद है.. एक फैक्ट्री उसके नाम से ही सही…!अब लाला के पास हथियार डालने के अलावा और कोई चारा नहीं था क्या पता आगे कोई और बच्चा उसकी दूसरी बहु से न हुआ तो…? इसके लिए वो खुद भी कोशिश कर ही चुके हैं..ये सब सोच विचार करने के बाद उन्होंने फैसला ले ही लिया और बोले - ठीक है बहु हम अपनी साड़ी मिलकियत तुम्हरे हाथों में सौंपते हैं लेकिन तुम्हें भी एक वचन देना होगा अगर भविष्य में कल्लू की कोई और औलाद होती है तो वो इसमें बराबर की हक़दार होगी…!सुषमा - मुझे मंजूर है चाहें तो आप वसीयत में ये बात लिखवा सकते हैं.लाला के इस फैसले से जहां एक ओरे लगभग सभी लोग सहमत दिखे वहीँ लाजो पर तो मानो गाज ही गिर पड़ी वो अंदर ही अंदर घायल नागिन की तरह फुफकार उठी लेकिन फिलहाल इतने सारे लोगों की मौजूदगी में वो कर भी क्या सकती थी हवेली में उसे अपनी औकात पता थी…जहां सुषमा का मैका लाला से भी कई गुना ज्यादा समृद्ध था वहीँ लाजो के गरीब माँ-बाप उसे अपने घर में अब पनाह भी नहीं दे सकते थे… वो इस समय जल-भून’ने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी उसे बस इंतजार था तो अपने ससुर से अकेले में बात करने का जब वो उसके लुंड पर झूला झूल रही होगी…! 

शंकर की आगे की पढ़ाई का सपना खटाई में डालने के बाद लालजी ने उसे अपनी जायदाद की देखभाल का काम सँउप दिया…!उसकी जिम्मेदारी थी साड़ी जमीनों की देखभाल रखना लाला की जमीनों पर काम करने वाले सभी मजदूरों का लेखा-जोखा रखना जिसमें उसका अपना धर्म पिता भी शामिल था…!यही नहीं अब लाला ने शंकर और रंगीली को रहने के लिए हवेली के बाहरी हिस्से में ही एक बड़ा सा घर जिसमें दो कमरे रसोई के साथ साथ वाकई अन्य जरुरत के साधन भी उपलब्ध थे दे दिया था…घर हवेली से अलहदा और बड़ा होने की वजह से उसने अपनी बेटी और पति को भी अपने साथ रहने के लिए बुला लिया था…!गोद भराई का सारा काम थोड़े बाद-विवादों के बीच ठीक तरह से संपन्न हो चुक्का था लाला ने दूसरे ही दिन सारे दस्तावेज बनबाने के लिए अपने वकील को सौंप दिए…उनकी दोनों बेटियों को छोड़ सारे नाते रिस्तेदार सेज सम्बन्द्धी जा चुके थे जो कुछ बचे थे वो भी एक-एक करके विदा हो रहे थे…!दूसरे दिन प्रिय और सुप्रिया ने अपने बाग़-बगीचों की शेर करने का प्लान बनाया.. वो अपनी एक दो पुराणी सखी सहेलियों जो इस वक़्त गाओं में मौजूद थी उनको लेकर अपने खेतों की तरफ चल पड़ी…थोड़े बहुत शहरी परिधानों में वो सारे गाओं की निगाहों का केंद्र बानी हुयी अपने खेतों पर पहुंची.. यौन तो लाला की जमीं बहुत साड़ी जगहों पर थी यहां तक की दूसरे गाओं में भी लेकिन मुख्या रूप से वो अपने गाओं से थोड़ी ही दूरी पर थी जहां उनका एक बहुत बड़ा बगीचा भी था..!उस बगीचे के लिए एक चकरोड (कच्चा चौड़ा रास्ता जिसमें कोई भी वहां आसानी से जा सके) से होते हुए जाय जाता था के दोनों तरफ लैह-लहते खेत जिसमें सरसों गेंहू इत्यादि की फसल कड़ी थी जिसमें कुछ मजदुर काम कर रहे थे…!वो दोनों अपनी सखी सहेलियों के साथ बगीचे में पहुंची वहीँ पास के एक खेत में गन्ने (सुगरकाने) की फसल कड़ी थी और दूसरी तरफ गेंहू खड़े थे…दोनों बहनें अपने अपने ग्रुप बनाकर इधर उधर घूमने लगी सुप्रिया भी अपनी दो सखियों के साथ गेंहू के खेतों की तरफ बढ़ गयी जहां उसकी नज़र शंकर पर पड़ी…वो अपनी सहेलियों को वही खड़ा करके उसकी तरफ बढ़ गयी उस समय शंकर कुछ मजदूरों को गेंहू के खेतों से खरपतवार निकलने का काम करवा रहा था…सुप्रिया ने चुप-चाप पीछे से जाकर एक साथ भों..भों की आवाज करके उसे डरना चाहा…शंकर ने उसकी आवाज पहचान ली और मुस्करा कर पलटते हुए बोलै - अरे सुप्रिया दीदी आप और यहां.. खेतों में क्या कर रही है..?वो रूठा सा मुँह बनाकर बोली - क्या यार मेने तुम्हें डरने के लिए ऐसी आवाज निकली और तुम डरे भी नहीं शंकर ने उसकी आँखों में देखते हुए मुस्कराकर कहा - ये शहर नहीं है दीदी यहां ऐसे खेल खेलते हुए ही हम बड़े हुए हैं.. आप सुनाइए यहां कैसे..? 

वो - क्यों हम अपने खेतों को देखने नहीं आ सकते क्या..?शंकर - अरे क्यों नहीं सब आप ही का तो है और बताइये आपकी ससुराल में सब कुशल मंगल है वैसे आप पहले से भी ज्यादा सूंदर लग रही हैं…!वो मुस्कराते हुए बोली - तुम भी कुछ काम हैंडसम नहीं हो अब तो पुरे धर्मेंद्र लगते हो…!शंकर - वो कोण है - अब बेचारे ने अभी तक कोई फिल्म देखि ही नहीं थी..वो - अरे अपनी फिल्मों के बहुत बड़े हीरो हैं वो अच्छी-अच्छी हीरोइन उनपर मरती हैं..!शंकर खुश होते हुए बोलै - अच्छा तो क्या मेरी शकल पर भी कोई मर सकती है..?सुप्रिया ने मन ही मन कहा - तुम पर तो में ही मर मिटी हूँ शंकर अपनी मन की आँखों से तो देखो लेकिन प्रत्यक्ष में बोली - चलो ये सब छोडो तुम मुझे गणना नहीं खिलाओगे..?शंकर - अरे क्यों नहीं अभी तोड़कर लाता हूँ ऐसा मीठा वाला गणना चुसवाऊँगा आपको की बस अपने होठ चाटते रह जाएंगी…!ये कहकर वो गन्ने के खेत की तरफ बढ़ गया तभी सुप्रिया ने पीछे से उसका हाथ थम लिया और बोली - चलो में भी तुम्हारे साथ चलती हूँ..वो दोनों गन्ने के खेत तक आगये शंकर उसे किनारे पर खड़ा करके बोलै - रुकिए में थोड़ा अंदर से अच्छा वाला गणना लता हूँ..वो अंदर की तरफ बढ़ गया और थोड़ा अंदर जाकर उसने एक मोटा और मीठा वाला गणना तोड़ लिया उसे लेकर वो जैसे ही पलटा पीछे कड़ी सुप्रिया से टकरा गया…!वो पीछे को गिरने को हुयी की तभी शंकर ने एक हाथ का सहारा उसकी पीठ पर देकर उसे गिरने से बचा लिया…!सुप्रिया उसकी मजबूत बाजु के सहारे तिरछी कड़ी थी उसके टॉप में क़ैद गोल-गोल उभर उभरकर सामने आगये और शंकर को मुँह चिढ़ाने लगे…दोनों की नज़रें एक हुयी और वो एक दूसरे में खोने लगे दिल का पैगाम नज़रों के द्वारा एक दूसरे तक पहुँचाने का प्रयास करते हुए न जाने कितनी ही देर वो उसी अवस्था में एक दूसरे को निहारते रहे…!फिर एक-एक शंकर को होश आया और उसने सुप्रिया को सीधे खड़े करते हुए कहा - आप ठीक तो हैं में तो गणना ला ही रहा था फिर आप यहां क्यों आयी…!सुप्रिया अभी भी उसी को घूरे जा रही थी वो तो बस किसी संगेमरमर की मूरत बानी शंकर के कामदेव जैसे रूप में खो चुकी थी… उसके मर्दाने बदन की खुशबु ने उसे बेहाल कर दिया…!शंकर ने उसकी बाजु पकड़ कर हिलाते हुए कहा - दीदी क्या हुआ आप ठीक तो हैं..वो मनो नींद से जगी हो हड़बड़ाकर बोली - हाँ में ठीक हूँ थैंक यू शंकर तुमने मुझे गिरने से बचा लिया…!शंकर ने मन ही मन मुस्कराते हुए पूछा - तो आप ऐसे क्या देख रही थी मेरी ओरे…? 

वो - तुम कितने सूंदर और सजीले नौजवान हो किसी कामदेव का स्वरुप बस में अपने आप को तुम्हें देखने से रोक ही नहीं पायी.. बचपन की चाहत फिरसे उमड़ पड़ी…!शंकर - ये आप क्या कह रही हैं बचपन की चाहत मतलब..?वो - तुम नहीं समझोगे शंकर तुम तो नादाँ थे उस वक़्त मासूम थे तुम्हें कैसे पता होगा की में तुम्हें कितना पसंद करती थी लेकिन आज जब तुम्हें जवानी की दहलीज़ पर खड़े देखा तो अपने आपको रोक नहीं पायी… ी लव यू शंकर में तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ ये कहकर वो उससे लिपट गयी…शंकर भौंच्चक्का सा खड़ा रह गया फिर उसने उसके कंधे पकड़कर अपने से अलग करते हुए कहा - अब आप किसी और की अमानत हो बचपन की चाहत का अब कोई अर्थ नहीं रहा… हम दोनों के रस्ते जुड़ा हो चुके हैं.!सुप्रिया उसके चौड़े चिकने लेकिन पत्थर जैसे शख्त सीने पर अपने मुलायम हाथ से सहलाते हुए बोली - कुछ कदम तो अपने साथ लेकर चल सकते हो मुझे…?शंकर - ज़माने का डर है कहीं किसी ने साथ चलते हुए देख लिया तो मेरा तो जो होना होगा सो होगा ही आप बेकार में रुस्बा हो जाएंगी…!मुझे ज़माने से छुपकर कुछ कदम साथ ले लो शंकर वो उसके चौड़े सीने पर अपना सर रख कर बोली - तुम्हारा एक पल का प्यार ही मेरे लिए काफी होगा.. शंकर ने न चाहते हुए अपना हाथ उसकी कमर पर रख दिया फिर उसके रुई जैसे मुलायम कूल्हे को सहलाते हुए बोलै - अभी आप यहां से चलिए यहां कोई भी आ सकता है…!वो उसके सीने पर किश करते हुए बोली - थोड़ा सा नीचे तो झुको पुरे ताड़ हो गए हो ये कहकर उसने उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों के बीच लेकर अपने सुर्ख गीले होंठ शंकर के खुश्क होठों पर रख दिए…!शंकर ने अपने दोनों हाथों को उसकी गोल-गोल मुलायम गांड के नीचे लगाकर उसे अपनी गोद में उठा लिया और चुम्बन में उसका साथ देने लगा…!वो दोनों एक दूसरे को चूमने में मसगूल हो गए सुप्रिया किसी गुड़िया की तरह उसके कसरती सीने पर अपने सुडौल अनारों को रगड़ते हुए उसके होंठों को चूसे जा रही थी..दोनों पर वासना का भूत सवार होने लगा था आँखों में खुमारी उतरने लगी सुप्रिया तो इतनी सी देर में ही कहीं दूर आसमानों में उड़ने लगी… वो एक दूसरे से अलग नहीं होना छह रहे थे लेकिन तभी उन्हें प्रिय की चीख सुनाई दी….बचावू….!चीख इतनी तेज थी की वो दोनों बुरी तरह चौंक गए अपने किश को तोड़कर शंकर ने सुप्रिया को नीचे उतरा और बिना कुछ कहे आवाज की दिशा में दौड़ पड़ा…!गन्ने के खेत से बहार निकल कर कूदते फांदते उसने गेंहू के खेत को कुछ ही सेकण्ड्स में पार कर लिया फिर जैसे ही उसकी नज़र चकरोड में गयी सामने के मंजर को देखकर उसके बदन के सारे रोंगटे खड़े हो गए………..….! 

हुआ यौन की जहां प्रिय & पार्टी घूम रहे थे उसी के पास वाले गेंहू के खेत में एक सांड घुस आया और फसल को चरने लगा…!होशियार की नानी प्रिय ने किसी मजदूर को बुलाने की वजाये खुद ही उसे खदेड़ने चल दी उसकी सहेलियों ने मन भी किया…!लेकिन जिद्दी स्वाभाव नहीं मानी और उसे हुर्र्र्र..हुर्र्र्र..करके पहले भागने की कोशिश की लेकिन वो ठहरा मस्त मलनद सांड लगा रहा अपनी मन पसंद हरियाली चरने में…प्रिय ने आव-ना देखा टो एक पत्थर का टुकड़ा उठाया और फेंक कर सांड को दे मारा खुदा न खस्ता अगर वो पत्थर कहीं उसकी पीठ वगैरह पर पड़ता तो कोई फरक उसे नहीं पड़ता लेकिन वो नुकीला सा पत्थर उसकी नाक पर पड़ा…!फिर क्या था सांड भड़क गया पहले तो उसने वहीँ से धमभर दी उसी से प्रिय की फूंक सरक गयी और वो जोर से चिल्लाई उसका चिल्लाना सुनकर वो और ज्यादा बिदक गया और उसकी तरफ दौड़ पड़ा…!वो बचाओ..बचाओ… चिल्लाती हुयी चकरोड में दौड़ पड़ी लेकिन ज्यादा दूर तक नहीं जा पायी की उसकी सांडले की हील टूट गयी और वो वहीँ गांड के बल जा गिरी..पल-प्रतिपल सांड उसके करीब आता जा रहा था वो उससे कुछ कदम ही दूर था की तभी उसने अपने हाथ जोड़ दिए और अपनी आँखें मूंदकर इस आशा में अधलेटी सी अपनी एक कोहनी के बल पड़ी रह गयी की शायद वो सांड उसकी गुहार सुनकर पीछे हैट जाए…!लेकिन तभी उसने अपनी अधखुली आँखों से एक अद्भुत नज़ारा देखा… एक इन्शानि जिस्म हवा में तैरते हुए आया और सांड के ऊपर आ गिरा उस इन्शान के दोनों पेअर भड़क से सांड की टाट (गार्डन के ऊपर का उठा हुआ भाग-हम्बल) पर पड़ी…!सांड लहराकर अपनी जगह से हिल गया उसके आगे बढ़ते कदम ठिठक गए.. अपने को गिरने से बचता हुआ वो पीछे को हटा.. तब तक वो इन्शान भी खड़ा हो चुक्का था… वो कोई और नहीं शंकर था जो अब उसके और सांड के बीच अपनी कमर पर हाथ जमाये किसी चट्टान की तरह खड़ा था…!शंकर ने सांड पर नज़र जमाये हुए ही उससे कहा - आप यहां से भाग जाइये प्रिय दीदी में रोकता हूँ इसे…!लेकिन वो हतप्रभ सी ऐसे ही पड़ी रही… वो वहाँ से उठकर भागने की हिम्मत भी नहीं जूता पायी… उसकी चीखो-पुकार सुनकर आनन् फानन में आस-पास खेतों में काम कर रहे मजदूर भी जमा हो गए सुप्रिया समेत वाकई लडकियां भी ये तमाशा देखने आ पहुंची..हाफ बाजु की कमीज और पाजामे में खड़ा शंकर किसी देव-दूत सा उस मस्त मलनद सांड से दो-दो हाथ करने को खड़ा था उसके बाजुओं के मसल्स फड़क उठे..उसने अपने हाथों को अपनी जाँघों के पाटों पर मारा फिर बाजुओं की मछलियों पर मारते हुए सांड को इशारा किया की अब आजा बीटा हो जाएँ दो-दो हाथ…सुप्रिया अपनी जगह पर कड़ी थार-थार कांपने लगी वो चीखते हुए बोली - उसके सामने से हैट जाओ शंकर वो तुम्हें मार डालेगा…! 

लेकिन शंकर ने तो जैसे उसकी आवाज सुनी ही नहीं सारे लोग दम साढ़े इस घटना को देख रहे थे वो चाहते तो उस सांड को मिलकर खदेड़ सकते थे लेकिन न जाने कैसा सम्मोहन था लड़के की अदाओं में की वो वहीँ खड़े ये तमाशा देखने पर मजबूर थे…उधर सांड अपने आपको सँभालते हुए अपने आगे के पैरों से जमीं की मिटटी को पीछे की तरफ फेंकता हुआ शंकर पर हमला करने को तैयार हो रहा था दोनों की नज़रें एक दूसरे पर जमी मानो एक दूसरे की ताक़त को तौल रही थी फिर सांड एकदम से धमभर देता हुआ शंकर के ऊपर झपटा…!देखने वालों की सांसें जैसे अटक गयी थी… वो सब दम साढ़े इस मंजर को देख रहे थे…!देखते ही देखते सांड शंकर तक पहुँच गया लेकिन इससे पहले की वो अपने सर की टक्कर उसके सीने पर मारता शंकर के दोनों हाथ उसके सींगों (हॉर्न) पर जैम गए उसने सांड को अपनी जगह पर रुकने पर विवस कर दिया…!हाफ बाजु कमीज से उसके मसल्स मानो फैट पड़ने को तैयार थे लेकिन मजाल क्या लड़का एक इंच भी अपनी जगह से हिला हो…!सांड रह-रहकर जोर देकर उसे पीछे खदेड़ने की कोशिश करता लेकिन शंकर पीछे को पेअर जमाये उसे आगे बढ़ने ही नहीं दे रहा था…!सांड की लाल-लाल आँखें देखकर किसी की भी घिग्गी बांध जाती लेकिन शंकर दम साढ़े उसे हिलने भी नहीं दे रहा था…उसका चेहरा लाल भभूका हो चुक्का था …इसी जोर आजमाइश में कोई १०-१५ मिनट निकल गए कभी सांड जोर लगाकर शंकर को कुछ कदम पीछे धकेल देता…फिर शंकर अपनी दम साधकर सांड को कुछ कदम पीछे धकेल देता…कोई किसी से काम पड़ने को तैयार नहीं था… सांड की सांसें फूलने लगी थी वो अपने नथुनों से फुसकार मरता हुआ लार फेंकने लगा...तभी शंकर ने दांत पर दांत जमकर एक तेज झटका सांड को मारा जिससे वो झटके से कुछ कदम पीछे हटने पर मजबूर हो गया फिर वो फ़ौरन उसके आगे से एक तरफ को हैट गया ताक़त के जोरसे प्रतिरोध करता सांड इतनी गति से आगे बढ़ा तभी शंकर आगे से हैट गया…नतीजा…. झोंक-झोंक में सांड का सर जमीं से जा टकराया मौके का फायदा उठाकर शंकर ने अपने दोनों हाथों को एक साथ जोड़कर कर मुक्का सा बनाया और भड़क से उसके नथुनों पर दे मारा…!सांड न चाहते हुए भी डकार मार कर अपने आगे के घुटनों पर बैठने पर विवश हो गया इससे पहले की वो संभल कर खड़ा होता शंकर के दोनों पैरों की किक उसकी टाट (हम्बल) पर पड़ी… वहीँ जमीं पर लेट कर हाँफते हुए फुसकार सी मारने लगा उसकी प्रितिरोधक क्षमता जबाब दे गयी… चरों तरफ से तालियों की गड़गड़ाहट सुन कर प्रिय की तन्द्रा टूटी…वो अभी तक उसी पोजीशन में पड़ी दम साढ़े इस द्वन्द युद्ध को देख रही थी.. आज शंकर उसे किसी देवता से काम नज़र नहीं आ रहा था…!वो अपनी जगह से कड़ी होकर उसकी तरफ दौड़ पड़ी और उसके बदन से लिपट कर फफक-फफक कर रोने लगी…! 

सांड इतने सारे लोगों को अपनी तरफ आते देख वहाँ से उठ खड़ा हुआ और एक दिशा में भाग गया…!शंकर ने प्रिय को चुप करते हुए कहा - चुप हो जाइये प्रिय दीदी वो चला गया अब आपको घबराने की जरुरत नहीं है…!सारे लोग वहाँ आकर जमा हो गए आगे बढ़कर सुप्रिया ने प्रिय के कंधे पकड़ कर शंकर से अलग किया और बोली - सब लोग देख रहे हैं दीदी अब चलो घर चलते हैं…!प्रिय शर्मिंदा होती हुयी उससे अलग हुयी वो अभी भी सुबक रही थी शंकर ने सुप्रिया से कहा - अब आप लोग घर जाइये और देखिये इन्हें कहीं चोट तो नहीं आयी…!प्रिय की एल्बो में थोड़ी सी खरोंच थी जिससे हल्का-हल्का खून रिस रहा था उनमें से एक मजदूर ने एक घास जैसी उखाड़कर उसका रास अपनी हथेलियों से मसल कर उसकी खरोंच पर टपका दिया…फिर वो सब गाओं की तरफ चल दी जाते-जाते दोनों बहनें पलटकर शंकर को चाहत भरी नज़रों से देखती जा रही थी..!घटना इतनी रोमांचकारी थी की उनके हवेली पहुँचने से पहले ही ये खबर वहाँ पहुँच गयी…!शंकर की बहदुरी की बात सुनकर एक ओरे सभी आश्चर्य चकित थे वहीँ उसकी माँ का सीना फूलकर गजभर का हो गया उसने मन ही मन उसे शाबाशी देते हुए कहा - बस बेटे ऐसे ही अपनी बहादुरी दिखता जा…!दोनों बहनों के हवेली पहुँचने के बाद जब उन्होंने इस बात की पुष्टि की तो लाला जी अपने अंश की बहादुरी पर फूले नहीं समां रहे थे मन ही मन फिरसे उनके दिल में ये तीस उठी की काश वो उसे अपने बेटे का दर्जा दे पाते… खैर बिगड़ैल घोड़ी प्रिय रंगीली को देखते ही उससे लिपटकर रोने लगी…मुझे माफ़ करना काकी मेने न जाने कितनी बार आप दोनों माँ-बेटों के साथ कितना गलत व्यवहार किया और भगवन का इन्साफ तो देखो उसी बेटे ने मेरी रक्षा करके मुझे बीनमोल खरीद लिया…आज ये जिंदगी उसी की दी हुयी है वार्ना वो सांड मुझे मार चुक्का था…!रंगीली उसे सांत्वना देते हुए बोली - ये तो उसका फ़र्ज़ था बीबीजी… अपने मालिक की बेटी की जान बचाकर उसने अपना फ़र्ज़ पूरा किया है…!और हाँ - आप अपने मन में कोई मेल मत रखो की हमें आपके व्यवहार से कोई ठेस लगी हो ये तो हम नौकरों का नसीब होता है…!रंगीली की ऐसी दरियादिली की बातें सुनकर प्रिय फिर एक बार उससे लिपट गयी- आप सच में नेक दिल हो काकी… सुप्रिया को आपके करीब देखकर में उसे चिढ़ाया करती थी.. लेकिन आज मुझे पता चला की वो मुझसे कहीं ज्यादा इन्शानि समझ रखती है…!अभी वो ये बातें कर ही रहे थे की हवेली के बहार शोर सुनकर सब दरवाजे की तरफ लपके....देखा तो लोगों का हुजूम शंकर को अपने कंधे पर उठाये उसकी जय-जय कार करता हुआ हवेली की तरफ ही आ रहा था…!लाला ने आगे बढ़कर उसे अपने कलेजे से लगा लिया और आशीर्वाद देते हुए बोले - जीता रह बेटे आज दूसरी बार तूने इस घर की बेटी की रक्षा करके जाता दिया की तू कितना महँ है…यहां शंकर की जय-जैकार और उसकी बहादुरी की चर्चा चल रही थी की तभी कल्लू शराब के नशे में धुत्त हवेली पहुंचा… उसे इस हालत में देखकर अंदर तक तिलमिला उठे उन्हें फिरसे इस बात का मलाल हुआ की काश वो शंकर को अपना बीटा कह पाते……….. 

उसके एक घंटे बाद शंकर अपने हवेली के बगल में मिले घर में था उसे एक चौकी पर बिठाकर रंगीली उसकी नज़र उतर रही थी…!उसके शरीर का ऊपरी हिस्सा नग्न था पहले रंगीली ने एक फटी हुयी चमड़े की जूती को उसके सर के ऊपर से ७ बार उतरा फिर उसके टेल पर ७ बार थूका और उसे जमीं पर दे मारा.फिर उसने एक रुई की मोती सी बत्ती बनाकर उसे शंकर के सर से लेकर पैरों तक ७ बार उतारा और उसे तेल में सराबोर करके उसे जलाकर लटका दिया उसमें से जलती हुयी मोती-मोती बूँदें नीचे रखे पानी के बर्तन में टपक-टपक कर छन्..छन् की आवाजें करने लगी…सलुआनी और शंकर इसे कौतुहलता से देख रहे थे रंगीली ने अपने बच्चों को सम्बोधित करते हुए कहा –देखो बच्चो किसी की इतनी बुरी नज़र है जो मेरे बेटे को बुरी नज़र से देख कर कोसती है.. देखो वो नज़र कैसी झाड़ रही है…!में जानती हूँ वो डायन कुटिया कोण-कोण हैं जो मेरे बेटे का बुरा चाहती हैं.. जलो नाश्पीटियो ऐसे ही जलती रहो जब तक में हूँ कोई भी बुरी नज़र मेरे बच्चों का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी…!उधर खिड़की से बहार कड़ी सुप्रिया ये सब नजारा अपनी आँखों से देख रही थी उसे रंगीली की बातों से कोई सरोकार नहीं था वो तो बस शंकर के नंगे बदन को ही निहारे जा रही थी हलकी लालामी लिए उसका पत्थर जैसा कठोर गोरा कसरती बदन उसके दिल की गहराईयों तक उतरता चला गया इस समय शंकर उसे किसी देव-पुरुष जैसा लग रहा था…!इसी बीच सलौनी की नज़र खिड़की पर कड़ी सुप्रिया पर पद गयी और वो चहकते हुए बोली - अरे सुप्रिया दीदी आप बहार क्यों कड़ी हैं अंदर आइये न…!सलौनी की बात सुनकर वो अंदर आने लगी रंगीली उसे दौड़कर गेट से उसका हाथ पकड़कर अंदर लायी…!शंकर ने हड़बड़ाकर उसकी तरफ देखा और अपनी उतरी हुयी कमीज से ही अपने बदन को ढकने की नाकाम कोशिश करने लगा…!सुप्रिया ने मुस्कराकर कहा - चिंता मत करो शंकर मेरी नज़र इतनी ख़राब नहीं है की तुम्हें कोई हानि पहुंचाए क्यों काकी सही कह रही हूँ न…!रंगीली - हाँ छोटी बीबी आपकी नज़र तो सिवाए ख़ुशी चाहने के और कुछ दे ही नहीं सकती आप तो दिल की इतनी अच्छी हैं की हम ही क्या हवेली के सारे नौकर इस बात को मानते हैं की सुप्रिया बीबी जैसी इस घर में और कोई नहीं है…!शंकर ने कमीज अपनी पीठ पर दाल जरूर ली थी लेकिन उससे उसका आगे का पूरा हिस्सा धक् नहीं पाया था सुप्रिया उसके कसरती बदन को निहारते हुए बोली - में ये जानने के लिए आयी थी की तुम्हें कहीं कोई चोट तो नहीं आयी और काकी मेने इसे रोकने की कोशिश भी की लेकिन इसने मेरी आवाज जैसे सुनी ही नहीं थी कहीं वो सांड तुम्हें दबोच लेता तो…? 

रंगीली उसकी आँखों की भाषा को पहचानते हुए बोली - ये आपकी नेक नियति है बेटी जो आपको मेरे बेटे की फ़िक्र थी लेकिन आप ये तो सोचो अगर ये उसके सामने नहीं आता तो क्या होता…?सुप्रिया - हाँ सो तो है वो सांड प्रिय दीदी को मार ही डालता वैसे शंकर तुम्हें उस सांड से डर नहीं लगा…?शंकर - डर से बड़ा मेरे सामने मेरा फ़र्ज़ था जिसके लिए मेने अपनी जान को दांव पर लगा दिया और देखो में जीत भी गया…!सुप्रिया उसकी बाजु की मछलियों को दबा-दबाकर देखते हुए बोली - वैसे काफी अच्छी बॉडी सऊदी बना ली है तुमने ी लिखे आईटी…!उसके बाद के शब्द रंगीली की समझ में तो नहीं आये लेकिन उसकी आँखों की भाषा उसकी खूब समझ में आ रही थी सो अपनी बेटी से बोली - चल सलौनी दादी के पास चलते हैं उनसे थोड़ा काम है मिझे…!सलौनी - तू जा माँ मुझे भैया से मैथ के कुछ सवाल पूछने हैं..रंगीली - आरी करमजली देख नहीं रही वो कितना थक गया है रात को पूछ लेना चल अभी आते हैं ज्यादा देर नहीं लगेगी…!ये कहकर उसने सलौनी का बाजु पकड़ा और लगभग उसे खींचती हुयी कमरे से बहार ले जाने लगी उन्हें वहाँ से जाते हुए देख सुप्रिया बोली - अच्छा काकी में भी चलती हूँ यू टेक केयर शंकर…!रंगीली उसका हाथ पकड़कर बोली - अरे आप बैठो बेटी बातें करो हम बस अभी आते हैं इतने दिनों बाद आयी है फिर न जाने कब-कब आना होगा..!इतना बोलकर वो सलौनी को लेकर अपने घर की तरफ निकल गयी यहां शंकर और सुप्रिया दोनों को अकेला छोड़कर…!सुप्रिया उसके बाजु में अपने घुटने मोड़कर बैठ गयी और उसके बाजु को सहलाते हुए बोली - रंगीली काकी कितनी अच्छी हैं जान बूझकर हमें अकेला कर दिया है न - शंकर - हाँ - मेरी माँ आँखों की भाषा बड़े अच्छे से समझ जाती है.. उसने आपकी आँखों की भाषा को पढ़ लिया था इसलिए वो सलौनी को लेकर चली गयी…!सुप्रिया साइड से ही उसके बदन से लिपटे हुए बोली - ओह शंकर.. फिर हमें भी इस मौके का फायदा उठा लेना चाहिए.. शंकर ने उसके बाजुओं के बंधन को अपने शरीर से अलग किया और खड़े होते हुए बोलै - दरवाजा खुला है दीदी यहां आजकल लोग ताका-झांकी बहुत करते हैं बोलकर वो गेट बंद करने चला गया जब लौटा तो सुप्रिया उससे लिपटते हुए बोली - तुम हो ही ऐसे हर कोई तुम्हें पाने के लिए उतावली होने लगे…!सुप्रिया की लम्बाई थोड़ी काम थी वो शंकर के सीने तक ही आती थी इसलिए उसने उसे किसी बच्ची की तरह अपनी गोद में उठा लिया और उसके होठों को चूमते हुए बोलै- ऐसा क्या है मुझमें…?वो उसके गले में अपनी बाँहों को लपेटते हुए बोली - तुम साक्षात् कामदेव का रूप हो शंकर तुम मुझसे उम्र में बहुत छोटे हो फिर भी में तुम्हारे ही सपने देखा करती थी…  

लेकिन तुम्हारी उम्र को देखते हुए कुछ कर न सकीय अब जब तुम जवान हो गए हो तो तुम्हें देखते ही मुझसे रहा नहीं गया तुम्हें पाने की मेरी अधूरी प्यास फिरसे जाग उठी शंकर ने उसकी आँखों में झांकते हुए उसके कूल्हों को अपने हाथों में लेकर मसलते हुए कहा - आपके पति आपको प्यार नहीं करते..?सुप्रिया - तुम मेरी पहली चाहत हो शंकर जिसे पति का प्यार तो क्या दुनिया का कोई भी रिस्ता नहीं भुला सकता मुझे अपनी मजबूत बाँहों में समेत लो शंकर मुझे प्यार करो मेरे सपनों के राजकुमार…!शंकर ने वहीँ उसे बिछबां पर लिटा दिया और उसके ब्लाउज को उसके बदन से अलग करके छोटी सी ब्रा में क़ैद उसके ३२ के गोल-गोल उरोजों को अपनी मुट्ठियों में भरकर मसल डाला…!उसके लोहे जैसे शख्त हाथों ने उसकी चूचियों को बुरी तरह मसल डाला वो एक दर्द भरी कराह अपने मुँह से निकलकर बोली - आअह्ह्ह…इतनी बेदर्दी से मत करो दर्द होता है..!शंकर प्यार से उसके निप्पल वाली जगह को सहलाकर बोलै - इसलिए तो ये अभी तक इतने छोटे हैं लगता है जीजा जी इन्हें प्यार नहीं करते…!हाँ राजा…उन्हें बस पैसा कामना आता है प्यार करना नहीं इसलिए तो में प्यासी हूँ मुझे अपने प्यार से नहला दोऊ… ससीई…आअह्ह्ह… वो मजे से कराहती हुयी बोली..शंकर ने उसकी साड़ी और पेटीकोट भी उसके बदन से अलग कर दिए छोटे-छोटे ब्रा और पंतय में वो किसी गुड़िया की तरह बिछाबन पर मचल रही थी शंकर उसके मखमली बदन को अपने कठोर हाथों से सहला रहा था अब वो चुदाई का मास्टर बनता जा रहा था दो-दो प्रौढ़ औरतों को भरपूर सुख देते-देते वो अब इस खेल का महेंद्र सिंह धोनी (कप्तान) बन चुक्का था…सो सुप्रिया जैसी कमसिन पैसि औरत उसके हथकंडों के आगे किसी बंदरिया की तरह नाचने लगी…!उसने अपनी टांगों को फैलाकर उसे अपनी गोद में उठा लिया और उसके रसीले माध के प्यालों को चूसते हुए उसकी ब्रा के हुक भी खोल दिए छोटी-छोटी रबर की गेंद जैसी उसकी चूचियों को अपने मुँह में लेकर चूसते ही सुप्रिया मज़े के सागर में उतर गयी अपनी आँखें बंद करके उसमें गोते लगते हुए सिसक पड़ी अपनी छातियों को और आगे करके उसे चुसवाने में बहुत मज़ा आरहा था उसे शंकर दूसरे हाथ से उसकी दूसरी चुकी को मसल रहा था किस-मिस के दाने जैसे निप्पल कांच के कंचे के माफिक कड़क हो गए थे.शंकर ने चूसना बंद करके अपने दोनों हाथों से उसके निप्पलों को हलके से मरोड़ दिया…!सुप्रिया बुरी तरह सिसक पड़ी - ससससीईई…..आआह्ह्ह्ह…मेरे राज्जा…आईई… करते हुए वो अपनी चुत  को उसके पजामा में उभरे हुए लुंड पर घिसने लगी…!उसकी चुत  ने पंतय को तर कर दिया शंकर ने उसे बिस्तर पर लिटा कर उसकी पंतय भी उतर दी छोटे-छोटे बालों से घिरी उसकी छोटी सी चुत  जिसकी माल पुए जैसी फूली हुयी दोनों फांकों के बीच की दो इंच लम्बी दरार को देख कर उसका लुंड किसी विषधर नाग की तरह फनफनाने लगा……!! 
उसकी चुत  से निकले सोमरस ने पंतय को तर कर दिया था शंकर ने उसे बिस्तर पर लिटा कर उसकी पंतय भी उतर दी उसे हाथ में लेकर अपनी नाक पर लगाया और एक गहरी सांस लेकर उसके कामरस  को सूंघा…!आअह्ह्ह्ह…क्या मस्त कस्तूरी जैसी सुंगध है.. क्या कहती हो…?शंकर की इस हरकत से सुप्रिया बुरी तरह शर्मा गयी उसके सीने पर प्यार से धौल जमकर बोली - कितने शरारती हो गए हो तुम…!छोटे-छोटे बालों से घिरी उसकी छोटी सी चुत  जिसकी पतली-पतली लेकिन थोड़ी सी फूली हुयी दोनों फांकों के बीच की दो इंच लम्बी दरार को देख कर उसका लुंड किसी विषधर नाग की तरह फनफनाने लगा……!!शंकर ने उसकी आँखों में देख कर कहा - आअह्ह्ह…क्या मस्त है ये आप कहो तो इसका रास टास्ते करके देखूं दीदी..?शंकर की ऐसी कामुकता भरी बात सुनकर उसका शर्म के मारे बुरा हाल था उसके चौड़े चकले सीने में मुँह छुपकर बोली - मुझे नहीं पता तुम्हें जो करना है वो करो…!शंकर ने मुस्कराकर उसे फिरसे लिटा दिया और उसके होठों को चूमते हुए पुरे बदन पर अपने होठों की छाप छोड़ते हुए उसकी रसीली चुत  पर जा पहुंचा…उसकी छोटी सी चुत  को अपने बड़े से हाथ से सहलाया फिर उसे अपनी मुट्ठी में भींच लिया…!सुप्रिया की मानो जान ही चुत  के रस्ते उसके हाथ में समां गयी हो….आह्ह्ह्ह… भरते हुए उसने शंकर की कलाई थम ली और सिसकते हुए बोली - इतना मत तड़पाओ शंकर… मेरे राजाआं… वार्ना में मर जाउंगी प्लीज जल्दी कुछ करो अब..…शंकर उसके कामर्स से भीगे हुए अपने हाथ को चाटते हुए बोलै सफर अभी बहुत लम्बा है मेरी बुल-बुल… तुम तो अभी से मैदान छोड़ने लगी…!ये कह कर उसने अपनी जीभ से उसकी चुत  की उभरी हुयी फांकों को चाट लिया…सुप्रिया तो जैसे उड़नखटोले में बैठ कर हवाओं की शेर करने लगी.. उसने अपने आप को शंकर के हवाले कर दिया… ऐसे सुख की कामना उसने कभी सपने में भी नहीं की थी…!उसकी फांकों के बीच अपनी जीभ की नोक से कुरेदते हुए उसका एक हाथ उसकी चूचियों से खेल रहा था दोहरी मार से सुप्रिया का पूरा शरीर भूकंप में आये झटके की तरह कांपने लगा फिर वो उसके भगनासे को अपने होठों में दबाकर छछोरते हुए जैसे ही उसने अपनी एक उंगली उसकी चुत  के छेड़ में डालकर अंदर बहार की सुप्रिया की कमर अपने आप हवा में लहराने लगी अपनी चुत  को उसके मुँह पर दबाकर वो कांपते हुए झड़ने लगी शंकर उसकी चुत  के होठों पर अपने होठों को दबाकर उसका सारा रास चूस गया…!फिर चटकारे लेकर अपने होठों को अपनी जीभ से चाटते हुए भोली सी सूरत बनाकर बोलै - आह्हः…बहुत मीठा है मज़ा आगया.. आपको कैसा लगा दीदी…???सुप्रिया तो जैसे अपने होश में ही नहीं थी उसकी ये बात सुनकर वो लपक कर उसकी छाती से लिपट गयी और उसके होठों को चूसते हुए बोली - जादूगर हो तुम…! कहाँ से सीखा ये सब…?  

उसने मुस्कराकर उसकी चुकी को सहलाते हुए कहा - ये राज की बात है.. आप बस मज़े लो और मुझे भी थोड़ा मज़ा दो ये कहकर उसने अपना पजामा नीचे सरका दिया और अपना रोड जैसा कड़क लुंड उसके होठों से लगा दिया…!शंकर के डंडे जैसे शख्त ७.५” लम्बे और खूब मोठे खूंटे जैसे लुंड को देख कर सुप्रिया की आँखें फटी रह गयी उसे देख कर अब उसे डर लगने लगा था वो सोचणे लगी की इतने तगड़े लुंड को वो अपनी चुत  में कैसे ले पाएगी वो.. कांपते हाथों से उसे अपनी मुट्ठी में पकड़ने लगी जो उसके छोटे से हाथ में भी नहीं समां पा रहा था..पकड़ते ही उसकी गर्मी से और ज्यादा घबरा गयी और डरते हुए बोली - य..यई.. इतना बड़ा कैसे है शंकर…?शंकर ने चौंकते हुए कहा - क्यों कभी लुंड देखा नहीं आपने…?वो - देखा तो है पर इतना बड़ा नहीं क्या इसे में ले पाउंगी अपने अंदर…!शंकर ने अपने लुंड को अपने हाथ में लेकर उसे उसके होठों से लगते हुए कहा - पहले इसे अपने मुँह में लो बेबी ज्यादा नाटक नहीं… ये चुत  छोड़ने के लिए ही होता है…सुप्रिया शंकर के मुँह से ऐसे रुफ्फ़ शब्द सुनकर चौंक पड़ी उसने उसकी आँखों में देखा जिन्हें देखते ही उसे जहर-झूरी सी होने लगी…शंकर की लाल –लाल आँखों में उसे वासना के अलावा और कुछ नहीं दिखा वो समझ गयी की अब अगर इसको रोका तो हो सकता है ये उसे जबरदस्ती छोड़ डेल अगर ऐसा हुआ तो ना जाने वो कितनी बुरी तरह से उसे रौंदेगा सो उसने बिना कुछ कहे उसका लुंड अपने मुँह में ले लिया और चूसने की कोशिश करने लगी…!शंकर को उसका लुंड चूसना पसंद नहीं आया सो कुछ देर में ही उसने उसे बहार निकल लिया और उसकी टांगों को अपनी जाँघों पर चढ़कर अपने गरम सुपडे को उसकी चुत  के छेड़ पर रख कर हल्का सा धक्का देकर सुपडे को अंदर कर दिया…!सुप्रिया आने वाले संकट को झेलने के लिए अपने आपको तैयार करते हुए बोली - थोड़ा आराम से करना शंकर प्लीज… तुम्हारा ये बहुत बड़ा है..शंकर ने प्यार से उसके निप्पलों को सहलाते हुए कहा - आप इतना भी निर्दयी मत समझो मुझे.. में आपको कुछ नहीं होने दूंगा..ये कहकर उसने एक तगड़ा सा धक्का देकर अपना आधा लुंड उसकी कासी हुयी चुत  में दाल दिया उसे लगा जैसे वो पहली बार चुद रही हो सुप्रिया अपने दर्द को पीने की कोशिश में अपने होठों को चबाने लगी उसकी आँखों से पानी बहने लगा…!वो कुछ देर पहले के उसके रौद्र रूप को देख कर डर गयी थी इसलिए उसने कोई प्रतिरोध नहीं किया लेकिन अपने आंसुओं को वो नहीं रोक पायी…! शंकर को कुछ गड़बड़ लगी वो वहीँ थम गया उसने उसके होठों को चूमा फिर उसके उभारों को सहलाते हुए बोलै - क्या हुआ दीदी आपको ज्यादा दर्द है तो रहने दें..? 

वो अपने दर्द पर काबू पाने की कोशिश करते हुए कराह कर बोली - आठ…नहीं शंकर तुम आगे बढ़ो में कोशिश करती हूँ झेल लुंगी…!शंकर - लेकिन आपको इतना दर्द क्यों हो रहा है..? जैसे पहली बार चुद रही हो.. - ये समय इन बातों का नहीं है शंकर प्लीज आगे बढ़ो बातें बाद में.. ये कहकर उसने उसके होठों को चूमकर अपनी आँखें बंद कर ली…!शंकर ने एक बार अपने लुंड को थोड़ा सा बहार निकला उसे अपने लुंड पर कुछ गरम-गरम सा महसूस हुआ उसने नीचे नज़र डालकर देखा तो उसे अपने लुंड पर खून लगा हुआ नज़र आया…!वो आश्चर्य में पद गया और सोचने लगा शादी  के ३ साल बाद भी क्या ये अभी तक कुंवारी है - लेकिन फिर अपनी सोच को झटक कर उसने एक और हल्का सा धक्का लगा दिया…उसका लुंड और दो इंच तक आगे सरक गया उसने सुप्रिया के चेहरे पर नज़र डाली वो आँखें बंद किये हुए अपने दर्द को काबू में करने की कोशिश कर रही थी..शंकर ने कुछ देर तक उसके बदन को सहलाया उसके निप्पलों को छठा और फिर धीरे-धीरे उतनी लम्बाई तक उसे छोड़ने लगा.. सुप्रिया का दर्द कुछ पलों बाद काम हो गया और अब वो भी मादक सिसकियाँ लेती हुयी चुदाई में साथ देने लगी.. मिनट में वो उसके आधे-पौने लुंड से ही झाड़ गयी अब उसकी चुत  गीली हो गयी थी सो लुंड के आने जाने में अब कोई तकलीफ नहीं थी इसका फायदा लेकर शंकर ने एक आखहिरी शॉट लगते हुए उसे जड़ तक अंदर कर दिया…इस बार सुप्रिया को कोई अंदाजा नहीं था सो उसके मुँह से चीख निकल ही गयी और वो हाँफते हुए उसकी आँखों में देख कर बोली - आह्हः…शंकर और कितना बचा है अभी.. मेरे मुँह से होकर बहार निकलने का इरादा है क्या…?शंकर ने उसकी चूचियों को मसलते हुए कहा - नहीं रानी बस अब लास्ट हो गया.. आज से मेने तुम्हारी चुत  की गहरायी को फिक्स कर दिया अब कभी भी कोई रुकाबट नहीं होगी…ये कहकर उसने अपने धक्के लगाना शुरू कर दिए!सुप्रिया एक भरपूर लुंड पाकर मस्त हो गयी शंकर जैसे ताक़तवर लुंड से जिसकी ठोकर उसकी बच्चेदानी के अंदर तक पहुँच रही थी उसकी नयी फटी मुनिया लगातार पानी छोड़ने लगी…अब वो अपने दर्द को भूल कर मस्ती से कमर उचका-उचका कर चुदाई का मज़ा ले रही थी…!शंकर के एक बार झड़ने तक वो कई बार बरस चुकी थी.. उसने उसे उलट-पलटकर उसकी चुत  को अच्छे से रबान कर दिया… अब उसकी चुत  के होठ कुछ मोठे से होकर फ़ैल चुके थे…!उसकी चुत  की फांकें सूजी सी लग रही थी जैसे किसी के मुँह पर थप्पड़ मार-मारकर उसके होठ सुजा दिए हों…आखिर में शंकर के लुंड की बरसात से उसकी अबतक सुखी पड़ी खेती जिसने आजतक पानी की एक बूँद तक न देखि हो वो हरी-भरी हो उठी और उसकी चुत  की छोटी सी बगिया लैह-लाहा उठी…! 

जब दोनों एक बार अच्छे से झाड़ गए और अपनी-अपनी साँसों को नियंत्रित कर चुके तब शंकर ने अपने लुंड को उसकी चुत  से बहार निकलकर उसपर लगे खून को दिखते हुए बोलै - ये क्या है दीदी…?सुप्रिया ने उसके लुंड से खून का एक कटरा अपनी ऊँगली पर लेकर उसके लुंड पर तिलक करते हुए कहा - तुम्हारा अंदाजा सही है शंकर में आज ही लड़की से औरत बानी हूँ… ये तिलक इस बात का सबूत है की यही मेरी चुत  का असली मालिक है…!शंकर - क्यों - आपके पति..? मेरा मतलब शादी  को ३ साल हो गए फिर अभी तक आप कुंवारी थी…?सुप्रिया ने उसकी बात का कोई जबाब नहीं दिया बोलने की वजय वो उसकी छाती में अपना मुँह छुपकर सुबकने लगी…शंकर ने उसके चेहरे को अपने हाथों में लेकर कहा - क्या बात है मुझे बताओ दीदी.. ने सुबकते हुए कहा - मेरा पति इस लायक है ही नहीं शंकर की मुझे एक पत्नी का सुख दे सके उसे तो लड़के अच्छे लगते हैं औरतों से वो कोसों दूर भागता है…!शंकर ने चौंकते हुए कहा - ये क्या कह रही हैं आप - इसका मतलब उन्होंने आपके साथ अभी तक सुहागरात तक नहीं मनाई…? सुप्रिया ने न में अपनी गार्डन हिला दी और मौसी भरे स्वर में बोली - तुम सुहागरात की बात करते हो अभी तक मेरा पूरा बदन तक नहीं देखा…!शंकर - तो आपने ये बात अभी तक किसी को बताई क्यों नहीं..?सुप्रिया - वो दिल के बहुत अच्छे इन्शान हैं अब ये बुरी लत कैसे और कब लगी मुझे नहीं पता…!उन्होंने गिड़गिड़ाते हुए मुझसे इस बात के लिए माफ़ी मांगी और ये भी कहा की में अगर चहुँ तो किसी और से अपने सम्बन्ध बना सकती हूँ उन्हें उसमें कोई एतराज नहीं होगा लेकिन प्लीज मेरी ये कमजोरी किसी और से मत कहना वार्ना में जीवित नहीं रह पाऊंगा…!अब तुम्ही बताओ में अपने सुख की खातिर किसी की जान कैसे ले सकती हूँ फिर मेने फैसला किया की अब में केवल और केवल अपने शंकर को ही अपना ये शरीर सौंपूंगी जो मेरे बचपन का प्यार है…!उसकी बात सुनकर शंकर ने उसे कसकर अपने सीने से लगा लिया और उसके होठों का चुम्बन लेते हुए बोलै - ओह्ह्ह.. सुप्रिया मेरी जान तुम सच में बहुत अच्छी हो तुमने सही किया जो उनका राज किसी पर उजागर नहीं होने दिया…!सुप्रिया ने उसकी तरफ देखते हुए कहा - लेकिन ये वादा करो शंकर तुम भी ये राज अपने तक ही सीमित रखोगे..! 

शंकर ने उसे वचन दिया की वो ये राज अपने सीने में दफ़न कर लेगा और उसे जब भी उसकी जरुरत होगी वो उसके लिए जी जान से हाज़िर रहेगा…!सुप्रिया - ओह्ह्ह मेरे शंकर - तुम कितने अच्छे हो अब बस एक एहसान और कार्डो मुझ पर…!शंकर ने उसे अपनी गोद में खींचते हुए उसके रसीले लज्जत भरे होठों को चूमकर कहा - एहसान नहीं मेरी जान हुकुम करो.. ये गुलाम तुम्हारे लिए जान देने के लिए हाज़िर है…सुप्रिया - तुम किसी के गुलाम नहीं तुम तो मेरे दिल का वो हिस्सा हो शंकर जो मेरी जान जाने के बाद ही अलग हो पायेगा बस मुझे एक बच्चा दे दो जिसके सहारे में अपना जीवन काट सकूँ…!जो हुकुम मेरे अक ये कहकर उसने उसे अपने ऊपर लिटा लिया और उसके गोल-गोल चूतड़ों को मसलते हुए उसकी चूचियों को चूसने लगा…वो दोनों एक बार फिरसे गरम हो गए और एक बार फिर कमरे में मादक सिसकियों का बाजार गरम हो उठा…!सुप्रिया की चुत  थोड़ा दर्द कर रही थी लेकिन चोरी की चुदाई के लिए इतना तो सहना पड़ता ही है सो अपने दर्द को दरकिनार करके वो शंकर के लुंड के झटकों को फिरसे झेलने लगी…जब वो दोनों अपने अपने कपडे पहन कर चुके ही थे तभी रंगीली और सलौनी वहाँ आगये सुप्रिया उन दोनों के सामने शर्म से अपनी नज़रें झुकाये वहाँ से बिना कुछ कहे चली गयी…!शाम के खाने में अभी वक़्त था सो रंगीली कुछ हवेली के काम निपटने चली गयी और शंकर अपनी बहिन को मैथ के सवाल करने बैठ गया…!सलौनी अब बच्ची तो नहीं थी वो १०थ क्लास में पढ़ रही थी सुप्रिया इतनी देर उसके भाई के पास अकेली क्या करती रही होगी खूब समझ रही थी पर वो ये नहीं समझ पा रही थी की उसकी माँ ने जान बूझकर उन दोनों को अकेला क्यों छोड़ा क्या माँ ही उन्हें मिलाना चाहती है लेकिन क्यों…?ये कुछ ऐसे सवाल थे जो उसके अविकसित दिमाग में समां नहीं पा रहे थे…शंकर उसे सवाल बताने में व्यस्त था लेकिन उसका ध्यान तो कहीं और ही था…जब शंकर ने उससे पूछा समझ में आगया गुड़िया…? तो वो हड़बड़ाकर उसकी तरफ देखने लगी शंकर ने फिर कहा - समझ गयी या तेरा ध्यान ही कहीं और है…?वो उसकी तरफ देख कर बोली - एक बात पूछूं भैया..?उसने कहा - हाँ पूछ.. वो बोली - सच सच बताना आप और सुप्रिया दीदी इतनी देर अकेले यहां क्या कर रहे थे…? 

वो उसके मुँह की तरफ देखने लगा वो समझ नहीं पा रहा था की सलौनी ने ये सवाल क्यों किया…? और वो उसे इसका क्या जबाब दे लेकिन कुछ तो बताना ही था सो बोलै… बस इतने दिनों बाद वो यहां आयी हैं बचपन में हम लोग जो खेल खेलते थे ुहनी बीती बातों को याद कर रहे थे वो भी अपने ससुराल की बातें बताती रही.. वैसे तूने ये सवाल क्यों किया..?सलौनी उसके सवाल को अनसुना करके बोली - बस यही बातें होती रही दो घंटे तक…? शंकर - हाँ लेकिन तू इन बातों पर इतना ज्यादा जोर क्यों दे रही है अपनी पढ़ाई पर ध्यान दिया कर आगे-आगे बहुत कठिन पढ़ाई आने वाली है समझी…! सलौनी - वो तो में कर लुंगी लेकिन में ये नहीं समझ पा रही की हमारे आते ही वो नज़र झुका कर बिना कोई बात किये चली क्यों गयी फिर एक पल भी नहीं रुकी माँ के पास…?शंकर उसकी बातों से झुंझला उठा और उसे झिड़कते हुए बोलै - तू अब बहुत मार खायेगी मेरे हाथों से बहुत बातें बनाने लगी है अब में तुझे क्या जबाब दूँ की वो ऐसे क्यों चली गयी…?सलौनी टपक से बोली - लेकिन में बता सकती हूँ वो ऐसे नज़र झुकाये क्यों चली गयी…?शंकर उसके मुँह की तरफ देखता ही रह गया वो सोचने लगा की अब ये शैतान की नानी आगे क्या बोलने वाली है…सो पूछ ही बैठा.. क्यों चली गयी..?सलौनी मंद-मंद मुस्कराते हुए अपने भाई के बाजू के सख्त मसल्स को दोनों हाथों में लेकर दबाते हुए बोली - मेरे भाई की मर्दानगी पर मर मिटी है वो…ये कहकर वो खिल-खिलकर वहाँ से भाग गयी शंकर अपना थप्पड़ दिखते हुए उसके पीछे-पीछे दौड़ा…!रुक जा शैतान की अम्मा बहुत बातें बनाने लगी है तू ठहर अभी खबर लेता हूँ तेरी… !वो खिल-खिलाती हुयी किसी चचल तितली की तरह इधर से उधर उससे बचती बचती भाग रही थी शंकर उसके पीछे-पीछे था…!फिर आखिर में वो थक कर एक जगह रुक गयी और अपने घुटनों पर हाथ टीकाकार झुक कर हांफने लगी शंकर ने उसे पीछे से उसकी कमर में एक बाजु डालकर किसी फूल की तरह उठा लिया और उसे अपने कंधे पर डालकर उसके चूतड़ों पर प्यार भरे थप्पड़ लगाने लगा…वो अपने पेअर फड़फड़ाकर उससे चुत ने का नाटक करने लगी लेकिन अपनी बाजु उसने उसके गले में लपेटे हुए वो उस’से और ज्यादा चिपक गयी…!अपनी बहिन के कच्चे अमरूदों का एहसास अपने कंधे पर महसूस करके शंकर को पहली बार ये एहसास हुआ की उसकी बहिन अब बच्ची नहीं है वो अब कच्ची काली से फूल बनाने की राह में है…! 

अनायास ही उसका हाथ थप्पड़ देने की वजाये उसके कोमल चूतड़ों को सहलाने लगा जो अब थोड़े से चौड़े और पीछे को निकल आये थे.. अपने भाई के बदन की रगड़ और उसके गांड को सहलाने की वजह से मस्ती में भर उठी मचल कर वो नीचे की तरफ खिसकी और उसके गले में झूल गयी.. इससे पहले की शंकर उसे नीचे उतरता उसने अपने भाई के गाल को चुम लिया…!उसकी इस हरकत से शंकर सन्न रह गया और वो चंचल तितली हस्ती हुयी वहाँ से फुर्रररररर… हो गयी….!वो अपने गाल पर हाथ रखकर सहलाता ही रह गया………!उधर सुप्रिया जब हवेली के चौक में पहुंची तो वहाँ उसकी बहिन प्रिय और उसकी माँ तखत पर बैठी बातें कर रहीं थी साइड में दोनों बहुएं कड़ी थी..औरतों की बातों का कोई ओरे-छोर तो होता नहीं बात में से दूसरी बात निकल आती है.. एक बार इनको खाना न मिले तो भी चलेगा लेकिन बातें….अब भी उनकी बातें वही थी जीका केंद्र बिंदु वो घटना ही थी प्रिय बढ़ा-चढ़कर शंकर की वीरता का बखान कर रही थी जिसका उन तीनों पर मिला जुला असर था…जहां सेठानी अभी भी एक नौकर द्वारा अपने मालिक की बेटी की जान बचाना उसका फ़र्ज़ बता रही थी वहीँ सुषमा शंकर को देवता का स्वरूप मानकर चल रही थी वो मन ही मन अपने आप पर बड़ा गर्व महसूस कर रही थी शंकर जैसे वीर के बच्चे की माँ बनाने का उसे सौभग्य मिल रहा है.... वो मन ही मन ईश्वर और रंगीली का धन्यवाद् कर रही थी…!वहीँ लाजो को शंकर जैसे ताक़तवर नौजवान के लुंड को लेने की लालसा और बलबती होने लगी क्योंकि अब वो अपने ससुर के लुंड से संतुष्ट नहीं हो पा रही थी वैसे भी ये ाश तो वो दोनों ही छोड़ चुके थे की अब उनके वीर्य में बच्चा पैदा करने की शक्ति बची भी है या नहीं…!लाजो को कोई ठोस प्लान बनता नज़र नहीं आ रहा था उसके रस्ते का सबसे बड़ा रोड़ा थी शंकर की माँ रंगीली… उसका नाम दिमाग में आते ही उसको एक झटका सा लगा उसने तै कर लिया की अब वो कैसे भी करके रंगीली को पटाने के कोशिश करेगी जिसने अपने ससुर से सम्बन्ध बनाने के लिए उसे उकसाया था…!अब तो शंकर बड़ा भी हो गया है तो अब अगर थोड़ी कोशिश की जाए तो शायद बात बन सकती है इस प्लान को फाइनल करते हुए उसने रंगीली को शीशे में ढलने की थान ली……! 

सुप्रिया के वहाँ पहुँचते ही सबकी सोचों और बातों पर विराम लग गया…उसकी चाल में लंगड़ाहट थी जिसे देख कर सेठानी ने उससे पूछा - तू कहाँ चली गयी थी कबसे तेरी राह देख रहे हैं हम सब… और इस तरह लंगड़ाकर क्यों चल रही है…?सुप्रिया - रंगीली काकी के पास थी शंकर के हाल चाल पूछने गयी थी.. और खेतों में थोड़ा पेअर मुद गया था तो उन्होंने गरम तेल की मालिश भी करदी… क्यों कोई काम था. - आरी तुझे कितनी बार कहा है नौकरों को ज्यादा सर चढाने की दरकार नहीं है उनपर अपना हुकुम चलाया जाता है समझी… लेकिन मेरी ये बात कभी तेरे मगज में नहीं घुसी…!अपनी माँ की बातों पर ध्यान देने की वजय प्रिय ने पूछा - कही चोट तो नहीं लगी उसे…?सुप्रिया - शरीर पर तो कहीं चोट नहीं है पर माँ की बातों से शायद उनकी आत्मा पर जरूर चोट लग सकती है…!सेठानी - ये तू अपनी माँ से किस तरह से बात कर रही है मुझे दुनियादारी मत सीखा सब जानती हूँ इन नौकरों की जाट ये ऐसे ही कामों के लिए होते हैं…!प्रिय - बस करो माँ शायद तुम्हें ये अंदाजा नहीं है की उसने कितना बड़ा एहसान किया हैं हमारे ऊपर…!आपकी बेटी की जान बचने के लिए साक्षात् मौत से भीड़ गया था वो जिस सांड पर लाठियों की मार से कोई फरक नहीं पड़ता है उसे उसने अपनी ताक़त के बल पर धुल छठा दी थी…!उसका एहसान मानाने की वजय काम से काम इस तरह की जाली कटी बातें तो मत करो..!सेठानी - ये तू कह रही है..? कल तक तो तू मुझसे भी ज्यादा इन लोगों से चिढ़ती थी.प्रिय - वो मेरी सबसे बड़ी भूल थी नौकर भी इन्शान होते हैं और फिर शंकर तो हमारा खास नौकर है पिताजी ने उसे ऐसे ही देखभाल का भर नहीं सौंप दिया है…ये दूसरा चांस है जब उसने हम लोगों पर इतना बड़ा एहसान किया है हमें उसकी इज़्ज़त करनी चाहिए…!इस तरह की बहस के बाद भी जब सेठानी के तेवर नहीं बदले तो एक-एक करके वो चरों उसे अकेली छोड़कर चली गयी वो अकेली वहाँ बैठी बड-बढ़ती रही…! वहाँ से निकल कर प्रिय ने सुप्रिया का हाथ पकड़ा और बोली - चल मेरे साथ…सुप्रिया - कहाँ..?प्रिय - मुझे शंकर से मिलना है अभी… कहाँ मिलेगा वो..?सुप्रिया - में तो उसे अपने घर में ही छोड़कर आयी थी अब पता नहीं कहाँ होगा..?प्रिय लगभग दौड़ती हुयी हवेली के पीछे शंकर के घर की तरफ चल दी.. सुप्रिया मुस्कराती हुयी अपने कमरे में आगयी…!वो आज बहुत खुश थी थोड़ी चाल में लंगड़ाहट थी लेकिन उसकी उसे कोई परवाह नहीं थी आज उसने वो पा लिया था जिसे पाने का हक़ हर औरत को होता है…!वो इस बात से भी ज्यादा खुश थी की शंकर ने हर संभव उसका साथ देते रहने का वचन भी दे दिया है.. अब वो अपने गांडू पति को वजाये कोसने के धन्यवाद् दे रही थी…!उधर प्रिय दौड़ती हुयी जब शंकर के घर पहुंची तो वहाँ उसे बस सलौनी मिली जब उसने शंकर के बारे में पूछा तो उसने बताया की वो तो अभी-अभी खेतों की तरफ निकल गया…!वो वहाँ एक पल भी नहीं रुकी और लगभग दौड़ते हुए खेतों की तरफ चल दी पीछे से सलौनी के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान आ गयी और अपने ही आप से बड बढ़ती हुयी बोली…लो एक गयी अब दूसरी आ गयी वह भैया… क्या किस्मत पायी है तूने…!उधर प्रिय जैसे ही हवेली के मैं गेट से बहार आयी उसे कुछ दूर शंकर किसी शेर जैसी चाल से चलता हुआ खेतों की तरफ जाता दिखाई दिया…!उसने अपनी गति और बढ़ा दी वो इस समय एक लॉन्ग स्कर्ट और टाइट सा कुरता पहने हुए थी जिसमें दौड़ने की वजह से उसके ३४ डी साइज के बूब्स ऊपर नीचे हो रहे थे…!उसके मदमस्त युएवं को यौन छलकते देख कर लोगों की नज़रें उस पर जैम गयी.. कुछ देर में ही वो उसके अत्यंत नजदीक पहुँच गयी और पीछे से उनसे पुकारा - शंकर… रुको…!प्रिय की आवाज कानों में पड़ते ही वो वहीँ रुक गया मुड़कर पीछे देखा तो वो उसके पीछे दौड़ी चली आ रही थी शंकर की नज़र उसकी हिलती हुयी चूचियों पर जैम गयी…!वो उसके सामने जाकर अपने घुटनों पर हाथ रख कर झुक गयी और लम्बी-लम्बी सांसें भरने लगी…झुकने से उसके गोल-गोल दूधिया उभर कुर्ते के चौड़े गले से काफी अंदर तक अपनी भौगौलिक स्थिति को दर्शाने लगे… उसकी एकदम गोल-गोल मोती और गोरी-चिट्टी चूचियों की छटा देखकर शंकर का लुंड अपना सर उठाने लगा उसने उससे पूछा –क्या हुआ दीदी इस तरह से भागते हुए क्यों आ रही हो..? प्रिय ने ऐसे ही झुके हुए ही अपना मुँह शंकर की तरफ उठाया उसे अपने उभारों को ताकते हुए देख कर वो अंदर तक सिहर गयी उसकी नज़रों का स्पर्श पाकर उसके निप्पल कड़क हो उठे…!उसने मन ही मन मुस्कराते हुए कहा - में तुम्हें ही ढून्ढ रही थी कहाँ जा रहे हो…?शंकर - क्यों - कोई काम था मुझसे…?वो सीढ़ी कड़ी हुयी और हलकी सी मुस्कान के साथ उसने उसका हाथ पकड़ा और बोली - चलो मेरे साथ तुमसे मुझे कुछ बात करनी है मेरी जान बचने के बाद तो तुम दिखे ही नहीं…!वो उसके पीछे-पीछे वापस हवेली के अंदर चल दिया…!प्रिय उसकी हवेली के अंदर ले जाने की वजाये अपनी तीन मंजिला हवेली की छत पर ले गयी जहां एक लम्बा-चौड़ा तखत पड़ा हुआ था उसने उसे उसपर बिठाया और खुद उसके बगल में बैठ गयी…!अभी भी उसकी सांसें फूली हुयी थी जिससे उसके वक्ष अभी भी ऊपर नीचे हो रहे थे…!शंकर ने उसके सुर्ख पद चुके चेहरे पर नज़र जमकर कहा - हाँ दीदी बोलिये क्या बातें करनी थी आपको मुझसे…? प्रिय ने बड़े प्यार से शंकर का हाथ अपने हाथ में लिया और उसे दूसरे हाथ से सहलाते हुए बोली - तुमने मेरी जान बचाकर बहुत बड़ा एहसान किया है शंकर में आज तक दूसरे नौकरण की तरह तुम्हें और तुम्हारी माँ को बुरा भला बोलती रहती थी इसके बाबजूद भी तुमने अपनी जान जोखिम में डालकर मुझे बचाया…उसके लिए में तुम्हें थैंक्स भी नहीं कह पायी हो सके तो मेरी गलतियों के लिए मुझे माफ़ कर देना मेरे भाई ये कहकर उसने अपना सर उसके कंधे से टिका लिया !शंकर तो बस मूकदर्शक बना उसके सूंदर गोल-मटोल चहरे को ही निहारे जा रहा था उसकी बात सुनकर उसने अपना दूसरा हाथ उसके हाथों पर रखा और शालीनता भरे स्वर में बोलै –ये तो मेरा फ़र्ज़ था दीदी और आपकी वो दांत-डपट एक मालकिन की थी अपने नौकर के लिए इसमें आपको माफ़ी मांगने की कोई जरुरत नहीं है…!आप सच मानो मेने आपकी बात का कभी बुरा नहीं मन क्योंकि में अपनी हैसियत से बेफ़िक हूँ…!प्रिय उसके और नजदीक खिसक गयी अब दोनों की जांघें आपस में जुड़ चुकी थी फिर उसने झिझकते हुए शंकर के गाल पर एक किश कर लिया और खुद ही शर्म से नज़रें नीची करके बोली - आज मेरी नज़रों में तुम्हारी हैसियत बहुत बढ़ गयी है शंकर बहुत उऊंचा कद हो गया है तुम्हारा.. हो सके तो मेरी पुराणी गलतियों को भूलकर मुझे माफ़ कर देना…!अपने गाल पर प्रिय के सुर्ख होठों का स्पर्श पाकर शंकर का शरीर अंदर तक जहां-झना गया वो उसके चेहरे पर अपनी नज़रें जमाये बोलै –प्लीज दीदी अब आप यौन बार-बार मुझसे माफ़ी मत मांगिये मेरे दिल में आपके लिए कभी कोई दुष्विचार नहीं थे…!ये कहकर शंकर अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ और बोलै - आप अपना ख्याल रखिये में चलता हूँ…!प्रिय ने उसका हाथ पकड़ लिया शंकर ने पलट कर उसकी तरफ देखा वो भी उसके सामने अपनी नज़रें झुकाये कड़ी थी अपनी तेज-तेज चलती साँसों पर काबू पाने की कोशिश करते हुए बोली - कल में अपने घर जा रही हूँ क्या तुम मेरे यहां घूमने आओगे…?मालिक की आज्ञा मिल गयी तो जरूर आऊंगा.. ये कहकर वो वहाँ से चला गया पीछे प्रिय उसे जाते हुए देखती रही…! वो उसकी मर्दानगी पर मर मिटी थी 

दूसरे दिन प्रिय अपने घर के लिए विदा हो गयी सुप्रिया ने कुछ दिन रहने का फैसला लिया और उसने अपनी बहिन के साथ जाने से मन कर दिया…!उन दोनों की ससुराल एक ही शहर में हैं दोनों के घर भी एक दूसरे से ज्यादा दुरी पर नहीं है प्रिय अपनी खुद की गाडी से आयी थी ड्राइवर के साथ और सुप्रिया भी उसी के साथ आयी थी…जाने से पहले प्रिय ने अपने पिताजी से कहा - पिताजी सुप्रिया को अकेला मत भेजना शंकर उसे छोड़ने चला जाएगा इसी बहाने मेरा घर भी देख लेगा क्योंकि वो अब इतना जिम्मेदार हो गया है की सबका ख्याल रख सके तो उसका आना-जाना भी लगा ही रहेगा…!लाला जी को अपनी बेटी की बात जांची उन्हें शंकर की क्षमताओं पर अटूट विश्वास होता जा रहा था… वहीँ अपने सेज बेटे कल्लू पर से उठता जा रहा था…!कल्लू की हरकतों से दिनों-दिन वो खीजते जा रहे थे अब उन्हें सुषमा का फैसला सही लगने लगा था और दिल से वो सुषमा को ये जिम्मेदारी सौंपने को तैयार हो गए…!उन्होंने वकील को बुलाकर सारे दस्तावेज पर सिग्न करके अपनी साड़ी मिलकियत की मालिक सुषमा को बना दिया और खुदने उसके रख राखब का जिम्मा जैसे पहले था ज्यों का त्यों ही रहने दिया…!वसीयत में ये भी लिखा गया की अगर भविष्य में कल्लू से कोई और संतान किसी भी पत्नी से पैदा होती है तो वो उनकी मिलकियत की हिस्सेदार होगी…!सुषमा के साड़ी मिलकियत की मालिक बन’ने से रंगीली ने अपना पहला डौन चल दिया था…!अब सुषमा के साथ-साथ सुप्रिया भी शंकर के लुंड की गुलाम बन चुकी थी दोनों भाभी ननद मौका लगते ही उसके लुंड का स्वाद लेने से नहीं चुकती थी.. एक रात सुप्रिया को नींद नहीं आ रही थी वो उठकर थोड़ा टहलने के लिए अपने कमरे से बहार आयी…!उसका कमरा भी सुषमा वाले पोरशन में ही था गैलरी से गुजरते हुए वो खुले चौक में आ रही थी…!जैसे ही वो सुषमा के बैडरूम के पास से गुजारी तो उसे अपनी भाभी के कमरे से मादक सिसकियों की आवाजें सुनाई दी…!उसने सोचा भाभी-भैया दोनों चुदाई कर रहे होंगे.. कौतुहल वस् वो वहीँ खड़े होकर उनकी चुदाई की बातें सुनाने लगी…तभी उसके कान में सुषमा की मादक कराह सुनाई दी.. आअह्ह्ह्ह…शंकर मेरे राजा… धीरे एक साथ मत डाला करो.. वार्ना तुम्हारे बच्चे को चोट लग जायेगी..ये शब्द सुनकर सुप्रिया के कान खड़े हो गए और उसके मन में उनकी चुदाई को देखने की इच्छा होने लगी…!वो साइड से उनकी खिड़की पर कान लगाकर सुनाने की कोशिश में कड़ी हो गयी उसकी कनपटी के दबाब से खिड़की का एक पैट जो पहले से ही केवल ढलका हुआ था हल्का सा खुल गया और उसमें देखने लायक जगह बन गयी…!सुप्रिया के मन की मुराद पूरी हो गयी और अपनी आँखें उसने उस जगह जमा दी…!कमरे में शंकर और उसकी भाभी दोनों निवस्त्र अवस्था में चुदाई में लीं थे उसकी भाभी को घोड़ी बनाकर पीछे से धक्के मारते हुए उसकी चूचियों को बुरी तरह मसलता जा रहा था…! 

सुषमा की सिसकियों ने कमरे का वातावरण गरम कर रखा था… ये देख कर सुप्रिया की चुत  में सुर-सुरहट होने लगी…!वो अपने नाईट सूट के पाजामे के ऊपर से ही अपनी चुत  को सहलाने लगी…!आह्ह्ह्ह…शंकर मेरे राजकुमार… में तो गयी…आह्हः…बस करो… आयईईई…थोड़ा सा तो रुकू मेरे राजा… सुषमा उससे मन्नत सी करते हुए बोली..शंकर ने न चाहते हुए अपना सोते जैसा लुंड उसकी चुत  से बहार निकल लिया…पूरा खड़ा किसी मोठे खूंटे जैसा सुषमा के काम रास से भीगा हुआ लुंड देख कर सुप्रिया की चुत  खड़े खड़े ही टपकने लगी.. वो मन ही मन बुदबुदायी…!सच में कितना मस्त लुंड है शंकर का इसका मतलब भाभी का गर्भ भी शंकर के लुंड से ही है.. ये सोचकर उसका शरीर उत्तेजना से भर उठा वो मैं ही मैं मुस्करा उठी अपने आप में ही बुदबुदाते हुए बोली - आअह्ह्ह…भाभी जल्दी ही में भी तुम्हारी तरह अपने शंकर के बच्चे की माँ बनूँगी…ूउम्म्म…ये कहकर उसने पाजामे की इलास्टिक में हाथ डालकर अपनी चुत  को अपनी उंगली से कुरेद दिया…! तभी शंकर सुषमा को लिटाकर उसकी चुत  चाटने लगा थोड़ी सी देर में ही उसकी सिसकियाँ कमरे में फिर से गूंजने लगी.. वो शंकर के ऊपर बैठकर कूद रही थी.. शंकर के नीचे से ही धक्कों की स्पीड देख कर सुपरया की सांसें चढ़ गयी वो अपनी आँखें फाड़े शंकर की चुदाई में खो गयी…!आखिरकार शंकर ने भी अपने वीर्य से सुषमा की ओखली को भर दिया और उसे अपने सीने से चिपका लिया…! सुषमा उसकी चौड़ी छाती से चिपक कर किसी बच्ची की तरह उसके ऊपर लेती अपनी साँसों को इकठ्ठा करती रही…!सुप्रिया को उसका बलिष्ठ शरीर किसी देव-पुरुष जैसा लग रहा था वो इतनी ज्यादा उत्तेजित हो चुकी थी की अगर उसे इसी समय शंकर का लुंड नहीं मिला तो वो पागल हो जायेगी…!उसने मन ही मन कुछ फैसला लिया और सुषमा के दरवाजे पर जाकर हलके से दस्तक दी…!अपनी चुदाई की खुमारी में तृप्त दो बदन दरवाजे पर दस्तक सुनकर चौंक पड़े शुष्मा ने शंकर को चादर ओढ़ने के लिए बोलै और खुद एक गौण पहन कर दरवाजे की तरफ बढ़ी…!वो सोच रही थी इस तरह की दस्तक तो रंगीली काकी ही देती हैं वो इस वक़्त यहां आएँगी नहीं तो फिर कोण हो सकता है..? ये सोचते-सोचते उसने दवाजा खोल दिया…!सामने अपनी छोटी ननद को देख कर वो एकदम से चौंक पड़ी और उसकी तरफ प्रश्नवाचक नज़रों से देखते हुए बोली - अरे सुप्रिया तुम..? इस वक़्त यहां कैसे..? कोई काम था..?सुप्रिया मुस्कराते हुए बोली - अरे..अरे..भाभी इतने सारे सवाल वो भी एक साथ अंदर तो चलो बताती हूँ पर लगता है मेने आपको गलत टाइम पर डिस्टर्ब कर दिया है क्यों..?सुषमा झेंपते हुए.. नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है वो में वो तुम्हें इतनी रात गए यहां देखा तो पूछा…सुप्रिया कमरे के अंदर घुसने लगी ये देख कर सुषमा की हालत ख़राब होने लगी वो उसके आगे कड़ी होते हुए बोली - अरे कोई काम हो तो सुबह बता देना अभी मुझे बहुत जोरों की नींद आ रही है… 

ये कहकर उसने जानबूझकर एक लम्बी सी जम्हाई लेते हुए अंगड़ाई ली…!सुप्रिया उसके बगल से निकल कर पलंग की तरफ बढ़ते हुए बोली - अरे भाभी , मुझे नींद नहीं आ रही थी कमरे से कुछ आवाज सुनाई दी सोचा थोड़ा बहुत आपके साथ बैठकर टाइम पास कर लून लेकिन आप तो लगता है मेरे आने से आप खुश नहीं हो मुझे अंदर ही आने नहीं दे रही…!सुषमा ने पलटकर उसकी बाजु थम ली और बोली - सच में मुझे बहुत जोरों की नींद आरही है ननद रानी और कोई वजह नहीं है अब जाओ प्लीज…!सुप्रिया ने उसके कान में फुसफुसाकर कर कहा - आप चिंता मत करो भाभी में किसी को कुछ बताने वाली नहीं हूँ…!उसकी बात सुनकर सुषमा को बड़ा जोर का झटका लगा वो चौंकते हुए बोली - तुम कहना क्या चाहती हो..? किसी को क्या बताने वाली नहीं हो..?सुप्रिया अपनी मुस्कान को बरक़रार रखते हुए बोली - वही जो कुछ देर पहले आपके कमरे में हो रहा था…!हम दोनों एक ही किस्ती में सवार हैं भाभी बस फरक इतना है की आप जो चाहती थी वो मिल गया है में अभी वो पाने की कोशिश कर रही हूँ…!सुषमा मुँह बाए उसी को देख रही थी सुप्रिया ने आगे कहा - अब यहीं खड़े होकर किसी और के आने का इंतज़ार मत करो जल्दी से गेट बंद कार्डो मुझे पता है पलंग पर चादर के नीचे शंकर है…ये कहकर वो उस खिड़की को अच्छे से बंद करते हुए बोली - इस खिड़की का भी ध्यान रखा करो किसी दिन आपका भन्दा फोड़ देगी…!सुषमा चूतियों सा मुँह फाड़े गेट बंद करने लगी इतने में सुप्रिया खिड़की लॉक करके पलंग पर जा बैठी और उसने चादर हटाकर शंकर को नंगा कर दिया…!फिर उसकी चौड़ी छाती को चूमते हुए बोली - कितना मज़ा देते हो तुम बहभी की चुदाई देख कर मुझसे रहा नहीं गया आना ही पड़ा वार्ना में आज रात सो ही नहीं पाती…!ये कहकर वो दोनों एक दूसरे के होठ चूसने लगे सुषमा अभी भी कुछ न समझ पाने की स्थिति में पलंग के नीचे ही कड़ी थी…!शंकर ने बाजु से पकड़ कर उसे भी पलंग पर खींच लिया सुप्रिया ने उसका गौण निकाल फेंका और वो शंकर को छोड़कर उसके होठों पर टूट पड़ी…!सुषमा की झिझक देख कर वो बोली - बातें बाद में करेंगे भाभी पहले मज़े करने दो क्यों मेरे राजा जी… शंकर ने उसकी नाईट सूट के टॉप को उतारकर उसकी चूचियों को मसलते हुए कहा - एकदम सही मेरी मेरी जान पहले मज़े लो बातें बाद में…फिर क्या था सुषमा भी उन दोनों के साथ फिरसे शामिल हो गयी और वो तीनों एक साथ मिलकर एक ही पलंग पर खत कबड्डी खेलने में जुट गए….!आज बेचारे पलंग की तो सामत ही आगयी साड़ी रात धक्कों की माचक झेलते-झेलते उसके सारे अंजार-पंजर ढीले पद गए… गनीमत रही की वो धराशायी नहीं हुआ बस….!शंकर कभी सुप्रिया की सवारी करता तो कभी सुषमा की दोनों घोड़ियाँ भी रात भर उसके मुसल जैसे लुंड की सवारी से हिन्-हिनति रही…! 

शंकर उन दोनों को जमकर छोड़-चढ़कर ४ बजे के करीब अपने घर चला गया तब सुषमा ने अपनी ननद से पूछा-ननद रानी अब बोलो तुम्हारा कबसे शंकर के साथ चक्कर चल रहा है..?सुप्रिया - बस भाभी जिस दिन उसने प्रिय दीदी की जान बचायी थी… फिर वो उसे साड़ी बातें डिटेल में बताती चली गयी और ये भी की वो क्यों उसने शंकर से सम्बन्ध बनाये है..शुष्मा के बच्चे का राज तो सुप्रिया के लिए अब राज नहीं रहा था सो उसने कहा - भाभी मेरी तो मजबूरी ये है की मेरा पति गांडू है उसे अपनी गांड की खुजली मिटाने को ही किसी का लुंड चाहिए…लेकिन आपके सामने कोनसी मज़बूरी है जो आपने शंकर का अंश अपने पेट में पाल रखा है…!सुषमा ने बड़ी गहरी नज़रों से उसे घूरा और बोली - क्या बता सकती हो तुम्हारे भैया का दुसरना ब्याह क्यों हुआ था…?सुप्रिया - हाँ - ताकि इस घर को वारिस मिल सके…!सुषमा - फिर भी क्यों नहीं मिला तुम्हारी छोटी भाभी अभी तक प्रेग्नेंट क्यों नहीं हुयी और में ही दोबारा कैसे माँ बन गयी जबकि में तो इस काबिल थी ही नहीं..सुप्रिया - आपका कहने का मतलब कल्लू बहिया….???सुषमा - तुम ठीक समझी तुम्हारे कल्लू भैया भी अब नपुंसक हो चुके हैं अपनी गलत आदतों की वजह से.. वो तो शुरुआत में ही न जाने कैसे गौरी मेरे पेट में आ गयी… वार्ना वो भी नहीं हो पाती अगर कुछ दिन और लेट करते तो.…!सुप्रिया - सच में भाभी हम दोनों एक ही नाव में सवार हैं भला हो शंकर का जो निस्वार्थ हमारी इच्छाओं का मान करते हुए अपने जीवन को दाव पर लगा रहा है…सुप्रिया - उस दिन से जब उसने सांड को पटखनी दी थी उसके ठीक पहले हम दोनों गन्ने के खेत में ही थे तभी मेने उसे अपने मैं की बात कही थी…फिर जब में उसके हाल-चाल जानने गयी तो रंगीली काकी ने हम दोनों को अकेला छोड़ दिया और खुद सलौनी को लेकर वहाँ से चली गयी… एक तरह से रंगीली काकी ने ही हमारा मिलान कराया..वैसे भाभी में उसे बचपन से ही चाहती हूँ लेकिन काम उम्र होने की वजह से मेरी शादी  से पहले बस में उसे दिल ही दिल में पसंद करती थी…सुषमा - सच में रंगीली काकी हम दोनों के लिए देवी स्वरूपा हैं उनका बीटा तो हीरा है हीरा अपनी माँ की इच्छा के विरुद्ध कोई काम नहीं करता…! 

सुप्रिया - सच कह रही हो भाभी वो दोनों माँ-बेटे ही हमारे लिए वरदान स्वरुप हैं वार्ना न जाने इस जीवन में में कभी नारी सुख भी ले पाती या नहीं…!सुषमा - वैसे तुम्हें क्या उम्मीद लगती है अपने गर्भ को लेकर..?सुप्रिया - शायद आ भी गया हो क्योंकि यहां आने से एक हफ्ते पहले ही मेरे पीरियड्स ख़तम हुए थे.. अब तो वो डेट भी आ गयी है शायद कल या परसों की है…अगर पीरियड्स नहीं आये तो समझो मेरा भी बेडा पार हो ही जाएगा आपकी तरह…!सुषमा ने उसके बाजु पकड़ कर उसे अपने सीने से लिप्त लिया और रुंधे स्वर में बोली - ईश्वर करे तुम्हारी गोद भी जल्दी भर जाए… काम से काम जीवन काटने के लिए कुछ तो सहारा हो…!लेकिन ननद रानी जैसे ही ये बात कन्फर्म हो जाए फ़ौरन यहां से रवानगी दाल देना जिससे तुम्हारे घर वालों को कोई शक सूबा न हो…!सुप्रिया - में भी यही सोच रही थी दो दिन में अगर नहीं आया तो में शंकर को लेकर चली जाउंगी…!सुषमा ने गहरी नज़र से उसको घूरते हुए कहा - शंकर को क्यों..? उसको हमेशा के लिए साथ रखने का इरादा है क्या…? ये कहकर मुस्कराते हुए उसने उसको चिकोटी काट ली…सुप्रिया खिल-खिलते हुए बोली - अरे नहीं भाभी वो प्रिय दीदी पिताजी से बोलकर गयी है की मेरे साथ शंकर को भेज देना वो उसके घर भी घूम आएगा..!सुषमा मुस्कराते हुए बोली - लगता है बड़ी ननद रानी की चुत  भी गीली हो गयी होगी हमारे गबरू शेर को देख कर.. इस बात पर वो दोनों खिल-खिलाकर कर हसने लगी…फिर सुप्रिया भी अपने कमरे में आगयी उस दिन वो दोनों ही दोपहर तक सोती रही !उसी दिन दोपहर का काम ख़तम करके रंगीली अपने घर में लेती हुयी थी सलौनी अभी स्कूल से नहीं आयी थी शंकर और रामु खेतों पर ही थे…तभी लाजो वहाँ आ धमकी रंगीली ने वाकायदा आदर के साथ उसे बिठाया…लाजो सकुचाती हुयी उससे बोली - काकी आपके कहने से मेने पिताजी से भी अपने नाजायज सम्बन्ध बना लिए लेकिन दो साल के बाद भी कोई फायदा नहीं हुआ.. रंगीली ने मन ही मन मुस्कराते हुए कहा - हो सकता है उनकी अब उम्र हो गयी है तो शायद अब वो आपको बच्चा देने में असमर्थ होंगे… आपने कल्लू भैया के साथ सोना बंद कर दिया है क्या..?लाजो - नहीं तो में तो अब ज्यादातर उनके साथ ही सोती हूँ लेकिन उनसे भी कुछ नहीं हो पा रहा.. वो तो अब भी मुझे अधूरा ही छोड़ देते हैं…! 

रंगीली - फिर बड़ी बहु उम्मीद से कैसे हो गयी…?लाजो - यही तो मेरी समझ में नहीं आ रहा है…?रंगीली - बुरा न मानो तो एक बात कहूं छोटी बहु..! मुझे लगता है तुम कुछ ज्यादा ही गरम औरत हो जल्दी से तुम्हारा राज नहीं चुत ता होगा और जबतक चुत ’ता होगा तब तक पुरुष के कीड़े ख़तम हो जाते होंगे…!लाजो - क्या ऐसा भी होता है..? रंगीली - अब मेने तो अपने गाओं में बड़ी-बुड़ियों से यही सुना था…!लाजो - एक बार शंकर भैया के साथ कोशिश करके देखूं तो…?रंगीली ने थोड़ा तल्ख़ लहजे में कहा - देखो छोटी बहु हम नौकर हैं तो इसका मतलब ये नहीं है की तुम्हारी कोई भी जायज-नाजायज बात मान लेंगे…! में पहले भी कह चुकी हूँ मेरे बेटे से अलग ही रहो वो नादाँ है अच्छे-बुरे की पहचान नहीं है उसे में अपने बेटे को किसी मुशीबत में नहीं दाल सकती…!मेरे जीवन का एकमात्र सहारा है मेरा बीटा में उसे खोना नहीं चाहती मालिक को या किसी को भनक भी लग गयी तो वो उसको सूली पर लटका देंगे.. लाजो मायूस होकर बोली - तो फिर में क्या करूँ..?रंगीली - किसी जानकार को दिखा क्यों नहीं लेती शायद कोई उपचार हो इसका..?लाजो - आप जानती हैं किसी को…?रंगीली - पता लगा सकती हूँ कई औरत होती हैं जो इन बातों की जानकारी होती है उन्हें.. लाजो - तो आप जल्दी से पता करके बताइये न काकी मेरी भी गोद सुनी न रहे…!रंगीली - भगवन करे आपको भी एक चाँद सा बीटा हो मेरी तो यही इच्छा है..!उसको सांत्वना देकर रंगीली ने उसे विदा किया जब वो चली गयी तो पीछे से उसके चेहरे पर एक ऐसी मुस्कान आगयी जिसका मतलब निकलना हर किसी के बस की बात नहीं थी…..!दो दिन तक भी सुप्रिया को पीरियड्स नहीं आये सो उसने अपने माता-पिता को अपने लौटने के बारे में कहा - लालजी ने शंकर को बुलाकर अपनी बेटी के साथ जाने के लिए कहा जो उसने अपनी माँ के ऊपर छोड़ दिया…!रंगीली को इसमें भला क्या एतराज हो सकता था उसे तो अपने बेटे को हर तरह से दुनियादारी सीखनी थी कहीं आएगा-जाएगा तो कुछ नया जानने को ही मिलेगा सो उसने सहर्ष अपनी स्वीकृति दे दी…तीसरे दिन हसी-ख़ुशी वो शंकर को लेकर अपनी ससुराल के लिए निकल पड़ी… जहां देखते हैं क्या-क्या धमाल मचाने वाला है अपना बब्बर शेर….! - रंगीली का शंकर - 

घर से स्टेशन तक लालजी की बग्घी ने पहुंचा दिया वहाँ से लोकल ट्रैन से जाना था ७०-८० कम की दुरी ये ट्रैन घूम फिरकर ४-५ घंटे लगाती थी…ट्रैन में ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी नौकरों की मदद से सब सामान अच्छे से एक खली से कूपे में रखवा दिया और वो दोनों प्रेमी एक खली सीट पर बैठ गए…!गाडी के चलते ही सुप्रिया शंकर के सीने पर अपना सर टिका कर बैठ गयी.. वो उसके चौड़े कसरती सीने को चूमकर उसे सहलाते हुए बोली –थैंक यू शंकर अपना पहला वादा पूरा करने के लिए…शंकर ने प्रश्नवाचक निगाहों से उसकी तरफ देखा तो वो बोली - में तुम्हारे बच्चे की माँ बनाने वाली हूँ भाभी के बाद मुझे अपना प्यार देकर तुमने दो जिंदगियों को बर्बाद होने से बचा लिया में तुम्हारा ये एहसान कभी नहीं उतर पाउंगी मेरे प्यारे…कूपे के उस भाग में उन दोनों के अलावा और कोई भी नहीं था सो बिंदास शंकर ने उसे उठाकर अपनी गोद में बिठा लिया और उसके होठों को चूमते हुए बोलै - एहसान चुकवणे के लिए नहीं किये जाते मेरी जान दिल की आवाज सुनकर किये गए फैसले निस्वार्थ होते हैं मेने तुम्हारे ऊपर कोई एहसान नहीं किया है तुम इसकी हक़दार थी…!किसी का हक़ मारने वाला में कोण होता हूँ.. फिर तुम तो मेरे बचपन की यादों की अमित कहानी हो जिसे में कभी भुला नहीं सकता…!सुप्रिया - सच - क्या तुम भी मुझे चाहते थे बचपन में…?शंकर - पता नहीं वो क्या था - चाहत थी या प्यार लेकिन जबसे में थोड़ा बहुत संबंधों को समझने लगा अपनी माँ और बहिन के अलावा कोई मुझे अपना सा लगता था तो वो तुम थी…!फिर वो अपनापन बढ़ता गया और मुझे तुम्हें हर हाल में देखते रहने की लालसा होने लगी जब तुम शादी  होकर विदा हुयी तो में बहुत उदास हो गया लगा जैसे मेरे अंदर से कोई चीज़ मुझसे दूर चली गयी हो मेरी ये हालत बहुत दिनों तक रही जिसे शायद मेरी माँ ने समझ लिया था फिर समय के साथ साथ यादें धूमिल होती गयी…!लेकिन जैसे ही उस दिन तुम हवेली में आयीं न जाने क्यों मेरे दिल की धड़कनें बढ़ गयी चोर निगाहों से मेने तुम्हें देखने की कोशिश की जैसे ही तुमसे नज़र मिली मुझे ऐसा लगा की मेरा दिल उछाल कर मेरे हाथ में आगया हो… तुम्हारी मुस्कान देख कर मुझे बहुत सकूँ मिला…! 

सुप्रिया किसी पत्थर की मूरत बानी शंकर की बातों में खो गयी थी उसकी बात ख़तम होते ही वो उसके बदन से लिपट कर सुबकने लगी.. ये उम्र समाज ोोंच-नीच के बंधन क्यों होते हैं शंकर…? अब हम कभी जुड़ा नहीं होंगे में तुम्हें अब वापस नहीं आने दूँगी अपने घर से ढेर सारा पैसा लेकर हम कहीं दूर चले जायेगे जहां हम तीनों के अलावा और कोई हमें रोकने - टोकने वाला न हो…!शंकर ने उसकी थोड़ी के नीचे हाथ लगाकर उसके चहरे को ऊपर किया और उसकी आँखों में झांकते हुए बोलै - तुम्हारा प्यार इतना स्वारथी कैसे हो सकता है मेरी जान..? जानती हो उसके बाद क्या होगा…?तुम्हारा पति जिल्लत की वजह से मौत को अपने गले लगा लेगा मालिक मेरे परिवार को मिटटी में मिला देंगे…!तो फिर में क्या करूँ मेरे राजा.. में अब तुम्हारे बिना नहीं रह पाउंगी तुम्हारी जुदाई नहीं सह पाउंगी में…!शंकर - मेने तुम्हें वादा किया है जब भी मेरी जरुरत पड़े हाज़िर हो जाऊँगा... अब अपनों की भलाई के लिए इतना बलिदान तो करना ही पड़ेगा जान..!ओह्ह्ह…शंकर..! तुम सबके बारे में कितना सोचते हो ये कहकर वो उसके होठों को चूसने लगी शंकर भी उसका साथ देने लगा…!दोनों के शरीर गरम होने लगे लेकिन इससे ज्यादा लोकल ट्रैन के कूपे में कुछ नहीं हो सकता था…!कहते हैं आदमी की अच्छाई या बुराई हमेशा उसके चार कदम आगे चलती है सुप्रिया की ससुराल में उनके पहुँचने से पहले ही ये बात पहुँच गयी की कैसे हवेली के एक नौकर ने प्रिय की जान एक सांड से अकेले टक्कर लेकर बचायी…!जब प्रिय को पता चला की आज शंकर उसकी छोटी बहिन को साथ लेकर आरहा है तो वो उसके पुरे परिवार के साथ उसके घर पहुँच गयी…!सुप्रिया की ससुराल में दोनों परिवारों ने शंकर का भव्य स्वागत किया.. वो बेचारा गाओं का नादाँ छोरा जो आज भी एक कड़ी की कमीज और ढीले-वाले से पंत में गले में लाल रंग की स्वाफी (कॉटन तौलिया) डेल उसके घर की भव्यता देख कर भौचक्का रह गया…!ये तो उसके घर के बहार के लॉन और उसकी पोर्च/ पार्किंग ही थी जहां उसका फूल मालाओं से स्वागत किया जा रहा था प्रिय और उसके पति ने खुद आगे आकर उसको माला पहनकर स्वागत किया…!फिर जैसे ही उसने उसके घर के अंदर कदम रखा वो एक विशालकाय हॉल की भव्यता को देख कर पलकें झपकना ही भूल गया 

गेट खुलते ही श्याम बोलै - बहुत गहरी नींद में सोते हो शंकर कबसे बेल्ल बजा रहे हैं हम लोग…!शंकर ने अनजान बनते हुए कहा - ये बैल यहां कहाँ से आगये दीदी वो तो खेतों में हल खींचते हैं नाके लिए होते हैं बजने के लिए तो नहीं सुना….!सुप्रिया ने हस्ते हुए कहा - अरे बुद्धू वो तुमने चिड़ियों की आवाज सुनी थी…?शंकर - हाँ उसी आवाज से तो उठा हूँ सुप्रिया - ये इस कमरे की बेल्ल मने घंटी पढ़ा नहीं क्या.. वो ऐसे बजती है देखो.. ये कहकर उसने गेट के बाजू में लगे बिजली के स्विच को दबा कर बेल्ल बाजई कमरे में कहीं चियाँ सी चहकी तब जाकर शंकर को समझ आया की इस आवाज को सुनकर उसकी नींद खुली है…!शंकर - तो सुवह हो गयी क्या…?श्याम - सुवह..? अरे भाई अभी ११:३० हुए हैं हम लोगों के सोने का टाइम अब हुआ है और तुम सुवह होने की बात कर रहे हो शंकर - तो इतनी रात गए आप लोगों ने मुझे क्यों जगाया…?सुप्रिया - श्याम को तुमसे कुछ बात करनी थी आओ हमारे साथ…शंकर - कहाँ..? उसने कहा - हमारे कमरे में आओ तो सही…!वो उनके पीछे पीछे उनके कमरे में आगया…कमरे में घुसते ही उसकी आँखें फटी रह गयी…क्या कमरा था खूब लम्बा चौड़ा साड़ी सुख सुबिधाओं से युक्त किसी ५ स्टार होटल का सुईठे जैसा (ये रीडर्स के लिए शंकर को नहीं पता ५ स्टार का सुईठे क्या होता है..)कमरे में एक बहुत बड़ा सा पलंग साइड में एक मिनी सोफे सेण्टर टेबल सब कुछ था जो एक कपल को चाहिए…!श्याम उसे लेकर सोफे पर बैठ गया.. और उसके हाथ को अपने हाथ में लेकर सहलाते हुए बोलै…!थैंक यू शंकर तुमने सुप्रिया को अपना प्यार देकर हम पर बहुत बड़ा एहसान किया है उसने मुझे सब कुछ बता दिया है उसे माँ बनाकर तो तुमने हमें बिन मोल खरीद लिया…!शंकर श्याम के मुँह को तकते ही रह गया वो सोच रहा था की ये शायद दुनिया का पहला पति है जो अपनी पत्नी को दूसरे से छुड़वाकर उसका एहसान मान रहा है उसके बच्चे को पाकर खुद को धन्य समझ रहा है…!श्याम उसको सोच में डूबा देख कर बोलै - में जानता हूँ तुम क्या सोच रहे हो लेकिन सच मानो दोस्त तुमने मेरे लिए ये बहुत बड़ा काम किया है मेरा जीवन बचा लिया तुमने…!मुझे तुम दोनों के इस रिश्ते से बहुत ख़ुशी हुयी है क्योंकि में इसे एक पति का सुख देने के लायक ही नहीं हूँ ऐसे में इस बेचारी पर जुल्म क्यों किया जाए इसलिए ये अपनी मर्जी की मालिक है और इसके हर फैसले में में इसके साथ हूँ…अब में कल ही अपने मम्मी पापा को इस बच्चे के बारे में खुश खबरि सुनाता हूँ वो तो ख़ुशी से झूम ही उठेंगे…! 

श्याम की बात सुनकर सुप्रिया झुंझला उठी और खीजते हुए बोली - तुम हर बात अपनी गांड के हिसाब से ही सोचते हो क्या..?श्याम ने उसकी तरफ आश्चर्य से देखा वो आगे बोली - अरे छोड़ू राम जरा सोचो अभी मुझे आये हुए एक रात भी नहीं हुयी और तुम उन्हें कल ही ये बात बताओगे तो वो लोग क्या सोचेंगे..?जिस बात को पता लगने में काम से काम १ से १.५ महीना लगता है वो १ रात में कोण मान लेगा…!सुप्रिया की बात समझ में आते ही श्याम झेंपते हुए बोलै - ओह्ह.. सॉरी बेबी तुम सही कहती हो सच में मेरे अंदर इन सब बातों को समझने लायक दिमाग ही नहीं है…!वो आगे बोलै - खैर अब मेरी एक रिक्वेस्ट और पूरी कार्डो शंकर… तुम एक बार मेरे सामने सुप्रिया के साथ सेक्स करो में देखना चाहता हूँ तुम इसको कैसे छोड़ड़ते हो…!शंकर उसकी ये बात सुनकर बुरी तरह चौंक गया.. जब उसने बहुत देर तक कोई रिस्पांस नहीं दिया तो शयाम ने उसका हाथ पकड़कर उसे पलंग पर ले आया जहां सुप्रिया एक मिनी गौण में अपने घुटने मोड़कर बैठी थी…!शंकर को पलंग पर बिठाकर वो खुद सोफे पर आकर बैठ गया सुप्रिया ने पहल करते हुए वो शंकर की गोद में आकर बैठ गयी…क्योंकि वो जानती थी की शंकर कितना ही दिलेर और ताक़तवर सही इतना बेगैरत नहीं है की एक औरत को उसी के पति की आँखों के सामने छोड़ दे…!उसकी गोद में बैठकर अपनी बाहें उसके गले में दाल दी और उसके होठों को चूमकर बोली - श्याम की इच्छा पूरी करो शंकर शंकर - लेकिन दीदी में इनके सामने आपके साथ...कैसे……!सुप्रिया ने फिरसे अपने होठ उसके मुँह से चिपका कर बोलने से रोक दिया चूमने के बाद बोली - अब दीदी कहना बंद करो डार्लिंग तुम मेरी जान हो ये कहकर उसने अपना गौण उतर कर फेंक दिया…अब वो मात्रा अपनी टाइनी सी ब्रा और पंतय में ही थी पंतय जो पीछे से एक डोरी सी उसकी गांड की दरार में फांसी हुयी थी आगे से चुत  को ढकने वाली जगह भी जालीदार थी…!उसने शंकर की कमीज को भी निकल दिया और अपने बदन को उसके शरीर के साथ रगड़ते हुए उसे उकसाते हुए बोली - के ों राजा.. दिखा दो अपने लुंड की ताक़त मेरे गांडू पति को…!इतना ही नहीं उसने उसे धक्का देकर पलंग पर लिटा दिया और उसके पाजामे को भी उसके बदन से अलग करके उसके अंडरवियर के ऊपर से ही उसके आधे खड़े लुंड को मसलने लगी…अभी तक शंकर ने अपनी तरफ से कोई पहल नहीं की वो बस सुप्रिया की हरकतों को देखे जा रहा था…! 

सुप्रिया उसके ऊपर लेट गयी अपनी छोटी-छोटी चूचियों को ब्रा के ऊपर से ही शंकर की कठोर छाती से रगड़ाती हुयी उसके होठों को चूसने लगी.. जब फिर भी उसने अपनी तरफ से कोई रिएक्शन नहीं दिया तो वो उसकी आँखों में झांक कर बोली - क्या अपनी रानी की प्यास नहीं बुझाओगे मेरे राजा…?शंकर ने पहली बार उसकी बात का जबाब देते हुए कहा - मुझे इतना बेगैरत मत बनाओ सुप्रिया में तुम्हारे पति के सामने तुम्हारी प्यास नहीं बुझा सकता…!शंकर की बात सुनकर उसने श्याम से कहा - वेल श्याम.. तुम जरा दूसरे रूम चले जाओ प्लीज..!श्याम - बूत डार्लिंग में तुम दोनों को सेक्स करते हुए देखना चाहता था सुप्रिया ने उसकी तरफ आँख मारते हुए इशारा किया और बोली - तुम्हारी ये इच्छा फिर कभी पूरी कर देंगे अभी तुम जाओ यहां से…!श्याम उसका इशारा समझ कर शंकर वाले रूम में जाते हुए बोलै - ओके यू एन्जॉय सेक्स…!जाते-जाते वो दरवाजे को थोड़ा सा खुला छोड़ कर बहार निकल गया…! शंकर उनकी चाल को भली भांति समझ गया था लेकिन फिर भी वो एक अनजान दीवार बनाना चाहता था.. छुपकर कोई भी देखे उससे उसको कोई फरक नहीं पड़ता.. लेकिन सामने किसी को तमाशबीन बनाकर वो अपने पौरुष को नहीं दिखाना चाहता था…!श्याम के कमरे से बहार जाते ही शंकर ने सुप्रिया को पलट कर अपने नीचे ले लिया और उसके होठों पर टूट पड़ा.. दो सेकंड में ही उसका लुंड खूंटे की तरह अकड़कर खड़ा हो गया जो अब किसी भी कठोर से कठोर जमीं को चीयर कर उसमें छेड़ कर सकता था…!उसने सुप्रिया की ब्रा को खींचकर उसके गोर बदन से अलग कर दिया और उसकी चूचियों को मसलते हुए उसके निप्पलों को मरोड़ दिया…!सुप्रिया उसके अटैक से बुरी तरह बिल-बिला उठी लम्बी-लम्बी सिसकियाँ लेते हुए उसकी चुत  का रास पंतय की जाली से छान-छान कर रिसने लगा..!वो उसके बदन के नीचे से किसी मछली की तरह फिसलकर बहार आगयी और उसके अंडरवियर को भी निकाल फेंका…औंधे मुँह पड़े शंकर के कसरती कठोर कूल्हों पर बैठकर अपनी चुत  को रगड़ते हुए वो उसकी पीठ पर सवार हो गयी…और उसकी पीठ पर अपनी चूचियों को रगड़ते हुए उसने शंकर के कंधे पर अपने दांत गधा दिए…!शंकर आह्हः..भरते हुए पलट गया जिससे वो उसके बाजू में लुढ़क गयी उसने पलटी कहते हुए फिर से सुप्रिया के नाजुक बदन को अपने नीचे ले लिया और उसकी चूचियों को बुरी तरह से मसलने और चूसने लगा…!आअह्ह्ह्ह…..शंकररर…..मेरीए…जाननं….ससीईई….चुसोऊ…राजा… खा..जाओ..इनको…बहुत सताते हैं…यी… कमरे का वातावरण इतना कामुक हो चुक्का था की बहार खड़ा श्याम ये सब देखकर हैरान रह गया… उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की उसकी नाजुक सी दिखने वाली पत्नी इस खेल में इतना सब कुछ कर सकती है…जब उसकी नज़र शंकर के फनफनाते हुए नाग पर पड़ी जिसे देखकर उसकी गांड में चींटियां सी रेंगने लगी अपनी गांड की खुजली के वशीभूत होकर उसने लोअर उतारकर अपनी गांड को पीछे उभर दिया और अपनी दो उंगली एक साथ अपनी गांड में दाल ली…! 

UPDATE - 62

Comments

  1. Sasurji mera real loda h.Benchod pati ka lulli h

    ReplyDelete
  2. मैं एक पच्चीस वर्षीय युवक हूँ । मेरे जीवन में अभी एक सबसे बडी विपत्ति आ पडी है । वह इसलिए कि मेरी जल्द ही शादी होने वाली है । मेरा सँक्षिप्त वर्णन कुछ इस प्रकार है ।

    जब मैं लगभग 10 वर्ष का था, मेरी चचेरी बहन ( जो लगभग उतनी ही उम्र की थी ) और मैं एक साथ सोया करते थे । ऐसे ही एक बार उसका हाथ मेरी जाँघ से टकराया और उसे वहाँ कुछ उभरा हुआ सा लगा । उसने मुझसे उसके बारे में पूछा । अपने उतावलेपन में मैंने अपनी निक्कर खोलकर दिखाई तो उसे केवल मेरा तना हुआ लिंग ( जिसे अँग्रेजी में 'पीनिस्' शब्द से जाना और पुकारा जाता है ) दिखाई दिया । मेरी चचेरी बहन उत्तेजित होकर मेरे 'पीनिस्' को अपने हाथ से इधर-उधर हिलाने लगी यह कहते हुए कि उसने मेरी 'शेम्-शेम्' देख ली । बाद में मेरी चचेरी बहन ने यह सब अपनी माँ को कुछ इस तरह बताया मानो कोई बहुत बडा काम कर दिखाया हो । तब उसकी माँ ने हम दोनों की अच्छी खबर ली और कडे शब्दों में चेतावनी देते हुए कहा कि लडके और लडकियों का एक दूसरे की 'शेम्-शेम्' को देखना वाकई शर्मनाक है । जैसे-जैसे मैं बडा होता गया इसी धारणा को मैंने कई सूरतों में खरा उतरता पाया । लेकिन अब मैं जिस सूरत का सामना करने जा रहा हूँ वह इसी शर्मनाक विषय / चीज को उचित मानने पर बाध्य करती है – सब सैक्स के नाम पर ! लिंग ( पीनिस् ) को देखने पर किसी भी बालिग लडकी / युवती का रवय्या कैसा होता है इसका अब तक मुझे तनिक भी ज्ञात नहीं है । क्या वह शर्मनाक महसूस करेगी, गुस्सा होगी, स्तब्ध हो जाएगी, या इन सब से हटकर, मेरी 'शेम्-शेम्' की खिल्ली उडाएगी ? उसका मेरे लिंग ( पीनिस् ) को अपने हाथ से छूने की नौबत भी मैं कैसे सह सकता हूँ ? जिस स्थित में मैं अब अपने आप को पाता हूँ, उससे मुझे मुक्ति का कोई मार्ग दिखाई नहीं देता । जवाब मिलने पर मैं अपने आपको अत्यन्त चिंतामुक्त पाने की आशा रखता हूँ ।



    ReplyDelete
  3. मुझे बचाइए .......... मेरी मदद कीजिए ..........

    मैं एक पच्चीस वर्षीय युवक हूँ । मेरे जीवन में अभी एक सबसे बडी विपत्ति आ पडी है । वह इसलिए कि मेरी जल्द ही शादी होने वाली है । मेरा सँक्षिप्त वर्णन कुछ इस प्रकार है ।

    जब मैं लगभग 10 वर्ष का था, मेरी चचेरी बहन ( जो लगभग उतनी ही उम्र की थी ) और मैं एक साथ सोया करते थे । ऐसे ही एक बार उसका हाथ मेरी जाँघ से टकराया और उसे वहाँ कुछ उभरा हुआ सा लगा । उसने मुझसे उसके बारे में पूछा । अपने उतावलेपन में मैंने अपनी निक्कर खोलकर दिखाई तो उसे केवल मेरा तना हुआ लिंग ( जिसे अँग्रेजी में 'पीनिस्' शब्द से जाना और पुकारा जाता है ) दिखाई दिया । मेरी चचेरी बहन उत्तेजित होकर मेरे 'पीनिस्' को अपने हाथ से इधर-उधर हिलाने लगी यह कहते हुए कि उसने मेरी 'शेम्-शेम्' देख ली । बाद में मेरी चचेरी बहन ने यह सब अपनी माँ को कुछ इस तरह बताया मानो कोई बहुत बडा काम कर दिखाया हो । तब उसकी माँ ने हम दोनों की अच्छी खबर ली और कडे शब्दों में चेतावनी देते हुए कहा कि लडके और लडकियों का एक दूसरे की 'शेम्-शेम्' को देखना वाकई शर्मनाक है । जैसे-जैसे मैं बडा होता गया इसी धारणा को मैंने कई सूरतों में खरा उतरता पाया । लेकिन अब मैं जिस सूरत का सामना करने जा रहा हूँ वह इसी शर्मनाक विषय / चीज को उचित मानने पर बाध्य करती है – सब सैक्स के नाम पर ! लिंग ( पीनिस् ) को देखने पर किसी भी बालिग लडकी / युवती का रवय्या कैसा होता है इसका अब तक मुझे तनिक भी ज्ञात नहीं है । क्या वह शर्मनाक महसूस करेगी, गुस्सा होगी, स्तब्ध हो जाएगी, या इन सब से हटकर, मेरी 'शेम्-शेम्' की खिल्ली उडाएगी ? उसका मेरे लिंग ( पीनिस् ) को अपने हाथ से छूने की नौबत भी मैं कैसे सह सकता हूँ ? जिस स्थित में मैं अब अपने आप को पाता हूँ, उससे मुझे मुक्ति का कोई मार्ग दिखाई नहीं देता । जवाब मिलने पर मैं अपने आपको अत्यन्त चिंतामुक्त पाने की आशा रखता हूँ ।







    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

चढ़ती जवानी की अंगड़ाई

लालाजी का सेवक - 5 - रंगीली की सुहागरात PART-2