असली या नकली -4

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अब कहानी को कुछ दिन पहले बस्ती की और लेकर चलते है,
बस्ती के बाकि परिवारों की तरह मोहन का परिवार भी बिलकुल गरीब था, वो और उसकी बहन माला एक टूटे फूटे से घर में बड़ी मुश्किलों की जिंदगी गुज़र रहे थे, 
कच्ची ईंटो से बना हुआ एक छोटा सा घर जिसमे नाम मात्र का सिर्फ एक कमरा था, जिसकी छत भी लोहे की जर्जर हो चुकी टीन की बनी हुई थी ,कमरे के सामने एक छोटा सा आँगन और कच्ची पक्की चार दिबारे खड़ी थी,लकड़ी का जर्जर दरबाजा, घर में घुसते ही बाये तरफ एक छोटी सी रसोई जिसकी कोई चारदीवारी भी न थी, लगता था कि बस थोडा था सामान ज़मीन पर रखकर रसोई का रूप दे दिया गया हो

घर के पीछे की तरफ एक ईंटो से घिरा हुआ छोटा सा बाथरूम स्नान के लिए बना था,जिसमे छत भी नहीं थी, बाथरूम में एक नल लगा हुआ था, पर पानी शाम को आता था वो भी बस 15 मिनट के लिए ,लेट्रीन के लिए उस समय पटरियों का इस्तेमाल ही सबसे मशहूर तरीका था,

पर इन लोगो के लिए ये घर भी एक महल की तरह था क्यूंकि ये उनका अपना था, पर सिर्फ कहने को, क्यूंकि उस बस्ती के ज्यादातर घर लाला दीनदयाल के पास गिरवी थे, जो उन गरीबो के खून पसीने की कमाई का एक बड़ा हिस्सा उनसे ब्याज के रूप में वसूल कर लेता था, उन गरीबो के लिए तो ये गरीबी में आटा गिला होने के बराबर था, एक तो मुश्किल से बेचारे दो वक्त की रोटी का इन्तेजाम कर पाते, उसमे से भी एक वक्त की रोटी जितना हिस्सा लालाजी को ब्याज के रूप में चुकाना उनकी मजबूरी थी, पर बेचारे करते भी तो क्या, एक आदमी ने लाला की खिलाफत करने की कोशिश की थी तो लाला ने उसे धक्के मारकर उसी के घर से निकलवा दिया था, 

लाला के पास किराये के गुंडे भी थे, और साथ ही पुलिस को रिश्वत देने के लिए दोलत भी, वो अपनी ताक़त का गलत इस्तेमाल कर रातो रातो उन लोगो को उन्ही के घर से बेधख्ल कर सकता था जो उसके खिलाफ जाने की हिम्मत करते,
इन सब के उपर लाला की हरामी नियत भी अक्सर बस्ती की लडकियों पर चली जाती, उसकी गन्दी नजरे हमेशा बस्ती की जवान होती लडकियों पर रहती, सभी बस्ती वाले भी इस बात से परिचित थे पर बेचारे चाहकर भी कुछ नही कर पाते, इसलिए जब भी लाला महीने के अंत में अपना ब्याज वसूलने अपने पालतू गुंडों के साथ आता, बस्ती के लोग अपनी बहन बेटियों को घर के अंदर ही रखते ताकि लाला की हवसी नजरो से बच सके 

बस्ती के लोग बस इस आशा में जी रहे थे कि कभी तो भगवान किसी फ़रिश्ते को यहाँ भेजेगा जो उनका हर दुःख हर दर्द दूर करके उन्हें दुनिया भर की खुशियाँ देगा, कभी तो कोई आएगा जो उन्हें इस गरीबी के दलदल से बाहर निकालेगा , कभी तो कोई आएगा जो उन्हें लाला के आतंक से मुक्ति दिलाएगा, बस्ती के हर इन्सान में ये उम्मीद रहती, उनकी आँखों में ये आशा रहती कि शायद भगवान किसी दिन उनकी सुन ले 

पर अभी तक तो उन लोगो को सिवाय दर्द, गरीबी, ज़िल्लत, और लाला के डर में ही अपनी ज़िन्दगी बसर करनी पड़ रही थी, फिर भी उनकी आशा का बांध टुटा न था, गरीबी के साथ सब्र और भलाई का गुण कूट कूट कर भरा था भगवान ने इन लोगो में, गरीबी में जीकर भी वो लोग एक दुसरे के सुख दुःख में भागीदार बनते, हमेशा खुश रहने का दिखावा करते पर मन में हमेशा गरीबी, भुखमरी और लाला के डर का तंज़ डसता रहता, 

मोहन और उसकी बहन माला भी बस्ती के बाकि लोगो की तरह ही इसी तरह की ग़ुरबत की ज़िन्दगी ज़ीने को मजबूर थे, 
माला 19 बरस की एक मासूम सी दिखने वाली लड़की, उसकी काली झील जैसी आंखे , तीखे नैन नक्श, पतले गुलाबी होंठ दिखने में मानो अजंता की कोई मूरत, दमकता गोरा चिट्टा चेहरा , छोटे छोटे अमरूद जैसी सुंदर सुंदर चुचियाँ, पतली गोरी कमर, उभरी हुई गांड, भरी मांसल जाँघे, हर वो चीज़ भगवान ने उसके बदन को बख्शी थी जो कामदेव को भी एक बार विचलित कर दे, पर शायद गरीबी की मार ने उसे कभी इस और देखने का मोका ही नही दिया था



माला 19 वर्ष की हो चुकी थी लेकिन उसके घर की माली हालात इतने खराब थे कि शादी के बारे में सोचना भी उसके लिए पापा था, माला भी अपने घर के हालात को अच्छी तरह समझती थी इसलिए शायद उसने भी बिना शादी के जीवन जीने की प्रतिज्ञा ले ली थी, पर मोहन चाहता था कि वो अपनी बहन की शादी बड़ी धूमधाम से करे पर पैसो की किल्लत ने उसके हाथ बांध रखे थे 
माला इतनी खुबसुरत थी और उसका जिस्म ऐसा था की अच्छी अच्छी बड़े घर की शहरी लडकियों को भी मात दे दे, पर उसका यही हुस्न उसका सबसे बड़ा दुश्मन बन गया था, क्यूंकि लाला की गन्दी नजर उसके जवान जिस्म पर पड़ गयी थी, और लाला बस इसी ताक में रहता कि किसी तरह इस फूल के रस को चूस ले, लाला उसकी गरीबी का फायदा उठाने के षड्यंत्र भी रचता था, और इसीलिए 

लाला ने मोहन को बताया कि उसने अपने घर को गिरवी रखकर जो कर्जा उससे लिया वो इतने सालो के बाद भी अभी सिर्फ एक चोथाई ही उतरा है, जबकि असलियत में मोहन ने तीन चोथाई कर्जा उतार दिया था, लाला हर हथकंडे अपनाता जिससे वो माला के योवन का रस चख सके, पर उसे डर था कि अगर उसने जबरदस्ती की तो कहीं मामला बहुत बढ़ न जाये, इसीलिए लाला उनकी गरीबी का फायदा उठाकर माला को भोगना चाहता था 

इधर माला भी बड़ी समझदार थी, वो लाला के इरादों से पूरी तरह वाकिफ थी, पर उसने अपने आपको किसी तरह बचाया हुआ था,
बाकि लडकियों की तरह माला की भी इच्छा थी कि उसकी भी शादी हो, बच्चे हों,पारवारिक जीवन का आनंद उठाए, पर गरीबी से मजबूर होकर उसने अपनी सभी इच्छाओ को अपने वश में कर लिया था
माला जब छोटी थी,तब उसकी भी इच्छा थी कि उसका पति अच्छा हो, पैसे वाला हो, कार बंगला हो,वो जीवन को खुल कर जिए, लेकिन उसकी सभी इच्छाएं गरीबी की भेंट चढ़ गई,अब तो उसने अपने मन को उसी प्रकार ढाल लिया था, अपनी असल जिंदगी की वास्तविकता को स्वीकार कर चुकी थी, अपने सारे सपनो को आजीवन तलाक दे चुकी थी
गरीबी इस प्रकार छाई थी की उसके पास मात्र दो जोड़ी ही सलवार सूट थे, वो भी कई जगह से फटे हुए थे जिन्हें सुई से टांका मार कर उन्ही को पहना करती थी, पहनने के लिए उसके पास मात्र एक ही पेंटी बची थी और उसका इस्तेमाल भी वो सिर्फ माहवारी के दिनों में करती थी ताकि उसके कपडे ख़राब न हो, महीने के बाकि दिनों में तो वो कभी कभार ही पेंटी पहनती थी ,बस बिना पेंटी के ही सलवार पहन कर घर में रहती थी ।
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मोहन और माला किसी तरह गरीबी में अपनी गुज़र बसर कर रहे थे, मोहन अपनी थोड़ी सी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा लाला के पास जमा कराता, और ऐसा करते हुए उसे लगभग 5 साल होने को आ गये थे, पर उनका कर्ज था कि उतरने का नाम ही नही लेता था, और उतरे भी कैसे? लाला ने बस्ती वालो के अनपढ़ होने का फायदा उठाकर उनके हिसाब में गडबडी की थी, और मोहन के कर्ज का तो तीन चोथाई हिस्सा बाकि दिखा रखा था, क्यूंकि वो हरामी लाला उनकी मजबूरी का फायदा उठाकर माला को भोगना चाहता था 

बस्ती मे रात होने को आई थी, सिर्फ एक स्ट्रीट लाइट की रौशनी ही है जो इस बस्ती को रात के अँधेरे में गुम होने से बचाती थी, बाकि सभी घरो में मोमबतीयाँ ही उनकी रौशनी का जरिया था, बस्ती के बीचो बिच एक नीम के पेड़ बना था,जिसके चारो और बैठने के लिए एक ऊँचा चबूतरा बनाया हुआ था, बस्ती के लोग अक्सर काम से आने के बाद रात को थोड़ी देर वहाँ बैठते और हल्के फुल्के मजाक और कहानियों को दोर चलता जो उन गरीबो के दिलो के गम को थोड़ी देर के लिए ही सही पर कम जरुर कर देता 

मोहन और माला अपने घर में बैठे बात कर रहे थे 

माला – भैया, लाला का कर्जा कितना पूरा हुआ? हम कितने सालो से कर्जा दिए जा रहे है, 

मोहन – हाँ, माला लगभग 5 साल होने को आये, पर लाला का कर्जा है कि उतरने का नाम ही नही ले रहा 

माला – भैया, आप एक बार उनसे पूछ कर तो देखो कि कितना कर्जा बाकि है?

मोहन – तू ठीक कहती है छोटी, मैं कल ही लाला से मिलकर उससे हिसाब मांगता हूँ, अगर हम ऐसे ही उसे पैसे देते रहे तो तेरी शादी कैसे कर पाउँगा 

माला (शर्माते हुए) – क्या भैया, मुझे नही करनी शादी वादी, मैं तो हमेशा अपने भैया के पास ही रहूंगी

मोहन – अरे पगली, कभी न कभी तो तुझे जाना ही होगा, अपनी छोटी की शादी मैं बड़ी धूम धाम से करूंगा देखना 

माला – हटो भैया, मुझे आपसे बात नही करनी 

और इतना कहकर माला शर्माती हुई वहां से उठ गयी, मोहन भी बहार आकर बस्ती के बाकि लोगो के साथ बैठ गया और गप्पे हांकने लगा 

बंशी (मोहन का दोस्त ) – अरे आ मोहन आ, आज तो बड़ी देर लगा दी आवन में, घर में का कर रहे थे,

मोहन – अरे कुछ नही बंशी बस थोडा थक गया था सो लेटकर थोड़े पैर सीधे कर रहा था 

बंशी – भाई तू तो पैर ही सीधा करता रह जायेगा, मैं तो कुछ और ही सीधा करके आ रहा हूँ,,,हा हा हा हा..........

सभी लोग बंशी की बात सुनकर हंसने लगे, कुछ देर ऐसे ही बातो को डोर चलता रहा, पर जैसे जैसे अँधेरा बढ़ता गया लोग धीरे धीरे अपने घरो की तरफ जाने लगे, अब बस वहां बंशी, मोहन और राजू ही बचे थे 

राजू – का बात है बंशी बाबु, आज बड़े मूड में लग रहे हो, लगता है भाभी की खैर नाही आज ...हा हा हा......

बंशी – अरे का बताऊ राजू भाई आज गेराज में एक जबरदस्त लोंडिया आई थी गाड़ी सुधरवाने, हाय मैं तो देखकर ही पगला गया, का गोरा गदराया बदन था, एकदम मलाई के माफिक,

मोहन – अरे क्या बंशी तू भी, तू वहां काम करने जाता है कि लोंडिया टापने, हरामी कहीं का, हाहाहाहा .........

बंशी – अरे मोहन बाबु, अभी कितना भी हंस लो, पर अगर एक नज़र तुम उसको देख लिए होते ना, तो तुम्हारा तो वहीं खड़े खड़े पानी निकल जाता , का मस्त बदन था साली का, मन करता था वहीं पकड़ के पेल दे साली को, हाय इन गोरी लडकियों की चूत भी कितनी गोरी होती होगी, और एक हमार वाली है, साली की चूत अँधेरे में कोयला जान पडती है,हा हा हा,,,,,,,,,

राजू – अरे उसी चूत से दो दो बच्चे निकाल दिए रहे तुम, तब कोयला ना दिखी तुझे वो चूत ,ह्म्म्म....हाहाहा....

बंशी – का बात है रे राजू, हमार बीवी की चुत में बड़ी दिलचस्पी दिखा रहे हो हरामी, साले कहीं नजर तो नही गडा रखी हो हमार बीवी पर, 

राजू – अरे हमार किस्मत में चूत कहाँ बंशी बाबु, हम तो साला अपना हाथ जगन्नाथ करके ही कम चलावत है, तुहार पास कम से कम कोनो चुत तो है, हमार किस्मत में तो हाथ का ही सुख लिखा है 

मोहन – का बात है राजू, आज चुत मारने का बड़ी इच्छा हो रही है का तोहार 

राजू – अरे मोहन भाई, ई इच्छा तो साला 24 घंटे रहती है पर करे भी तो का करे, मन मसोस कर और लंड मरोड़ कर ही काम चला लेते है 

मोहन – अबे चिंता मत कर, कभी न कभी तेरे लिए भी कोई चुत का इंतज़ाम हो ही जायेगा
बंशी – अरे इसकी छोड़ो मोहन, ई तो ससुरा चोबीस घंटे चुत के सपने देखत है, तुम बताओ , तुम तो ऑफिस वोफ्फिस में काम करत हो, वहाँ तो काफी लोंडिया आती है हम सुने 

मोहन – अरे हम तो रोज़ ही एक से एक जबरदस्त लोंडिया देखते है हमरे ऑफिस में, और मालूम है कुछ तो बिलकुल छोटे छोटे घुटनों तक के कपड़े पहन कर आती है, साला सुबह सुबह ही हमार लंड भी बिलकुल अकड जाता है, फिर गुसलखाने (टॉयलेट) में जाकर मुठ मारते है तब कहीं जाकर लंड को थोडा सुकून मिलता है 

बंशी – तोहर किस्मत बड़ी अच्छी है मोहन बाबु, कम से कम रोज़ लोंडिया के दर्शन तो हो जाते है, और एक हमार किस्मत, रोजाना साला काले पीले लोगो के चेहरों के सिवा कुछु दीखता ही नही है

राजू - अरे तोहर कैसी किस्मत ख़राब, तू तो शाम को आकर कम से कम चुत तो मार लेता है, हमे देख, किस्मत तो हमारी खराब है, जो साला 23-24 की उम्र में भी लंड हिलाना पड रहा है 

राजू की बात सुनकर तीनो हंसने लगते है, उनकी बातो का दौर और लम्बा चलता है और फिर वो लोग जाकर घर में सो जाते है 

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मोहन अगले दिनतैयार होकर अपने काम के लिए निकल पड़ा, पर ये तो वो भी नही जानता था कि आज का दिन उनकी जिंदगी में भूचाल लाने वाला था, 
घर पर माला अपने दैनिक काम काज करती रही, शाम के लगभग 5 बजने को आये थे, मोहन अक्सर 5.30 बजे के आस पास आ जाता था, माला शाम के खाने की तैयारियों में लगी पड़ी थी कि तभी उसे बस्ती में गाड़ी की आवाज़ सुनाई दी, गाड़ी की आवाज़ सुनते ही माला समझ गयी कि शायद लाला के पालतू गुंडे ब्याज वसूली के लिए आये है, पर आज उसने कुछ और ही ठान लिया था, उसने अपना काम वहीं छोड़ा और घर से बाहर आ गयी, 

बाहर लोगो की एक लाइन सी लगी थी, जो एक कुर्सी पर बैठे गुंडे जैसे दिखने वाले काले कलूटे आदमी जिसका नाम राका था, को पैसे दे रहे थे, आज राका के साथ सिर्फ एक ही आदमी था, वरना अक्सर 5 -6 लोग आते थे, 


माला भी उस लाइन में लग गयी थी पर आज उसका मूड पैसे देने का नही बल्कि हिसाब पूछने का था,जल्दी ही माला का भी नंबर आ गया 

राका – आ माला आ, मैं तो तेरा ही इंतज़ार कर रहा था, बड़े दिनों बाद दिखाई दी तू, आज तेरा भाई नही आया पैसे देने??? चल कोई नही , तू ही दे दे, इस बहाने तेरे दर्शन भी हो गये, 

माला – बकवास बंद कर राका, आज मैं बिना हिसाब किताब देखे तुझे पैसे नही दूंगी, अपने इस लेखा जोखा रजिस्टर में देख और बता कि हमने अब तक कितना पैसा जमा कर दिया? और कितना बाकि है 

राका को माला की बात सुनकर गुस्सा आ गया 

राका -"अनपढ़ गवांर कुतिया, तेरी हिम्मत कैसे हुई लेखा जोखा देखने की, तू हमारे मालिक पर शक कर रही है ? अभी रुक मालिक से कह कर तेरी सारी लेखागिरि निकलवाता हूँ"

एक बार तो माला राका की धमकी से थोडा दर गयी पर थी तो वो भी गुस्से वाली 

माला -" राका. मैंने सिर्फ हिसाब किताब देखने की बात कही है, हम अपना हिसाब भी नही देख सकते क्या? गाली काहे दे रहे हो फिर? क्या अपना हिसाब किताब देखना भी गुनाह है? जाओ लाला से जाकर कह दो की पहले लेखा झोका दिखाओ फिर कर्जा की क़िस्त जमां करुँगी,

राका का चेहरा गुस्से से लाल हो गया,

राका -" देख माला तू अपनी हद में रह बरना तेरे लिए अच्छा नहीं होगा, साली की वो हालत करूंगा कि कहीं मुह दिखाने के लायक नहीं रहेगी" 

माला का चेहरा भी गुस्से से लाल हो जाता है तभी माला एक जोर का तमाचा राका के मुह पर मारती है, राका तिलमिला गया 

माला -" तेरी हिम्मत कैसे हुई ऐसा बोलने की? जा और जाकर कह दे अपने लाला से, अब कोई कर्जा नहीं मिलेगा, बहुत लूट लिया उसने हम गरीबो को,

राका – हरामी रंडी, तूने मुझ पर हाथ उठाया, आज देखना यहीं जमीन पर पटक कर तुझे इन सब लोगो के सामने चोदुंगा, और चोद चोद कर तेरी चूत की धज्जियाँ उड़ा दूंगा, साली अगर तुझे अपनी टांगों के नीचे न रगड़ा तो मेरा नाम भी राका नहीं, रंडी बना दूंगा तुझे, और तुझे अपनी रखैल बनाकर रखूंगा” 

राका ये कहकर माला के बालो को पकड़ लेता है, और दुसरे हाथ से कसकर थप्पड़ मार देता है,

इधर राका का आदमी मामला बढ़ता देखा तुरंत गाड़ी लेकर लाला और बाकि आदमियों को बुलाने चला गया,

राका - क्या बोल रही थी रंडी, मुझसे हिसाब मांगेगी, हिसाब तो अब तेरा लूँगा, पूरी बस्ती के सामने तुझे नंगा करूंगा और अपने लंड से तेरी चुत के परखच्चे उड़ा दूंगा,

माला राका को एक और कसकर थप्पड़ लगा देती है, राका अब गुस्से से बुरी तरह तिलमिला गया,

राका ने माला को पकडकर जमीन पर गिरा दिया,

राका – मुझे मारती है साली, अब देख पूरी बस्ती देखेगी और मैं तेरी इज्ज़त तार तार करूंगा, देखता हूँ कौन तेरी मदद को आता है

इतना कहकर राका ने अपने शर्ट के बटन खोलने शुरू कर दिए, अब तो माला सच में डरने लगी थी, क्यूंकि राका एक पहलवान जैसा दिखने वाला काला कलूटा आदमी था, और अभी उसका भाई काम से आया भी नही था, और बाकि लोग डर के मारे ऐसे खड़े थे जैसे उनमे जान ही ना हो 

माला – राका, मुझसे दूर रह, मेरा भाई आता ही होगा, अगर तूने मुझे हाथ भी लगाया तो वो तेरी जान ले लेगा,

राका – तू चिंता मत कर, तेरे भाई से तो मैं निपट लूँगा, फिलहाल पहले तुझसे निपट लूँ, आजा आ मेरी रानी

राका ने निचे झुककर माला के बालों को फिर पकड लिया, राका ने अपना शर्ट अब तक निकल दिया था और अब उसका काला कलूटा बालो से भरा सीना माला के बदन को छु रहा था, माला बचने की पूरी कोशिश कर रही थी, पर राका जैसे पहलवान आदमी के सामने उसकी क्या बिसात थी 

राका ने अपने हाथ बढाये और माला की कुर्ती को उसके हाथो वाली जगह से पूरा फाड़ दिया, माला अब जोर जोर से चिल्लाने लगी, पूरी बस्ती माला को इस हालत में देखकर दुखी थी पर वो जानते थे कि अगर उनमे से कोई भी उसकी मदद को आगे बढ़ा तो कल को उनकी बहन बेटियों के साथ भी वहीं हो सकता है जो अभी माला के साथ हो रहा था, इसलिए लोग चाहकर भी माला की मदद को आगे नही आ पा रहे थे,

माला मदद के लिए चिल्लाये जा रही थी, पर राका कहाँ पीछे हटने वाला था, उसने अपनी उँगलियों से माला के कोमल गुलाबी होटों को पकडकर जोर से मसल दिया 

वाह बड़ा रस भरा है तेरे इन होटों में, इन्हें भी कभी चूस लूँगा पर आज तो तेरी चुत का नंबर है, तैयार होजा अपनी चूत फडवाने के लिए,

ये कहकर राका खड़ा हुआ अपनी अपनी पेंट उतारने के लिए उसका बटन खोलने लगा 

राका बटन खोलकर अपनी पेंट निचे करने ही वाला था कि पीछे से एक गाड़ी आकर रुकी और उसमे से लाला और उसके बाकि गुंडे उतरे 

लाला – रुक जा राका, तू जानता है कि ये लोंडिया मेरी शिकार है, इसे सबसे पहले मैं चखूँगा 

राका – ठीक है मालिक, जैसी आपकी मर्ज़ी, पर आपके बाद अगला नंबर मेरा होगा, 

लाला – ह्म्म्म,,, ठीक है राका, एक बार इसे चख लूँ फिर तू जो चाहे कर, 

राका – जैसा आप कहे मालिक पर एक बार ,,,,बस एक बार मैं इसके मुंह में अपना लंड ठूंस दूँ, साली ने मुझे थप्पड़ मारा था, इसे भी तो पता चले कि लाला के आदमियों को थप्पड़ मारने का क्या अंजाम होता है 

लाला – चल ठीक है राका, घुसेड दे अपना लंड इस लोंडिया के मुंह में, साली बड़ा हिसाब मांग रही थी,

ये कहकर लाला और उसके बाकि गुंडे जोर जोर से हंसने लगे और इधर राका ने पलक झपकते ही अपना काला हलब्बी मुसल लंड बाहर निकाल लिया, लंड को देखते ही माला की सांसे अटक गयी, वो अब बुरी तरह डर गयी थी, उसने अपनी किस्मत को कोसा कि क्यूँ वो हिसाब मांगने के चक्कर में पड़ गयी, अब उसका क्या होगा

माला बुरी तरह गिदगिड़ा रही थी, रहम की भीख मांग रही थी, पर लाला और बाकि गुंडे बस हँसे जा रहे थे, इधर बस्ती के बाकि लोग बस किसी बेजान पत्थर की तरह तमाशा देख रहे थे 

राका अपना लंड लेकर आगे बढ़ा और जैसे ही वो माला के करीब आने वाला था तभी “फचाक्क्क्कक...................” की आवाज़ आई और पलक झपकते ही राका का लंड उसके शरीर से अलग होकर मिटटी में गिरा पड़ा था, और राका के लंड वाली जगह से बुरी तरह खून की पिचकारियाँ निकलने लगी 

ये मोहन था, जो तब पहुंचा जब राका अपना लंड हवा में लहराते हुए माला की ओर बढ़ रहा था और फिर मोहन ने गुस्से में आकर राका के लंड को पास पड़ी कुल्हाड़ी से एक झटके में काट दिया था 

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राका का कटा हुआ लंड बस्ती की मिटटी और खून से सना हुआ उसकी आँखों को सामने पड़ा था, और उसके लंड वाली जगह से खून की पिचकारियाँ निकले जा रही थी, राका की आँखे ये दृश्य देखकर पथरा गयी और अगले ही पल उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा गया, राका वहीं बेहोश होकर जमीन पे गिर पड़ा 

पूरी की पूरी बस्ती जैसे कब्रिस्तान में बदल गयी, चारो और घोर सन्नाटा पसर गया, सबकी सांसे उनके हलक में ही अटक गयी, आँखे बड़ी होकर बाहर निकलने को आ गयी, माथे पर पसीने की बुँदे चमकने लगी 

ऐसा ही कुछ हाल लाला और उसके पंटरो का भी था, जो आँख फाड़े बस देखे जा रहे थे, किसी को कुछ समझ नही आ रहा था कि आखिर ये हुआ क्या, पलक झपकते ही मंजर बदल कैसे गया, बस नज़र आ रहा था तो मोहन जिसके हाथो में खून से कुल्हाड़ी थी और राका जो जमीन पर बेहोश पड़ा था 

मोहन ने आगे बढकर अपनी बहन को उठाया और उसके आंसू पोंछकर उसे घर के अंदर जाने को कहा, 

इधर थोड़ी देर बाद ही लाला और उसके आदमी सदमे से जैसे बाहर निकले, और 2 आदमियों ने तुरंत राका को जमीन से उठाया और गाड़ी में लादकर हॉस्पिटल की और निकल गये,

इधर लाला और उसके आदमियों के चेहरा अब डर और गुस्से के भाव से भर चूका था, लाला के सारे आदमी मोहन पर एक साथ कूद पड़े, एक ने उसके हाथो से कुल्हाड़ी छीन ली, और फिर सारे लोग मिलकर मोहन को बुरी तरह पीटने लगे,

मोहन पर तो जैसे लात घूसों की बरसात ही हो गयी थी, उसके मुंह से अब खून भी निकलने लगा था पर लाला के आदमी अब भी उसे बुरी तरह पिटे जा रहे थे 

तभी पुलिस की गाड़ी की आवाज़ आई और पुलिस वालो ने जैसे तैसे मोहन को उन गुंडों से छुड्वाया, लाला ने पुलिस इंस्पेक्टर को थोड़ी रिश्वत देकर मोहन को ही हवालात में करवा दिया, लाला अपनी बेइज्जती का बदला लेना चाहता था, पर पुलिस इंस्पेक्टर से उसे कुछ दिन माहौल को ठंडा रखने के लिए कहा, लाला चाहकर भी कुछ नही कर पाया और अपने आदमियों के साथ वापस लौट गया, इधर पुलिस मोहन को पकडकर थाने ले गयी,

2 दिनों तक जेल में रखने के बाद पुलिस इंस्पेक्टर ने उसे गरीब समझ कर छोड़ दिया, मोहन के छुटने से साडी बस्ती खुश थी, पर सब जानते थे कि लाला अपना बदला जरुर लेगा, बस वो सही वक्त का इंतज़ार कर रहा था,

इधर मोहन के ऑफिस में भी ये बात फ़ैल गयी की मोहन 2 दिन जेल की चारदीवारी में काट कर आया है और ऑफिस की इज्जत के लिए ये बात शर्माजी को ठीक नही लगी, इसीलिए शर्माजी ने मोहन को बता दिया था कि अगला चपरासी मिलने तक ही उसकी नोकरी है और जैसे ही अगला चपरासी मिलेगा उसे नोकरी से निकाल दिया जायेगा, मोहन के लिए तो ये गरीबी में आटा गीला होने जैसा था, क्यूंकि पहले ही उनकी हालत इतनी ख़राब थी कि दो वक्त की रोटी का गुज़ारा भी बड़ी मुश्किल से चल पा रहा था, और अब तो उसके भी वांदे हो जाने थे,पर अब भी उसका विश्वास था कि भगवान कभी ना कभी उनकी जरुर सुनेगा और जरुर उनके लिए किसी देवता को भेजेगा जो उनकी ज़िन्दगी में बहार लायेगा खुसिया लायेगा, पर आने वाला वक्त किसी को नही पता था 

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अब कहानी को वापस अपने हीरो आनंद की तरफ लेकर चलते है, वैसे बात आगे बढ़ चुकी थी पर हम व्ही से शुरू करते है जहाँ छोड़ा था, 

आनंद मीना से बात करने के बाद मोहन से मिलने के लिए चल पड़ा, कुछ ही देर में उसे मोहन कैंटीन में सफाई करता हुआ दिखाई दिया, एक दुसरे आदमी ने आनंद को बताया था कि यही मोहन है 

मोहन को देखते ही आनंद के चेहरे पर दुःख के भाव आ गये, मोहन बेहद धीरे धीरे हाथो में झाड़ू लिए कैंटीन के फर्श की सफाई कर रहा था, उसके हाथो और चेहरे पर सुजन अभी भी थी, कपडे जगह जगह से फटे थे जिन्हें बड़ी मुश्किल से सुई धागे से सिलकर जोड़ने की कोशिस की गयी थी, गरीबी की वजह से मोहन अपनी उम्र से 4 – 5 बरस बड़े ही दिखाई दे रहा था, आनंद को उसकी हालत देखकर बड़ा तरस आया और साथ ही अपने ऑफिस के मेनेजर शर्माजी पर बड़ा गुस्सा भी

आनंद को समझ नही आ रहा था कि वो क्या करे, क्यूंकि उसकी वजह से मोहन की नोकरी जा रही थी और वो कुछ कर भी नही पा रहा था , हारकर आनंद मोहन की तरफ चल पड़ा 

आनंद – नमस्ते, तुम्हारा नाम मोहन है क्या??

मोहन – जी, मैं ही मोहन हूँ, कुछ काम था क्या आपको मुझसे??

आनंद – नही नही, ऐसी कोई बात नही, अम्मम्म मेरा नाम आनंद है और दरअसल वो मैं इस ऑफिस में नया चपरासी हूँ, तो वो मेनेजर साहब ने मुझे तुमसे मिलने भेज दिया ताकि तुम मुझे मेरा काम समझा सको 
मोहन – ओह......कोई बात नही, मैं तुम्हे सारा काम समझा दूंगा, वैसे भी आज मेरा अंतिम दिन है इस ऑफिस में,

आनंद – वैसे क्या मैं तुमसे एक बात पूछ सकता हूँ?

मोहन – हाँ हाँ, बोलो?

आनंद – वो मीना जी कह रही थी कि ...अह....वो .....आप जेल में रह कर आये थे इसलिए आपको यहाँ से निकाला जा रहा है, क्या तुम बता सकते हो कि आखिर तुम्हे जेल क्यूँ जाना पड़ा ??

मोहन – इन बातो से क्या फरक पड़ता है आनंद, वैसे भी मैं उस बारे में किसी से बात नही करना चाहता,, प्लीज़ मुझे माफ़ करना 

आनंद – नही नही, ऐसी कोई बात नही है, तुम्हारी इच्छा नही तो कोई बात नही, 

मोहन - चलिए मैं आपको आपका काम समझा देता हूँ 

आनंद - जी चलिए 


फिर कुछ देर तक मोहन ने आनंद को एक चपरासी का सारा काम बता दिया और फिर शर्मा जी से अपना सारा हिसाब करके ऑफिस से जाने लगा कि तभी आनंद उसे दोबारा मिल गया 

मोहन – तो फिर चलता हूँ आनंद, अगर भगवान की मर्ज़ी हुई तो फिर मिलेंगे कभी 

आनंद - ठीक है मोहन 
और फिर मोहन निकल गया, इधर आनंद पुरे दिन भर काम समझने और मीना से बाते करने में बिजी रहा और शाम होते ही चुपके से अपनी गाड़ी बिना किसी की नज़र में आये लेकर घर की तरफ रवाना हो गया 

आज आनंद को पहली बार पैसो की कीमत का थोडा सा एहसास हुआ था, और पुरे रस्ते वो मोहन और बाकि लोगो के बारे में ही सोच रहा था जो पैसो के लिए इतनी कड़ी मेहनत करते थे,

आनंद जल्दी ही अपने घर पहुंच गया पर उसे क्या पता था कि आज घर जाकर उसकी ज़िन्दगी में एक बहुत बड़ा भूचाल आने वाला था 
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शाम के 6 बजने को आये थे, आनंद आज पुरे दिन के बारे में सोचता हुआ अपनी गाड़ी में बैठा घर की तरफ चला आ रहा था, घर आकर उसने अपनी गाडी पार्क की और सीधा अंदर की तरफ चल पड़ा, अभी वो बस सीढियो पर चढने ही वाला था कि तभी उसे कुछ हलकी हल्की आवाजें सुनाई दी, आवाज़े प्रभा चाची के कमरे से आ रही थी, 

आनंद को बस सिवाय खुसर फुसर के और कुछ समझ नही आ रहा था, आनंद अब सीढ़ियों से निचे उतरा और प्रभा चाची के कमरे की तरफ कदम बढ़ा दिए, जैसे जैसे वो नजदीक जा रहा था, फुसफुसाहट की आवाजें और साफ होती जा रही थी,
और जैसे ही आनंद बिल्कुल गेट के करीब पहुंचा तो बंद गेट के दूसरी तरफ उसे प्रभा चाची की आवाज़ बिलकुल साफ साफ समझ आ रही थी, हालाँकि आवाज़ बहुत ही कम थी, पर फिर भी आनंद को समझ आ रही थी,

“ये चाची किससे बातें कर रही है??” आनंद अपने मन में सोचने लगा क्यूंकि आवाज़ सिर्फ प्रभा की ही आ रही थी, पर किसी और इन्सान की नही

“शायद चाची किसी से टेलीफोन पर बात कर रही है, पर इस वक्त किससे बात कर सकती है??” आनंद ने दोबारा सोचा पर उसके समझ कुछ नही आ रहा था इसलिए उसने दिमाग को झकझोरा और अपनी चाची की बातें सुनने लगा

अंदर प्रभा किसी आदमी से टेलीफोन पर बाते कर रही थी, पर आनंद को सिर्फ प्रभा की बात ही सुनाई दे रही थी 


“कैसे हो तुम,................इतने दिनों बाद तुमने मुझे टेलीफोन किया है क्या मेरी याद नहीं आई तुम्हे......................चल झूटे, अगर याद आती तो तो मुझे ऐसे नही तडपाते......................तुम तो मुझे भूल ही गये हो..............पता है कितना मुश्किल है तुम्हारे बिना जीना..” 

आनंद को पहले लगा की शायद चाची जगदीश चाचा से बात कर रही है पर अगले पल ही उसे लगा कि चाचा तो हमेशा घर आते है पर चची तो बोल रही कि काफी दिन हो गये,
इसका मतलब कि चाची किसी और के साथ......” ये सोचते ही आनंद की आंखे हैरानी से बड़ी हो गयी, आनंद देखना चाहता था कि चाची आखिर कर क्या रही है, उसने दरवाजे के की होल में झाँकने की कोशिश की तो अंदर उसे अपनी चाची बेड पर बैठी दिखाई दी और उसने हाथ में टेलीफोन पकड़ा हुआ था,

आज प्रभा ने एक बेहद झीने से कपडे की बनी हल्की पारदर्शी नाईटी पहनी हुई थी, जो सिर्फ उसके घुटने तक ही थी, प्रभा का गदराया बदन, उसका मासल उभरा हुआ पेट, रसीले होंठ, भरे हुए गुलाबी गाल और उसके मोटे मोटे बूब्स को देखकर आनंद की आँखे खुली की खुली रह गयी, आज से पहले उसने अपनी चाची को इस नज़र से नहीं देखा था

अपनी चाची के इस जानलेवा गदराये बदन को देख कर आनंद का लंड धीरे धीरे होश में आने लगा, आनंद अपनी चाची की मोटी-मोटी चुचियो का उभार उसकी नाइटी से साफ देख पा रहा था, चाची का उठा हुआ गदराया लगभग नंगा पेट और उस पर एक बड़ी सी गहरी नाभि की झलक सी देख कर आनंद का तो कलेजा ही मुंह को आ गया, आज से पहले उसने अपनी चाची को इस तरह से कभी भी नही देखा था, उसके पेट का उठाव और नीचे फैली हुई कमर को देख कर ही आनंद को ना चाहते हुए भी उसके फूले हुए गदराए भोसड़े का एहसास होने लगा था 

प्रभा की मोटी-मोटी जांघे नाइटी के अंदर से भी इतनी गदराई नज़र आ रही थी कि आनंद को लगा कि अभी इस मस्तानी घोड़ी के बदन से चिपक जाए, साली नंगी कैसी गदराई लगती होगी क्या माल है, ऐसी माल को तो चोदने मे मज़ा आ जाए, 

पर अगले ही पल उसे याद आ गया कि वो अपनी चाची के बारे में ऐसी गलत बाते सोच रहा है, उसने तुरंत अपना दिमाग झटक दिया और अपना ध्यान फिर से चाची की बातो में लगाने लगा 


“जान....तुम्हारे बिना तो एक एक पल काटना मुश्किल है......मन करता है कि बस दोड़कर तुम्हारी बाँहों में आ जाऊ..” प्रभा ने फ़ोन पर कहा, 

अपनी चाची के मुंह से ऐसी बात सुनकर आनंद को बड़ा ही झटका लगा, हालाँकि उसे पता था कि प्रभा चाची खुले विचारों की ओरत है पर उसे ये बिलकुल अंदाज़ा नही था कि वो अपने पति की पीठ पीछे ऐसी कुछ हरकत भी कर सकती है 

आनंद को अपनी चाची पर अब थोडा गुस्सा भी आ रहा था, वो अंदर जाकर अपनी चाची को रंगे हाथों पकड़ना चाहता था पर फिर भी वो वहीं खड़ा की होल से अंदर की हरकत देखता रहा, वो जानना चाहता था कि आखिर ये इंसान है कौन जिसके लिए प्रभा चाची जगदीश चाचा जैसे इन्सान को भी धोखा दे रही है, उसने फिर अपने कान और आंख दरवाजे पर सटा दिए 


“जान ....तुम्हारे बिना तो ये तन्हाई काटने को दौड़ती है.....जब मैं तुम्हारी बाँहों में होती हूँ तो लगता है कि बस वक्त थम जाये और मैं हमेशा तुम्हारी बाँहों में ही बसी रहूँ” प्रभा बोली 

आनंद लगातार हैरानी से बस प्रभा और उस अनजान सख्श की बातें सुने जा रहा था,

(मैं प्रभा की बाते लिख रहा हूँ उस अनजान सख्श की बातो को ......से represent किया है )



“क्या जान ,तुम हमेशा मुझसे ये क्यों पूछते हो .........................................................................
ठीक है बताती हूँ 
...............................
मैंने आज वो तुम्हारी गिफ्ट की हुई नाईटी पहनी है 
........................ 
सच में वहीं पहनी है 
.................
सुंदर तो मैं हमेशा ही लगती हूँ
.................
अंदर?
...............
अंदर और क्या पहनूंगी ? तुम्हे तो पता ही है कि मुझे सोते समय अंदर कुछ भी पहनना पसंद नही”


आनंद के तन बदन में जैसे आग लग गयी ये सुनकर कि चाची ने नाईटी के अंदर कुछ नही पहना,
“मतलब चाची अंदर से बिलकुल नंगी है” ये सोच आते ही आनंद का लंड जो अभी तक धीरे धीरे ही होश में आ रहा था, उसने तुरंत तुनक कर एक जोरदार ठुमकी ली, और आनंद के जिस्म में एक अजीब सी मीठी लहर दौड़ गयी, पर वो लगातार अपना ध्यान चाची और उस सख्श की बातो में लगाये हुए था”
“आज वो मेरे पति बाहर गये है कुछ दिन के लिए, और दीदी (रमा –आनंद की मां) आज अपनी किसी सहेली की शादी में गयी हैं सभी बच्चो को लेकर, तो वो भी आज लेट ही आएगी आज

...............................
वो मैंने दीदी से बहाना बना दिया कि मेरा सर दुःख रहा है इसलिए नही जा पाऊँगी 
...............
ह्म्म्म.....स्मार्ट तो मैं हूँ ही 
..............
काश तुम यहाँ होते
........
क्या करती ये तो मैं तुम्हे तभी बताती जब तुम यहाँ होते
.....................
मेरी फूलकुमारी भी तुम्हारी याद में टेसुए बहा रही है बेचारी”


“ ये फूलकुमारी कौन है????” आनंद मन ही मन सोचने लगा पर उसे समझ नही आ रहा था कि चाची किसकी बात कर रही है, कौन आंसू बहा रहा है? पर अगले ही पल उसे जवाब मिल गया,

क्यूंकि प्रभा टेलीफोन पर बात करते हुए अपनी चुत को धीरे धीरे मसलने लगी, और आनंद को अब समझ आ गया था की चाची अपनी चुत की बात कर रही है 
चाची की चूत के बारे में सोचते ही आनंद को जैसे झटका सा लगा, उसके पुरे बदन में सुरसुरी सी दौड़ गयी और उसका लंड अब फुल कर कुप्पा हो गया जो उसकी पेंट में बड़ा सा तम्बू बनाकर उसे अब तकलीफ देनें लगा था 

अंदर प्रभा अब धीरे धीरे गरम होकर अपनी चुत को नाईटी के उपर से ही जोर जोर से मसलने लगी थी, पल प्रतिपल आनंद की उत्तेजना लगातार बढ़े जा रही थी, उसके मन के एक कोने से ये भी आवाज़ आ रही थी कि उसे अपनी चाची को इस तरह नही देखना चाहिए पर फिर तुरंत उसके दिमाग से आवाज़ आती कि ये यहाँ अपने आशिक के साथ टेलीफोन पर रंगरेलियां मना रही है, तो मैं क्या थोडा सा देखकर मज़ा भी नही ले सकता, आनंद ने अपने दिल की आवाज़ को तरजीह नही दी और दिमाग की बात को ही सुनकर अपना ध्यान दोबारा प्रभा पर ही लगा दिया 

पर इस बार जब उसने अंदर देखा तो देखते ही उसके बदन में जैसे 440 वोल्ट का झटका सा लग गया, कान बुरी तरह गरम हो गये, चेहरे का रंग सुर्ख लाल हो चूका था, 

अंदर प्रभा ने अपनी छोटी सी नाईटी को अपने बूब्स वाली जगह से हटा दिया था और उसके भरी भरकम रसीले मम्मे उसकी हथेलियों में फंसकर थिरकन कर रहे थे,प्रभा अपनी रसीली चुचियो को एक हाथ से बुरी तरह मसले जा रही थी, और उसके मुंह से लगातार आहे निकले जा रही थी, जिसकी आवाज़ लगातार बढ़ते जा रही थी 
आनंद की उत्तेजना भी अब परवान चढ़ चुकी थी, उसका लंड अब पेंट फाड़कर बाहर आने को मचल रहा था, आनंद से भी अब और तकलीफ बर्दास्त नही हुई और उसने तुरंत अपनी चैन को खोलकर अपने फडफडाते लंड को अपनी चड्डी की कैद से आजाद कर दिया,

आनंद अब अंदर के नज़ारे को देखकर अपने 8 इंच लम्बे और 3.5 इंच मोटे लंड को हाथ से पकडकर मसलने लगा 

अंदर प्रभा अब ही एक हाथ से टेलीफोन पकड़े हुए थी और दुसरे से अपनी भारी चुचिया मसले जा रही थी 


“हय्यय्य्य्य जान.......तुम्हारे बिना मैं क्या करूँ बताओ....कौन मेरी इन रसीली चुचियो को चूस चूस कर लाल करेगा.....हय्य्य....आ जाओ न मेरे पास......तुम्हारे लंड की याद में मरी सी जा रही हूँ मैं........” 

प्रभा के मुंह से लंड शब्द ने आनंद के लंड के लिए आग में घी की तरह काम किया, आनंद अब और जोर जोर से अपने लंड को हिलाने लगा 

और फिर वो पल आ गया जिसे देखकर आनंद लगभग गिरते गिरते बचा ,

प्रभा ने धीरे से अपनी लपलपाती उंगलियों को आगे बढ़ाया और हल्के से अपनी चुत के उपर के कपडे को हटाकर उसे बिलकुल बेपर्दा कर दिया, आनंद ने आज अपने जीवन में पहली बार कोई चुत देखि थी, उसके गले की सांसे जैसे गले में ही अटक गयी थी, माथे पर हलका हल्का पसीना आने लगा था 

आनंद की आँखें चौंधिया गयी थी मानो जैसे वो किसी चमकदार चीज़ को देख रहा हो, प्रभा की चूत की फांके एकदम गुलाबी थी, और एक छोटा सा काला तिल उसके चुत के दाने के बिलकुल पास था जो चूत की सोभा में चार चाँद लगा रहा था, चूत एक दम सॉफ थी, एक भी बाल नही मनो जैसे 2 -3 दिन पहले ही साफ की गयी हो, सफेद मखमली स्किन जैसे कोई कपास का छोटा सा बंडल किसी ने प्रभा की जाँघो के बीचों बीच रख दिया हो
आनंद अपना थूक निगलने की कोशिश कर रहा था पर उसे लग रहा जैसे वो उसके गले में ही फँस गया हो 

इधर प्रभा ने अब धीरे से अपनी उंगलियों को अपनी चुत की गुलाबी पंखुडियो पर रख दिया और फिर प्रभा ने जैसे ही अपनी चूत के फांको को मसला उसका जिस्म सिहर उठा, साँसे ऊपर नीचे चलने लगी, बूब्स के निप्पल तन कर खड़े हो गये

प्रभा एक हाँथ से चूत को सहलाती हुई अब दूसरे हाथ से अपने बूब्स को मसलने लगी, उसके जिस्म में कामुक उत्तेजना का उफान बढ़ने लगा और उसने एक झटके में अपनी नाईटी को अपने मादक गदराये जिस्म से अलग कर दिया , प्रभा धीरे धीरे अपनी चुत को अब सहलाने लगी और फिर पलक झपकते ही प्क्क्कक की आवाज़ के साथ उसने एक ऊँगली अपनी चूत की फांको में फंसा दी और साथ साथ अपने अंगूठे से अपनी चूत के मुख पर चमकते हुए लाल दाने को सहलाने लगी , एसा करते ही उसका जिस्म झटके मारने लगा 

प्रभा ऊँगली से चूत को लगातार छेड़े जा रही थी और जब उत्तेजना पल प्रतिपल बढ़े जा रही थी, चूत में ऊँगली डालकर घर्षण करने से उसकी चुत की गर्मी लगातार बढती जा रही थी, उसकी चूत से लगातार कामरस बह कर उसकी उंगलियां भिगोने लगा था, और ये बहता कामरस उसकी चूत में चिकनाई का काम कर रहा था

इधर आनंद के हाथ अब अपने लंड पर सरपट दोड़े जा रहे थे, उसकी साँसे भारी होने लगी थी,

प्रभा अब चूत में पूरी ऊँगली घुसेड़ने का प्रयास कर रही थी परंतु चूत की गहराई और ऊँगली के छोटेपन के कारण उसे आनंद नहीं आ रहा था, प्रभा अब पूरी तरह चूत की गर्मी और जिस्म की हवस के आगे गुलाम बन चुकी थी

इधर आनंद प्रभा को अपनी चुत में ऊँगली देख सोचने लगा “हय्य काश चाची की जगह मेरी ऊँगली होती, हय्य चाची एक मोका दो , इस छोटी सी ऊँगली से आपका क्या होगा, आपकी चुत के लिए तो मेरे जैसे लंड की जरूरत है”

आनंद अभी सोच ही रहा था कि अगले ही पल उसकी आखें पूरी तरह चमक सी गयी, क्यूंकि अंदर प्रभा के हाथ में एक मोटा लम्बा सा बैंगन चमक रहा था,

और फिर पलक झपकते ही प्रभा ने उस मोटे लम्बे बैंगन को अपनी चुत में घुसा दिया,ती है, बैंगन अंदर जाते ही चूत की दीवारो से रगड़ खा गया और प्रभा के मुख से जोर की सिसकारी फूटने लगी, प्रभा अब और तेज़ी से बैंगन को जोरो से अंदर बाहर करने लगी, जितनी तेज़ी से प्रभा बैंगन को अंदर बाहर कर रही थी उतनी तेज़ी से ही आनंद अपने लंड को हिला रहा था 

पर अचानक प्रभा के ज्यादा जोर लगाने की वजह से बैंगन टूट गया , प्रभा ने उल्टी होकर अपनी चूत से वो टुटा हु बैंगन निकाला और फिर झटाक से दूसरा बैंगन डाल लिया,

टेलीफोन प्रभा के पास ही बेड पर था, शायद वो अपनी आहें अपने आशिक को सुना रही थी, 

लगभग 10 मिनट तक प्रभा बैंगन को चूत में अंदर बाहर करती है और झड़ जाती है, और फिर तभी प्रभा का जिस्म ऐंठने लगा और एक तेज सिसकी के साथ उसकी चूत की बंद नशे खुल गयी , एक तेज पिचकारी के साथ प्रभा की चुत में पानी की टंकी खुल गयी, ऐसा लग रहा था जैसे पानी की बाढ़ सी आ गई हो, प्रभा तो जैसे नशे में थी ,

इधर आनंद भी अब तेज़ी से अपने लंड को हिलाने लगा और फिर अचानक उसके बदन में मजे की एक लहर दौड़ गयी और उसके लंड से वीर्य की बोछार होने लगी, आनंद हल्के हल्के कराहते हुए झड़ने लगा और उसका आधा पानी दरवाज़े पर और आधा जमीन पर गिर गया 

आनंद को मुठ मारने में इतना मज़ा आज से पहले कभी भी नही आया था, उसने सोचा कि अब उसे उठकर उपर अपने कमरे में चले जाना चाहिए पर ना जाने उसे क्या सुझा और उसने फिर से अपने आँख कान दरवाजे पर सटा दिए 


“हाय जान ...........मजा आ गया ................चलो अब मैं फ़ोन रखती हूँ......बाद में बात करती हूँ राकेश भैया....”

प्रभा चाची के मुंह से राकेश का नाम सुनते ही आनंद का सर चकरा गया,

“तो क्या??????......चाची अपने सगे भाई से??????” आनंद का दिमाग भन्ना गया

आनंद को तो यकीन ही नही हो रहा था कि नार्मल सी घरेलू दिखने वाली ओरत इतनी सेक्सी और चुदक्कड भी हो सकती है, और अपने सगे भाई के साथ ही चुदाई करती है, 
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